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विशेष: लक्षद्वीप-मालदीव याद रहे लेकिन अपने ही ढाब आईलैंड को भूल गए मोदी जी!

"ढाब आईलैंड ऐसा इलाक़ा है जहां से सिर्फ़ 25 से 30 मिनट में बनारस के बाबतपुर एयरपोर्ट पहुंचा जा सकता है। सर्दी के दिनों में यहां दिन का तापमान 22 से 36 डिग्री सेल्सियस रहता है। मालदीव और लक्षद्वीप की तरह ही ढाब आईलैंड में सफ़ेद रेत के मैदान हैं। यहां आने के लिए न किसी परमिट की ज़रूरत है और न ही एंट्री प्रतिबंधित है।"
 Dhab Island

नए साल के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लक्षद्वीप पहुंचे और इस आईलैंड के टूरिज्म को प्रमोट करते हुए इस दौरे की तस्वीरें अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर डाली। मोदी ने लिखा, "जो लोग रोमांच पसंद करते हैं उन्हें लक्षद्वीप जरूर आना चाहिए।" इस दौरान उन्होंने स्नॉर्कलिंग (पानी में तैराकी का अभ्यास) भी की। लक्षद्वीप जैसा ही एक आईलैंड बनारस में भी है, जिसका नाम पीएम नरेंद्र मोदी की जुबां पर आज तक नहीं आया। ढाब के नाम से मशहूर यह आईलैंड गंगा नदी के बीच में बसा है, जिसकी खूबसूरती किसी को भी दीवाना बना सकती है।

बनारस और चंदौली के बीच गंगा नदी के दो पाटों के बीच ढाब आईलैंड सदियों पहले रेत पर बसा था। इसका इतिहास उतना ही पुराना है जितना बनारस और गंगा का। किंवदंतियों की मानें तो भगीरथ ने गंगा के बीचो-बीच इस सूबसूरत आईलैंड को संवारा था। ढाब आईलैंड अपनी विरासत के अलावा खेती-बागवानी और उच्च क्वालिटी के दुग्ध उत्पादन के लिए जाना जाता है। चौतरफा हरियाली, बाग-बगीचे, गंगा की तलहटी में दूर तक फैले रेत के मैदान और नीले आकाश मोहक नजारे पेश करते हैं। गंगा की सतह तक जाकर ढाब आईलैंड की खूबसूरती को अपनी आंखों से देख सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप के टूरिज्म को प्रमोट किए जाने के बाद ढाब आईलैंड के लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि सदियों से उपेक्षित इस इलाके पर सरकार की नजर-ए-इनायत कब होगी? ढाब आईलैंड की खूबसूरती लक्षद्वीप से कमतर नहीं है। यहां गंगा तट पर खड़े होकर निहारेंगे तो साफ आसमान, साफ हवा, किस्म-किस्म की सब्जियों के खेत और रेत के मैदान ढाब से प्यार करने के लिए पर्याप्त हैं। इस आईलैंड पर बनारस के आंचलिक परिवेश की असली झलक देखने को मिलती है, जहां भेड़-बकरियों और पशुओं के झुंड जहां-तहां जुगाली करते नजर आते हैं।

बनारस के इस टापू पर बसे गांवों में पहुंचने पर प्यार और भी गहरा हो जाता है। ढाब आईलैंड चौतरफा गंगा से घिरा है। बनारस के नमो घाट से इस आईलैंड की दूरी सिर्फ चार-पांच किमी है। स्टीमर अथवा नाव से नमो घाट, दशाश्वमेध घाट से लगायत अस्सी घाट तक का दीदार किया जा सकता है। ढाब से काशी विश्वनाथ धाम की रोमांचक यात्रा पर्यटकों को रिझाने के लिए शानदार अवसर दे सकती है।

