उत्तराखंड: दरकते घर, धंसती ज़मीन, जोशीमठ पर मंडराता ख़तरा!
वर्ष 2021 फरवरी में चमोली आपदाऔर फिर 16-17 अक्टूबर की अत्यधिक तीव्र बारिश के बाद समूचा जोशीमठ क्षेत्र अस्थिर हो गया है। स्थानीय निवासी घरों में दरारें पड़ने और भू-धंसाव की लगातार शिकायत कर रहे हैं। इस संबंध में स्थानीय प्रशासन को ज्ञापन भी दिए गए। लोगों की मांग है कि सरकार हाईपावर कमेटी गठित कर क्षेत्र का वैज्ञानिक सर्वे कराए। वहीं भू-विज्ञानियों के स्वतंत्र सर्वे में कहा गया है कि जोशीमठ में किसी भी तरह के निर्माण कार्य को तत्काल प्रतिबंधित कर देना चाहिए। क्योंकि जिस पहाड़ी पर जोशीमठ बसा है वो धंस रही है और नीचे आ रही है। वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि बारिश का मौसम जोशीमठ के संवेदनशील क्षेत्र में रह रहे लोगों की सुरक्षा के लिहाज से घातक साबित हो सकता है।
समुद्र तल से 1875 मीटर की ऊंचाई पर बसा चमोली का जोशीमठ विकासखंड बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव है। यहां से ऊंचे हिमालयी पर्वतों की चढ़ाई और ट्रैकिंग के लिए सैलानी आते हैं। पहाड़ी पर बसे जोशीमठ के नीचे अलकनंदा नदी बहती है। 58 ग्रामसभा और 98 गांव वाले जोशीमठ की आबादी लगातार बढ़ी है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक जोशीमठ की जनसंख्या 16,709 थी।
जोशीमठ का उच्च-स्तरीय विशेषज्ञ समिति से वैज्ञानिक जांच की मांग को लेकर लिखा गया पत्र, तस्वीर- अतुल सती
बारिश में घर से बाहर गुजार रहे रात!
अंजू सकलानी जोशीमठ के सुनील गांव में रहती हैं। वे बताती हैं “हमारा घर रहने लायक नहीं रह गया है। दीवारें फट गई हैं और इनके गिरने का डर बना रहता है। ज़मीन भी फट गई है। गांव के 3 घरों की यही स्थिति है। बारिश आती है तो हम बहुत डर जाते हैं और रात को बाहर टेंट लगाकर रहते हैं। घर के अंदर नहीं रहा जा सकता। लेकिन हम जाएं भी तो कहां। हमने नगरपालिका, तहसील, ज़िलाधिकारी सब जगह शिकायत की”।
धंस रहा जोशीमठ!
जोशीमठ की आशा कार्यकर्ताओं की ब्लॉक कॉर्डिनेटर और महिला मंगल दल की सदस्य अनीता पंवार कहती हैं “पिछले साल 16-17 अक्टूबर की भारी बारिश के बाद जोशीमठ के कम से कम 25 गांवों की स्थिति बहुत खराब है। मकानों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई हैं। वे रहने लायक नहीं रह गए हैं। खेतों में कहीं-कहीं पैर रखो तो लगता है कि हम सशरीर ज़मीन के अंदर धंस जाएंगे। बारिश का मौसम आ गया है और लोग बेहद डरे हुए हैं। बहुत से लोगों ने अपने घर भी छोड़ दिए और किराए के मकानों में रहने चले गए। लेकिन बाद में फिर वापस आ गए। हमने प्रशासन के सामने कई बार पुनर्वास की मांग रखी। ज्ञापन दिए। जुलूस निकाले। लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। नगरपालिका अध्यक्ष ने करीब 10-12 परिवारों को सुरक्षित जगह शिफ्ट जरूर करवाया”।
अनीता बताती हैं जोशीमठ का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भी धंस रहा है और वहां रह रहे मरीज बुरी स्थिति में हैं।
जोशीमठ क्षेत्र की स्थिति को लेकर महिलाओं का प्रदर्शन, तस्वीर- अतुल सती
विशेषज्ञ समिति से जांच की मांग
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती बताते हैं कि पिछले वर्ष नवंबर के आखिरी हफ्ते से हमें जोशीमठ क्षेत्र में जगह-जगह घरों में दरारें और भू-धंसाव की शिकायतें मिलने लगी। हमने स्थानीय प्रशासन के मार्फत राज्य सरकार से मांग की, कि भू-वैज्ञानिक, इंजीनियरिंग से जुड़े विशेषज्ञ, सिंचाई विभाग, पर्यावरण विशेषज्ञ, वनस्पति शास्त्री सबको मिलाकर एक विशेषज्ञ समिति गठित की जाए। जो जोशीमठ क्षेत्र का व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन करे। ताकि इस क्षेत्र को सुरक्षित बनाया जा सके।
