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फ़िलिस्तीन-इज़राइल जंग में आख़िर किस ओर जा रही है भारत की विदेश नीति!

भारत लंबे समय से फ़िलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर मान्यता देता आया है। अबकी भारत ने जिस तरह से इज़राइल का खुलेआम समर्थन किया है वह विदेश नीति में एक बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है।
Palestine-Israel war

इज़राइल और इस्लामिक रेजिस्टेंस मूवमेंट (हमास) के बीच जब से हिंसक संघर्ष तेज़ हुआ है, तब से भारतीयों का समर्थन और विरोध बांटने की कोशिशें काफी तेज़ हो गई हैं। भारत लंबे समय से फ़िलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर मान्यता देता आया है। अबकी भारत ने जिस तरह से इज़राइल का खुलेआम समर्थन किया है वह बीजेपी सरकार की नीति का बड़े बदलाव की ओर इशारा करती है। भारत के विदेश मंत्रालय ने भले ही फ़िलिस्तीन के पक्ष में बयान दिया है, लेकिन बीजेपी की लाइन उससे हटकर है। एक तरफ फ़िलिस्तीन के समर्थन में सोशल मीडिया पर आवाज़ उठाने वालों के ख़िलाफ़ ताबड़तोड़ मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं तो दूसरी ओर बीजेपी नेता पीएम नरेंद्र मोदी और बेंजामिन नेतन्याहू की दोस्ती का रंग गाढ़ा करने में जुटे हैं। इज़राइल और भारत की दोस्ती को अटूट बनाने के लिए अब बनारस से समूचे भारत में नया संदेश देने की कोशिश की जा रही है।

बनारस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। इस शहर में कई स्थानों पर मोदी के साथ इज़राइल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू की तस्वीरों वाली होर्डिंग्स लगाई गई हैं, जिसमें दोनों नेता एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए अपने मजबूत रिश्ते का संदेश दे रहे हैं। बनारस की प्रसिद्ध गंगा आरती के जरिए इज़राइल को समर्थन दिया जा रहा है तो कहीं कैंडल मार्च निकालकर। धार्मिक आधार पर बंटे युवा अपने हाथों पर टैटू बनवाकर बनारस के आवाम को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि मित्र देश इज़राइल पर हमला बर्दाश्त नहीं है।

इज़राइल और हमास के बीच छिड़ी जंग को लेकर बनारस से पूरे देश को यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि भारत अब इज़राइल के साथ तनकर खड़ा है। बनारस में कुछ ही रोज़ पहले मां गंगा सेवा समिति की ओर से अस्सीघाट पर आयोजित सायंकालीन गंगा आरती में इज़राइल का समर्थन करते हुए उसके विजय की कामना की गई। साथ ही यह भी कहा गया कि काशी की जनता इज़राइल को जीतते हुए देखना चाहती है, ताकि वहां पुनः शांति स्थापित हो सके। इज़राइल में शांति के लिए दशाश्वमेध घाट पर गंगा की आरती में विशेष पूजा-अर्चना के साथ ही दुग्धाभिषेक भी किया गया। इस दौरान नमामि गंगे काशी क्षेत्र के संयोजक राजेश शुक्ला, महानगर सह-संयोजक सारिका गुप्ता, संजय गुप्ता, सुमन, अनीता ने मीडिया से कहा, "इज़राइल में मरने वाले लोगों के लिए गंगा से मोक्ष और वहां सुख-समृद्धि की कामना की गई। पीएम मोदी और नेतन्याहू की तस्वीर के साथ बनारस से संदेश देने की कोशिश की गई कि भारत-इज़राइल दोनों ही देश आतंकवाद के ख़िलाफ़ हैं और वैश्विक शांति के लिए वसुधैव कुटुंबकम् की नीति पर चल रहे हैं।"

