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ख़बरों के आगे-पीछे: प्रधानमंत्री की ‘चिंता’, गहलोत का दांव और शिवराज-वसुंधरा का भविष्य

अपने साप्ताहिक कॉलम ख़बरों के आगे-पीछे में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन डीप फ़ेक पर प्रधानमंत्री मोदी की चिंता पर सवाल उठाते हुए मध्य प्रदेश—राजस्थान की सियासत समेत कई ख़बरों की समीक्षा कर रहे हैं।
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फ़र्ज़ी ख़बरों पर प्रधानमंत्री की चिंता बेमानी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डीपफ़ेक को लेकर बड़ी चिंता जाहिर की। उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा कि यह बहुत गंभीर खतरा है। प्रधानमंत्री ने बताया कि उनका भी एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे गरबा कर रहे थे। उन्होंने सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज से कहा कि वह इस तरह के वीडियो के साथ चेतावनी जारी करे। लेकिन सवाल है कि अगर केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ दलों की ओर से ऐसे वीडियो और फर्जी खबरों को फैलाने का काम होगा तो उसे कौन रोकेगा? प्रधानमंत्री के चिंता जताने के एक दिन बाद ही एक ऐसी फर्जी खबर फैली, जिससे यह सवाल उठा कि इसे कौन रोकेगा? अचानक पूरे देश में सोशल मीडिया पर यह खबर वायरल हुई कि भारत की अर्थव्यवस्था चार खरब डॉलर की हो गई। इसका एक स्क्रीनशॉट वायरल हो रहा था। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और देश के शीर्षस्थ उद्योगपति गौतम अडानी ने भी उसे ट्वीट किया। हालांकि बाद में उन्होंने उसे डिलीट भी कर दिया। सरकार को इस बात की जांच करानी चाहिए कि किसने और किस मकसद से यह प्रचार किया। इसी तरह जिस दिन मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मतदान हो रहा था उस दिन बिहार में अचानक सोशल मीडिया में खबर वायरल हुई कि राज्यपाल ने आरक्षण बढ़ाने वाले विधेयक को मंजूरी दे दी। यह खबर इतनी फैली की मुख्यधारा की मीडिया ने भी दिखाना शुरू कर दिया। बाद में पता चला कि राज्यपाल ने विधेयक को मंजूरी नहीं दी है। ऐसी खबरों पर रोक लगाने का तंत्र विकसित करना होगा।

गहलोत का दांव कितना कारगर होगा?

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 25 नवंबर को हुए मतदान से पहले एक बड़ा दांव चला। उन्होंने बीते मंगलवार को एक कार्यक्रम में कहा कि राज्य की सभी दो सौ सीटों (फ़िलहाल 199 सीटों पर चुनाव हुआ है।) पर वे खुद चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि मतदाताओं को लोकल मामले पर ध्यान नहीं देना है और न यह देखना है कि कौन चुनाव लड़ रहा है। गहलोत ने लोगों से कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में जो काम किया है और जो नीतियां बनाई है, उनको ध्यान में रख कर लोग मतदान करें। संभवत: यह पहली बार है, जब किसी मुख्यमंत्री ने यह कहा है कि सभी सीटों पर वह खुद चुनाव लड़ रहा है। गौरतलब है कि भाजपा ने अपना मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ रही है। लेकिन मोदी ने यह नहीं कहा कि हर सीट पर वे लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा का चेहरा कमल का निशान है। मगर गहलोत ने कहा कि हर सीट पर वे खुद लड़ रहे हैं। पता नही कांग्रेस आलाकमान ने उनकी इस बात को किस रूप में लिया है क्योंकि यह उसकी ऑथोरिटी को भी चुनौती है। राजनीतिक लिहाज से भी यह जोखिम वाला दांव है। ऐसा लगता है कि गहलोत को अपनी लोक लुभावन योजनाओं और घोषणाओं पर बहुत ज्यादा यकीन है और साथ ही इस बात का भी भरोसा है कि उनके पिछड़ी जाति का होने की वजह से एक बड़ा वोट समूह उनके साथ जुड़ेगा। यह भी कहा जा रहा है कि विधायकों के प्रति स्थानीय स्तर पर नाराजगी को दूर करने के लिए भी उन्होंने अपने चेहरे पर वोट डालने की अपील की है।

उत्तर प्रदेश का प्रयोग क्या राजस्थान में भी?

अलवर लोकसभा सीट के भाजपा सांसद मंहत बालकनाथ को विधानसभा चुनाव में उतारने से इस बात की चर्चा हो रही है क्या राजस्थान में उत्तर प्रदेश का प्रयोग दोहराया जा सकता है? भाजपा ने जिस तरह भगवा पहनने वाले और गोरखपुर की गोरक्षा पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ को देश के सबसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बनाया, उसी तरह क्या महंत बालकनाथ को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है? बालकनाथ नाथ संप्रदाय के आठवें महंत है। महंत चांदनाथ ने 2016 में एक बड़े आयोजन में महंत बालकनाथ को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। उस कार्यक्रम में योगी आदित्यनाथ भी शामिल हुए थे। तब वे मुख्यमंत्री नहीं बने थे। बताया जा रहा है कि महंत बालकनाथ को चुनाव मैदान में उतार कर भाजपा ने बहुत सावधानी से हिंदू मतदाताओं को यह संदेश दिया है कि बालकनाथ को भी मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। वे लगातार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने वाले बयान भी दे रहे हैं। उनके साथ एक खास बात यह भी है कि वे पिछड़ी जाति से आते हैं तो विपक्षी गठबंधन की जाति राजनीति के जवाब में भाजपा महंत बालकनाथ का चेहरा आगे कर सकती है। उनसे हिंदुत्व और ओबीसी दोनों का नैरेटिव साधने में मदद मिलेगी। वे अपने लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली तिजारा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।

दिल्ली में कौन चला रहा है सरकार?

