एससी-एसटी आरक्षण में उप वर्गीकरण का SC का फैसला संविधान के अनुच्छेद 341 और 16(4) के विरुद्ध: एड. राजकुमार
संविधान बचाओ ट्रस्ट ने रिट पिटिशन के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में मामले में दखालत (इंटरवीन) किया है। ट्रस्ट संयोजक एडवोकेट राजकुमार का कहना है कि पदोन्नति आरक्षण समाप्त करने के बाद, आज सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों की सूची में सब क्लासिफिकेशन (उप वर्गीकरण) करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया है। अब राज्य सरकार एससी-एसटी की सूची में सब क्लासिफिकेशन करके आरक्षण को कई भागों में बांट सकते हैं। इस फैसले को एससी-एसटी के लोग अब तक के संविधान के सबसे बड़े नुकसान के तौर पर देख रहे हैं।
एडवोकेट राजकुमार ने कहा कि 18वीं लोकसभा के पहले दिन प्रधानमंत्री संविधान का सजदा कर और विपक्ष के अधिकांश सांसद अपने साथ संविधान की कॉपी लेकर संसद गए थे और जब उनकी शपथ हुई तो उन्होंने संविधान को हाथ में लेकर शपथ ली। अधिकांश सांसदों ने जय भीम जय संविधान का नारा भी बुलंद किया था। अब देश के सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण पर एक ऐसा फैसला आ गया है जिसमें केंद्र सरकार और पंजाब राज्य की केजरीवाल सरकार ने अनुसूचित जाति की सूची में सब क्लासिफिकेशन की संविधान विरोधी पैरवी करके, देश में अनुसूचित जाति के लोगों के साथ अब तक का सबसे बड़ा अन्याय किया है। संविधान का अनुच्छेद 341 संसद को अनुसूचित जाति की सूची में से किसी भी जाति को शामिल करने अथवा बाहर निकालने की शक्ति प्रदान करता है परंतु बीजेपी की केंद्र सरकार और पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ऐसी पैरवी की है, जो अधिकार संविधान में संसद को नहीं मिले हैं उन अधिकारों को राज्य सरकार को देकर अनुसूचित जाति के आरक्षण में बंटवारा कर, उनको आरक्षण के लाभ से वंचित कर, संविधान पर अब तक का सबसे बड़ा हमला करने का रास्ता खोलने में कामयाब हो गए हैं। आज सुप्रीम कोर्ट का 7 जजों का फैसला 6:1 से जनता के सामने है। संविधान पीठ में एक महिला जज ने संविधान के पक्ष में सब क्लासिफिकेशन को गलत बताया है। 2004 के सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के उस फैसले को संविधान सम्मत बताया गया जिसमें पिछड़ने वाली जातियों को सुविधाएं उपलब्ध कराकर आरक्षण लेने योग्य बनाए जाने की बात है।
इसी से संसद में संविधान को माथे से लगाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संविधान को हाथ में लेकर संसद में जाने वाले सांसदों की असली परीक्षा आज से तय मानी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 16(4) और 341 की जो व्याख्या की है, उसे संविधान सम्मत नहीं कहा जा सकता है, ऐसे में जिन सांसदों को संविधान बचाने के लिए संविधान अनुयायियों ने लोकसभा में भेजा है उनसे उम्मीद ज्यादा है।
मामला पुराना है 1975 में ज्ञानी जैल सिंह की पंजाब सरकार ने एक आदेश जारी कर पंजाब के वाल्मीकि और मजहबी सिख समुदाय के लोगों को एससी के आरक्षण में बंटवारा करके 50% आरक्षण देने का एक आदेश जारी कर दिया था जो लंबे समय तक चलता रहा। एक अन्य मामला आंध्र प्रदेश राज्य का था जिसमें अनुसूचित जाति के आरक्षण को तत्कालीन आंध्र प्रदेश सरकार ने वर्ष 2000 में सब क्लासिफिकेशन कर, विधानसभा से एक्ट बना दिया जिसे ईवी चिन्नया ने आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी और वह हार गये और राज्य सरकार अपने एक्ट को बचाने में कामयाब हो गई थी। इसी आधार पर पंजाब सरकार ने भी वाल्मिकी और मजहबी सिख समुदाय के लोगों के लिए 2006 में 50% आरक्षण का एक्ट बना लिया।