बनारस में नए तरह का उबाल

बनारस में युवाओं का एक हिस्सा अपने हाथों पर टैटू बनाकर इज़राइल-भारत की दोस्ती का पैगाम देने की कोशिश कर रहा है। गंगा घाटों पर टैटू बनवाते हुए कुछ युवतियों ने अपना वीडियो वायरल किया है। इस बीच बीजेपी नेता विपिन पाठक ने बनारस शहर में कई स्थानों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इज़राइल के बेंजामिन नेतन्याहू की तस्वीरों के साथ वाली होर्डिंग्स लगवाई है, जिनके ज़रिए यह संदेश दिया जा रहा है कि भारत अब फ़िलिस्तीन के बजाए इज़राइल के साथ है। फिलहाल ये होर्डिंग्स बनारस के बाबतपुर रोड के अलावा गिलट बाज़ार बाईपास और मोहनसराय मार्ग पर लगवाई गई हैं। वाराणसी जिला प्रशासन की अनुमति के बगैर कहीं भी विवादित होर्डिंग्स और पोस्टर लगाना गैर-कानूनी और प्रतिबंधित है। इसके बावजूद बनारस से देश को नए तरह का संदेश देने की कोशिश की जा रही है। फिलहाल, बनारस पुलिस अलर्ट मोड में है और वह लगातार चौकसी बरत रही है। खासतौर पर ज्ञानवापी इलाके में गश्त बढ़ा दी गई है। सुरक्षा के मद्देनज़र पिछले शुक्रवार को बड़ी तादाद में पुलिस के जवान और अफसर सड़कों पर उतरे। 

सिर्फ बनारस ही नहीं, यूपी के हाथरस में पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष आशीष शर्मा अलीगढ़ रोड पर होर्डिंग लगवाकर सुर्खियां बटोरने की कोशिश कर रहे हैं। इनके होर्डिंग्स के चित्र को भारत में इज़राइल के दूतावास ने अपने ट्विटर हैंडिल 'एक्स' पर भी साझा किया है। होर्डिंग पर लिखा है कि संकट की इस घड़ी में भारत इज़राइल के साथ खड़ा है। इसी तरह बीजेपी के प्रदेश मंत्री अभिजात मिश्रा की ओर से लखनऊ के प्रसिद्ध इस्लामी मदरसा, दारुल उलूम नदवतुल उलमा के बाहर लखनऊ यूनिवर्सिटी के पास पोस्टर और होर्डिंग्स लगवाए गए हैं। इज़राइल के पक्ष में बीजेपी के खड़ा होने से यूपी की सियासत गरमाती जा रही है।

सीएम योगी ने दी चेतावनी

इज़राइल और फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर भारतीय विदेश मंत्रालय व बीजेपी की राय जुदा-जुदा है। राज्य के पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने फ़िलिस्तीन का समर्थन करने वालों के ख़िलाफ़ तब से अपना रुख कड़ा कर दिया है जब से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि भारत के स्टैंड के ‎ख़िलाफ़ जाने वालों के ‎‎ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान मुख्यमंत्री ने इज़राइल-फ़िलिस्तीन विवाद का ज़िक्र करते हुए पुलिस अधिकारियों को सतर्क रहने का निर्देश दिया है। साथ ही यह भी कहा है, "इज़राइल-फ़िलिस्तीन मामले में भारत सरकार के विचारों के विपरीत किसी तरह की गतिविधि स्वीकार नहीं की जाएगी। सोशल मीडिया अथवा किसी धर्मस्थल से किसी तरह का उन्मादी बयान जारी नहीं होना चाहिए।" हाल ही में अलीगढ़ विश्वविद्यालय में फिलस्तीन के समर्थन में मार्च निकाला गया था। इस दौरान वहां ‘वी स्टैंड विद फ़िलिस्तीन’ के समर्थन में नारेबाजी भी की की गई थी।'

मुख्यमंत्री योगी के आदित्यनाथ ताज़ा-तरीन बयान के बाद यूपी पुलिस फ़िलिस्तीन समर्थकों के ख़िलाफ़ सख्त एक्शन ले रही है। फ़िलिस्तीन के लिए सोशल मीडिया पर दुआ मांगने वाले मिर्जापुर के लालगंज निवासी युवक मुराद अली के ख़िलाफ़ आईटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करने के साथ उन्हें गिरफ्तार किया गया है। इस युवक ने फ़िलिस्तीन का समर्थन करते हुए अपने फेसबुक पेज पर लिखा था। मिर्जापुर के पुलिस अधीक्षक अभिनंदन ने कहा है कि भारत सरकार के स्टैंड के ख़िलाफ़ न कोई बात न की जाए और न ही सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट डाली जाए। ऐसा करने वालों के ख़िलाफ़ पुलिस सख्त एक्शन लेगी।"

इस बीच फ़िलिस्तीन के समर्थन में सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने पर यूपी के हमीरपुर कस्बे के हैदरिया मोहल्ला निवासी मौलाना आतिफ चौधरी और सुहेल सिद्दीकी के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 153 (ए) और 505 (2) के तहत रिपोर्ट दर्ज की गई है। आतिफ चौधरी ने 08 अक्टूबर 2023 को अपनी इंस्टाग्राम प्रोफाइल में “आई स्टैंड विथ फ़िलिस्तीन” लिखा था। 12 अक्टूबर 2023 को सुहेल अंसारी नामक युवक के व्हाट्सएप स्टेटस पर इज़राइल के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया था।