दिल्ली की चुनी हुई अरविंद केजरीवाल सरकार और उप राज्यपाल के बीच ऐसी ठनी है कि किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि सरकार कौन चल रहा है। दोनों के बीच विवाद का नतीजा यह है कि छोटी-छोटी बातों के लिए लोग अदालत जा रहे हैं और अदालती फैसलों से सरकार चलती दिख रही है। रोजमर्रा के प्रशासन से जुड़े छोटे-छोटे मामलों में दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले आ रहे हैं। बीते सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि मथुरा रोड पर दिल्ली पब्लिक स्कूल के पास फ्लाईओवर के ऊपर यू टर्न को चालू किया जाए। सवाल है कि क्या यह मामला हाई कोर्ट के विचार के लायक है? इसी तरह सोमवार को ही हाई कोर्ट ने एक अन्य फैसले में इस बात पर नाराजगी जताई कि छह स्कूलों की इमारतें बन कर तैयार है लेकिन पैसे बकाया होने की वजह से उनका कब्जा नहीं लिया जा सका है। अदालत ने स्कूलों का कब्जा लेकर उनमें पढ़ाई शुरू कराने का आदेश दिया। इसी तरह एक मृत पुलिसकर्मी के परिजनों को एक करोड़ रुपए देने का आदेश भी हाई कोर्ट ने दिया है। दिल्ली में रोजमर्रा के कामकाज को लेकर दिए जा रहे अदालत के आदेशों की लंबी सूची बन सकती है। दिल्ली में प्रशासन के कई ढांचे हैं। एक दिल्ली सरकार है, दिल्ली नगर निगम है, उप राज्यपाल के जरिए केंद्र का शासन है और सेना का प्रशासन है। इसके बावजूद अदालत को सरकार चलाने की जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है? मुख्यमंत्री अरविद केजरीवाल और उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के बीच जंग चल रही है। उप राज्यपाल दिल्ली सरकार के हर फैसले को पलटने के लिए तैयार बैठे हैं तो दूसरी ओर केजरीवाल सरकार भी कामकाज की बजाय टकराव बढ़ाने में लगी है।

शिवराज और वसुंधरा का भविष्य

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक इंटरव्यू में कहा है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की भूमिका के बारे में चुनाव के बाद फैसला किया जाएगा। उनसे पूछा गया था कि क्या भाजपा ने इन दोनों का विकल्प खोज लिया है। इस पर उन्होंने कहा था कि दोनों नेता अपने-अपने राज्य में खूब मेहनत कर रहे हैं और इनके बारे में फैसला चुनाव के बाद किया जाएगा। इन दोनों के साथ छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का भी नाम जोड़ा जा सकता है। अभी तीनों की भूमिका स्पष्ट नहीं है। किसी को पता नहीं है कि अगर भाजपा जीतती है तो इन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा या इनकी कोई नई भूमिका होगी। अगर चुनाव नतीजे ऐसे आते हैं, जिनमें आजमाए हुए नेता को ही कमान देने की जरूरत पड़ी तो ही ये लोग मुख्यमंत्री बन सकते हैं, जैसे 2019 में कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा और 2020 में मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा था। अगर हालात वैसे बनते हैं तब तो पुराने क्षत्रपों के लिए मौका बनेगा। अन्यथा राज्य की राजनीति में उनकी पारी समाप्त होगी। तीनों क्षत्रपों को लोकसभा चुनाव लड़ने को कहा जा सकता है। कहा जा रहा है कि जिस राज्य में भाजपा बड़ी जीत हासिल करेगी वहां कोई नया नेता मुख्यमंत्री होगा और पुराने क्षत्रप को केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है। जहां भाजपा हारेगी वहां के क्षत्रप भी केंद्र में मंत्री बनाए जा सकते हैं, क्योंकि पार्टी को अगले लोकसभा चुनाव में सभी बड़े क्षत्रपों की जरूरत है।

