सुधीर पटवर्धन : महानगरीय जीवन दृश्यों के चित्रकार
सुधीर मनोहर पटवर्धन मुंबई के ऐसे चित्रकार हैं जिन्होंने यथार्थ की दुनिया से अपना गहरा और संवेदनशील संबंध बनाया। उन्होंने मुंबई के कल-कारखानों में काम करने वाले लोगों और जीवन जीने के लिए रोज़ाना का संघर्ष करने वाले आम लोगों को चित्रित किया। इसके लिए उन्होंने मुंबई शहर के स्थानीय भू-स्थापत्य, जमे हुए पानी आदि को सृजनात्मक कला व सौंदर्य से अभिव्यक्त किया। उनके चित्रों में मुख्य चरित्र आम संघर्षशील मुंबईवासी ही हैं। उन्होंने कला की कोई अकादमिक शिक्षा नहीं थी। वे स्व-प्रशिक्षित चित्रकार हैं।
भू-दृश्य चित्रण (लैंडस्केप पेंटिंग) हो या नगर दृश्य (सिटी स्कैप) हमेशा से ये विश्व स्तर की कला में समसामयिक ही रहा है। इसके द्वारा चित्रकार एक तरह से वर्तमान समय, प्रकृति और नगर निर्माण कला को ही सृजनात्मक ढंग से चित्रित करते हैं। ये तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और उसके तहत तेज़ी से बदलते नगरीय स्वरूप का ऐतिहासिक दस्तावेज बन जाता है, जो हमारी स्मृतियों को सहेज कर रखता है।
सुधीर ऐसे चित्रकार हैं जिन्होंने महानगरीय जीवन और स्थापत्य, गगनचुंबी बड़ी इमारतों और उनके इर्द-गिर्द अनिवार्य रूप से मौजूद झोपड़पट्टियों को चित्रित किया है। सुधीर पटवर्धन ने मुंबई की गतिशीलता को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले निचले तबके के मेहनतकश लोगों को चित्रित किया है। इन मेहनतकश लोगों में, कल-कारखानों के इर्द-गिर्द विशालकाय इमारतों और उनके पार्श्व में बने टीन के छप्पर वाले अस्थायी घरों और टीन शेड वाले मकानों में रहने वाले लोग, रोज़ाना दैनिक ज़रूरतों की पूर्ति के लिए पसीना बहाने और परिश्रम व संघर्ष करने वाले लोग शामिल हैं। ये मेहनतकश लोग ही सुधीर पटवर्धन के चित्रों में मुख्य चरित्र हैं। समाज का यह विरूपित स्वरूप, सामाजिक रूप से दो स्तरों पर विभाजित लोगों का है; एक-श्रम करने वाले झोपड़पट्टियों और चालों में हैं, और दूसरा-उनके श्रम का लाभ लेने वाले शानदार सुसज्जित इमारतों में।
सुधीर पटवर्धन मूल रूप से महाराष्ट्र के हैं। उनका जन्म 1949 में पुणे में हुआ था। उनके पिता मनोहर पटवर्धन (राजा) एक आयुध कारखाने में काम करते थे यही वजह थी कि सुधीर ने कारखानों में काम करने वाले लोगों की ज़िंदगी को पास से देखा और उनके संघर्षों को संजीदगी से महसूस किया। सुधीर ने 1972 में पुणे के सशस्त्र बल मेडिकल कॉलेज से चिकित्सा में स्नातक किया। इसी दौरान 1974 में उन्होंने अपने 'फार्गुयसन काॅलेज' की सहपाठी डॉ॰ शांता कल्याणपुरकर से शादी की जो एक कुशल कथक नृत्यांगना हैं।