कोतवाल सुरेश कुमार सैनी के मुताबिक, "विभिन्न समुदायों के बीच धर्म, जाति आदि के आधार पर झूठे बयान देने और जान बूझकर धार्मिक, सामाजिक, सौहार्द खराब करने का मामला दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है।" दूसरी ओर, यूपी के लखीमपुर खीरी में फ़िलिस्तीन का समर्थन करने पर यूपी पुलिस के सिपाही सुहेल अंसारी के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई करते हुए उन्हें निलंबित कर दिया गया है। राज्य मुख्यालय की पुलिस टीम सिपाही सुहेल से कड़ी पूछताछ कर रही है। खुफिया एजेंसियां इस बात को लेकर पड़ताल में जुटी हैं कि कहीं उसका संबंध किसी आतंकी संगठन से तो नहीं है।

हाल में इज़राइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष में दोनों देशों में बड़ी तादाद में लोग मारे गए हैं। हमास ने इज़राइल के आम नागरिकों को मारा है और तमाम सैनिकों और आम लोगों को बंधक बना रखा है। इसके जवाब में इज़राइल गाज़ा पर लगातार हमले कर रहा है, जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई है।

दो खांचों में बंटा टकराव

इज़राइल और फ़िलिस्तीनियों के इस टकराव में भारत दो खांचों में बंट गया है। यूपी सरकार भले ही फ़िलिस्तीन के मामले में सख्त रुख अपनाए हुए है, लेकिन चेन्नई और कोलकाता में इज़राइल के विरोध में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। चेन्नई में तमिलनाडु मुस्लिम मुनेत्र कझगम फ़िलिस्तीन के समर्थन में सड़कों पर उतर आया है। फिलिस्तीनी नागरिकों पर इज़राइल के हमले के विरोध में प्रदर्शन किया जा रहा है। कोलकाता में माइनॉरिटी यूथ फोरम के सदस्य फ़िलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान प्रदर्शनकारी फ़िलिस्तीन की आज़ादी के बैनर लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। इज़राइल और फ़िलिस्तीन के जंग को लेकर भारत में सियासी खेमेबंदी तब बढ़ी जब बीजेपी ने एक्स पर लिखा, "इज़राइल को एक कायराना आतंकी हमले का सामना करना पड़ा। वैसा ही जैसा 26/11/2008 को मुंबई को निशाना बनाया गया था। इज़राइल ने युद्ध का एलान कर दिया है और उसकी सेना ने जवाबी हमला किया है।"

इस पर कांग्रेस का मीडिया सेल पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 46 साल पुरानी एक वीडियो वायरल कर रहा जिसमें वह फ़िलिस्तीनियों का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। वाजपेयी कह रहे हैं, "अरब के लोगों की जिस ज़मीन पर इज़राइल क़ब्ज़ा किए बैठा है, उसे वह ज़मीन ख़ाली करनी होगी।" इस बीच ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने एक्स हैंडल पर अपना स्टैंड साफ करते हुए कहा है, "फ़िलिस्तीन के क़ब्ज़े वाले इलाक़े में शांति स्थापित होने की दुआ करता हूं।"

क्या है भारत का स्टैंड?

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने 12 अक्टूबर 2023 को इज़राइल और फ़िलिस्तीन के मामले में भारत का पक्ष रखा है। बागची ने कहा, "फ़िलिस्तीन-इज़राइल समस्या को लेकर भारत आज भी 'द्वि-राष्ट्र समाधान' के पक्ष में है। इस मुद्दे पर भारत की नीति दीर्घकालिक और सुसंगत रही है। भारत ने हमेशा इज़राइल के साथ सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर एक संप्रभु, स्वतंत्र फ़िलिस्तीन राज्य की वकालत की है। भारत इस रुख़ पर पहले की तरह ही क़ायम है। हालांकि 07 अक्टूबर 2023 को हमास ने जिस तरह से इज़राइल पर हमला किया, भारत उसे आतंकी हमले के रूप में देखता है।"