ढाब आईलैंड पर खेतों में काम करता किसान परिवार

ढाब का जनजीवन

करीब साढ़े सात किमी दायरे में फैले इस आईलैंड की आबादी 52 हजार के आसपास है। इस टापू पर पांच खूबसूरत गांव बसे हैं। ये गांव हैं रमचंदीपुर, गोबरहां, मोकलपुर, मुस्तफाबाद (आंशिक) और रामपुर (आंशिक)। ढाब आईलैंड में सर्वाधिक आबादी यादव, मल्लाह और दलितों की है। इनके अलावा गोंड, कहार, नाई, धोबी, गुसाई, मुसलमान, राजभर के अलावा राजपूत, ब्राह्मण जातियों के लोग रहते हैं। यह पूर्वांचल का वो ग्रामीण इलाका है जहां के बाशिंदे सर्वाधिक विदेशी मुद्रा कमाते हैं। वर्तमान समय में, रिंगरोड बनने के बाद ढाब आईलैंड सीधे बाबतपुर एयरपोर्ट से जुड़ चुका है। मुस्तफाबाद के पूर्व प्रधान राजेंद्र सिंह कहते हैं कि विश्व प्रसिद्ध सारनाथ और फूलों व फलों की खेती के लिए मशहूर चिरईगांव भी ढाब आईलैंड के नजदीक हैं, जहां पर्यटक और सैलानी आसानी से घूम सकते हैं। संसाधनों के दोहन और पर्यटन के नजरिये से इस आईलैंड को विकसित किया जाए तो ढाब आने वाले दिनों में एक आकर्षक क्षेत्र बन सकता है।

ढाब आईलैंड के विकास का खाका खींचते हुए राजेंद्र कहते हैं, "ढाब आईलैंड पर करीब चार सौ एकड़ सरकारी जमीन खाली पड़ी है। पर्यटन विकास के लिए किसी की खेती की जमीन के अधिग्रहण की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। इसे पर्यटक विलेज के रूप में भी विकसित किया जा सकता है। होटल और रेस्त्रा खोलने के लिए उद्यमियों को आमंत्रित किया जाए तो यह इलाका अपनी खूबसूरती की वजह से हनीमून कपल्स और वाटर स्पोर्ट्स लवर्स के बीच पसंदीदा स्थान बन सकता है। मालदीव की तरह ढाब आईलैंड के सोते में सैलानियों के लिए स्विमिंग, कयाकिंग और वेकबोर्डिंग जैसी कई मनोरंजक वाटर एक्टिविटीज शुरू की जा सकती है। रीफ स्कुवा डाइविंग के लिए भी यह इलाका अच्छा है। दुर्योग की बात यह है कि पर्यटन की दृष्टि से इस इलाके के विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कई अर्जियां भेजी जा चुकी हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।"

ढाब बनारस का ऐसा इलाका है, जहां यूपी में सर्वाधिक विदेशी मुद्राएं आती हैं। इस इलाके के युवाओं को दुबई, कतर और सउदी अरब की सपनीली दुनिया सबसे ज्यादा रिझाती है। ढाब आईलैंड के करीब एक हजार नौजवान अपने परिवार को छोड़कर दुबई, शारजाह, मस्कट, दोहा-कतर, लीबिया आदि देशों में मजूरी करते हैं। ढाब के ज्यादातर लोग गल्फ देशों में मकान बनाने का काम करते हैं। कुछ ईंट चिनाई का काम करते हैं तो कई कारपेंटरी। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मकानों की सेंटरिंग और बढ़ईगीरी के हुनर के उस्ताद माने जाते हैं।

ढाब आईलैंड से खाड़ी देशों में काम करने के लिए जाने का चलन दशकों से चला आ रहा है। अरब सागर के उस पार बसे खाड़ी देशों में काम करना ढाब इलाके के लोगों के लिए सपनों की दुनिया है। करीब 2700 लोगों की आबादी वाली नखास बस्ती में शायद ही कोई घर होगा, जिसके परिवार का कोई आदमी गल्फ में नहीं होगा। साल 1976 में वो जब दुबई गए थे तब वहां बहुत काम था। दुबई में उन्होंने बुर्ज खलीफा जैसी इमारतों को खड़ा किया। बरसों तक अपना पसीना बहाया। अब वहां काम नहीं रह गया है। पूर्वांचल में नौकरी की संभावना न होने के कारण लाचारी में बड़ी संख्या में लोग वहां फंसे हैं।

