अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है? कब और क्यों लाया जाता है?
दो महीने से ज़्यादा हो गए हैं... मणिपुर जल रहा है, लोग मर रहे हैं, खुलेआम गोलियां चल रही हैं, महिलाओं की अस्मिता के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, लेकिन हमारे देश के प्रधानमंत्री अब भी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। पूरे देश के साथ विपक्ष भी अपील कर रहा है कि संसद के भीतर प्रधानमंत्री जवाब दें, सारे मुद्दों को किनारे रख प्रधानंमत्री रूल 267 के तहत सिर्फ मणिपुर पर बोलें, लेकिन उनकी सरकार अड़ी है कि बात होगी तो सिर्फ रूल 176 के तहत... जिसमें बहस के लिए महज़ ढाई घंटे दिए जाते हैं। इन्हीं सबसे त्रस्त आकर अब विपक्ष सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ले आया है।
अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है?
अविश्वास प्रस्ताव यानी नो कॉन्फिडेंस मोशन। नाम से ही ज़ाहिर है कि जब सरकार सदन में अपना विश्वास खो चुकी होती है, या फिर अल्पमत में होती है, तब विपक्ष इसे लेकर आता है। या यूं कह लीजिए कि विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव के जवाब में सत्ता पक्ष विश्वास प्रस्ताव पेश करके ये बताता है कि उनके पास 50 फीसदी से ज़्यादा सांसद हैं। यानी उनकी सरकार सत्ता में बनी रह सकती है।
संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का ज़िक्र नहीं तो कहां से आया?
संविधान का अनुच्छेद 118 कहता है कि, संसद के दोनों सदन कार्यवाही के लिए अपने-अपने नियम बना सकते हैं, इसी के तहत लोकसभा का नियम 198 है, जिसके तहत अविश्वास प्रस्ताव लाने की व्यवस्था है। इसकी प्रक्रिया को बहुत आसानी से समझा जा सकता है... जैसे कोई सांसद लिखित नोटिस स्पीकर को देता है, फिर स्पीकर को इसे पढ़कर सदन में पूछना होता है कि कितने सांसद अविश्वास मत या विश्वास मत के पक्ष में हैं। अगर 50 या उससे ज़्यादा सांसद कह दें कि वो अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में हैं, तो स्पीकर इसे मंज़ूरी दे देता है। फिर स्पीकर एक तारीख़ तय कर देता है, और उस दिन चर्चा के बाद वोटिंग हो जाती है।
अविश्वास प्रस्ताव है तो विश्वास भी होगा?
विश्वास मत के लिए अलग से नियम नहीं है, इसे सरकारें नियम 184 के तहत करवा लेती हैं। 184 के तहत लाए जाने वाले प्रस्तावों पर वोटिंग करवाई जा सकती है, और इस वोटिंग से मालूम चल जाता है कि कितने सांसद सरकार के पक्ष में हैं और कितने खिलाफ।
इसे भी समझिए कि जब कोई भी पार्टी सदन में सरकार बनाने लायक बहुमत साबित नहीं कर पाती है, तो राष्ट्रपति किसी ऐसी पार्टी के नेता को प्रधानमंत्री बनने का न्योता देते हैं जिसके पास सबसे ज़्यादा सांसद हों और वो बहुमत के आंकड़े जुटा सकता हो। इस पार्टी का नेता सरकार पहले बना लेता है, बहुमत बाद में साबित करता है, और बहुमत साबित किया जाता है 184 के तहत विश्वास मत लाकर। इसका एक उदाहरण आप 1998 से ले सकते हैं जब राष्ट्रपति के आर नारायणन ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता ऐसे ही दिया था, तब वाजपेयी को बहुमत साबित करने के लिए 10 दिन मिले थे।
क्यों लाया जाता है अविश्वास प्रस्ताव?
