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ख़बरों के आगे–पीछे: रांची में भाजपा का बेसुरा कराची राग 

अपने साप्ताहिक कॉलम में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन दिल्ली में बढ़ते आपराधिक गिरोह से लेकर झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव पर चर्चा कर रहे हैं। 
mohan yadav

आपराधिक गिरोहों की राजधानी भी दिल्ली

भारत की राजधानी आपराधिक गिरोहों की भी राजधानी बन गई है और ऐसा लग रहा है कि इस राजधानी का हर दूसरा या तीसरा व्यक्ति किसी न किसी गिरोह का शूटर है। रोज अखबारों में नए गैंग और गैंगेस्टर का नाम छपता है और किसी कंपनी के प्रोफाइल की तरह छपने वाले उसके प्रोफाइल में बताया जाता है कि उस गैंगेस्टर ने कैसे-कैसे कारनामे किए हैं, उस पर कितने मुकदमे हैं, वह इस समय किस जेल में या किस देश में है और उसके पास कितने शूटर हैं, जो उसके एक इशारे पर किसी पर भी गोली चला सकते हैं। सात सौ ज्य़ादा शूटर वाला गिरोह इस समय सबसे बड़ा है। लेकिन सौ–दो सौ शूटर्स वाले भी कई गिरोह हैं। ये शूटर्स ऐसे हैं, जिनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होता है। यही उनकी एकमात्र योग्यता होती है। राजधानी दिल्ली में लगभग हर दिन कहीं फायरिंग होने और कहीं वसूली की धमकी दिए जाने की खबर आ रही है। पता नहीं असली बॉस यानी गैंगेस्टर को पता भी है या नहीं लेकिन उसके नाम से लोगों को धमकी भरे फोन जा रहे हैं। ऐसा भी होता है कि अपना नाम बनाने के चक्कर में किसी ने किसी पर गोली चला दी या हत्या कर दी और बाद में किसी बड़े गैंगेस्टर ने उसकी जिम्मेदारी ले ली। बेरोजगार नौजवानों का एक विशाल समूह दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में घूम रहा है, जिससे गैंगेस्टर्स को आसानी से कच्चा माल मिल रहा है। वे पैसे और ऐश-मौज के जीवन का लालच देकर नौजवानों को फंसा रहे हैं और उनके हाथ में पिस्तौल थमा रहे हैं। मुंबई में बाबा सिद्दीकी की हत्या करने वालों को नकद रुपये, फ्लैट और दुबई की सैर का वादा किया गया था। उसमें पकड़े गए ज्यादातर नौजवानों का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है।

अब पुलिस के जरिए रंगदारी मांगने का दौर 

साइबर फ्रॉड या डिजिटल अरेस्ट करके लूटने के साथ-साथ अब लूट का उससे थोड़ा आसान और कैजुअल तरीका सीधे फोन करके धमकी देने का है। पूरे देश में और खास कर भाजपा शासित राज्यों में इसका सीजन चल रहा है। चाहे नेता हो, अभिनेता हो या कारोबारी हो, उन्हें सीधे धमकियां आ रही हैं। धमकी देने वालों के हौसलें इतने बढ़ गए है कि वे संबंधित व्यक्ति को धमकी देने की बजाय सीधे आसपास के थाने में ही फोन कर पुलिस को ही अपनी मांग बता दे रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि पुलिस वाले संबंधित व्यक्ति को जानकारी देकर रंगदारी की रकम वसूलने में मदद करेंगे। क्या पता कहीं-कहीं ऐसा होता भी हो। पिछले दिनों एक व्यक्ति ने मुंबई के बांद्रा पुलिस स्टेशन में फोन किया और अभिनेता शाहरूख खान से 50 लाख रुपए की मांग की। शाहरूख खान बांद्रा इलाके में ही रहते हैं। दाद दीजिए फिरौती मांगने वाले की हिम्मत पर! इससे पहले सलमान खान को फिरौती के लिए कई फोन आ चुके हैं। पिछले दिनों बिहार के सांसद पप्पू यादव को फोन करके किसी ने धमकी दी थी। अभी खबर आई है कि भोजपुरी की अभिनेत्री अक्षरा सिंह को किसी ने फोन करके धमकी दी है। दिल्ली में ज्वेलर्स की दुकानों पर सरे आम गोली चला कर रंगदारी मांगने की कई घटनाएं हुई हैं। कुछ समय पहले देश के सबसे अमीर कारोबारी के घर के पास विस्फोटक रख कर धमकाने का मामला भी सामने आया ही था।

