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‘बिनकारी विरासत’ बचाने के लिए सड़कों पर बुनकर, फ्लैट रेट पर बिजली की मांग!

“सिर्फ ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे जुमले उछालने से बुनकरों का भला होने वाला नहीं है।”
binkari heritage

गंगा-जमुनी तहज़ीब और बनारसी साड़ी के लिए दुनियाभर में मशहूर बनारस अब अपनी विरासत बचाने के लिए संघर्ष करता नज़र आ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गोद लिए गांव 'नागेपुर' में बनारसी साड़ी बुनने वाले 'फनकारों' ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। 21 फरवरी 2023 को यहां पावरलूम और हथकरघे की खटर-पटर की जगह प्रदेश की योगी सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी सुनाई दी।

नागेपुर, बेनीपुर, हरसोस, जलालपुर, जंसा, महमहदपुर,  कुंडरिया, गनेशपुर,  कल्लीपुर, मेहदीगंज समेत दर्जनों गांवों में पावरलूम और हथकरघा के कारखाने पूरी तरह बंद रहे। आर्थिक संकट से जूझ रहे बुनकरों ने सरकार से मांग की है कि पहले की तरह ही उन्हें फ्लैट रेट पर बिजली दी जाए। साथ ही महापंचायत बुलाने की भी तयारी है।

यूपी की योगी सरकार कई सालों से बुनकरों की बिजली का बिल माफ करने और फ्लैट रेट पर बिजली बहाली की पुरानी व्यवस्था फिर से लागू करने का वादा करती आ रही है। बुनकरों की मांग पर जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो उन्होंने आंदोलन का रास्ता अपनाते हुए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। बीते सोमवार को बुनकरों ने नागेपुर में योगी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ साल पहले इसी गांव को गोद लिया था। नागेपुर स्थित लोक समिति आश्रम में सैकड़ों आक्रोशित बुनकरों ने सभा की और योगी सरकार की नीयत पर सवालिया निशान लगाया।

बुनकर साझा मंच के संयोजक नंदलाल मास्टर ने कहा, ''एक तरफ योगी सरकार बुनकरों को फ्लैट रेट पर बिजली देने का भरोसा दिला रही है तो वहीं दूसरी ओर, बिजली विभाग के अफसर उन्हें मीटर रीडिंग के आधार पर बिजली का बिल थमा रहे हैं। बनारस के कुछ इलाकों में पावरलूम पर काम करने वाले बुनकरों को एक हज़ार रुपये की दर से बिजली बिल जमा करने के लिए कहा जा रहा है। बिजली के मुद्दे पर पिछले दो सालों से ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। योगी सरकार ने कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है। पूर्वांचल के बुनकर इसलिए मीटर के आधार पर बिजली का बिल अदा करने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि इसके लिए भी कोई शासनादेश जारी नहीं किया गया है। बिजली का बकाया बढ़ने के कारण नागेपुर, हरसोस, बेनीपुर, जंसा, दीनदासपुर,  महमदपुर, कुंडरिया, गनेशपुर, इस्लामपुर, नई बस्ती, कल्लीपुर, मेहंदीगंज समेत बनारस से आंचलिक इलाकों में कई बुनकरों के कनेक्शन काट दिए गए हैं। लॉकडाउन में सरकार ने भले ही बुनकरों का काम बंद करा दिया था, लेकिन बिजली महकमा अब उस समय का भी बिल मांग रहा है।''

बिजली की समस्याओं पर चर्चा करते बुनकर

बुनकरों के साथ नाइंसाफी

बुनकर साझा मंच के नंदलाल मास्टर ने बुनकरों को संबोधित करते हुए यह भी कहा, ''नाइंसाफी इसलिए की जा रही है क्योंकि बनारसी साड़ी के धंधे से जुड़े ज़्यादातर लोग दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। समझ में यह नहीं आ रहा है कि सरकार किसके इशारे पर समूचे बनारसी साड़ी उद्योग को रसातल में मिलाने पर उतारू है। यूपी में डबल इंजन की सरकार है, फिर भी वह बनारसी साड़ी के नाम से दुनिया भर में मशहूर इस धंधे को पूरी तरह खत्म करने पर तुली है। भाजपा सरकार पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों का बकाया माफ कर रही है, उन्हें तमाम रियायतें दे रही और अनुदान भी, लेकिन कुटीर उद्योगों को तबाह कर देना चाहती है।''