मुश्किल हुई औरतों की ज़िंदगी

दुबई में काम करते हुए जिंदगी के कई दशक गुजार देने वाले नखवां बस्ती के बालक राम बेबाकी से स्वीकार करते हैं, "गल्फ सिंड्रोम एक हकीकत है। बहरीन, कतर, यूनाइटेड अरब अमीरात और ओमान में भी बनारस के सैकड़ों कामगार हैं। खाड़ी देशों में लोगों के सपने बसते हैं। लाचारी में ढाब की सैकड़ों औरतों के ख्वाब और सपने कुचल रहे हैं। तेल की दौलत से मालामाल ये देश भले ही ढाब इलाके के सैकड़ों कामगारों की मंजिल रहे हों, लेकिन कोरोना संकट के बाद ढाब आईलैंड के कामगारों की जिंदगी बेहद कठिन हो गई है। जब तक अपने घर में नौकरी के पर्याप्त अवसर नहीं होंगे, तब तक गरीबी और मुफलिसी में जीवन गुजारने वालों को सऊदी अरब, दुबई, कतर जैसे खाड़ी देश अपनी तरफ खींचते रहेंगे।"

बनारस जिले का ढाब आईलैंड चंदौली लोकसभा सीट का हिस्सा है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र से बिल्कुल सटा हुआ है। इस इलाके के सांसद हैं भाजपा के डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय। डॉ पांडेय केंद्र सरकार के काबीना मंत्री भी हैं, लेकिन टापू के लोग इनके दर्शन के लिए तरस जाते हैं। इलाके के लोगों को शिकायत है कि इलाकाई विधायक अनिल राजभर भी यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री हैं, लेकिन इन्हें भी ढाब के विकास की तनिक भी चिंता नहीं है। इस आईलैंड के लोग चाहते हैं की यूपी और केंद्र सरकार दोनों मिलकर इसे पर्यटक विलेज के रूप में विकसित करें, लेकिन ग्रामीणों की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रही हैं।

ढाब आईलैंड में सब्जियों की खेतों में काम करता किसान

विकास की कीमत चुका रहा ढाब!

बनारस के आंचलिक पत्रकार प्यारेलाल यादव कहते हैं, "ढाब आईलैंड की धरती बेहद उपजाऊ है। बनारस में दूध और सब्जियों की सर्वाधिक आपूर्ति इसी ढाब से ही होती है। यहां के ज्यादातर लोग बागवानी करते हैं या फिर पशुपालन। ये धंधा भी अब आसान नहीं रह गया है। जंगली सुअर और घड़रोज बाग-बगीचे और सब्जियों की फसलें बर्बाद करने लगे हैं। ग्रामीणों की कड़ी मेहनत और बुलंद हौसलों के बावजूद ढाब आईलैंड में विकास सपना है। कुछ साल पहले तक यह आईलैंड समूची दुनिया से कट जाता था। सावन-भादों में न बिजली मिलती थी और न मोबाइल नेटवर्क। बनारस के नक्शे पर इस टापू के गांव दिखते ही नहीं थे।"

"अखिलेश सरकार ने मुस्तफाबाद के पास एक शानदार पुल बनाकर ढाब आईलैंड के लोगों की मुश्किलें थोड़ी आसान की, लेकिन दुश्वारियां कम नहीं हुई हैं। ढाब आईलैंड को गंगा ने तब से ज्यादा रेतना शुरू किया है जब से जलपोत चलाने के लिए नदी की ड्रेजिंग कराई गई। रिंग रोड बननी शुरू हुई तो भ्रष्टाचार में डूबी सरकारी मशीनरी ने विकास के बहाने ठेकेदारों और माफियाओं को मिट्टी के अवैध खनन की छूट दे दी। सरकार की घोर उपेक्षा के चलते ठेकेदार और माफिया भी इस आईलैंड का वजूद मिटाने में जुट गए हैं। रिंगरोड के विकास के नाम पर टापू के किनारे पोकलेन लगाकर चौतरफा बड़े पैमाने पर अवैध ढंग से मिट्टी निकाली गई है, जिससे यहां बड़े-बड़े गड्ढे हो गए हैं। ढाब इलाके में अवैध खनन जारी रहा तो यह आईलैंड ऐसे लोगों की जन्मस्थली के रूप में याद रखा जाएगा जो पूर्वाचल में सबसे पहले किसी खूबसूरत टापू पर विस्थापित हुए थे।"