फ़िलिस्तीन के मानवीय पक्ष को मजबूती देने के लिए भारत की विदेश नीति उसके समर्थन में रही है। दुनिया जानती है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के 1998-99 के 53वें सत्र में भारत फिलिस्तीनियों के अधिकार के मसौदे का न सिर्फ सह-प्रायोजक था, बल्कि उसके पक्ष में मतदान भी किया था। अक्टूबर 2003 में जब इज़राइल दीवार खड़ा कर रहा था तब संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्ताव आने पर फ़िलिस्तीन के पक्ष में वोटिंग की थी। 29 नवंबर, 2012 को यूएनजीए के उस संकल्प के पक्ष में भी मतदान किया था जो फ़िलिस्तीन को यूएन में गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य बनाने से जुड़ा था। भारत ने अप्रैल 2015 में एशियाई अफ़्रीकी स्मारक सम्मेलन में फ़िलिस्तीन बांडुंग घोषणा का समर्थन किया। साल 1988 में भारत ने फ़िलिस्तीन स्टेट को मान्यता दी थी, जिसके बाद साल 1996 में गाज़ा में प्रतिनिधि कार्यालय खोला गया। हालांकि 2003 में इस दफ्तर को रामल्लाह में स्थानांतरित किया कर दिया गया था।

वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "भारत ने जिस अंदाज़ में इज़राइल को खुलेआम समर्थन दिया  है, वह चौंकाने वाला है। साल 1948 में अरब-इज़राइल के बीच हुए युद्ध की बात हो, साल 1956 का स्‍वेज संकट का हो अथवा साल 1967 में फिलिस्‍तीन के साथ जंग की, भारत ने हमेशा फ़िलिस्तीन का साथ दिया था। साल 2006 में लेबनान युद्ध के समय भी भारत का स्टैंड पहले की तरह ही था। साल 2014 में बीजेपी सरकार सत्ता में आई तो भारत और इज़राइल के संबंध दोस्‍ताना होते गए। भारत ने साल 2015 और 2016 में इज़राइल के ख़िलाफ़ संयुक्‍त राष्‍ट्र में लाए गए प्रस्‍ताव पर वोटिंग के समय खुद को अलग रखा। इज़राइल कई बार यह बात दोहरा चुका है कि मोदी जैसे नेता जब समर्थन करते हैं तो उनके देश को ताकत मिलती है। वैश्विक राजनीति में भारत उनके लिए बहुत ज़्यादा अहमियत रखता है, क्योंकि उसने आतंकवाद के ख़िलाफ़ बहुत लंबी लड़ाई लड़ी है।"

"भारत में साल 1980 के दशक में वोट बैंक की राजनीति के चलते सियासत में सांप्रदायिकता घुसी। इसी से बीजेपी का उभार हुआ। इज़राइल किसी सियासी दल का एजेंडा हो सकता है, लेकिन देश (भारत) का नहीं। फ़िलिस्तीन और इज़राइल के मुद्दे पर भारत हमेशा 'टू स्टेट' समाधान पर ज़ोर देता रहा है। भारत फ़िलिस्तीन के आवाम पर इज़राइल की ओर से हो रही ज्यादतियों का लगातार विरोध भी करता आया है, लेकिन अब लगता है कि एक तरह से भारत ने अपना स्टैंड अब बदल दिया है।"

प्रदीप कहते हैं, "फ़िलिस्तीन के समर्थन के पीछे भारत ने हमेशा उसके मानवीय पहलुओं का समर्थन किया है। फ़िलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन, फ़िलिस्तीन नेशनल अथॉरिटी से भारत का पुराना संबंध रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ख़ुद फरवरी 2018 में फ़िलिस्तीन का दौरा कर चुके हैं। फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास भी कई बार भारत की यात्रा कर चुके हैं। विदेश नीति के मामले में बीजेपी सरकार जनता को कंफ्यूज रखना चाहती है। वैश्विक राजनीति को बीजेपी सांप्रदायिक तरीके से देखती हैं। यही वजह है कि भारत से बड़ी संख्या में खबरिया चैनलों के पत्रकारों को इज़राइल भेजा गया है। दोनों देशों के बीच छिड़े युद्ध ने भारत को नए तरह के संकट में डाल दिया है। पीएम नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्रालय के परस्पर विरोधी बयान से देश में अब नए तरह की बहस छिड़ गई है।"

"बीजेपी को प्रिय हैं नेतन्याहू"

