क्या फिर दिल्ली कूच करेंगे किसान संगठन? बड़े आंदोलन के दिए संकेत!
चंडीगढ़ मेंं संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक। सौजन्य: सोशल मीडिया
पंजाब के किसान संगठन एक बार फिर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ बड़े आंदोलन और मोर्चे की तैयारी कर रहे हैं। इस बाबत चंडीगढ़ स्थित किसान भवन में 18 किसान-मज़दूर संगठनों की विशेष बैठक हुई जिसमें बड़े आंदोलन की रूपरेखा पर चर्चा की गई। सूत्र बताते हैं कि पहले पंजाब में किसान दो बड़े विरोध-प्रदर्शन कर सकते हैं फिर इसके बाद किसान दिल्ली कूच की तैयारी करेंगे।
संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) की अगुवाई में दो जनवरी को अमृतसर के जंडियाला गुरु और छह फरवरी को बरनाला में विरोध-प्रदर्शन के कार्यक्रम हैं। किसान मोर्चा का कहना है कि सूबे के तमाम हिस्सों से किसान और खेत मज़दूर इन विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेंगे।
किसान संगठनों ने केंद्र सरकार पर वादाख़िलाफ़ी का आरोप लगाते हुए कहा कि "आंदोलन पहले की तर्ज पर पूरी तरह शांतिपूर्ण होगा। किसान और मज़दूर तब तक धरना देंगे, जब तक उनकी सारी मांगे मान नहीं ली जातीं। पूरी तैयारी के साथ दिल्ली कूच किया जाएगा। किसान अपनेे साथ साल भर का राशन लेकर जाएंगे।"
किसान नेता सरवन सिंह पंधेर कहते हैं, "पिछली बार केंद्र सरकार ने हमें धोखा दिया। इससे हमने कई सबक हासिल किए हैं। इस बार हम बहकावे में नहीं आएंगे। हर कुर्बानी देने को तैयार हैं। आंदोलन पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहेगा। इस बार ज़्यादा बड़ी तादाद में किसान और कृषि मज़दूर आंदोलन में शामिल होंगे। मुख्य मुद्दा फसलों के लिए एमएसपी गारंटी कानून बनाना और डॉ. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार C2+50% फार्मूला लागू करवाना रहेगा। इसके अलावा किसानों का सारा कर्ज माफ करने के साथ-साथ दिल्ली आंदोलन की अधूरी मांगे पूरी करवाने पर ज़ोर दिया जाएगा।"
संयुक्त किसान मोर्चा के एक अन्य वरिष्ठ नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के मुताबिक़, "हमारी मुख्य मांगों के साथ-साथ यह मांग भी है कि लखीमपुर खीरी हत्याकांड के दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा मिले। मुख्य अभियुक्त आशीष मिश्रा की ज़मानत रद्द की जाए और अजय मिश्रा को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाए। पिछले दिल्ली आंदोलन के दौरान किसानों और उनके नेताओं पर दर्ज किए गए मुकदमे रद्द किए जाएं।"
अठारह किसान-मज़दूर संगठनों ने चंडीगढ़ की बैठक में इस पर भी ज़ोर दिया कि "लखीमपुर खीरी घटनाक्रम में पीड़ित किसानों को दस-दस लाख रूपये का मुआवज़ा दिया जाए और वहां तथा देशभर में आंदोलन में शामिल रहे किसानों के ख़िलाफ़ दर्ज किए गए मुकदमे बिना शर्त रद्द किए जाएं। शहीद किसानों और मज़दूरों के परिवारों को उचित मुआवज़ा और नौकरी दी जाए।"
संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में वरिष्ठ किसान नेता जसविंदर सिंह लोंगोवाल, मनजीत सिंह निहाल, गुरमीत सिंह मांगट, बलदेव सिंह जीरा, अमरजीत मोहड़ी, तेजवीर सिंह, गुरविंदर सिंह सदरपुरा, कुलविंदर सिंह सोनी, कंवरदीप सिंह, गुरिंदर सिंह भंगू और गुरमीत सिंह भी शामिल थे।
गौरतलब है कि जून 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार तीन नए कृषि कानून लेकर आई थी। इसके ख़िलाफ़ किसानों ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर एक साल से अधिक वक़्त तक आंदोलन किया। इसकी पहल पंजाब के किसानों ने की और फिर देश भर से किसान व कृषि मज़दूर वहां आए। प्रगतिशील और जनवादी संस्कृतिकर्मियों ने भी उनका खुलकर साथ दिया। आंदोलनरत किसानों को मनाने-रिझाने की भी कई कोशिशें सरकार की ओर से हुईं। लेकिन सरकार अपनी इस कोशिश में नाकाम रही और आखिरकार प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की।
किसान संगठनों का कहना है कि उस वक्त उनसे किए गए वादे पूरे नहीं किए गए इसलिए एक बार फिर मोर्चा लगाने की तैयारी है। पंजाब के किसान केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य की भगवंत मान सरकार से भी खफा हैं। पिछले दिनों गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़वाने के लिए किसानों ने राज्य सरकार के ख़िलाफ़ बड़ा प्रदर्शन किया था। मुख्यमंत्री के साथ बैठक के बाद किसानों ने अपना धरना खत्म किया था लेकिन उसके बाद वे फिर धरने पर बैठे। गन्ना किसानों का कहना था कि मुख्यमंत्री का आश्वासन खोखला साबित हुआ। सरकार की ओर से गन्ने की खरीद में बढ़ोतरी को मामूली बताया गया। अब भी सूबे की कई शुगर मिलों के बाहर किसानों का रोष प्रदर्शन जारी है।
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