महाराष्ट्र में अब तो अडानी की बड़ी भूमिका रहेगी?

अपने राजनीतिक अस्तित्व के संकट से जूझ रहे महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने कहा है कि 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद जब शिव सेना और भाजपा के संबंधों में मुख्यमंत्री पद को लेकर गतिरोध पैदा हुआ और वैकल्पिक सरकार बनाने की कोशिश चालू हुई तो भाजपा और एनसीपी के बीच एक बैठक हुई थी, जिसमें गौतम अडानी भी शामिल हुए थे। अजित पवार ने कहा है कि बैठक में शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल, देवेंद्र फड़नवीस और वे खुद भी मौजूद थे। उनका कहना है कि इसके बाद ही उन्होंने अपने चाचा शरद पवार के कहने पर भाजपा के साथ सरकार बनाई। अजित पवार के मुताबिक उस बैठक के बाद एक दिन तड़के आनन-फानन में राज्यपाल ने देवेंद्र फड़नवीस और उन्हें शपथ दिलाई थी, वह शरद पवार का ही खेल था। लेकिन बाद में शरद पवार पीछे हट गए तो अजित पवार को भी 80 घंटे के अंदर वापस लौटना पड़ा। हालांकि एनसीपी इसे खारिज कर रही है। बहरहाल अगर अजित पवार की बात को सही माने तो इस बार चुनाव के बाद सरकार बनाने में गौतम अडानी ज्यादा बड़ी भूमिका निभाने की कोशिश करेंगे। वे चाहेंगे कि किसी तरह से कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की सरकार नहीं बने। क्योंकि राहुल गांधी तो उनके पीछे पड़े ही हैं और उद्धव ठाकरे भी कह चुके हैं कि सरकार बनी तो अडानी समूह को धारावी के रिडेवलपमेंट का जो प्रोजेक्ट दिया गया है वह छीन लेंगे तथा उनको दी गई जमीनें भी वापस ले ली जाएंगी। 

छुट्टियों का नाम बदलने से क्या होगा?

जिस तरह केंद्र और राज्यों में भाजपा की सरकारों ने पुरानी योजनाओं के, इमारतों के, शहरों के, सड़कों के, रेलवे स्टेशनों और हवाई अड्डों के नाम बदलने का सिलसिला चला रखा है, शायद उसी से प्रेरित होकर अब सुप्रीम कोर्ट में गर्मियों की छुट्टी का नाम बदल दिया गया है। डीवाई चंद्रचूड़ के प्रधान न्यायाधीश पद से रिटायर होने से ठीक पहले यह बदलाव किया गया। अब सुप्रीम कोर्ट में गर्मियों की छुट्टियों को 'आंशिक न्यायालय कार्य दिवस’ कहा जाएगा। सवाल है कि इससे क्या होगा? असल में कुछ दिनों से सोशल मीडिया में इस बात की बड़ी चर्चा हो रही है कि उच्च अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ रही है और जज छुट्टी मनाते रहते हैं। ग्रीष्मकालीन अवकाश हो या शीतकालीन या दशहरे की छुट्टियां हो, इन मौकों पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों की खूब आलोचना होती है। इसीलिए पिछले कुछ दिनों से जजों की ओर से भी बताया जा रहा है कि वे कितना काम करते हैं। कई बार तो प्रधान न्यायाधीश रहते डीवाई चंद्रचूड़ ने भी बताया कि जजों को छुट्टियों में भी काम करना होता है, लंबे-लंबे फैसले लिखने होते हैं, जो कोर्ट की कार्यावधि में नहीं लिखे जा सकते है और केस की फाइलें भी पढ़नी पड़ती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट में साल में 72 मामले ही सुने जाते हैं, जबकि भारत में सुप्रीम कोर्ट हर साल हजारों मुकदमे सुनता है। बहरहाल, छुट्टियों की होने वाली आलोचना से निबटने के लिए गर्मी की छुट्टियों का नाम बदल दिया गया है।

