भारत के छोटे शहरों में 'WASH' की चुनौतियां और समाधान
प्रतीकात्मक तस्वीर। फ़ोटो साभार: फ़्लिकर
भारत दुनिया की लगभग 17.76% आबादी का घर है लेकिन दुनिया के मीठे पानी के संसाधनों का केवल 4% है। अनुमान है कि अपर्याप्त पानी और साफ-सफाई ठीक न होने के कारण हर साल लगभग 200,000 लोग मर जाते हैं। 2016 में, असुरक्षित पानी और स्वच्छता न होने के कारण प्रति व्यक्ति बीमारी की दर भारत में चीन की तुलना में 40 गुना और श्रीलंका की तुलना में 12 गुना अधिक था।
देश में प्रतिवर्ष बड़ी मात्रा में अपशिष्ट जल (wast water) उत्पन्न होता है अपशिष्ट जल का कुप्रबंधन, तरल और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की कमी, स्वच्छता की खराब स्थिति और खराब स्वास्थ्य-सफाई आदतों के कारण आबादी का एक बड़ा हिस्सा जल जनित बीमारियों से पीड़ित होता है।
छोटे शहर दूसरों की तुलना में अधिक असुरक्षित हैं। अक्षमताओं और खराब स्थितियों से जूझ रहे हैं। WASH (पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य-सफाई) से संबंधित अधिकांश कार्य छोटे शहरों में राजनीतिक लोगों की संस्थाओं (Para statal) द्वारा निपटाए जाते हैं। इसके अलावा, केंद्र सरकार द्वारा घोषित बड़े स्तर के कार्यक्रम मुख्य रूप से बड़े शहरों और महानगरों की जरूरतों को पूरा करते हैं।
1981 की भारत की जनगणना के बाद से, विभिन्न निपटान प्रकारों की परिभाषाएं काफी हद तक अपरिवर्तित रही हैं भले ही कस्बों का उद्भव शहरीकरण के वर्तमान उपायों को चुनौती देता है।
भारत में 8,000 से अधिक नगर पालिकाएं और शहर हैं जिनमें लगभग 470 मिलियन निवासी हैं। केवल 600 की आबादी 80,000 से ऊपर है। शेष 7,400 छोटी नगर पालिकाएं (भारतीय जनगणना 2011 के अनुसार) पानी की कमी का सामना कर रही हैं या जल्द ही सामना करेंगी। सतही जल संसाधन होने के बावजूद, वे दिन-प्रतिदिन के अस्तित्व के लिए भूजल संसाधनों पर अत्यधिक निर्भर हैं। उनकी चुनौती मौजूदा लेकिन घटते संसाधनों के माध्यम से मांग को पूरा करना है। नगर पालिकाओं को किफायती और मजबूत प्रणालियों और पानी के पुनर्चक्रण, पुनर्भरण और पुन: उपयोग आदि से जुड़े अपरंपरागत समाधानों की आवश्यकता है।
भारतीय केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की एक रिपोर्ट के अनुसार स्वच्छता सेवाओं को बड़े पैमाने पर नजरअंदाज किया गया है और उत्पन्न सीवेज का केवल 19% ही उपचारित किया जाता है। जबकि अपशिष्ट जल के बुनियादी ढांचे में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है इसने बड़े शहरों में केंद्रीकृत दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित किया है जिससे कई छोटे क्षेत्र अछूते रह गए हैं। इसका कारण देश की जनसंख्या के विशाल आकार को माना जा सकता है।
अपर्याप्त क्षमताएं
संस्थागत रूप से छोटी नगर पालिकाएं जल आपूर्ति और स्वच्छता सेवाओं की जिम्मेदारियों और संस्थागत और वित्तीय मामलों को विनियमित करने के लिए उचित प्रकार से संचालित नहीं हैं। 76% जनगणना कस्बों और 52% वैधानिक कस्बों के पास कोई मास्टर प्लान नहीं है। इन कस्बों में अल्पविकसित क्षमताएं हैं - उनके कर्मियों (मुख्य रूप से सिविल इंजीनियरों) के पास संस्थागत सुधार और जल प्रशासन में प्रासंगिक अनुभव की कमी है। कमजोर नेतृत्व और सरकार के प्रयासों में सामंजस्य की कमी के कारण अव्यवस्थित और अनुबंध-संबंधी कार्यान्वयन उचित प्रकार से नहीं होता है।
WASH के लिए नगरपालिका वित्तपोषण दो व्यापक श्रेणियों में आता है: स्वयं-स्रोत राजस्व (ULB) और अंतर-सरकारी राजकोषीय हस्तांतरण (राज्य और केंद्र)। भारतीय नगर पालिकाएं ज्यादातर संपत्ति करों के माध्यम से स्वयं के स्रोत से राजस्व उत्पन्न करती हैं। जबकि भारत में नगर पालिकाएं स्थान, संपत्ति के आकार और अन्य कारकों के आधार पर कर राशि का आकलन करती हैं, लेकिन कर दरों पर उनका पूर्ण नियंत्रण नहीं होता है क्योंकि संपत्ति कर स्लैब निर्धारित करने की शक्ति राज्य सरकार के पास होती है। अन्य स्वयं-स्रोत राजस्व धाराओं में बाजार शुल्क या लाइसेंसिंग शुल्क शामिल हो सकते हैं।