“स्थानीय प्रशासन ने विशेषज्ञों की समिति बनाकर जोशीमठ का सर्वेक्षण नहीं कराया बल्कि छिटपुट कार्य किए। जैसे जनवरी में गोपेश्वर जिला मुख्यालय से जियोलॉजिस्ट ने भू-सर्वेक्षण के लिए कुछ लोगों को भेजा। अप्रैल में रिमोट सेंसिंग से जुड़े लोग आए। जून में सिंचाई विभाग के लोग आए और अलकनंदा नदी के किनारे दीवार बनाने की बात कही”।
वह आगे कहते हैं “हमने प्रशासन से पूछा कि इन विशेषज्ञों ने क्या रिपोर्ट दी। हमें इसके बारे में बताया जाए। लेकिन हमें कोई सूचना नहीं दी गई। हमने लगातार प्रदर्शन किए। उपज़िलाधिकारी-ज़िलाधिकारी तक शिकायत की है”।
वहीं, चमोली ज़िला प्रशासन में भू-वैज्ञानिक दीपक हटवाल कहते हैं “हमने जोशीमठ के सर्वेक्षण की शुरुआती रिपोर्ट जिला प्रशासन को सौंप दी है। इसमें पूरे क्षेत्र का व्यापक सर्वेक्षण कराने और किसी भी तरह के निर्माण कार्य को पूरी तरह प्रतिबंधित करने की सिफ़ारिश की है”।
हटवाल बताते हैं “पूरा जोशीमठ अतीत में बड़े भूस्खलन के बाद जमा हुए विशालकाय शिलाखंड, पत्थर और मिट्टी के बीच बने टेरिस पर बसा हुआ है। जब भी बारिश या जलस्रोतों से पानी पहाड़ियों की सतह पर और भीतर रिसता है तो उससे मिट्टी बहती है। पानी के रिसाव से जगह बनती है। जिसके चलते दरारें पड़ रही हैं और सड़कें धंस रही हैं। नदियां भी पहाड़ियों के निचले हिस्से को काट रही हैं। वह बताते हैं कि क्षेत्र में हो रहा भू-धंसाव और मिट्टी का क्षरण (Soil Creeping) एक धीमी प्रक्रिया है। जबकि प्रभावित लोगों को पुनर्वास एक लंबी प्रक्रिया।
भूकंप के लिहाज़ से भी जोशीमठ अत्यधिक खतरे (Extreme Risk) वाले ज़ोन में रखा गया है। जहां ज्यादातर इमारतें भूकंप रोधी नहीं हैं।
रैणी से जोशीमठ का भौगोलिक नक्शा
भू-विज्ञानियों ने किया स्वतंत्र अध्ययन
7 फरवरी 2021 को चमोली में रैणी गांव के नज़दीक हिमस्खलन के बाद हज़ारों टन मलबा रफ्तार के साथ अलकनंदा नदी में आया। अतुल सती याद करते हैं “ग्लेशियर टूटने से इतने वेग के साथ मलबा आया था कि 2013 की भीषण आपदा को झेलने वाला पैदल पुल भी बह गया। रैणी से जोशीमठ तक एक ही भूखंड है। उस आपदा में भूखंड के एक हिस्से को चोट पहुंची तो दूसरे हिस्से पर भी उसका कुछ असर हुआ होगा”।
पौड़ी के एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय में भू-विज्ञानी डॉ एसपी सती इस बात की तस्दीक करते हैं कि पिछले साल की आपदा के बाद समूचा जोशीमठ क्षेत्र अस्थिर हुआ है। अपने दो अन्य भू-विज्ञानी साथियों के साथ मिलकर डॉ. सती ने जोशीमठ का स्वतंत्र अध्ययन किया।
“हमने अपने अध्ययन में पाया कि पिछले साल 7 फरवरी की घटना के बाद जोशीमठ में धौलीगंगा और ऋषिगंगा के संगम से नीचे की तरफ तकरीबन 40 किलोमीटर दायरे में पुराने भूस्खलन केंद्र फिर से सक्रिय हो गए हैं। (ये नदियां आगे अलकनंदा में समाहित हो जाती हैं।) 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद ऊर्गम घाटी में भी हमने पुराने भूस्खलन केंद्रों को दोबारा सक्रिय होते देखा था”।