किसान नेता योगीराज पटेल ने कहा, ''बनारस के बुनकर आज अपनी ही विरासत को लेकर संघर्ष करते नज़र आ रहे हैं। यहां की संस्कृति, हस्तशिल्प और बुनकरों की आजीविका को बचाना बेहद ज़रूरी है। इस मुद्दे पर नागेपुर में अगले महीने बुनकरों की महापंचायत होगी, जिसमें बिजली के मुद्दे पर आरपार की लड़ाई लड़ने का निर्णय लिया जाएगा।''

बुनकरों का साझा दर्द यह है कि योगी सरकार ने उनके घरों पर नए स्मार्ट मीटर लगवा दिए हैं। नई व्यवस्था के लागू होने के बाद उन्हें अब महीने का 1500 से 2000 रुपये बिजली का बिल देना पड़ रहा है, जिससे उनकी माली-हालत बिगड़ती जा रही है। बनारस में बुनकरों की आबादी करीब डेढ़ लाख है। तत्कालीन मुलायम सरकार ने साल 2006 में यूपी के बुनकरों के लिए फ्लैट रेट पर बिजली देने की योजना शुरू की थी। पावरलूम पर साड़ियों की बुनाई करने वाले कारीगरों को पहले पावरलूम पर 70 से 75 रुपये ही बिजली का बिल चुकाना पड़ता था। सत्ता बदलने के बाद एक जनवरी 2020 से योगी सरकार ने बुनकरों को प्लैट रेट पर बिजली देने से मना कर दिया। तभी से बिजली विभाग और बुनकरों के बीच बिलों की अदायगी को लेकर जिच चल रही है। बुनकरों के सामने पेट पालने का संकट है। परिवार चलाने के लिए तमाम बुनकरों को अपने पावरलूम कबाड़ के भाव बेचने पड़ रहे हैं।

बुनकरी नहीं, अब पान की दुकान ही सहारा

सामाजिक कार्यकर्ता मनीष शर्मा ने न्यूज़क्लिक से कहा, ''फ्लैट रेट पर बिजली और बुनकरों की साड़ियां भी किसानों की फसलों की तरह खरीदी जाएं, तभी इस धंधे में जान लौट सकती है।'' बुनकरों के आंदोलन प्रदर्शन में दिहाड़ी मज़दूर संयोजक रामबचन, नागेपुर के प्रधान मुकेश कुमार के अलावा बुनकर नेता विनोद कुमार, रामबचन, शिवकुमार, रमेश, राजेश, करन पटेल, सोहराब अली, राधे यादव, दिलीप मौर्य, जयप्रकाश, अजय राय, राकेश मौर्य, राजेश गुप्ता, लालबहादुर, आशीष कुमार, चंद्रमा प्रसाद अदि शामिल थे। विनोद ने साफ-साफ कहा, ''योगी सरकार और बिजली महकमे ने बुनकरों को धोखे में रखकर फ्लैट रेट में बदलाव किया है। अब हमें आरसी भेजी जा रही है और हमारा कनेक्शन काटा जा रहा है। अगर सरकार ने हमारी मांग नहीं मानी तो बुनकर, पावर डिस्कनेक्ट का एप्लिकेशन देंगे और इस धंधे को बंद कर देंगे।''

पूर्वांचल में बनारस के बाद मऊ और आजमगढ़ में बनारसी साड़ियां बुनी जाती हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बिजली विभाग ने आधा हार्स पावर पर प्रति 120 यूनिट के लिए 3.50 रुपये प्रति यूनिट की दर से छूट देने का मसौदा तैयार किया है। मऊ में करीब दो लाख बुनकरों की रोज़ी-रोटी 30 हज़ार 896 पावरलूम्स पर टिकी हुई है। बिजली महकमे ने बुनकरों को नया कनेक्शन लेने पर विवश कर दिया है। पहले लूम की बिजली से ही वो अपने घरों की लाइट भी जला लिया करते थे। अब बुनकरों की केवाईसी भी शुरू कर दी गई है। सभी का मोबाइल नंबर, ई-मेल और एकाउंट लिया जा रहा है। मऊ के विद्युत वितरण खंड (प्रथम) के अधिशासी अभियंता अभिनव तिवारी के नेतृत्व में उनके मातहत अफसरों की टीम बुनकर बहुल इलाकों में जागरुकता अभियान चला रही हैं। पावरलूम की बिजली से घर की बत्ती जलाने वालों को अलग से कनेक्शन लेने के निर्देश दिए जा रहे है। कहा जा रहा है कि आधा हार्स पावर के हर लूम पर 120 यूनिट तक 3.50 रुपया प्रति यूनिट की दर से छूट दी जाएगी।

क्या कहती है सरकार ?