बनारस में कई मर्तबा बाढ़ और शक्तिशाली तूफान आए, लेकिन ढाब के बाशिंदों को सुरक्षित ठौर पर जाने की जरूरत नहीं पड़ी। बनारस में गंगा ने इकलौते टापू पर कई पीढ़ियों से हजारों परिवारों को शरण दे रखी है, लेकिन पिछले एक दशक में गंगा तेजी से इस टापू का अस्तित्व मिटाने में जुटी हैं। गोबरहां के पास गंगा तेजी से आईलैंड को काट रही हैं। इसी तरह का कटान मुस्तफाबाद में भी हो रहा है। रमचंदीपुर, गोबरहां, मोकलपुर, मुस्तफाबाद और रामपुर गांव में सैकड़ों बीघा जमीन गंगा लील चुकी है। जोखन सिंह कहते हैं, "रेत की दीवारें अब इन गावों की सरहद को बचाने में सक्षम नहीं रह गई हैं। ढाब के मूल निवासी उस समस्या की कीमत चुका रहे हैं जो उन्होंने खड़ी नहीं की है। सरकार ने हम पर अपनी समस्या लादी है और अब वह चाहती है कि हम खुद ही सब कुछ उठाकर यहां से चले जाएं। ये किस तरह की सरकार है? "

ढाब आईलैंड का आकार लगातार सिकुड़ता जा रहा है। साथ ही इससे सटे चंदौली जिले के कुरहना, कैली, महडौरा, भोपौली समेत कई गांवों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ढाब आईलैंड को बचाने के लिए पिछले साल गंगापुर और रामचंदीपुर में तटबंध बनाए गए। रामचंदीपुर में 245 मीटर में आठ कटर बनाए गए हैं। गंगापुर में भी कटर बनाने का काम पूरा हो चुका है। इस परियोजना पर करीब 6.28 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। सिंचाई विभाग का दावा है कि तटबंध बनने से रामचंदीपुर, गंगापुर धराधर, गोबरहा, रामपुर, मिसिरपुरा, अम्बा, छितौनी, चांदपुर, मुस्तफाबाद आदि गांव पूरी तरह सुरक्षित हो जाएंगे।

दुश्वारियों का पहाड़ ढो रहे लोग

एक्टिविस्ट बद्री यादव कहते हैं, "बनारस को विकास के नए मॉडल के रूप में विकसित करने की जिद इस टापू पर रहने वाले लोगों पर भारी पड़ती नजर आ रही है। गंगा के किनारों से शुरू किया गया अवैध खनन अब आबादी की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। तटबंध बनाने के बजाय ढाब आईलैंड को उजाड़ने की कवायद लोगों के गले से नीचे नहीं उतर रही है। इस आईलैंड को गंगा दोनों ओर से काट रही है। इस वजह से यह टापू सिकुड़ता जा रहा है। गंगा का कटान रोकने लिए प्रदेश सरकार ने इस साल कुछ जरूरी इंतजाम जरूर किया है, लेकिन ढाब के बाशिंदों को ज्यादा राहत की उम्मीद नहीं है।"

मुस्तफाबाद के डॉ. शशिकांत सिंह कहते हैं, "जब भी कोई चुनाव आता है तो ढाब आईलैंड पर रहने वाले ग्रामीणों को लुभाने के लिए नेताओं का रेला जुटता है, लेकिन मुसीबत के समय कोई दिखता ही नहीं है। गंगा के रास्ते ढाब आईलैंड से बनारस शहर कुछ मिनट का रास्ता है, लेकिन सरकार ने आवागमन का कोई इंतजाम नहीं किया है। ढाब आईलैंड के बाशिंदे चाहते हैं कि रिंग रोड से इस टापू को भी जोड़ दिया जाए, लेकिन उनकी आवाज सरकार तक नहीं पहुंच पा रही है। सालों से आवागन की दुश्वारियां झेल रहे ढाब इलाके के लोग खासे भयभीत हैं और इन्हें उजाड़ने अथवा विकास के बहाने उजाड़े जाने का डर सता रहा है।"

