'इतवार की कविता' : आएंगे सरदारजी...
सरदारजी
आएंगे सरदारजी
बहुत सारे सरदारजी
खाना लेकर पानी लेकर
दवा लेकर आएंगे
बहुतों के लिए सांस
उम्मीद और हौसला लेकर आएंगे
वे बिन बुलाए आएंगे
और किसी से कुछ मांगेगे भी नहीं
उन्हें नहीं चाहिए प्रशंसा और प्रशस्तिपत्र
वे अपना काम कर चुपचाप चले जाएंगे
अधिपतियो, सत्ता के दलालो
तुम उन पर सुनाते रहो चुटकुले
कहते रहो उन्हें गद्दार
वे आते रहेंगे बांहें फैलाए
बाबा फ़रीद की तरह
वारिस शाह की तरह
उनके हृदय में पांच नदियों के जल से भी
ज्यादा करुणा बहती है
वे नफरत के मलबे को हटाकर
निकाल लेंगे थोड़ी सी जगह कहीं भी
सेनानायको, कूटनीतिज्ञो, हथियार के सौदागरो
तुम उनका रास्ता नहीं रोक पाओगे
चलता रहेगा लंगर पृथ्वी पर कहीं न कहीं
आते रहेंगे बहुत सारे सरदारजी
जरूरतमंद इंसान के लिए
वे आते रहेंगे
तुम्हारे नक्शों और झंडों के सामने
मनुष्यता को लहराते हुए।
…………..
- संजय कुंदन
(कवि-पत्रकार)
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