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तिरछी नज़र : अथ श्री लक्ष्मी व्रत कथा

देवी के वर के प्रभाव से वह वणिक पुत्र बीसवीं सदी में नवस्वतंत्र भारत में पैदा हुआ। सदी के नवें दशक में उसने डोनेशन के बल पर इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की परीक्षा उत्तीर्ण की एवं दैवी कृपा से अमरीका को प्रस्थान किया।
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प्रतीकात्मक तस्वीर, साभार : the guardian

बहुत पुरानी बात है। जम्बू द्वीप के भारत खण्ड में एक वणिक पुत्र रहता था। वह लक्ष्मी जी का घोर उपासक था। जो फल वह अर्जित करता, उसे छुपा कर रखता। उस युग में जिसके पास जो कुछ होता थावह उसे छुपा कर ही रखता था। धनी लोग अपने धन को छुपा कर रखते थे और ज्ञानी अपने ज्ञान को। आज का युग तो दिखावे का युग है। धन आपके पास आया नहीं कि आप दिखाना शुरू कर देते हैं। ज्ञान, भले ही आपके पास उसका बडा़ अकाल हो, पर दिखाएंगे ऐसे जैसे आपसे बड़ा ज्ञानी शायद ही कोई हो।

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सो वह वणिक पुत्र लक्ष्मी जी की उपासना में लीन रहता और अर्जित फल छुपा कर रखता। राजा ने तरह-तरह के कर लगा कर उसकी तपस्या में विघ्न डालना चाहा, पर वह अपनी लक्ष्मी-भक्ति से विचलित न हुआ। उसे बारम्बार राजकोप भुगतना पड़ा। कई बार तो उसे आर्थिक दंड भी मिला, जिसका भुगतान न करने पर सश्रम कारावास की सजा हुई। पर वह लक्ष्मी भक्ति से तनिक भी न डिगा। उसकी इस भक्ति से देवी अत्यंत प्रसन्न थी।

एक बार उस वणिक पुत्र का पुत्र रोगग्रस्त हो गया। नगर के सभी वैद्यों ने जांच कीपर उसका निदान न हुआ। अंत में राजवैद्य को भी राजकीय औषधालय में दिखाया गया, पर वहां भी कोई लाभ न हुआ। अंततोगत्वा किसी ने सलाह दी कि राजवैद्य को उनके निवास स्थित परामर्श कक्ष में दिखा दीजिये, अवश्य लाभ होगा। उस काल में भी राजकीय चिकित्सक राजकीय सेवा में रहते हुए नॉन-प्रेक्टिसिंग अलाउंस लेते थे तथा प्राइवेट प्रेक्टिस भी करते थे। राजवैद्य ने अपने निवास पर रोगी की अच्छी तरह जांच की और उसके रोग का निदान कर उपचार सुझा दिया। 

उस उपचार पर सैकड़ों स्वर्ण मुद्राएँ व्यय होनी थीं। यह देख वह वणिक पुत्र दुविधा में पड़ गया। एक तरफ पुत्र मोह और दूसरी तरफ लक्ष्मी भक्ति। पुत्र से मोह दिखाता तो भक्ति में अड़चन आती और अपनी भक्ति पर दृढ रहता तो पुत्र की जान जाती। आखिर भक्ति ने मोह पर विजय पाई। लक्ष्मी भक्त का पुत्र टी.बी. से ग्रस्त हो, देवी पर कुर्बान हो गया। इस कुर्बानी से अत्यंत प्रसन्न हो देवी अपने भक्त के समक्ष साक्षात प्रकट हुईं। देवी ने उसे वरदान दिया कि वह बीसवीं सदी में भारतवर्ष में पैदा होगा तथा अनिवासी भारतीय होने का दुर्लभ सुख भोगेगा।

देवी के वर के प्रभाव से वह वणिक पुत्र बीसवीं सदी में नवस्वतंत्र भारत में पैदा हुआ। सदी के नवें दशक में उसने डोनेशन के बल पर इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की परीक्षा उत्तीर्ण की एवं दैवी कृपा से अमरीका को प्रस्थान किया। वहां पहुँच कर भी वह देवी भक्ति में ही लीन रहा। न दिन को चैन था और न रात को नींद। उस सांसारिक ऐश्वर्य के बीच भी वह लक्ष्मी भक्ति में ही लीन रहा। अतः उसके पास डॉलर बढ़ते ही गए। यद्यपि उसका घर धन-धान्य से भरपूर था पर एक चिंता उसे सदैव सालती रहती।

