ख़बरों के आगे-पीछे : जी-20 का झुनझुना बजता रहेगा
जी-20 शिखर सम्मेलन हो गया और उसकी अध्यक्षता भी भारत के हाथ से निकल कर ब्राजील के पास चली गई है, उसका प्रचार थमने वाला नहीं है। संसद के विशेष सत्र और उसके बाद पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में जी-20 का झुनझुना बजाया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस बड़े आयोजन का प्रचार करने और अधिकतम लाभ लेने की योजना पर काम कर रहे हैं। इसीलिए शिखर सम्मेलन खत्म होने के बाद से हर दिन कोई न कोई कार्यक्रम हो रहा है, जो इससे जुड़ा हुआ है। जैसे सम्मेलन के अगले दिन मोदी भारत मंडपम गए, जहां क्राफ्ट का मेला लगा हुआ है। उन्होंने विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के साथ सुषमा स्वराज भवन में चर्चा की और उन्हें धन्यवाद दिया। उसके बाद बुधवार को मोदी भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में हिस्सा लेने भाजपा मुख्यालय पहुंचे तो फूल बरसा कर उनका स्वागत किया गया। उसी दिन कैबिनेट की बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मोदी को बधाई देने और उनके अभिनंदन का प्रस्ताव रखा, जिसे मंजूर किया गया। इसके बाद तय हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी जी-20 सम्मेलन में सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले साढ़े चार सौ लोगों के साथ भारत मंडपम में ही डिनर करेंगे। इसके बाद संसद के विशेष सत्र में इसके सफल आयोजन के लिए प्रधानमंत्री का अभिनंदन होना है। इसी बीच चुनाव वाले राज्यों में भी प्रधानमंत्री के दौरे शुरू हो चुके हैं और अपने भाषणों में वे खुद जी-20 शिखर सम्मेलन की कामयाबी का बखान कर रहे हैं।
अचानक पैदा हुआ भारत प्रेम
भाजपा और केंद्र सरकार का भारत प्रेम अचानक ही जागा है। पहले इस तरह की कोई पहल न तो भाजपा की ओर से हो रही थी और न ही केंद्र सरकार ऐसा कुछ सोच रही थी। यहां तक कि कोई दो दशक पहले मुलायम सिंह यादव ने देश का नाम भारत करने का सुझाव दिया था तो तत्कालीन एनडीए सरकार ने उसे ठुकरा दिया था। उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बतौर सांसद लोकसभा में एक प्रस्ताव रखा था कि देश का नाम हिंदुस्तान कर देना चाहिए। इसके अलावा भी कई ऐसे तथ्य हैं, जिनसे पता चलता है कि भाजपा का भारत प्रेम अचानक जागा है। जब विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ने बेंगलुरू की बैठक में अपना नाम 'इंडिया’ कर लिया तो उसकी काट में भारत नाम आगे बढ़ाया जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार की इस समय लगभग दो सौ योजनाएं चल रही हैं, जिनमें से कई योजनाएं नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद शुरू की है। मोदी सरकार की योजनाओं में से 52 के नाम में 'इंडिया’ शामिल है। इसके बाद सबसे ज्यादा 22 योजनाओं के नाम में 'प्रधानमंत्री’ है और सिर्फ पांच योजनाओं के नाम में 'भारत’ है। सो, जाहिर है कि अगर मोदी या भाजपा का भारत प्रेम पुराना होता तो सरकार बनने के बाद 50 से ज्यादा योजनाएं इंडिया नाम से नहीं शुरू की जाती। इंडिया नाम सिर्फ योजनाओं में ही नहीं, बल्कि हर जगह बोलने और लिखने में भी इस्तेमाल हो रहा था। लेकिन अचानक पिछले दो हफ्ते में सब कुछ बदल गया। सरकारी स्तर पर हर जगह भारत लिखा जाने लगा है।
भारत का कोई राष्ट्रीय धर्म नहीं
संविधान के मुताबिक भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। कहने को यह कहा जा सकता है कि संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द पहले नहीं था। इसे संविधान सभा ने शामिल नहीं किया था। बाद में इसे भले ही इंदिरा गांधी ने शामिल कराया लेकिन अब यह संविधान का हिस्सा है। जब यह संविधान का हिस्सा नहीं था तब भी भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य था। भारत में जिस तरह से राष्ट्रीय पशु, राष्ट्रीय पक्षी या दूसरे राष्ट्रीय चिन्ह हैं उस तरह से राष्ट्रीय धर्म का सिद्धांत कभी नहीं रहा। इसलिए यह वास्तविकता है कि भारत में कोई राष्ट्रीय धर्म नहीं है। इसके बावजूद संवैधानिक पद पर बैठे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि सनातन धर्म भारत का राष्ट्रीय धर्म है। उन्होंने यह भी कहा कि इसके शाश्वत होने पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। दरअसल ये दोनों अलग अलग बातें हैं। सनातन धर्म शाश्वत है, यह विश्वास की बात है। लेकिन सनातन धर्म भारत का राष्ट्रीय धर्म है, यह तथ्यात्मक और संवैधानिक दोनों तरीके से गलत है और संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति को ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए। वोट की राजनीति अपनी जगह है लेकिन उसके लिए संविधान विरुद्ध बोलने की इजाजत किसी को नहीं है।
मराठा आरक्षण क्या पवार का दांव है?