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने हथकरघा और पावरलूम उद्योग से जुड़े कारीगरों को राहत पहुंचाने के लिए 21 फरवरी 2023 को पेश किए गए बजट में कहा है कि इसके लिए रियायती दरों पर बिजली मुहैया करने के लिए 345 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है। यूपी के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने 21 फरवरी 2023 को साल 2023-24 के बजट भाषण में कहा था कि कृषि के बाद हथकरघा उद्योग सर्वाधिक रोज़गार उपलब्ध कराने वाला विकेंद्रीयकृत कुटीर उद्योग है। यूपी में करीब 1.91 लाख हथकरघा बुनकर तकरीबन 80 हज़ार हथकरघों पर साड़ियों की बुनाई करते हैं। प्रदेश में 2.58 लाख पावरलूम पर 5.50 लाख बुनकर काम करते हैं, जिससे उनकी आजीविका चलती है।

वित्त मंत्री खन्ना के मुताबिक, ''वस्त्र उद्योग को बढ़ावा देने के लिए यूपी में उत्तर प्रदेश टेक्सटाइल एंड गारमेंटिंग पालिसी-2022 प्राख्यापित की गई है, जिसमें वस्त्र क्षेत्र के निवेशकों और नया स्वरोज़गार शुरू करने के लिए युवाओं को कई तरह की वित्तीय सुविधाएं दी गई हैं। इस योजना के तहत 150 करोड़ रुपये के बजट की व्यवस्था की गई है। गारमेंटिंग नीति 2017 के तहत 175 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है। 'मुख्यमंत्री पावरलूम उद्योग विकास योजना' के लिए 20 करोड़ रुपये और 'मुख्यमंत्री बुनकर सौर ऊर्जा' के लिए दस करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है। 'झलकारी बाई कोरी हथकरघा एवं पावरलूम विकास योजना' के लिए करीब 18 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है।''

वादों का क्या हुआ?

पिछले साल एक दिसंबर को योगी सरकार ने हैंडलूम्स और पावरलूम को सौर ऊर्जा से चलाने के लिए कैबिनेट ने मंज़ूरी दी थी। योजना के तहत पावरलूम को सौर ऊर्जा से ऊर्जीकृत करने के लिए सामान्य वर्ग के बुनकरों को 50 फीसदी और अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बुनकरों को सरकार द्वारा 75 फीसदी की सब्सिडी देने का ऐलान किया गया था। पावरलूम्स को सौर ऊर्जा से ऊर्जीकृत करने के लिए 10 करोड़ रुपये का बजट भी आवंटित किया गया था। साथ ही बनारस के 50 हज़ार बुनकरों की बेहतरी के लिए उन्हें बैंक से भी जोड़ने की योजना है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, यूपी के 34 जिले हथकरघा बाहुल्य हैं। राज्य में हथकरघा, बुनकरों और बुनकर सहकारी समितियों की संख्या क्रमश: 1.91 लाख, 0.80 लाख और 20,421 है। मऊ, अंबेडकर नगर, वाराणसी, मेरठ, कानपुर, झांसी, इटावा, संतकबीरनगर आदि जिले पावरलूम बहुल हैं। करीब 2.58 पावरलूम्स को सौर ऊर्जा से जोड़ा जाना है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीन महीने पहले यह भी दावा किया था कि वह उत्तर प्रदेश को देश का टेक्सटाइल हब बनाना चाहते हैं। सौर ऊर्जा संयंत्र लगाकर बुनकरों की बिजली पर निर्भरता पूरी तरह खत्म करने की योजना है।

