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ख़बरों के आगे-पीछे: दक्षिण की सियासत, कंगना रनौत और व्हाट्सऐप चैनल

अपने साप्ताहिक कॉलम ख़बरों के आगे-पीछे में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन बता रहे हैं दक्षिण में तेज़ी से बदल रहे राजनीतिक समीकरण के बारे में। साथ ही चर्चा कर रहे हैं भाजपा की नई ऑइकन कंगना और नेताओं के व्हाट्सऐप चैनल के बारे में।
south politics

दक्षिण भारत में आकार ले रहे हैं नए गठबंधन

आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर दक्षिण भारत के राज्यों में नए राजनीतिक गठबंधन आकर ले रहे हैं। कुछ राज्यों में पहले से गठबंधन कायम हैं और वे जस के तस बने रहेंगे। जैसे तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस का गठबंधन है, जिसमें आधा दर्जन अन्य पार्टियां भी शामिल हैं तो दूसरी ओर अन्ना डीएमके और उसकी सहयोगी अन्य छोटी पार्टियों के साथ भाजपा का करीब दो दशक पुराना गठबंधन गठबंधन टूट गया है। यानी भाजपा फिलहाल वहां अकेली पड़ गई है।

इसी तरह केरल में सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ में सीधा मुकाबला होता है जो इस बार भी होगा। वहां भाजपा किसी तरह से पैर जमाने की कोशिश कर रही है। लेकिन इन दो राज्यों के अलाव बाकी तीन बड़े राज्यों- कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में नए गठबंधन बन रहे हैं। कर्नाटक में इस बार कांग्रेस अकेले लड़ेगी जबकि भाजपा और जनता दल (एस) के बीच गठबंधन हो गया है। पिछली बार जनता दल (एस) और कांग्रेस मिल कर लड़े थे। आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी और जन सेना पार्टी के बीच तालमेल हो गया है और माना जा रहा है कि देर-सबेर भाजपा भी इसमें शामिल हो सकती है। तेलंगाना में कांग्रेस और जगन मोहन की बहन वाईएस शर्मिला की पार्टी वाईएसआर तेलंगाना पार्टी के बीच गठबंधन हो सकता है या शर्मिला अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर सकती है। अगर ऐसा होता है तो इसका असर आंध्र प्रदेश की राजनीति पर भी होगा।

भाजपा की नई ऑइकन है कंगना रनौत

भाजपा महिला सशक्तिकरण के तौर पर फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत को पेश कर रही है। नए संसद भवन की पहली कार्यवाही में जब महिला आरक्षण विधेयक पेश होना था तब कंगना रनौत को संसद में बुलाया गया था। संसद परिसर मे भाजपा के सांसदों और नेताओं ने उनके साथ तस्वीरें खिंचवाई। दरअसल कंगना ने एक मूवी माफिया का हौवा खड़ा किया और अपने को उससे लड़ने वाली योद्धा के तौर पर पेश किया। इसमें उन्हें भाजपा का भी परोक्ष समर्थन मिला और सोशल मीडिया के जरिए ऐसा मैसेज बना, जैसे मुस्लिम अभिनेता, निर्देशक, निर्माता आदि दुबई से गाइड होते हैं और कंगना उनसे लड़ रही है। इसके बाद उन्होंने हर मुद्दे पर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन करना शुरू किया। यही नहीं, उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह कहने में भी कोई गुरेज नहीं किया कि भारत को वास्तविक आजादी 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही मिली है। इस सबके बदले में उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा गया। अब उन्हें एक और बडा पुरस्कार मिलने वाला है। बताया जा रहा है कि अगले साल वे हिमाचल प्रदेश में मंडी सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ेगी। दरअसल भाजपा हर चुनाव में कुछ मशहूर फिल्मी सितारों को टिकट देती है। चूंकि हेमामालिनी और सन्नी देओल दोनों ही अगला चुनाव संभवत: नहीं लड़ने वाले हैं। शत्रुघ्न सिन्हा, बाबुल सुप्रिया आदि पहले ही भाजपा छोड़ चुके है। अब सिर्फ किरण खेर और भोजपुरी सिनेमा के तीन लोग बचे हैं, जो पार्टी की टिकट पर लड़ेंगे। इसीलिए कंगना रनौत को चुनाव लड़ा कर हेमामालिनी वाली कमी पूरी की जाएगी।