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के आंदोलन के पीछे क्या शरद पवार का कोई दांव है? भाजपा इस पहेली का हल तलाशने के बजाय इस दांव में उलझ गई है और निकलने की कोशिश में ज्यादा उलझती जा रही है। पहले मराठा आंदोलनकारियों पर पुलिस के लाठीचार्ज का विवाद हुआ, जिस पर उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस को माफी मांगनी पड़ी। बाद में सरकार ने मराठा समुदाय को ओबीसी में शामिल करके उसे कुनबी जाति का दर्ज़ा और आरक्षण देने का ऐलान इस शर्त के साथ किया कि निजाम के समय यानी जब मराठवाड़ा का इलाका हैदराबाद का हिस्सा होता था, उस समय का प्रमाणपत्र जिन लोगों के पास होगा उन्हें ही कुनबी का दर्ज़ा मिलेगा। इससे मामला और उलझ गया, क्योंकि मराठों का बड़ा हिस्सा ऐसा है, जिसके पास निजाम के समय का प्रमाणपत्र नहीं है। इसलिए वह प्रमाणपत्र वाली शर्त हटाने की मांग कर रहा है तो दूसरी ओर ताकतवर मराठा समुदाय को ओबीसी में शामिल करने के विरोध में ओबीसी समुदाय की जातियां आंदोलन की तैयारी कर रही हैं। सरकार किसी तरह से मराठा समुदाय का आंदोलन समाप्त कराने का प्रयास कर रही है। इस सिलसिले में सरकार ने सभी प्रदर्शनकारियों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने का ऐलान किया है। इस बीच शरद पवार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग करके मामले को और उलझा दिया है। उनका फॉर्मूला है कि ओबीसी का आरक्षण कम कर मराठों को देने की बजाय आरक्षण की सीमा बढ़ा कर उन्हें 15 फीसदी आरक्षण दिया जाए। मराठों को यह बात पसंद आ रही है।
कश्मीर भी दिल्ली जैसा राज्य होगा?
जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्ज़ा शायद ही बहाल होगा। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के जोर देकर पूछने के बावजूद केंद्र सरकार ने गोलमोल जवाब दिया है और कोई टाइमलाइन नहीं दी है। राज्य में विधानसभा चुनाव को लेकर जरूर सरकार ने कहा कि जल्दी चुनाव कराए जाएंगे। हालांकि उसमें भी कहा गया कि पहले पंचायत चुनाव होंगे। लेकिन यह लगभग तय लग रहा है कि विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही होगा। यह नहीं हो सकता है कि चुनाव आयोग कहे कि राज्य में लोकसभा चुनाव कराने का हालात है लेकिन विधानसभा के चुनाव नहीं हो सकते है। इसलिए अगर जम्मू-कश्मीर में लोकसभा का चुनाव होता है तो विधानसभा का चुनाव भी साथ ही होगा। लेकिन इसका यह मतलब नहीं होगा कि जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्ज़ा बहाल हो जाएगा। गौरतलब है कि कश्मीर की तमाम पार्टियों की मांग है कि पहले राज्य का दर्ज़ा बहाल किया जाए और उसके बाद चुनाव कराए जाएं। जबकि सरकार का कहना है कि चुनाव पहले होगा और राज्य का दर्ज़ा बाद में बहाल होगा। इसीलिए माना जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्ज़ा जल्दी बहाल नहीं होगा। आशंका है कि वहां दिल्ली जैसी व्यवस्था हो सकती है कि चुनी हुई सरकार हो लेकिन सरकार चलाने के सारे अधिकार उपराज्यपाल के जरिए केंद्र के हाथ में हो। यह भी संभव है कि अगर वहां चुनाव के बाद किसी तरह से भाजपा का मुख्यमंत्री बन जाता है तो शायद पूर्ण राज्य का दर्ज़ा बहाल हो जाए।
चंद्रबाबू की गिरफ्तारी पर भ्रम की स्थिति
तेलुगू देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू नायडू को लेकर चौतरफा भ्रम की स्थिति है। किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि उनकी गिरफ्तारी में भाजपा की क्या भूमिका है। जानकार मान रहे हैं कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने भाजपा के संभावित सहयोगी चंद्रबाबू नायडू पर भाजपा की शह के बगैर हाथ नहीं डाला होगा। गौरतलब है कि जगन मोहन की पार्टी संसद में हर मुद्दे पर भाजपा सरकार का समर्थन करती रही है। हालांकि प्रदेश भाजपा और उसकी सहयोगी जन सेना पार्टी ने नायडू की गिरफ्तारी का विरोध किया है। सो, भाजपा की ओर से भ्रम पैदा करने वाले संकेत दिए जा रहे हैं। यह भी माना जा रहा है कि नायडू के दबाव में आने से भाजपा को सीटों के तालमेल में मोलभाव करने में आसानी होगी। इस बीच देर से ही सही लेकिन विपक्षी पार्टियों के नेता भी नायडू की गिरफ्तारी के विरोध में उतर आए हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल और नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारुक अब्दुल्ला ने भी नायडू की गिरफ्तारी का विरोध किया है। गौरतलब है कि कुछ समय पहले नायडू के साथ कांग्रेस की बातचीत चल रही थी। लेकिन पिछले कुछ समय से नायडू और भाजपा नजदीक आए हैं। दोनों के बीच तालमेल की चर्चा हो रही है। इसके बावजूद उनकी गिरफ्तारी हैरान करने वाली है।
भाजपा हरियाणा में फिर अकेले लड़ेगी
हरियाणा में भाजपा अगला विधानसभा चुनाव भी पिछले दो चुनावों की तरह अकेले ही लड़ने की तैयारी कर रही है। 2014 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद हरियाणा में पार्टी को अपनी नई ताकत का अहसास हुआ और वह 2014 व 2019 में अकेले लड़ी। हालांकि 2019 के चुनाव में उसे बहुमत से कुछ कम सीटें मिलीं, जिसकी वजह से उसे नई बनी जननायक जनता पार्टी का समर्थन लेना पड़ा। लेकिन इस बार भी लग रहा है कि भाजपा लगातार तीसरा चुनाव अकेले लड़ेगी। वह दुष्यंत चौटाला की पार्टी से तालमेल नहीं करेगी। चौटाला को भी इसका अंदाजा है। इसीलिए वे दबाव की राजनीति के तहत राजस्थान में चुनाव लड़ने पहुंचे हैं, जहां 75 फीसदी आरक्षण का अपना पुराना दांव चल रहे हैं। दरअसल हरियाणा में भाजपा को गैर जाट राजनीति करनी है इसलिए वह दुष्यंत चौटाला के साथ मिल कर नहीं लड़ सकती है। भाजपा से पहले भजनलाल की पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस गैर जाट राजनीति करती थी, जिसका विलय कांग्रेस में हो गया था। बाद में भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई अपने परिवार के साथ भाजपा में चले गए। सो, भाजपा को लग रहा है कि वह गैर जाट वोट एकजुट कर लेगी। उसके नेता इसलिए भी चाहते हैं कि दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी अलग चुनाव लड़े ताकि वह भूपेंदर सिंह हुड्डा की वजह से कांग्रेस के साथ एकजुट हो रहे जाट वोट का बंटवारा हो सके। दुष्यंत के दादा ओमप्रकाश चौटाला का इंडियन नेशनल लोकदल भी अलग लड़ेगा ही। इसलिए जाट वोट के बंटवारे का लाभ भाजपा को मिल सकता है।
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