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यूपी ग्राउंड रिपोर्ट: चित्रकूट में पानी का संकट, आदिवासी गंदा पानी पीने को मजबूर

गांव वालों का कहना है कि, कुओं का काम न करना और खराब भूजल, इस संकट के प्रमुख कारण हैं, और यह बुंदेलखंड से युवाओं के पलायन के प्रमुख कारणों में से एक बन गया है।
bundelkhand water crisis

चित्रकूट: टिकुरी गांव की एक आदिवासी महिला लक्ष्मी जिसकी उम्र 50 वर्ष है, बालू के गड्ढों से गंदा पानी लाने के लिए करीब एक किलोमीटर पैदल चलती है। लक्ष्मी एक पतली नायलॉन की रस्सी का इस्तेमाल करती है, जो मुश्किल से एक भरे हुए घड़े को खींच सकती है, वह रस्सी के ज़रिए एक गंदे गड्ढे (स्थानीय बोलचाल में छोटी तलैया कहते हैं) से पानी निकालती है। जानवर भी अपनी प्यास बुझाने के लिए इसी गड्ढे का इस्तेमाल करते हैं।

जब पानी थोड़ा सा साफ होता है तो वह दो घड़े भरती है, और एक अपनी बेटी के सिर पर और दूसरा खुद के सिर पर रखती है, और फिर दोनों अपनी झोपड़ी की तरफ चल देती हैं। जैसे ही वह अपनी कुटिया में पहुंचती है, उसका पति, जो आराम कर रहा होता है, दूषित पानी पीने लगता है।

लक्ष्मी कहती है कि, "हमारी दैनिक जरूरतों के लिए पानी का मिलना किसी विलासिता से कम नहीं है।'' लिए एक किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।

समान रूप से परेशान 80 वर्षीय नथिया ने कहा कि, 'शुद्ध पेयजल हमारे लिए हमेशा से सपना रहा है। मेरी आधी से ज्यादा उम्र इस इंतजार में गुजर गई, पता नहीं स्वच्छ पेयजल का सपना कब हकीकत बनेगा।'

मध्य भारत के बुंदेलखंड इलाके के मानिकपुर ब्लॉक में कोल जनजाति (अनुसूचित जनजाति) की महिलाएं हर सुबह जंगलों के अंदर गहरे नालों से पानी लाने के लिए लंबी दूरी तय करती देखी जा सकती हैं। पानी ढोने का बोझ ज्यादातर महिलाओं और बच्चों पर होता है। आदिवासी ग्रामीणों का कहना है कि 40 से अधिक ग्राम पंचायतों के 200 गांवों का लगभग आधा ब्लॉक पानी के संकट से जूझ रहा है।

ग्रामीणों का कहना है कि अकार्यशील कुएं और खराब भूजल संकट का प्रमुख कारण हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि नलकूपों की कुछ समय के लिए मरम्मत की गई थीं, जिससे जल संकट गहरा गया है।

संरक्षित जलापूर्ति योजनाओं के अभाव में इलाके के दुर्भाग्यशाली निवासियों के लिए दूषित जल का सेवन अपरिहार्य हो गया है।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, चित्रकूट वह जगह है जहां हिंदू देवताओं राम और सीता ने अयोध्या से अपने 14 साल के वनवास के 11 साल बिताए थे; इसमें एक जगह भरत मिलाप भी है, जहां दो भाइयों, भगवान राम और भरत का पुनर्मिलन हुआ था। यह लखनऊ से 285 किमी दक्षिण में स्थित है और एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल बन गया है।

राजनीतिक नेताओं और जिला प्रशासन की उदासीनता के कारण जिले के एजेंसी क्षेत्रों में रहने वाले हजारों आदिवासी दूषित पानी पीने को विवश हैं। इसके परिणामस्वरूप उनमें से दर्जनों पानी से होने वाली बीमारियों के कारण मर जाते हैं।

जिले के मानिकपुर व बरगढ़ इलाके के मुरकता, खिचड़ी, रामपुर कल्याणगंध, चामरौहां, सकरौंहा, रानीपुर गिदुरहा, ऊंचाडीह, किहुनिया पंचपेड़ा सहित सौ से अधिक गांव भीषण पेयजल संकट से जूझ रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2022 में यह सुनिश्चित किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई 'हर घर नल योजना' के तहत दिसंबर 2024 तक विंध्याचल और बुंदेलखंड इलाके के सूखे इलाकों के घरों में नल के पानी के कनेक्शन उपलब्ध होंगे।