इंडिया कहने से बचने के कितने जतन

विपक्षी गठबंधन 'इंडिया’ को नीचा दिखाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से कहा गया कि ईस्ट इंडिया कंपनी, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और इंडियन मुजाहिदीन के नाम में भी इंडिया हैं। उसके बाद इंडिया की स्पेलिंग के बीच डॉट लगाने पर कहा गया कि यह देश के विभाजन का प्रतीक है। फिर इंडिया की बजाय भारत लिखा जाने लगा। फिर घमंडिया कहा गया और अभी भी 'इंडिया’ का नाम लेने से बचने के लिए तरह-तरह के उपाय भाजपा और उसके समर्थकों की ओर से किए जा रहे हैं। भाजपा नेता और सोशल मीडिया में उसके समर्थक पत्रकार आदि रोज कोई न कोई उपाय खोजते हैं, जिससे 'इंडिया’ नहीं कहना पड़े। केंद्र सरकार ने देश के नाम के मामले में तो रास्ता निकाल लिया है। अब हर जगह भारत कहा और लिखा जाने लगा है। लेकिन जहां विपक्षी गठबंधन का नाम लेना है वहां क्या किया जाए? प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी के नेता तो इसे घमंडिया गठबंधन कह सकते हैं लेकिन स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करने का दावा करने वाले पत्रकारों ने अब 'इंडिया’ कहने से बचने का नया रास्ता निकाला है। एक टीवी चैनल में कार्यरत भक्त पत्रकार ने कहा है कि अब इसे इंडी गठबंधन कहा जाएगा। उसका कहना है कि 'इंडिया’ नाम में शामिल आखिरी ए का मतलब एलायंस है। इसलिए इंडी एलायंस या इंडी गठबंधन कहा जा सकता है। कई लोगों ने सोशल मीडिया में इसका इस्तेमाल भी शुरू कर दिया। भाजपा के कुछ नेता भी ऐसा लिखने-बोलने लगे हैं।

अचानक जागा कांग्रेस का ओबीसी प्रेम

जिस तरह से भाजपा और केंद्र सरकार का भारत प्रेम जागा है उसी तरह कांग्रेस का भी ओबीसी प्रेम जाग उठा है। कांग्रेस कुछ दिनों से बहुत सुनियोजित तरीके से ओबीसी कार्ड खेल रही है। उसकी चार राज्यों में सरकार है, जिनमें से तीन राज्यों- राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में मुख्यमंत्री पिछड़ी जाति के हैं। नए-नए प्रेम के तहत ही कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी तीनों ने महिला आरक्षण में ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने की मांग की। सोनिया और राहुल गांधी ने लोकसभा मे बिल पर चर्चा करते हुए इसकी मांग उठाई। राहुल ने तो यहां तक कहा कि जब तक ओबीसी महिलाओं का आरक्षण इसमें शामिल नहीं किया जाता है तब तक यह विधेयक अधूरा है। विपक्षी गठबंधन 'इंडिया’ की पार्टियां के नेताओं ने भी महिला आरक्षण में ओबीसी के लिए सीटें आरक्षित करने की मांग की। कांग्रेस बार-बार हवाला दे रही है कि यह उसका विधेयक है। लेकिन वह यह भूल रही है कि जब उसने 2010 में यह विधेयक राज्यसभा में पारित कराया था तब उसने उसमें ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं किया था। उस समय कांग्रेस की सहयोगी पार्टियों के साथ-साथ मंडल की राजनीति करने वाली दूसरी पार्टियां भी इसका विरोध कर रही थीं। उनके विरोध की वजह से ही वह विधेयक लोकसभा में पारित नहीं हो सका था। अब बिल्कुल वही विधेयक भाजपा सरकार ने पेश किया तो कांग्रेस का ओबीसी प्रेम जाग गया। हालांकि इसे वक़्त के साथ एक सकारात्मक बदलाव भी कहा जा सकता है क्योंकि 2010 के बाद से गंगा-जमुना में बहुत पानी बह चुका है।

हिमंत बनाम गौरव गोगोई

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस में सिर्फ राहुल गांधी को निशाना बना रहे हैं, जिससे ऐसा लगता था कि वे बाकी के कांग्रेस नेताओं को हमला करने लायक नहीं मानते हैं। दूसरे, वे तमाम राष्ट्रीय मुद्दों पर बोलते रहे हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि प्रदेश कांग्रेस के नेता और सांसद गौरव गोगोई ने उनको चुनौती दी है। एक के बाद एक मामलों में हिमंत उनसे उलझते गए और फंसते गए। हालांकि अब भी उनकी ओर से जवाब दिया जा रहा है लेकिन इस समय गौरव गोगोई फ्रंटफुट पर खेलते हुए लगातार आक्रामक होकर हमले कर रहे हैं। गौरतलब है कि हिमंत सरमा लंबे समय तक गौरव गोगोई की पिता दिवंगत तरुण गोगोई की सरकार में मंत्री रहे थे। दोनों में नजदीकी रही थी इसलिए दोनों एक दूसरे के बारे में और एक दूसरे के परिवार को भी जानते हैं। इसी आधार पर कांग्रेस ने जमीन खरीदने, उसका इस्तेमाल बदले जाने और केंद्र सरकार की योजना के तहत 10 करोड़ रुपए लेने के मामले में उनकी पत्नी का नाम शामिल करते हुए बड़े आरोप लगाए हैं। कांग्रेस की ओर से गौरव गोगोई इस मामले को लीड कर रहे हैं। इस पर जवाब देने की बजाय हिमंत सरमा ने गौरव पर उनके पिता तरुण गोगोई की बीमारी और उनको दिल्ली नहीं ले जाने का आरोप लगा दिया। जवाब में गौरव गोगोई ने सारे तथ्य रखे। सो, एक साथ राजनीतिक और निजी दोनों मोर्चों पर दोनों के बीच जुबानी जंग चल रही है। इस जंग में गोगोई भारी पडते दिखते रहे हैं।