ईवी चिन्नैया ने आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के संविधान विरोधी सब क्लासिफिकेशन के आदेश को माननीय सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी के माध्यम से चुनौती दी, नवंबर 2004 में ईवी चिन्नैया की एसएलपी सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार हो गई और आंध्र प्रदेश सरकार का वर्ष 2000 का अनुसूचित जातियों में सब क्लासिफिकेशन का नोटिफिकेशन और आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट का संविधान विरोधी आदेश रद्द कर दिया। ईवी चिन्नैया केस में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि यदि कोई आरक्षित वर्ग की जाति आरक्षण में पिछड़ रही है तो उसके लिए आरक्षण का बंटवारा नहीं होगा बल्कि उसकी शिक्षा रोजगार और आर्थिक मामलों में राज्य सरकार मदद करें। इसी आधार पर पंजाब सरकार का 2006 का नोटिफिकेशन भी पंजाब हाईकोर्ट में 2010 में निरस्त कर दिया गया। उसके बाद पंजाब सरकार इस केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट आई और मामला एसएलपी के रूप में तीन जजों की बेंच के पास सुनवाई के लिए गया परंतु इस क्लासिफिकेशन के मामले में ईवी चिन्नैया का पांच जजों का फैसला आड़े आ गया। इस मामले में कानूनी पक्ष कहता है कि संविधान पीठ के 5 जजों के एकतरफा फैसले के बाद पंजाब सरकार की एसएलपी खारिज करने के बजाय बड़ी बैंच को सौंप दिया गया। 5 जजों की बैंच बनी तो फिर ईवी चिन्नैया का संविधान सम्मत फैसला बाधा बन गया, तो उन्होंने भी पंजाब सरकार के अनुरोध पर 7 जजों की बैंच गठित करके ईवी चिन्नैया के केस की रिव्यू विजिट करने की सिफारिश कर दी।
सुप्रीम कोर्ट रूल 2013 के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले को केवल रिव्यू या क्यूरेटिव पिटिशन के आधार पर ही पलट सकती है। और रिव्यू रिट पिटिशन, फैसले के 30 दिन के अंदर दाखिल हो सकती थी, लेकिन नवम्बर 2004 के जजमेंट को सुप्रीम कोर्ट नियमावली 2013 के विरुद्ध जाकर करीब 19 साल बाद चिन्नैया केस रि-ओपन हुआ है। वैसे तो सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को भी पांच जजों के फैसले के आधार पर, तीन जजों की पीठ वाली पंजाब राज्य की एसएलपी को चिन्नैया केस के आधार पर निरस्त कर देनी चाहिए थी क्योंकि बेंच के सामने संविधान पीठ का सिर्फ एक ही फैसला था इसलिए इस केस में बड़ी बैंच बनने का कोई औचित्य नहीं बनता था परंतु इस केस में बड़ी बैंच बनाने की सिफारिश कर दी गई। उसके बाद इस केस में पांच जजों की बैंच बनी और पांच जजों की, बेंच ने इस केस में और बड़ी बेंच बनाने की सिफारिश कर दी और यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
एडवोकेट राजकुमार के अनुसार, तेलंगाना विधानसभा चुनाव के समय पीएम मोदी जब एक चुनावी सभा को सम्बोधित कर रहे थे और वहां एससी की एक जाति के एक व्यक्ति ने मंच पर आकर मोदी से अनुसूचित जाति की सूची में सब क्लासिफिकेशन कर अलग आरक्षण देने की मांग कर डाली। मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया कि हम तुम्हें अलग से आरक्षण देंगे परंतु संवैधानिक व्यवस्थाएं केंद्र सरकार को इस काम को करने की इजाजत नहीं दे रही थी। हालांकि आरोप है कि बीजेपी तेलंगाना में चुनाव हार गई और तेलंगाना में कांग्रेस सरकार बन गई, परंतु दक्षिण भारत में बीजेपी ने अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए फूट डालो राज करो के फार्मूले के चलते मोदी सरकार के प्रबंधकों ने राजा के मुंह से तेलंगाना में आरक्षण बंटवारे के लिए निकले शब्द, पूरा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से रास्ता निकलवाकर एससी-एसटी के आरक्षण पर चोट पंहुचा दी है।