पीने का पानी की किल्लत

उत्तर प्रदेश ने देश में 'हर घर जल योजना' के तहत, तीसरे सबसे अधिक नल कनेक्शन प्रदान किए हैं। अप्रैल में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, यूपी ने पूरे राज्य में 97,11,717 नल कनेक्शन प्रदान किए हैं, जिससे ग्रामीण उत्तर प्रदेश के 5,82,70,302 से अधिक निवासी लाभान्वित हुए हैं। हालांकि सूखे बुंदेलखंड में यह दूर की कौड़ी लगती है।

आदिवासियों ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें, जल जीवन मिशन के तहत हजारों करोड़ रुपये के आवंटन का दावा करती हैं, लेकिन सुरक्षित पेयजल हमारी बस्ती तक नहीं पहुंचा है।

65 वर्षीय मुन्ना ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वे पिछले तीन दशकों से गंदा पानी पी रहे हैं। "थोड़ा सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी हम गंदा पानी पीने को विवश हैं। हमारे पास अस्वच्छ सूखे कुओं और तालाबों से पानी लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। परिणामस्वरूप हम विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। इसलिए हमारे बच्चे बीमार हो रहे हैं।" नौकरी की तलाश में बड़े शहरों में पलायन कर रहे हैं ताकि वे कम से कम साफ पानी पी सकें और अच्छा खाना खा सकें।"

गांव की उच्च जाति के लोगों पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें उनके खेतों से पानी पर रोक है, ताकि आदिवासियों उनके इलाके में प्रवेश न कर सके, इसके लिए वहां छह-सात फुट की ऊंची बाड़ लगाई हुई है।

"अगर हम उनके खेत में पानी के लिए जाते हैं तो ऊंची जाति के लोग हमें गाली देते हैं। हमें अपनी प्यास बुझाने से पहले दो बार सोचना पड़ता है। इसके अलावा, मोदी सरकार ने हमें 'महुआ' (मधुका), 'तेंदू' पत्ता और शहद बेचने की अनुमति नहीं देकर हमारी रोजी-रोटी छीन ली है। हम पिछले साल तक 40 रुपये किलो महुआ बेचते थे, लेकिन अब हम इसे सरकारी प्रतिबंधों के कारण नहीं बेच पाते हैं।"

बुंदेलखंड जल मंच द्वारा 2022 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, बुंदेलखंड इलाके के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 65 फीसदी तक लोग पानी की कमी के कारण कम से कम अस्थायी रूप से अन्य स्थानों पर चले गए हैं।

पानी नहीं तो बेटी नहीं

न्यूज़क्लिक को पता चला है कि मानिकपुर इलाके के युवाओं की शादी पानी के संकट के कारण नहीं होती है। कई युवा अब कथित तौर पर 40 की उम्र पार कर चुके हैं।

ग्रामीणों ने कहा कि लोग इन गांवों में शादी के प्रस्ताव लेकर आते हैं, लेकिन गंभीर जल संकट के बारे में जानने के बाद अपनी बेटी देने से इनकार कर देते हैं। दुल्हन के पिता की गंभीर चिंता पीने का पानी और शौचालय की होती है।

टिकुरी से 7 किमी दूर मुरकटा की मूल निवासी सिया दुलारी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "हम आमतौर पर बारिश के मौसम (जुलाई) के दौरान शादी करते हैं ताकि हम बारिश के पानी को इकट्ठा कर सकें और मेहमानों को पानी पिला सकें।"

केकरा मार गांव के बाहर कई महिलाओं को पानी भरने के लिए अपनी बारी के लिए लाइन लगाते देखा जा सकता है। तीन घंटे के इंतजार के बाद भी पानी नहीं मिलने पर महिलाओं के एक गुट को अपशब्दों का इस्तेमाल करते सुना जा सकता है।