इस योजना के तहत सरकार, बुनकरों को सोलर इनवर्टर देगी, जो इको फ्रेंडली होगी और ऊर्जा भी बचाएगी। साथ ही उत्पादन की गुणवत्ता भी सुधरेगी। सरकार का यह भी दावा है कि करीब 25 हज़ार बुनकर, हैंडलूम विभाग के पोर्टल पर पंजीकृत हैं। योगी सरकार उनको और उनके हुनर को सम्मान देने के लिए संगठित क्षेत्र में लाना चाहती है। राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम के तहत 19 हथकरघा क्लस्टरों के प्रस्ताव भारत सरकार को स्वीकृति के लिए भेजे गए। इन क्लस्टरों के विकास के लिए 25.55 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रस्तावित है। इसके प्राप्त होने पर 2,591 हथकरघा बुनकर लाभांवित होंगे। सरकार ने दावे तो बड़े-बड़े किए, लेकिन वो कभी हकीकत की ज़मीन पर नहीं उतरे।

पहले करते थे बुनकरी और अब बेच रहे समोसे

सरकार का दावा झूठा

ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) के राष्ट्रीय प्रवक्ता एसआर दारापुरी और वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर ने यूपी के बुनकरों की बदहाली का ज़िक्र करते हुए योगी सरकार के बजट को झुनझुना बताया है। इनका कहना है कि यूपी में वन ‘डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोजेक्ट’ का सरकारी दावा छलावा साबित हुआ है। राज्य में निवेश के लिए सिर्फ हवा-हवाई दावे किए जा रहे हैं। छोटे-मझोले उद्योगों और बुनकरी को बचाने के लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा है।

बुनकरों के बिजली बिल, और सभी प्रकार की क़र्ज़ माफ़ी का मुद्दा उठाते हुए दारापुरी कहते हैं, ''गुज़रात के सूरत और भिवंडी में पावरलूम का काम संगठित तरीके से होता है और वहां पहले से ही सस्ती साड़ियां बन जाया करती हैं। यूपी में बहुत बड़ी तादाद में हथकरघा बुनकरों ने थोड़ी पूंजी लगाकर कुछ पावरलूम लगा लिए हैं जिनके लिए तीन-चार गुना बिजली का बिल दे पाना, धंधे से हाथ धोने की वजह बन जाएगा। योगी सरकार ने बुनकरों को मिलने वाली सस्ती बिजली की पासबुक को खत्म कर उन्हें बर्बादी की ओर धकेल दिया है। बिजली का बिल बढ़ने के बाद बुनकरों के लिए बाज़ार में टिके रह पाना मुश्किल है। इनके उत्पादों पर टैक्स लगातार बढ़ाए जा रहे हैं और लागत सामग्री की कीमतें आसमान छू रही हैं।''

वह आगे कहते हैं, ''योगी सरकार और उसके आला अधिकारी सिर्फ घोषणाएं करने और सब्जबाग दिखाने में व्यस्त हैं। यूपी के बुनकर एक हज़ार करोड़ का कारोबार करते हैं। ऐसे में उनकी लागत सामग्री पर लगे टैक्सों को खत्म करना चाहिए, पुरानी सस्ती बिजली की पासबुक व्यवस्था बहाल करनी चाहिए और साथ ही हैंडलूम और हथकरघा निगम जैसे सरकारी संस्थानों के ज़रिए उनके उत्पाद की खरीद को सुनिश्चित कर उसे देसी-विदेशी बाजारों में बेचने की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि बुनकरों को बेमौत मरने से बचाया जा सके और उनकी ज़िंदगी की सुरक्षा हो।''

बनारस में बुनकरों की सबसे घनी आबादी पीलीकोठी, बड़ी बाज़ार, छित्तनपुरा, लल्लापुरा, बजरडीहा, सरैया, बटलोइया, नक्खीघाट, आदि मुहल्ले हैं। किसी ज़माने में हथकरघे से गुलज़ार रहे इन मुहल्लों में पावरलूम की खटखट अधिक तेज़ी से सुनाई पड़ती थी और उसी तेज़ी से अब यहां बेकारी बढ़ रही है। आसमान छू रही महंगाई और बिजली के बढ़ते बिल के दुखों ने बुनकर समाज को भीतर से इतना तोड़ दिया है कि अब वो अपना दर्द नहीं बयां कर पाते।