इसका सीधा सा मकसद सरकार को सदन में अकेला साबित कर देना है, लेकिन मौजूदा वक्त में विपक्ष का मकसद प्रधानमंत्री को बोलने के लिए मजबूर करने से देखा जा सकता है। इस अविश्वास प्रस्ताव का मकसद ये है कि किसी तरह अविश्वास प्रस्ताव लाकर सदन को चर्चा के लिए राज़ी किया जाए। इस अविश्वास प्रस्ताव पर अमूमन दो दिन चर्चा होती है, तो विपक्ष को सरकार पर हमला करने और सवाल करने के लिए 48 घंटे मिल जाएंगे।
इन सबके बाद दो बातों का ध्यान देना बहुत ज़रूरी है, पहला ये कि राज्यसभा में अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जाता, क्योंकि जनता द्वारा चुने गए सभी सांसद लोकसभा में होते हैं। और दूसरा ये कि लोकसभा के स्पीकर भी एक सासंद होते हैं, और किसी पार्टी से ताल्लुक रखते हैं। यानी वो वोट नहीं कर सकते। तब भी, जब उनके एक मत के बग़ैर सरकार गिर रही हो।
जैसे 19 अप्रैल, 1999 को यही हुआ था, उस दिन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के लाए विश्वास मत पर सदन में वोटिंग हुई थी।
तब जयललिता की एआईएडीएमके ने एनडीए का साथ छोड़ दिया था और मायावती की बसपा ने कह दिया था कि वो विश्वास मत में वोट नहीं डालेगी। तो वोटिंग का नतीजा रहा एनडीए– 269 और विपक्ष– 270। यानी एनडीए एक वोट से पीछे रह गई थी, क्योंकि ये वोट था स्पीकर बालयोगी का। बालयोगी टीडीपी से थे जो एनडीए का हिस्सा थी, लेकिन वो अपनी पार्टी का गठबंधन बचाने के लिए वोट नहीं डाल सकते थे, क्योंकि स्पीकर की कुर्सी पर बैठे थे।
आपको बता दें कि विपक्ष अभी तक 267 के तहत बहस की बात कर रहा था, जिसमें सिर्फ मणिपुर के मुद्दे पर चर्चा होती। लेकिन सत्ता पक्ष रूल 176 पर अड़ा था, जिसमें सिर्फ ढाई घंटे मिलते हैं। यही कारण है कि विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया है।
विस्तार से जान लेते हैं कि रूल 267 और 176 क्या है?
संसद में प्रश्नकाल के दौरान सांसद किसी भी मुद्दे से संबंधित प्रश्न पूछ सकते हैं। इसके तहत संबंधित मंत्री को मौखिक या लिखित उत्तर देना होता है। कोई भी सांसद शून्यकाल के दौरान इस मुद्दे को उठा सकता है। हर दिन 15 सांसदों को शून्यकाल में अपनी पसंद के मुद्दे उठाने की अनुमति होती है। कोई सांसद इसे विशेष उल्लेख के दौरान भी उठा सकता है। अध्यक्ष हर दिन 7 विशेष उल्लेखों की अनुमति दे सकते हैं। सांसद राष्ट्रपति के भाषण पर बहस जैसी अन्य चर्चाओं के दौरान इस मुद्दे को सरकार के ध्यान में लाने का प्रयास कर सकते हैं। नियम 267 के तहत कोई भी चर्चा संसद में इसलिए बहुत महत्व रखती है क्योंकि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर चर्चा के लिए अन्य सभी कामों को रोक दिया जाता है। अगर किसी मुद्दे को नियम 267 के तहत स्वीकार किया जाता है तो यह दर्शाता है कि यह आज का सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दा है। राज्यसभा नियम पुस्तिका में कहा गया है, ‘कोई भी सदस्य सभापति की सहमति से यह प्रस्ताव कर सकता है। वह प्रस्ताव ला सकता है कि उस दिन की परिषद के समक्ष सूचीबद्ध एजेंडे को निलंबित किया जाए। अगर प्रस्ताव पारित हो जाता है तो विचाराधीन नियम को कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया जाता है। विपक्ष मणिपुर को लेकर इसी कारण रूल 267 के तहत चर्चा की मांग कर रहा है।
नियम 176 क्या है?
नियम 176 के अनुसार, मामले को तुरंत, कुछ घंटों के भीतर या अगले दिन भी उठाया जा सकता है। हालांकि, नियम स्पष्ट है कि अल्पकालिक चर्चा के तहत कोई औपचारिक प्रस्ताव या मतदान नहीं किया जाएगा।
नियम 176 किसी विशेष मुद्दे पर अल्पकालिक चर्चा की अनुमति देता है, जो ढाई घंटे से अधिक नहीं हो सकती। इसमें कहा गया है कि बहुत ज़रूरी सार्वजनिक महत्व के मामले पर चर्चा शुरू करने का इच्छुक कोई भी सदस्य अध्यक्ष को स्पष्ट रूप से और सटीक रूप से उठाए जाने वाले मामले को लिखित रूप में नोटिस दे सकता है, बशर्ते नोटिस के साथ एक व्याख्यात्मक नोट होगा, जिसमें विचाराधीन मामले पर चर्चा शुरू करने के कारण बताए जाएंगे। साथ ही नोटिस को कम से कम दो अन्य सदस्यों के हस्ताक्षर द्वारा समर्थित किया जाएगा।
इन नियमों को ध्यान में रखते हुए कुल जमा बात ये है कि सत्ता पक्ष या विपक्ष संसद में कुछ भी कर रहे हों... देश देख रहा है, और देशवासियों की मांग यही है कि प्रधानमंत्री मणिपुर में हो रही हिंसा पर अपना पक्ष रखें और महिलाओं के प्रति सुरक्षा सुनिश्चित करें। साध ही बेहाल मणिपुर को फिर से पटरी पर लाने के लिए कुछ उपाय करें।
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