“दूसरे राज्यों के मुक़ाबले बिहार जैसे ग़रीब राज्य में ऊंची दरों पर बिजली क्यों?”
नागरिक सरोकारों व जनतांत्रिक अधिकारों के लिए प्रतिबद्ध संस्था माने जाने वाली 'सिटीजन्स फोरम', पटना की ओर से बिहार राज्य विद्युत विनियामक आयोग द्वारा विद्युत दर वृद्धि के प्रस्ताव पर आयोजित जनसुनवाई में विद्युत दर में चालीस प्रतिशत की बढ़ोतरी तथा फिक्स्ड चार्ज में ढाई गुना बढ़ोतरी को आम उपभोक्ताओं पर बोझ बताते हुए इसकी वापसी की मांग की है।
विद्युत भवन में बिहार विद्युत विनियामक आयोग द्वारा आयोजित जनसुनवाई में 'सिटीजन्स फोरम' के कई सदस्यों ने हिस्सा लिया। इसके अलावा 'सिटीजन्स फोरम' की ओर से आयोग के समक्ष एक मेमोरेंडम भी प्रस्तुत किया गया।
आयोग की तरफ से आयोग के अध्यक्ष शिशिर सिन्हा व सदस्य एस. सी चौरसिया सुनवाई कर रहे थे।
'सिटीजन्स फोरम' के संयोजक अनीश अंकुर ने आयोग के समक्ष कहा, "बिहार कंपनियां बिजली दर प्रतिदिन के आधार पर वसूलने का दावा करती हैं, लेकिन असलियत में बिजली की दर मासिक आधार पर निर्धारित कर देती है। यह कानून का उल्लंघन है। मान लें यदि कोई 10 यूनिट की खपत कर रहा है तो उसका बिल 100 यूनिट के अंदर आने वाले रेट के मुताबिक आना चाहिए। लेकिन उसकी मासिक खपत 300 यूनिट है, अतः सरकार उससे मासिक दर के आधार पर बिल वसूल कर लेती है।"
'सिटीजन्स फोरम' के एक अन्य सदस्य कमलकिशोर ने आयोग के समक्ष कहा, "इलेक्ट्रिसिटी एक्ट-2003 की धारा 61 में कहा गया है कि बिजली दर में बढ़ोतरी करते वक्त उपभोक्ताओं का अधिक से अधिक ख्याल रखा जाना चाहिए। बिहार में बिजली दर पड़ोसी राज्यों के मुकाबले ज़्यादा है। यह विसंगति दूर करनी चाहिए।"
'सिटीजन्स फोरम, पटना' ने जनसुनवाई में निम्नलिखित बिंदुओं पर आयोग का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा :
1. टेक्नीकल और कमर्शिअल का प्रतिशत अलग-अलग क्यों है? कमर्शिअल घाटे में बकाये की राशि एवं बिजली चोरी की राशि का डाटा क्या है?
2. माननीय उर्जा मंत्री श्री विजेंद्र प्रसाद यादव द्वारा बिजली कंपनी को दिए जा रहे 7,801 करोड़ रूपये के अनुदान को प्रस्तावित बिजली रेट बढ़ोतरी डाटा में क्यों नहीं दर्शाया गया है?
3. जब बिहार की बिजली कंपनियों द्वारा सभी तरह के खर्च (स्थापना से लेकर लाईन मेंटेनेंस आदि तक) को प्रस्तावित बिजली रेट बढ़ोतरी डाटा में दर्शाया गया ऐसे में फिक्स्ड चार्ज अलग से क्यों लिया जा रहा है?
4. बिहार की बिजली कंपनियां विधायक एवं विधान पार्षद को तीस हज़ार यूनिट बिजली प्रति वर्ष मुफ्त देती है ऐसे में आम उपभोक्ता को मुफ्त बिजली क्यों नहीं?
5. बिहार की बिजली कंपनियां बिहार सरकार एवं उनके उपक्रमों/कार्यालयों/भवनों आदि के उपयोग में खपत होने वाली बिजली का भुगतान तीन माह तक देने का प्रावधान रखती है तब आम उपभोक्ता से प्रति दिन बिजली बिल भुगतान लेने का औचित्य क्या है?
6. जब स्मार्ट इलेक्ट्रोनिक मीटर सही कार्य कर रहा था तब प्री-पेड स्मार्ट मीटर को 9% ब्याज़ पर कर्ज़ लेकर (आरंभ में 8,800 करोड़ रु. को बढ़ाकर 11,100 करोड़ रु. किया गया, इसके बाद इसे फिर से बढ़ाकर 15,000 करोड़ रुपये कर्ज़ लिया गया अथवा लेने वाले हैं।) आम उपभोक्ताओं पर बोझ क्यों डाला गया जैसा कि प्रस्तावित बिजली बढ़ोतरी रेट में कर्ज़ व ब्याज़ लौटाने का डाटा दर्शाया गया है।
7. देश के दूसरे राज्यों, केरल, उड़ीसा, गोवा में कम विद्युत टैरिफ (2.11 से 2.71 रु. प्रति यूनिट) लिया जाता है तो फिर बिहार जैसे गरीब राज्य में ऊंची दरों पर बिजली क्यों दी जाती है?
8. देश के दूसरे राज्यों, दिल्ली, पंजाब, झारखंड, छतीसगढ़ आदि) की तरह मुफ्त बिजली बिहार के गरीब उपभोक्ताओं को क्यों नहीं मिलती है?
9. क्या जांच के बाद यह पाया गया है कि स्मार्ट प्री-पेड मीटर 30 प्रतिशत अधिक रीडिंग देता है?
सिटीजन्स फोरम, पटना की ओर से वर्तमान बिजली दर में 40 फीसदी की बढ़ोतरी तथा बिजली जैसी मूलभूत सेवा क्षेत्र का निजीकरण न करने की मांग की गई।
वहीं फोरम के सदस्य उदयन ने भी इसमें हस्तक्षेप किया। इसके अलावा 'सिटीजन्स फोरम' के जिन सदस्यों ने जनसुनवाई में हिस्सा लिया उनमें प्रमुख थे-नंदकिशोर सिंह, सुनील सिंह, विश्वजीत कुमार, जयप्रकाश ललन, देवरतन प्रसाद, मोहन प्रसाद आदि।
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