मुंबई के थाणें में 1975 में सुधीर पटवर्धन ने अपना व्यवसाय रेडियोलॉजिस्ट के रूप में शुरू किया। चित्रकला में सुधीर की बचपन से ही अभिरूचि थी। अतः अपना खाली समय वे चित्र बनाने और स्वत: ही कला अध्ययन में लगाने लगे। चित्रकला सीखने के लिए सुधीर स्थानीय कला प्रशिक्षण केंद्र में जाने लगे। कला का गहन अध्ययन करने के लिए वे कला इतिहास के अध्ययन के साथ-साथ उत्कृष्ट कलाकारों के चित्रों और चित्र तकनीकियों का अध्ययन करने लगे। मुंबई में रहने से उन्हें वहां की कला प्रदर्शनियों में जाने और कलाकारों से मिलने का अवसर मिला। सुधीर पटवर्धन ने आधुनिक कला, पुनर्जागरण काल की कला के साथ-साथ लोक कला का भी अध्ययन किया।
एक समृद्ध विचारवान कलाकार के समान सुधीर की रूचि मार्क्सवादी साहित्य और नाटक में भी थी। 'ज्यां पाल सात्र' और 'ब्रतोल्त ब्रेख्त' आदि नाटकों के प्रभाव से सुधीर का झुकाव सामाजिक यथार्थवाद की ओर गया जो बाद में उनके चित्रों का विषय बने। मार्क्सवादी चिंतक अर्न्स्ट फिशर की किताब 'नेसेसिटी ऑफ आर्ट' के अध्ययन से उनकी कला संबंधी वैचारिक अवधारणा दृढ़ हुई कि कला से मानव जाति का संबंध आदिम काल से ही है। कला का विकास मानव जाति के विकास को दर्शाता है। इन सभी अध्ययन से सुधीर आम लोगों के और करीब आए और उन्होंने श्रमजीवी वर्ग के संघर्षों को अनुभव किया। लेकिन सुधीर पटवर्धन ने यह महसूस किया कि सामाजिक कार्यकर्ता बनने के बजाय अपनी चित्रकला के माध्यम से आम लोगों के कठिन जीवन और संघर्षों को दिखाया जा सकता है।
सुधीर के चित्रों में हम पाते हैं-मुंबई के उपनगरीय क्षेत्रों जैसे कांजूरमार्ग, थाणें के पोखरण, उल्लासनगर, राबोदी, आदि और उसके आस-पास के तेज़ी से बदलते सामाजिक परिवर्तन जो कि वहां के आधुनिकीकरण से ही बदल रहा था। निस्संदेह इससे सबसे बड़ा कष्ट और यंत्रणा आम लोगों को ही होता है। सुधीर ने अपने निजी अनुभवों से आम लोगों की व्यथा को समझा और इन आम लोगों के प्रति उनकी सहानुभूति ही थी जिसके कारण उनके चित्रों जैसे-टाउन (1987) शीर्षक चित्र, नुलाब (1985), पोखरण के उपर (2005), पाइपलाइन (2005) और फ्लाईओवर (2005) जैसे चित्रों में बहुत ही यथार्थवादी ढंग से अभिव्यक्ति हुई है।
1975 से 1985 तक के चित्रों में सुधीर पटवर्धन ने प्रतिदिन ट्रेन से सफर करने वाले लोग, ट्रेन के लिए स्टेशन पर प्रतीक्षा करने वाले लोगों की भीड़, ओवरब्रिज पार करने वाले लोग, एक ईरानी भोजनालय, बस से उतरता व्यक्ति आदि को चित्रित किया है। इसके अलावा इसमें दक्षिणी और केंद्रीय मुंबई के दृश्य चित्र भी शामिल हैं जिसमें मौजूद हैं सुसज्जित महंगे कैफे और फुटपाथ। सुधीर पटवर्धन ने मुंबई के धनाढ्य आलीशान बंगलों में रहने वालों और झोपड़पट्टियों या खोली में रहने वाले जन साधारण के बीच के विरोधाभास को महसूस किया है। 'बंबई' चाहे जितना भी अत्याधुनिक हो जाए इसे सजाने-संवारने वाले, गतिशील बनाने वाले, स्लम या खोलियों में 65 प्रतिशत रहने वाली इस आबादी की ज़िंदगी और जीवन स्तर अबतक नहीं सुधरी है।