बीएचयू अध्यापक संघ के पूर्व महामंत्री एवं विदेश नीति के जानकार प्रोफेसर दीपक मलिक कहते हैं, "फ़िलिस्तीन के मामले में भारत की नीति इज़राइल के पक्ष में झुकी हुई नज़र आ रही है। मोदी और नेतन्याहू की पार्टियां बीजेपी व लिकुड, दक्षिणपंथी सोच वाली हैं। दोनों ख़ुद को राष्ट्रवादी पार्टी कहती हैं। इज़राइल भले ही यहूदी राष्ट्र है, लेकिन भारत हिंदू राष्ट्र नहीं है। फिर भी बीजेपी का अनुसांगिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अखंड भारत की बात करता है। भारत में सभी धर्म और भिन्न जातियों के लोग रहते हैं। यहां सभी धर्म, भाषा और जातियों को बराबरी का दर्जा हासिल है। इसीलिए भारत को समूची दुनिया में लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में जाना जाता है। बीजेपी ने अपना वोटबैंक मजबूत करने के लिए साल 1980 के दशक में देश में नए तरह की राजनीति शुरू की। उसका नतीजा यह है कि सोशल मीडिया पर इज़राइल का समर्थन करने वाले ज़्यादातर हिंदू हैं तो मुसलमान फ़िलिस्तीन का समर्थन करते दिख रहे हैं। हमें लगता है कि इज़राइल और फ़िलिस्तीन युद्ध के बीच बीजेपी हिंदुओं में अपना नैरेटिव फिट करने की कोशिश कर रही है, क्योंकि यह समुदाय यहां बहुसंख्यक है। इज़राइल की इमेज मुस्लिम विरोधी है, इसलिए बीजेपी को नेतन्याहू ज़्यादा प्रिय हैं। विदेशों में जो भारतवंशी हैं उन्हें लगता है कि दोनों देशों का साझा दुश्मन इस्लामिक अतिवाद है। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र बीजेपी ने अपना एजेंडा साफ कर दिया है।"

"सत्ता क़ब्ज़ाने के लिए इज़राइल और भारत की सोच एक हो सकती है, लेकिन विकास के मुद्दे पर दोनों देशों में ज़मीन-आसमान का फर्क है। शैक्षणिक विकास पर इज़राइल अपने बजट का 20 फीसदी हिस्सा खर्च करता है, जबकि भारत सिर्फ ढाई फीसदी। तकनीकी विकास के मामले में भारत के मुक़ाबले इज़राइल की तकनीक समूची दुनिया में अव्वल है। मौजूदा समय में इज़राइल भारत के लिए सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता देश है। भारत और इज़राइल के बीच गहरे रिश्ते तब बने जब बीजेपी की अटल सरकार ने तकनीक, रक्षा, आर्थिक, सामरिक और कृषि आदि क्षेत्र में उससे समझौता किया। साल 2018 में पीएम मोदी फ़िलिस्तीन का सर्वोच्च पुरस्कार लेने गए, लेकिन बाद में अमेरिका की मजबूत यहूदी लाबी ने उनका ब्रेनवाश कर दिया। मौजूदा समय में यही लॉबी भारत के सबसे करीब है।"

प्रोफेसर दीपक कहते हैं, "मोदी तो शुरू से ही अमेरिका की नकल करते आ रहे हैं। इज़राइल के पक्ष में उनके जो बयान आए हैं उससे दुनिया में भारत की किरकिरी हो रही है। अपनी तुष्टिकरण नीति के चलते बीजेपी के नेता जनसंघ के ज़माने से इज़राइल के पाले में खड़े हैं। मोदी अब यूएई को अपने साथ खींचने की जुगत में हैं। वह सउदी अरब से भी अपना संबंध बेतहर बनाना चाहते हैं। लगता है कि भारत सरकार की कोई विदेश नीति नहीं रह गई है। पीएम नरेंद्र मोदी किसी के साथ गले मिलने के लिए खड़े हो जाते हैं। जब वो विदेशों में जाते हैं तो अप्रावासी भारतीयों के बीच जलसा करने लगते हैं। जब देश की ज़रुरत के हिसाब से विदेश नीति नहीं बनेगी तभी भारत का सिस्टम चल पाएगा। मौकापरस्ती नीति और सत्ता में पूंजीवाद के दखल ने भारतीय लोकतंत्र को मज़ाक बना दिया है। हमास को मैं आतंकी संगठन मानता हूं, लेकिन जंग हमास से नहीं, इज़राइल बनाम फ़िलिस्तीन के बीच है। इज़राइल ने कभी भी ओस्लो समझौते का पालन नहीं किया। दोनों देशों के बीच जंग इसलिए छिड़ी है, क्योंकि फ़िलिस्तीन के नागरिकों पर इज़राइल का दमन चरम पर पहुंच गया था।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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