रांची में भाजपा का बेसुरा कराची राग 

झारखंड में एक बार फिर रांची और कराची का मुद्दा उठाया गया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) पर हमला करते हुए कहा कि दोनों पार्टियों ने राजधानी रांची को कराची बना दिया है। कहने का मतलब है कि कांग्रेस और जेएमएम ने रांची में मुस्लिम आबादी भर दी है। यह बात पूरे झारखंड के लिए कही जा रही है और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा इस नैरेटिव के चैंपियन बने हुए है। यह बात महाराष्ट्र और खास कर मुंबई के बारे में भी कही जा रही है। हालांकि मुंबई से कराची की तुकबंदी नहीं बनती है तो उस अंदाज में नहीं कहा गया लेकिन भाजपा के किरीट सोमैया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि 2050 तक मुंबई में सिर्फ 54 फीसदी हिंदू रह जाएंगे। बहरहाल, रांची और कराची का राग झारखंड में पहली बार नहीं अलापा जा रहा है। भाजपा के पुराने संस्करण भारतीय जनसंघ के नेता भी झारखंड में चुनावों के वक्त इस तरह का राग अलापते थे। एक चुनाव में नारा लगा था, 'अबकी जिताओ रांची से, अगला चुनाव कराची से’। यानी पाकिस्तान को कब्जा कर लिया जाएगा। हालांकि इस नारे का कोई खास असर नहीं हुआ था। अब भाजपा नेता इस नारे को नए रूप में पेश कर रहे हैं। इस बार भाजपा राज्य की जनसंख्या संरचना बदलने के नैरेटिव पर चुनाव लड़ रही है। नाम लेकर मुस्लिम नेताओं से छुटकारा दिलाने की बात हो रही है। 

चुनाव के बीच भी आईटी और ईडी का छापा

झारखंड में पहले चरण की 43 सीटों पर 13 नवंबर को हुए मतदान से चार दिन पहले आयकर विभाग ने नौ नवंबर को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निजी सचिव सुनील श्रीवास्तव और उनसे जुड़े कुछ लोगों के यहां छापा मारा। आखिर इस छापेमारी का क्या मतलब है? क्या आयकर विभाग इस कार्रवाई के लिए 10 दिन इंतजार नहीं कर सकता था? गौरतलब है कि पिछले कई महीनों से लगातार हेमंत सोरेन, उनके करीबी लोगों और सरकार में अहम पदों पर रहे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई चल रही है। सुनील श्रीवास्तव अभी तक बचे हुए थे। आखिर इस छापेमारी में सुनील श्रीवास्तव या किसी और व्यक्ति के यहां से कुछ भी नहीं मिला। जब नकदी या सोना-चांदी नहीं मिले और छापेमारी के बाद एजेंसी कहे कि उसने कई दस्तावेज और कंप्यूटर जब्त किए हैं तो इसका मतलब होता है कि उसे कुछ नहीं मिला है। जाहिर है कि यह राजनीतिक छापेमारी थी और इसका मकसद परेशान करना और जनता के बीच एक मैसेज बनवाना था। 

इस छापेमारी से ठीक पहले भाजपा के एक सांसद ने कुछ लोगों के नाम लिए थे और उन पर आरोप लगाए थे। उनमें से एक नाम सुनील श्रीवास्तव का भी था। उनके नाम लेने के बाद एक हफ्ते में आयकर विभाग ने छापा मार दिया। गौरतलब है कि चुनाव की घोषणा के बाद कम से कम तीन बार झारखंड में छापेमारी हो चुकी है, लेकिन चुनाव आयोग मूकदर्शक बना हुआ है।

ऐसे तो नहीं थे चंद्रबाबू नायडू!