सुधीर के चित्र 'बंबई' के नगर दृश्य चित्र ही नहीं हैं वे आधुनिक 'मुंबई' का इतिहास हैं। आमजन की जीवन शैली के दास्तावेज़ हैं। 1986 से 1996 तक के चित्रों में सुधीर पटवर्धन ने मुंबई की भीड़ और समूह को चित्रित किया जो कि चुनौती पूर्ण संयोजन थे।
सुधीर ने अपनी शिक्षा का उपयोग करते हुए 2005 तक 'बंबई' के ठाणे में रेडियोलॉजिस्ट के बतौर काम किया। 2005 के बाद उन्होंने पूरी तरह से खुद को कला के लिए समर्पित कर दिया। 2004 के बाद सुधीर अपने चित्रों में भी थोड़ा बदलाव करते हैं जिसके तहत उनके चित्रों में भावनात्मक अभिव्यक्ति दिखती है। और साथ ही शहरी जीवन की त्रासदियां भी दिखती हैं। इस समय के चित्रों में सुधीर पारिवारिक संसार और बाहरी संसार के बीच मौजूद संबंधों की पड़ताल करते नज़र आते हैं।
शैली की दृष्टि से देखा जाए तो सुधीर पटवर्धन की चित्रण शैली में पाश्चात्य तकनीक लेकिन है लेकिन साथ ही भारतीयता लिए हुए है। मनुष्य शरीर के अंकन में सहज लचीलापन है, वे कहीं से कठोर नहीं हैं। उनके चेहरे के भावों के अंकन में कहीं से नाटकीयता नहीं है। उनके चित्रों में अति श्रम से थके, क्लांत चेहरे, आंखों में उदासी है, कुछ सवाल हैं। उदाहरण स्वरूप 1984 में तैल रंगों में बनाया गया 'ओवरब्रिज' शीर्षक चित्र। इस चित्र की पृष्ठभूमि में 'बंबई' के पुराने टीले हैं, उनके आगे कारखाना, घर आदि हैं। चित्र के शीर्षक के अनुसार ओवरब्रिज को कहीं उजले, कहीं छाया दिखाने के लिए हल्के गुलाबी धूसर रंगों में चित्रित किया गया है। ओवरब्रिज पर जो तीन मनुष्य आकृतियां हैं वो काफी यथार्थवादी और वास्तविकता लिए हुए हैं। आकृतियां, मकान, इमारतें आदि ज्यामितीय हैं लेकिन लचीली हैं। रंग संगति कोमल हैं, उनमें भी कहीं से चटकीलापन या कठोरता नहीं है।
महानगर के अत्याधुनिक परिवेश में सुधीर कहीं से हरियाली ढूंढ लेते हैं जिससे आंखों को थोड़ी राहत मिलती है। चित्र और भी आकर्षक लगते हैं। चित्र माध्यम के रूप में सुधीर तैल और एक्रेलिक रंगों का प्रयोग करते हैं। रेखांकन में भी सुधीर बहुत रूचि रखते हैं।
मुंबई में रहते हुए वे अनेक कलाकारों जैसे-जीव पटेल, गुलाम मोहम्मद शेख और नलिनी मलानी आदि के करीब आए और कला संबंधी विचारों को समृद्ध किया। 1979 से अबतक वे अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में शामिल हुए। उनकी अनेक एकल प्रदर्शनी हुई हैं।
मुंबई में सुषमा देशपांडे के निर्देशन में 'ये चित्रकार कौन है' शीर्षक से एक नाट्य प्रस्तुति हुई। यह नाटक मुंबई के ही थियेटर ग्रुप के कलाकारों ने प्रस्तुत किया था। इस नाटक में सुधीर पटवर्धन के अठारह चित्रों को प्रदर्शित किया गया। इसके अलावा नाटक सुधीर के चित्रों पर ही केंद्रित था।
(लेखिका डॉ. मंजु प्रसाद एक चित्रकार हैं। आप इन दिनों पटना में रहकर पेंटिंग के अलावा ‘हिन्दी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं।)
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