सिर्फ बिजली के बिल ही नहीं, धागों की किल्लत और उसके दामों में बेतहाशा बढ़ोतरी और उसको लेकर नित नई परेशानियों ने धीरे-धीरे बनारसी साड़ी उद्योग की कमर तोड़ दी। इस शहर में भुखमरी और पलायन की दहला देने वाली घटनाएं बनारसी साड़ी बुनने वाले फनकारों की एक बड़ी आबादी को छिन्न-भिन्न करने लगी हैं। हालात ये हैं कि किसी बुनकर ने रिक्शा चलाने में जीवन की राह तलाशी, तो कोई मज़दूरी करने लगा और कुछ ने आत्महत्या भी कर ली। परिवार के परिवार तबाह होते रहे। कई बार यह भी सुनने में आया कि बच्चों को भूख से तड़पता देख किसी-किसी ने कबीरचौरा और बीएचयू के अस्पतालों में खून बेचकर भी रोटी का जुगाड़ किया। लोग इतने बेहाल, बदहवास और नाउम्मीद होते गए कि निराशा और हताशा उनका स्थायी भाव बन गया।

बुनकरी छोड़कर आंटा चक्की की दुकान खोल ली

सरकार ने बर्बादी की राह पर ढकेला

न्यूज़क्लिक ने पीलीकोठी, बटलोइया, सरैया, छित्तनपुरा और अलईपुरा मुहल्ले के जितने लोगों से बातचीत की उनमें से अधिकांश की तकलीफ अनाप-शनाप बिजली के बिल को लेकर थी। बुनकरों का कहना था कि पावरलूम के लिए मिलने वाली सब्सिडी एक झटके में खत्म कर दी गई। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के इस निर्णय ने बुनकरों को सांसत में डाल दिया। उन्होंने बताया कि सरकार ने हमें बर्बादी के कगार पर धकेल दिया है। एक तो वैसे ही साड़ी उद्योग मंदी के दौर से गुज़र रहा है। ऊपर से बिजली को लेकर यह रवैया बहुत भारी पड़ रहा है। ज़्यादातर बुनकर बस्तियों में स्मार्ट मीटर लगाए जा रहे हैं और नई व्यवस्था बनने तक हर एक को 1500-2000 रुपए तक चुकाने के लिए बाध्य कर दिया गया है। इस झटके से उबरने की फिलहाल कोई सूरत नज़र नहीं आ रही है।

बुनकरों को ज़रा सा कुरेदने पर उनका दुख फूट पड़ता है। अमरपुर बटलोइया के 40 वर्षीय सेराज अहमद के पास फिलहाल कोई काम नहीं है। वो स्थायी रूप से बेरोज़गार हैं और आर्थिक तंगी के शिकार है। वह कहते हैं, ''पहले मैं बुनकरी करता था, लेकिन हथकरघे उजड़े तो काम नहीं मिला। लॉकडाउन में कई दिनों तक फांकाकशी करनी पड़ी। मौजूदा दौर भी अंधेरे में गुज़र रहा है और भविष्य भी अंधेरे में है। भविष्य को लेकर क्या सपने देखूं। सब धुंधला ही नज़र आ रहा है।''

कुछ ऐसी ही कहानियां मऊ के बुनकर कालोनी के बुनकरों की है। 70 वर्षीय मुस्ताक अहमद कहते हैं, ''पहले हज़ार रुपये बिल आता था और अब दो-ढाई हज़ार। पूछने पर बिजली वाले कोई जवाब नहीं देते, बल्कि बिजली काट देने की धमकी देते हैं। बिजली के अनाप-शनाप बिल से हम परेशान हैं। कोई सरकारी पेंशन अथवा सहायता नहीं मिल रही है। मुझे अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई देता है। बच्चों के भविष्य के बारे में तो कुछ कहा ही नहीं जा सकता। सूबे के किसानों और बुनकरों का दर्द एक जैसा है। किसान की बेटियां अपने आंचल में कपास चुनती हैं तो बुनकरों की बेटियां कपड़ा तैयार करती हैं। किसान खेत जोत रहा है तो बुनकर जुगाड़ू लूम से कपड़ा तैयार कर रहा है। मौजूदा दौर में अब दोनों की बातें नहीं सुनी जा रही हैं।"