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगू देशम पार्टी के सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू चाहे समाजवादी धारा की पार्टियों के साथ रहे हो, कांग्रेस के साथ रहे हो या भाजपा के साथ रहे हो, उनकी राजनीति सलीकेदार मानी जाती रही है। वे लोकतांत्रिक मिजाज के व्यक्ति हैं और विकास की राजनीति करते हैं। लेकिन इस बार मुख्यमंत्री बनने के बाद से वे बदले-बदले से दिख रहे है। इसलिए सवाल उठ रहा है कि उनको क्या हो गया? क्या इस साल के विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले तत्कालीन जगन मोहन रेड्डी की सरकार ने एक घोटाले में उनको गिरफ्तार कराया और जेल में रखा, उससे उनकी सोच बदल गई है और इसी वजह से उनकी राजनीति का तरीका बदल गया है? इसका जवाब आसान नहीं है। लेकिन यह हकीकत है कि इस बार मुख्यमंत्री बनने के बाद वे विपक्ष के खिलाफ बहुत सख्त हैं। उनकी सरकार ने जगन मोहन रेड्डी के कार्यालय पर बुलडोजर चलवा दिया। इतना ही नहीं, वाईएसआर कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के सोशल मीडिया पोस्ट पर अंधाधुंध मुकदमे कायम हो रहे हैं। 

एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार ने वाईएसआर कांग्रेस के 49 नेताओं को गिरफ्तार कराया है। खबर है कि सरकार ने जगन मोहन की पार्टी के नेताओं को करीब सात सौ नोटिस भिजवाए हैं और डेढ़ सौ के करीब मुकदमे दर्ज किए गए हैं। यह भी कहा जा रहा है कि चंद्रबाबू नायडू किसी तरह से जगन मोहन को जेल भेज कर अपनी गिरफ्तारी का हिसाब चुकता करना चाहते हैं। 

भाजपा के दिखाए रास्ते पर जेएमएम-कांग्रेस

आमतौर पर विपक्षी पार्टियां भाजपा की शिकायत चुनाव आयोग से करती हैं, जिन पर ज्यादातर मामलों में कोई सुनवाई नहीं होती है। लेकिन झारखंड में उलटा हो रहा है। भाजपा के नेता झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और कांग्रेस की शिकायत चुनाव आयोग से कर रहे हैं। मामला यह है कि जेएमएम और कांग्रेस की राज्य सरकार ने कुछ दांवपेच भाजपा से सीख लिए हैं, जो भाजपा नेताओं को रास नहीं आ रहे हैं। अब जेएमएम और कांग्रेस के नेता भी मतदान के दिन बगल के क्षेत्र में रैलियां करते हैं और मतदान को प्रभावित करने वाले सरकारी या गैर सरकारी फैसलों का ऐलान करते हैं। सरकारी योजनाओं के तहत लोगों को नकद पैसा भी भेजते हैं। असल में 13 नवंबर को पहले चरण की 43 सीटों पर मतदान से एक दिन पहले राज्य सरकार ने 'मइया सम्मान योजना’ के 1100 रुपये महिलाओं के खाते में भेजे। भाजपा ने चुनाव आयोग से शिकायत की कि यह पैसा महीने के पहले हफ्ते में भेजने का नियम है, लेकिन मतदान से ठीक एक दिन पहले भेजा गया। इस पर जेएमएम के नेता याद दिला रहे हैं कि जिस दिन हरियाणा में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो रहा था उसी दिन प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का पैसा किसानों के खाते में ट्रांसफर हुआ था। भाजपा ने यह भी शिकायत की है कि कांग्रेस ने मतदान से एक दिन पहले अपना घोषणापत्र जारी किया, जिसमें बड़े-बड़े वादे किए गए। अब देखना है कि चुनाव आयोग इस पर क्या करता है?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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