उसे चिंताग्रस्त देख देवी से रहा न गया। देवी उसकी चिंता का कारण जानने के लिए उसके सम्मुख प्रकट हुईं, "भक्त, अब तो तुझ पर मेरी पूरी कृपा है। अब तू क्यों दुखी है"?

भक्त देवी को अपने सम्मुख देख देवी के चरणों में लेट गया। बोला, “माँ, आपकी दया से मैं पूरी तरह से प्रसन्न हूँ। दुनिया की सारी सुख-सुविधाएँ तथा भोग-विलास की सामग्री मेरे सम्मुख है तथा मैं उसका उपभोग करने में सक्षम हूँ। पर देवी, एक चिंता मुझे सदैव परेशान रखती है”।

"भक्त मैं तेरी भक्ति से अतीव प्रसन्न हूँ। तू मुझे अपनी चिंता का कारण बता जिससे मैं उसका निवारण कर सकूं" देवी ने कहा।

"देवी, मैं यहाँ अनिवासी भारतीय बन अतिप्रसन्न हूँ। पर जब मैं देखता हूँ कि मेरे ही देश में मुझे देशद्रोही माना जाता है तो मेरी प्रसन्नता आधी रह जाती है। भारत में मेरे देशद्रोह पर सेमिनार होते हैं, जिनमें बड़े-बड़े नेताओं से लेकर आम जनता तक मुझे धिक्कारती है कि मैं देश में पैदा हुआपला-बढ़ा और वहीं के पैसे से पढ़ा-लिखापर जब देश सेवा का मौका आया तो अमेरिका भाग आया। माँ, यही देशद्रोह का कलंक मेरी चिंता का कारण है"।

"पुत्र, तू धैर्य रख और मेरी भक्ति में लगा रह" देवी ने वणिक पुत्र को सांत्वना दी, "जल्द ही तेरे माथे पर लगा कलंक भी धुल जाएगा और ऐसा समय आएगा कि तू ही सबसे बड़ा देशभक्त माना जाएगा। उस समय तू देश को डॉलर भेज सकेगा और प्रधानमंत्री, मंत्री सभी तुझे लुभाने आएँगे। तेरे देश में तेरी देश-भक्ति पर सेमीनार होंगे और तेरी देशभक्ति के गीत गाए जाएँगे। भक्त, उस समय तुझे देश का नहीं, देश को तेरा भक्त बनाना पड़ेगा।  देश को ही यह सिद्ध करना पड़ेगा कि वह तेरी कृपा का पात्र है भी या नहीं। तू अपने देश के लिए पुल या बाँध भले ही न बना पाया हो, पर तू देश को डॉलर देगा, डॉलरऔर तेरा देश उन डॉलरों के लिए तेरे क़दमों में बिछ जाएगा"।

देवी के मुख से शुभ वचन सुन वह वणिक पुत्र देवी के समक्ष नतमस्तक हो गया। जल्द ही देवी की वाणी सत्य सिद्ध हुई और वणिक पुत्र की एकमात्र चिंता भी लक्ष्मी देवी की कृपा से दूर हुई। उस एन आर आई वणिक पुत्र को देश में मतदान का अधिकार तो मिला ही, प्रधानमंत्री तक उसे लुभाने के लिए बार बार अमरीका के चक्कर लगाने लगे।

जो भी भक्त श्री लक्ष्मी व्रत कथा का पाठ नियमानुसार दीपावली के दिन करेगा, देवी लक्ष्मी उसके घर को धन-धान्य से भरपूर रखेंगी। उसे आय-कर, संपत्ति-कर जैसे भूत-पिशाच तंग नहीं करेंगे तथा वह भी उस वणिक पुत्र की तरह समय आने पर अनिवासी भारतीय होने का दुर्लभ सुख भोगेगा।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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