बुनकर कालोनी के 45 वर्षीय मो. मोबिन अंसारी के दो बेटे और एक बेटी की ज़िंदगी बनारसी साड़ियों की बुनाई से चल रही है। मोबिन की मुश्किल यह है कि इनके ऊपर बिजली विभाग का हजारों रुपये बकाया है। कोरोनाकाल में वह बिल की अदायगी नहीं कर पाए। वह कहते हैं, ''बिजली का बिल कोढ़ में खाज की तरह हो गया है। सभी बुनकरों की गर्दन बकाए में फंसी पड़ी है। फ्लैट रेट पर बिल जमा करने जाते हैं तो हमें लाइन से अलग खड़ा कर दिया जाता है। मंदी और बढ़ती महंगाई के कारण आर्थिक तंगी मुसलसल बनी हुई है। जीना इतना महंगा हो गया है कि जो दिन गुज़र जा रहा है वही अहसास देता है कि सस्ते में गुज़र गया और भला हुआ जो बीत गया। ऐसे में अपने सुनहरे भविष्य का सपना कैसे देखूं? अडानी-अंबानी की तरह हमारे क़र्ज़ माफ नहीं किए गए तो पूर्वांचल के सभी बुनकरों को जेल जाना पड़ेगा।''

मऊ की बुनकर कालोनी में डेढ़ सौ से ज़्यादा पावरलूम हैं, जो बुनकरों की पीढ़ियों की देन है। यहां के बुनकर अब दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज हैं। हालत यह है कि बुनकर आबाद अहमद ने अपने बच्चों की पढ़ाई बंद करा दी है। 17 साल की बेटी उज़मा परवीन पूरे दिन बुनाई करती है। साथ ही में उसके दोनों भाई मो.फरहान और कामरान भी साड़ियां बुनते हैं। एक मशीन से सिर्फ तीन सौ की कमाई हो पाती है। आबाद अहमद कहते हैं, ''हम सरकार नहीं, ऊपर वाले के भरोसे जी रहे हैं। बुनकारी को बचाने का सिर्फ एक ही रास्ता है वो यह है कि लूम चलाने वालों को पहले की तरह फ्लैट रेट पर बिजली दी जाए।''

बुनकरी नहीं, अब पान की दुकान ही सहारा

बिनकारी से जीवन चलाना मुश्किल

वाराणसी के बुनकर नेता इदरीश अहमद कहते हैं, ''रेशम और निर्यात नीति ने बनारसी साड़ी उद्योग की पुरानी व्यवस्था को बड़ी बेरहमी से ध्वस्त कर दिया। गद्दीदारों का शोषण तेज़ी से बढ़ा और बिनकारी से जीवन चलाना मुश्किल होता चला गया। लिहाज़ा तेज़ी से पलायन शुरू हो गया। इसके चलते सूरत और बेंगलुरु की साड़ियों के मुकाबले बनारसी साडियां बाज़ार में पिछड़ती जा रही हैं। ऊंची कीमत के चलते ग्राहक बनारसी साड़ी खरीदने से बचते हैं। धीरे-धीरे हालात ऐसे बनते चले गए कि धंधा मंदा पड़ने लगा। लॉकडाउन के बाद स्थिति इस कदर बिगड़ गई कि हालात ने उन्हें बर्बादी की कगार पर ला दिया है। पूर्वांचल में बड़ी तादाद में बुनकरों ने साड़ी की बिनकारी के धंधे से मुंह मोड़ लिया है।''

बुनकरों के हितों के लिए दशकों से आवाज़ उठाने वाले अतहर जमाल लारी कहते हैं, ''बनारस में साड़ी उद्योग से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर लगभग दो लाख परिवार जुड़े हैं। करीब आठ लाख लोगों की रोज़ी-रोटी का जुगाड़ इसी धंधे से चलता है, लेकिन योगी सरकार के नए फैसले ने इस धंधे की कमर तोड़ दी है। प्रधानमंत्री बीमा योजना भी बुनकरों से कोसों दूर है। सामाजिक सुरक्षा के नाम पर भी इनके पास कुछ नहीं है। बुनकरों को आश्वासन के अलावा आज तक कुछ भी नहीं मिला। वाराणसी, मऊ, मुबारकपुर, मोहम्मदाबाद, सीतापुर के खैराबाद, बाराबंकी, झांसी के मउरानीपुर और टांडा में हजारों पावरलूम्स हैं, जिनसे 20 लाख बुनकर साड़ियां बुनते हैं। सिर्फ ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे जुमले उछालने से बुनकरों का भला होने वाला नहीं है। इस धंधे को बचाने के लिए बुनकरों को किसानों की तरह ही फ्लैट रेट पर बिजली देनी होगी।''

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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