2 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे के 36 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी अपने परिवार, रिश्तेदारों और कुछ दोस्तों के साथ यहां पहुंचे थे। मोदी ने लक्षद्वीप में समुद्र किनारे सैर की और स्नॉर्कलिंग की खूबसूरत तस्वीरें शेयर की। लक्षद्वीप, केरल के कोच्चि से 440 किलोमीटर दूर है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, लक्षद्वीप की कुल आबादी क़रीब 64 हज़ार है, जिसमें 96 फ़ीसदी मुसलमान हैं। लक्षद्वीप का क्षेत्रफल क़रीब 32 वर्ग किलोमीटर है। बनारस के ढाब आईलैंड की आबादी 52 हजार के आसपास है और इसका दायरा सिर्फ सात किमी के आसपास है। लक्षद्वीप में लोग समुद्र में मछलियां पकड़ते हैं और नारियल की खेती करते हैं। ढाब इलाका बेहद उपजाऊ है। यहां बड़े पैमाने पर सब्जियां उगाई जाती हैं। बनारस के लिए सर्वाधिक दूध और सब्जियों की आपूर्ति यही इलाका करता है। ढाब आईलैंड का दूध न सिर्फ ज्यादा गाढ़ा होता है, बल्कि स्वाद के मामले में भी बेजोड़ है।

गंगा पर निर्माणाधीन पुल जो ढाब आईलैंड की सूबसूरती का दीदार कराएगा

ढाब की ब्रांडिंग क्यों नहीं?

बनारस का ढाब आईलैंड उस शिवपुर विधानसभा का हिस्सा है, जो पहले चिरईगांव हुआ करता था। इस इलाके का प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह ने ढाब आईलैंड में विकास की कई योजनाएं बनाई, लेकिन कुछ ही मूर्तरूप ले सकीं। वह कहते हैं, "हम ढाब आईलैंड को पर्यटक विलेज के रूप में विकसित करना चाहते थे, लेकिन हमारा सपना साकार नहीं हो सका। हमारे प्रयास से ही गंगा के सोते पर पुल बना, जिससे लोगों की दुश्वारियां मिटीं। पिछले सात सालों में बीजेपी सरकार ने यहां कोई ऐसा काम नहीं किया जिससे ढाब आईलैंड के हालात बदलें। अचरज की बात यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे के बाद सोशल मीडिया पर एक तबका ये कहने लगा है कि अब छुट्टी मनाने मालदीव नहीं, लक्षद्वीप जाएं। बड़ा सवाल यह है कि बनारस में जब लक्षद्वीप से बेहतर आईलैंड है तो मोदी ढाब की ब्रांडिंग क्यों नहीं कर रहे हैं?"

पूर्व मंत्री वीरेंद्र यह भी कहते हैं, "ढाब आईलैंड ऐसा इलाका है जहां से सिर्फ 25 से 30 मिनट में बनारस के बाबतपुर एयरपोर्ट पर पहुंचा जा सकता है। सर्दी के दिनों में यहां दिन का तापमान 22 से 36 डिग्री सेल्सियस रहता है। मालदीव और लक्षद्वीप की तरह ही ढाब में सफ़ेद रेत के मैदान हैं। यहां आने के लिए न किसी परमिट की जरूरत है और न ही एंट्री प्रतिबंधित है। मोकलपुर में टूंड़ी बाबा का मंदिर, रमचंदीपुर में उद्दईबीर के अलावा यहां मौनी बाबा की कुटिया भी है। पर्यटन के नजरिये से विकास के मामले में इस इलाके में आज तक कोई काम नहीं हुआ। यहां स्टेहोम विकसित कर पर्यटन को आसानी से बढ़ावा दिया जा सकता है। बनारस के इकलौते ढाब आईलैंड के लोग बीजेपी सरकार से सवाल कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस आईलैंड में घूमने कब आएंगे? कब साकार होगा इस इलाके के पर्यटन विकास का सपना?"

सभी फोटोग्राफः विजय विनीत

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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