येदियुरप्पा और देवगौड़ा की कमान में चुनाव

भाजपा उन राज्यों में बहुत मेहनत कर रही है जहां उसे पिछले लोकसभा चुनाव में छप्पर फाड़ जीत मिली थी। कर्नाटक ऐसा ही एक राज्य है। वहां की 28 में से 25 सीटें भाजपा ने जीती थी और एक सीट उसकी समर्थक निर्दलीय उम्मीदवार सुमलता अम्बरीश को मिली थी। बाद में वे भाजपा में शामिल हो गईं और इस बार भाजपा के टिकट पर ही लड़ेंगी। सो, राज्य में भाजपा को 26 सीटें बचानी है। इस साल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली बड़ी जीत के बाद भाजपा के लिए यह मुश्किल काम हो गया है। इसीलिए वह नए समीकरण बनाने में जुटी है। इसके तहत सबसे बड़े लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्र को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। इससे पहले सबसे बड़े वोक्कालिगा नेता एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल (एस) के साथ भाजपा ने तालमेल किया। गौरतलब है कि जनता दल (एस) की कमान देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी के हाथ में है। भले ही बीवाई विजयेंद्र और एचडी कुमारस्वामी का चेहरा आगे किया गया है लेकिन बताया जा रहा है कि असली राजनीति येदियुरप्पा और देवगौड़ा ही कर रहे हैं। अब भी दोनों समुदायों में इन दोनों का ही चेहरा सबसे लोकप्रिय है। हालांकि इन दोनों उम्रदराज नेताओं के साथ मिल कर काम करने के बावजूद भाजपा बहुत भरोसे में नहीं है। इसका कारण है कि लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों का जमीन पर आपस में संघर्ष रहता है और मिल कर वोट डालना मुश्किल होता है। बताया जा रहा है कि दोनों समुदायों को साथ मिल कर वोट कराने के लिए येदियुरप्पा और देवगौड़ा बड़ी मेहनत कर रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस ओबीसी नेता सिद्धरमैया, वोक्कालिगा नेता डीके शिवकुमार और दलित नेता मल्लिकार्जुन खरगे के सहारे राजनीति कर रही है। मुस्लिम वोट तो एकतरफा उसके साथ है ही।

वरुण गांधी की कविता का क्या मतलब?

भाजपा सांसद वरुण गांधी ने अपने चुनाव क्षेत्र में आयोजित एक कार्यक्रम में एक तुकबंदी पढ़ी। उन्होंने कहा, ''तुम्हारी मोहब्बत में हो गए फना, मांगी थी नौकरी मिला आटा, दाल, चना।’’ उनका इस तरह तंज करना मामूली बात नहीं है। उन्होंने सीधे तौर पर केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वादा किया था, लेकिन बेरोजगारी की दर देश में बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर मोदी ही देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में पांच किलो अनाज बांट रहे हैं। पिछले साल चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार एक-एक किलो दाल भी बांट रही थी। इन दोनों बातों का वरुण ने मजाक उड़ाया। सवाल है कि इसका राजनीतिक मतलब क्या है? यह सही है कि भाजपा के प्रवक्ता अभी उनका नाम लेकर उनकी आलोचना नहीं कर रहे हैं लेकिन सबको पता है कि वे जिस रास्ते पर चल रहे हैं वह रास्ता उनको भाजपा से दूर ले जाता है। पिछले दिनों वे केदारनाथ की यात्रा के दौरान राहुल गांधी से भी मिले थे। उस मुलाकात के बाद ही भाजपा सरकार की नीतियों पर वरुण का हमला हुआ। हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि वे कांग्रेस में जा सकते हैं, लेकिन यह जरूर है कि वे भाजपा से अलग राजनीति करने का रास्ता बना रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे अलग राजनीति अपनी पार्टी बना कर करते हैं या बिना पार्टी के करते हैं या किसी पार्टी से जुड़ते हैं।

भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्रियों का एक जैसा हाल

कर्नाटक में पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को छोड़ दे तो बाकी पूर्व मुख्यमंत्रियों का एक ही जैसा हाल होता है। पार्टी बड़ी उम्मीद और जोश-खरोश के साथ उन्हें मुख्यमंत्री बनाती है और पद से हटते ही वे पूरी तरह से हाशिए पर डाल दिए जाते हैं। ताजा मामला इसी साल मई में मुख्यमंत्री पद से हटे बसवराज बोम्मई का है। मई में पार्टी हारी तभी से कहा जा रहा था कि वे विधायक दल के नेता होंगे और इस नाते नेता प्रतिपक्ष बनेंगे। लेकिन विधायक दल के नेता का फैसला छह महीने तक लटका रहा। छह महीने बाद उनकी बजाय पूर्व उप मुख्यमंत्री आर. अशोक को भाजपा विधायक दल का नेता चुन लिया गया। वे भी वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं। इससे पहले बीएस येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्र को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। वे लिंगायत समुदाय के हैं। लिंगायत समुदाय के नेता जगदीश शेट्टार भी मुख्यमंत्री रहे थे। लेकिन इस साल के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें टिकट ही नहीं दिया। नाराज होकर शेट्टार ने पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में चले गए। उनसे पहले मुख्यमंत्री बने डीवी सदानंद गौड़ा की स्थिति भी ऐसी ही रही। वे कुछ समय केंद्र में मंत्री रहे लेकिन 2019 में भाजपा की दोबारा सरकार बनने पर उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। अब उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि पार्टी उन्हें टिकट नहीं देने वाली है इसलिए उन्होंने पहले ही संन्यास का ऐलान कर दिया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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