उल्टा भी पड़ सकता है जगन का दांव

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने एक खतरनाक दांव चला है। उन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनाव से आठ महीने पहले राज्य के सबसे बड़े नेता और मुख्य विपक्षी पार्टी टीडीपी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू को भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार करा दिया। उनकी गिरफ्तारी से जुड़े घटनाक्रम का बड़ा राजनीतिक असर हुआ है। बताया जा रहा है कि जगन मोहन ने भाजपा और कांग्रेस को प्रदेश की राजनीति से पूरी तरह बाहर करने के लिए यह दांव चला है। उन्होंने इस मकसद से भी यह दांव चला है कि टीडीपी और चंद्रबाबू नायडू पर ऐसा आरोप लगा दो कि भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ बोलने वाले नरेंद्र मोदी की पार्टी भाजपा उनसे तालमेल न कर सके। इससे भाजपा के उभरने की संभावना भी खत्म होगी। कांग्रेस पहले से ही बहुत कमजोर है। अगर मुकाबला वाईएसआर कांग्रेस बनाम टीडीपी होगा तो दोनों पार्टियां हाशिए में ही रह जाएंगी। लेकिन यह दांव उल्टा भी पड़ सकता है। जगन मोहन मान रहे हैं कि कांग्रेस और भाजपा को हाशिए में रखने के लिए जरूरी है कि उनकी और नायडू की पार्टी मे सीधा मुकाबला हो। वे मान रहे है कि नायडू की पार्टी इतना कमजोर है कि उनका मुकाबला नहीं कर पाएगी। लेकिन चंद्रबाबू नायडू की गिरफ्तारी के बाद माहौल बदलने लगा है। लोगों का समर्थन उनके साथ जुड़ने लगा है। सबसे बड़ा घटनाक्रम यह हुआ है कि पवन कल्याण ने अपनी जन सेना पार्टी और तेलुगू देशम पार्टी के बीच तालमेल का ऐलान कर दिया है। पवन कल्याण और चंद्रबाबू नायडू तेलुगू राजनीति के दो सबसे बड़े समुदायों- कापू और कम्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर ये दोनों समुदाय एक साथ आते हैं तो जगन मोहन के लिए चुनाव मुश्किल हो जाएगा।

व्हाट्सऐप चैनल पर मोदी, राहुल, केजरीवाल

सोशल मीडिया का कोई प्लेटफॉर्म ऐसा नहीं है, जहां देश के बड़े और लोकप्रिय नेता सक्रिय नहीं हैं। कोई भी नया प्लेटफॉर्म आते ही नेता उस पर अपना अकाउंट बना लेते हैं और लाखों लोग उसे फॉलो भी करने लगते हैं। फेसबुक से लेकर ट्विटर यानी एक्स और इंस्टाग्राम पर सभी बड़े नेताओं के अकाउंट हैं और लाखों-करोड़ों फॉलोवर हैं। हाल ही में दो दिन के अंतराल में देश के तीन बड़े नेताओं ने व्हाट्सऐप का चैनल ज्वाइन किया है। पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना व्हाट्सऐप चैनल शुरू किया। इसके तुरंत बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आम आदमी पार्टी के नेता व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी अपना चैनल शुरू कर दिया। तीनों नेताओं के व्हाट्सऐप चैनल ज्वाइन करने के बाद उनकी पार्टियों की ओर से एक जैसी प्रतिक्रिया दी गई कि उनके नेता सीधे जनता से जुड़ना चाहते हैं। हालांकि वे पहले से जनता से किसी न किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए जुड़े हुए हैं, फिर भी एक नए प्लेटफॉर्म पर जुड़ना है। व्हाट्सऐप चैनल असल में एक एकतरफा संवाद का चैनल है, जिसमें एडमिन अपनी पसंद से वीडियो, टेक्स्ट मैसेज आदि डाल सकता है, ओपिनियन पोल आदि भी करा सकता है। उसके फॉलोवर उस पर कोई मैसेज नहीं लिख सकते है। वे सिर्फ इमोजी के जरिए ही प्रतिक्रिया दे सकते हैं। बहरहाल, जल्दी ही व्हाट्सऐप चैनल की भी भरमार होने वाली है। सारे नेता इस पर पोल करा रहे होंगे और अपनी पसंद के नतीजे जारी कर रहे होंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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