हमारा अनुमान है कि अलकनंदा के बहाव के चलते जोशीमठ की पहाड़ियों की जड़ (Bottom of the slope) का लगातार कटाव हो रहा है और पूरी पहाड़ी नीचे की तरफ धंस रही है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। वर्ष 1976 में जोशीमठ पर मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि यहां बड़े निर्माण कार्य न कराए जाएं। बोल्डर्स में तोड़फोड़ न की जाए। लेकिन यहां बड़े पैमाने पर शहरीकरण तो हुआ ही है, साथ ही सड़कें चौड़ी करने, जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण कार्य, भूमिगत विस्फोट और सेना का कैंट क्षेत्र स्थापित करने के लिए भी बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य कराए गए।
हमारा सुझाव है कि जोशीमठ में किसी भी तरह का निर्माण कार्य फिलहाल पूरी तरह बंद कर देना चाहिए। क्योंकि जिस ढलान पर जोशीमठ बसा है वो पूरा का पूरा नीचे आ रहा है। पूरे क्षेत्र की विस्तार से जियोलॉजिकल मैपिंग करके सुधार कार्य किए जाने चाहिए।
अतिसंवेदनशील क्षेत्र में स्थित जोशीमठ का शहरीकरण और जलविद्युत परियोजना समेत निर्माण कार्य बड़े स्तर पर हुए हैं
मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट
वैज्ञानिकों के मुताबिक जोशीमठ अतीत में बड़ी भूगर्भीय हलचल और भूस्खलन के बाद जमा मलबे के ऊपर बना था। 1960 के दशक में जोशीमठ की पहाड़ियों के धंसाव के सुबूत मिलने लगे। जिससे यहां मौजूद आबादी पर खतरा महसूस किया जाने लगा। स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि 1976 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने भूमि धंसने की वजह पता करने के लिए कमेटी गठित की।
इसी मिश्रा कमेटी ने जोशीमठ को लेकर सुझाव दिए। जिसमें कहा गया कि क्षेत्र से खुदाई या विस्फोट के ज़रिये कोई भी शिलाखंड (बोल्डर) नहीं हटाया जाना चाहिए। इस लैंडस्लाइड ज़ोन से एक भी पेड़ नहीं काटे जाने चाहिए। जोशीमठ क्षेत्र के 5 किलोमीटर के दायरे में निर्माण सामाग्री इकट्ठा करने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा देना चाहिए। किसी भी तरह के निर्माण कार्य के लिए उस जगह की स्थिरता की जांच जरूरी है। ढलानों पर किसी भी तरह की खुदाई नहीं की जानी चाहिए।
खतरे को न्योता!
उत्तराखंड स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट और उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिशासी निदेशक डॉ पीयूष रौतेला ने भी जोशीमठ पर अपने शोधपत्र में लिखा है कि क्षेत्र की भौगोलिक संवेदनशीलता के बारे में पूरी तरह जानते हुए भी जोशीमठ के चारों ओर कई जलविद्युत परियोजनाएं शुरू की गई। तपोवन-विष्णुगाड परियोजना इनमें से एक है। हैरानी की बात थी कि इस परियोजना के भू-सर्वेक्षण के लिए एनटीपीसी ने जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की जगह निजी कंपनी को चुना।
जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरे
जलवायु परिवर्तन का असर उत्तराखंड के समूचे हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने की घटनाओं में इजाफा, अत्यधिक तीव्र बारिश और इसके चलते होने वाले भूस्खलन के तौर पर देखा जा रहा है।
डॉ. एसपी सती कहते हैं “अगर तीव्र मौसमी घटनाओं के चलते जोशीमठ क्षेत्र में नदी में बाढ़ आती है, पहाड़ियां प्रभावित होती हैं या भूस्खलन होता है तो जोशीमठ की स्थिति बहुत गंभीर हो जाएगी। भारी बरसात में घरों और ज़मीन में पड़ी गहरी दरारों के चलते स्थिति खतरनाक हो सकती है”। वह चिंता जताते हैं कि इस सबके बावजूद प्रशासन इस पर ध्यान नहीं दे रहा है।
(देहरादून से स्वतंत्र पत्रकार वर्षा सिंह)
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