अंतर सरकारी हस्तांतरण (IGFT) के लिए प्राथमिक तंत्र वित्त आयोग है, जो जनसंख्या के आधार पर केंद्र सरकार से राज्यों को धन आवंटित करता है और राज्य सरकारें इस धन को नगर पालिकाओं में वितरित करती हैं। वित्त आयोग की निधियों में दो तरह के हस्तांतरण शामिल हैं। वर्तमान में, दस लाख से कम आबादी वाली नगर पालिकाओं के लिए अनुशंसित कुल 15वें वित्त आयोग (2021-26) फंडिंग में से 30% पीने के पानी के लिए, 30% स्वच्छता के लिए आवंटित किया गया है और शेष लचीला है।
भारत का IGFT सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 0.45% है, जो मेक्सिको (1.6%) या दक्षिण अफ्रीका (2.6%) जैसे विकासशील देशों में सबसे कम है। यह असमानता छोटी नगर पालिकाओं और नगर परिषदों पर राजस्व उत्पन्न करने के लिए अनुचित दबाव डालती है, जिसके लिए वे अक्सर तैयार नहीं होती हैं। अनुदान को बुनियादी और प्रदर्शन से जुड़ी श्रेणियों में विभाजित किया गया है। मूल अनुदान जो कुल का 80% है नगर पालिकाओं को पानी और स्वच्छता सहित नागरिक सेवाएं प्रदान करने के लिए बिना शर्त सहायता प्रदान करता है। स्वयं के स्रोत राजस्व और जल और स्वच्छता सेवा में वृद्धि सहित मानदंडों पर अच्छा स्कोर करने वाली नगर पालिकाएं अतिरिक्त अनुदान तक पहुंच सकती हैं।
बड़े शहरों के विपरीत, जिनकी आबादी का एक प्रतिशत उपचार संयंत्रों से जुड़ी केंद्रीकृत सीवेज प्रणालियों से जुड़ा हो सकता है भारत के अधिकांश छोटे शहरों में सीवर बुनियादी ढांचे या उपचार सुविधाओं का अभाव है। परिणामस्वरूप उपचार या निपटान विकल्पों की अनुपस्थिति के कारण पर्यावरण में मल कीचड़ और अपशिष्ट जल का अनुचित निर्वहन होता है।
2021 में CPCB की एक रिपोर्ट के अनुसार, जनसंख्या के आकार के आधार पर विभिन्न शहर वर्गों के भीतर उपचार क्षमता में पर्याप्त अंतर मौजूद है। 10 लाख से अधिक आबादी वाले प्रथम वर्ग के रूप में वर्गीकृत शहरों में, उपचार क्षमता का अंतर लगभग 67% है। इसी तरह, 50,000 से 1 लाख की आबादी वाले द्वितीय श्रेणी के शहरों में, उपचार क्षमता का अंतर उल्लेखनीय रूप से अधिक है लगभग 95% जो एक महत्वपूर्ण असमानता को उजागर करता है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भारत और दक्षिण एशिया के छोटे शहरों में पानी और स्वच्छता सेवाओं से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके सामने आने वाली चुनौतियों को समझकर, सुलभ पानी की गंभीरता को पहचानकर और सुधार के संभावित रास्ते तलाशकर, हम स्वस्थ, अधिक टिकाऊ और समृद्ध समुदायों के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। पर्याप्त स्वच्छता सुविधाओं के साथ समान स्वच्छ और सुरक्षित पानी एक मौलिक अधिकार है। लेकिन जब SDG 6 लक्ष्यों को पूरा करने की बात आती है तो वर्तमान स्थिति एक खेदजनक तस्वीर पेश करती है।
बुनियादी ढांचे में निवेश करके सामुदायिक जुड़ाव को बढ़ावा देकर अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाकर और जिम्मेदारी से जल उपयोग को बढ़ावा देकर, छोटे शहर की बाधाओं पर नियंत्रण कर सकते हैं और अपनी बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी जल और स्वच्छता सेवाओं में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। छोटे शहर राष्ट्रों के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पानी और स्वच्छता जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुंच की गारंटी देकर, हम इन शहरों को आर्थिक प्रगति, पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक कल्याण में और भी अधिक योगदान देने के लिए सशक्त बना सकते हैं।
(टिकेंदर सिंह पंवार हिमाचल प्रदेश के शिमला के पूर्व उप महापौर हैं। ऋत्विक सिन्हा एक स्वच्छता इंजीनियर हैं जो BORDA (ब्रेमेन ओवरसीज़ रिसर्च एंड डेवलपमेंट एसोसिएशन) के साथ काम करते हैं। विचार निजी हैं।)
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