पंजाब सरकार सब क्लासिफिकेशन मामले पर एक केस पेंडिंग था उसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में अचानक शुरू हो गई और उसमें आनन फानन में सात जजों की बेंच गठित कर दी गई। अटॉर्नी जनरल तुषार मेहता ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार को पत्र भेज कर केंद्र सरकार को अपना पक्ष बताने के लिए निवेदन किया परंतु केंद्र सरकार ने अटॉर्नी जनरल के सब क्लासिफिकेशन के पत्र का कोई जवाब नहीं दिया। इस केस में पंजाब सरकार ने सब क्लासिफिकेशन करने की पुरजोर पैरवी की वही केंद्र सरकार ने भी अनुसूचित जाति की सूची में सब क्लासिफिकेशन कर आरक्षण के बंटवारे पर अपनी हामी भर दी।
हालांकि मामले में पूर्व में केंद्र सरकार ने भारत के सभी राज्यों से पत्र भेजकर सब क्लासिफिकेशन करने के संबंध में उनकी राय मांगी थी जिसमें 14 राज्यों ने संविधान के अनुच्छेद 341 का हवाला देकर सब क्लासिफिकेशन करने से मना कर दिया था। वही सात राज्यों ने केंद्र सरकार के पत्र का कोई जवाब नहीं दिया था और सात राज्यों ने क्लासिफिकेशन करने का अनुरोध किया था, यह जवाब भी सुप्रीम कोर्ट में पूर्व में ही केंद्र सरकार की ओर से पत्रावली पर उपलब्ध था। पंजाब में क्लासिफिकेशन कर वाल्मीकि एवं मजहबी सिख समुदाय को 50% आरक्षण का बंटवारा कर, आरक्षण कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा ने भी दिया और केजरीवाल सरकार जिस प्रकार संविधान की बात करती है और सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के साथ मिलकर संविधान को नेस्तनाबूद करने की वकालत करते है। संविधान पर अब तक के सबसे बड़े हमले में कांग्रेस आम आदमी पार्टी और बीजेपी तीनों की सरकार शामिल है। राजनैतिक पार्टियों के फूट डालो और राज करो, की चालाकी पर आज सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई है। अब आने वाला समय बताएगा, केंद्र सरकार इस फैसले पर रिव्यू पिटीशन दाखिल करता है या संसद से इस फैसले को निरस्त करेंगे।
दूसरी परीक्षा विपक्ष की है जिन्होंने संविधान की रक्षा के मुद्दे पर चुनाव लडा, वह अब क्या करेंगे? अनुसूचित जाति का एक बड़ा वर्ग निश्चित रूप से संविधान विरोधी फैसले से आहत है और उसने संविधान बचाने के नाम पर वोट दिया, अब आने वाला समय बताएगा कि संविधान के सामने सजदा कर 18वीं लोकसभा के लिए नई संसद में जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन्होंने एक चुनावी सभा में कहा था कि यदि बाबा साहेब आंबेडकर भी धरती पर आ जाएं तो वे भी संविधान को बदल नहीं पाएंगे। संविधान की किताब हाथ में लेकर संसद में जाने वाले विपक्षी सांसदों की एक बड़ी परीक्षा शुरू हो चुकी है, जिसमें किसकी जीत होगी और किसकी हार होगी यह तो आने वाला समय बताएगा। लेकिन आरक्षण का बंटवारा होकर यह अधिकार राज्यों को चला गया है और साथ में क्रीमीलेयर भी लगा दी गई है।
एडवोकेट राजकुमार के अनुसार, हालांकि क्रीमीलेयर वाला विषय सुप्रीम कोर्ट के सामने विचाराधीन नहीं था, लेकिन अनुसूचित जाति में अत्यधिक पिछड़ों की पहचान कर उसका डाटा अलग आरक्षण देने के लिए अनिवार्य कर दिया गया। यह संविधान पर अब तक का सबसे बड़ा हमला है, इसकी भरपाई अनुसुचित जाति के ना तो वो लोग कर पाएंगे जो अलग आरक्षण की मांग कर रहे हैं और ना वो कर पाएंगे जो संविधान को सब कुछ अपना मानते हैं। आने वाली पीढ़ियां सरकारों और सुप्रीम कोर्ट से सब क्लासिफिकेशन मांगने वालों का मूल्यांकन जरूर करेंगी। संविधान बचाओ ट्रस्ट ने केस की पैरवी की है केंद्र सरकार, पंजाब सरकार और देश के बड़े जाने माने वकीलों ने भले ही इस केस में संविधान के विरुद्ध पैरवी की हो, परंतु संविधान बचाओ ट्रस्ट को संविधान सम्मत फैसला आने की उम्मीद है, थी। फिर भी फैसला संविधान के पक्ष में हमारी उम्मीद के अनुरूप नहीं आया है। इसलिए ट्रस्ट रिव्यू पिटीशन की तैयारी कर रही है। जल्द ही इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल की जाएगी।
साभार : सबरंग
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