कौशल्या, एक ग्रामीण, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "आदमी पानी के लिए लाइन में खड़े नहीं होते हैं क्योंकि वे बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे कि किसी चीज़ के लिए दो लाइन में खड़ा हुआ जाए और आपस में लड़ने लगेंगे। हमारे लिए यह दोगुना काम है, क्योंकि न केवल हमें लंबे समय तक खड़ा रहना पड़ता है बल्कि यह भी करना होता है कि घर के सभी काम पूरे हो जाएं।"

कौशल्या, राधा और अन्य महिलाएं कम से कम दस घड़े पानी पाकर ही राहत महसूस कर पाती हैं क्योंकि उनके गांव में शादियों का सीजन चल रहा था।

राधा ने कहा कि, "हमारे गांव में केवल एक बोरवेल है, जो दिन में दो बार खुलता है। सरकार द्वारा स्थापित सभी पानी के पंप या तो सूख गए हैं या काम नहीं कर रहे हैं। कभी-कभी पानी के लिए युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। कोई भी इंतजार नहीं करना चाहता।"

पानी के इस्तेमाल के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वे इसका इस्तेमाल पीने, खाना बनाने और अगर बच जाए तो बच्चों के कपड़े धोने के लिए करते हैं। इस बीच, गांव में बिजली नहीं होने पर तालाब से पानी लाने के लिए दो किलोमीटर दूर पैदल जाना पड़ता है।

'पाठा जल कल' योजना विफल रही

1973 में कांग्रेस सरकार ने 'पाठा जल कल' योजना की आधारशिला रखी थी। तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने 9 जनवरी, 1974 को चित्रकूट के पाठा इलाके के सैकड़ों गांवों में पेयजल संकट से छुटकारा पाने के लिए 100 करोड़ रुपये की विश्व बैंक सहायता पाठा (पथरीली) जल योजना की शुरुवात बहुत धूमधाम से इस ज़िले में की थी।

एशिया की सबसे बड़ी पेयजल योजना होने के बावजूद पांच दशक बीत जाने के बाद भी जिले के 150 से अधिक गांवों की प्यास नहीं बुझ पाई है।

आजादी के 75 साल बाद भी एक के बाद एक सरकारों द्वारा किए गए वादे खोखले साबित हुए हैं।

चित्रकूट की वरिष्ठ वन अधिकार कार्यकर्ता माता दयाल ने कहा कि, "देश की आजादी के बाद भी पाठा पेय जल योजना के तहत करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद आज तक गांव में पाइप लाइन नहीं पहुंच पाई है। पानी की कुछ टंकियां ही दिखीं लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।" इसके अलावा, वन इलाकों में सामंती उत्पीड़न आज तक समाप्त नहीं हुआ है, जंगल आजीविका का साधन थे जिन्हे अब छीन लिया गया है।"

'हर घर जल' योजना के बारे में पूछे जाने पर कार्यकर्ता ने कहा कि, "गांवों में स्टैंड-पोस्ट के नल लगाए जा रहे हैं, और पाइप लाइन नहीं होने पर अधिकारी तस्वीरें ले रहे हैं। वे केवल फोटो-ऑप के लिए कर रहे हैं। पीने के पानी की व्यवस्था जहां से की जा रही है, वह कभी नहीं पहुंच सकता है क्योंकि इसमें कई खामियां हैं, जिसमें सतह के नीचे गलत दिशा भी शामिल है। यमुना नदी से पाठा की भूमि पर पीने के लिए पानी लाना एक कठिन काम है क्योंकि गांव से 500 फीट और 40 किमी की ऊंचाई है। कोई भी जल योजना तभी सफल होगी जब इसे वह मध्य प्रदेश के एलिवेटेड या ऊंचे मैदान से लाया जाएगा।

2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान, विभिन्न राजनीतिक दलों ने समुद्र तटीय इलाकों में जल संकट को हल करने का आश्वासन दिया था, लेकिन वे चुनाव के बाद अपने वादों को निभाने में विफल रहे। स्थानीय लोगों का आरोप है कि दुर्दशा अभी भी कम नहीं हुई है।

इस बीच, ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि उन्हें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (मनरेगा) के तहत काम नहीं मिल रहा है। काम मिलने पर पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन नहीं मिलता है।

मूल रुप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिर्पोट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Ground Report: Tribals Forced to Drink Dirty Water as Crisis Plagues Lord Rama's Chitrakoot

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