महिला दिवस: संघर्षरत महिलाओं की विरासत
8 मार्च 1917 (पुराने जूलियन कैलेंडर के हिसाब से 23 फ़रवरी) को पेट्रोग्राद के कपड़ा कारख़ानों की सैकड़ों महिला श्रमिकों ने हड़ताल पर जाने का फ़ैसला किया। वे अपने साथी श्रमिकों को लामबंद करने के लिए दूसरे कारख़ानों में भी गईं। देखते-ही-देखते महिलाओं के नेतृत्व में क़रीब 200,000 श्रमिक सड़कों पर प्रदर्शन के लिए इक्कठ्ठा हो गए। वे ’युद्ध मुर्दाबाद' और 'रोटी नहीं तो काम नहीं' के नारे लगा रहे थे। इस हड़ताल के बाद निरंतर विरोध प्रदर्शन हुए और अंततः ज़ारशाही का अंत हुआ और रूसी क्रांति की शुरुआत हुई।
महिला दिवस, जर्मनी, 1930
रूसी क्रांति के शुरू होने से सात साल पहले, जर्मन मार्क्सवादी क्लारा ज़ेटकिन ने कोपेनहेगन (डेनमार्क) में समाजवादी महिलाओं के दूसरे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में यह प्रस्ताव रखा कि हर साल एक अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाए। उन्होंने यूरोप की 1848 की ‘मार्च क्रांति’ की याद में 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में चुना। इसी क्रांति ने राजशाही को सार्वभौमिक मताधिकार स्वीकार करने के लिए मजबूर किया था। 1911 से समाजवादी महिलाएँ 8 मार्च को प्रदर्शन तथा रैलियों का आयोजन करती रही हैं, तब मताधिकार इस अभियान के केंद्र में था, 1914 के बाद से उनके अभियान में युद्ध को समाप्त करने का अजेंडा भी शामिल हो गया। उन्होंने ज़ारशाही में शायद सबसे भयानक दमन का सामना किया। पर वे रुकीं नहीं।
जब 8 मार्च 1914 के विरोध प्रदर्शन से ठीक पहले राबोनित्सा (’महिला श्रमिक‘) के पूरे संपादकीय बोर्ड को गिरफ़्तार कर लिया गया। तब लेनिन की बहन अन्ना एलीज़ारोवा ने तुरंत कुछ साथियों को इकट्ठा किया, अख़बार की छपाई हुई और एक ही दिन में बारह हज़ार प्रतियाँ वितरित की गईं। इन समाजवादी महिलाओं के लिए, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस युद्ध की क्रूरता और पितृसत्ता के तिरस्कार के ख़िलाफ़ एक शक्तिशाली विद्रोह था। एक बोल्शेविक संगठनकर्ता एकातेरिना पावलोवना तरासोवा 1917 की घटनाओं को याद करते हुए बताते हैं कि तब एक महिला श्रमिक ने उनसे कहा था कि 'हम, जो कुछ नहीं थे और अब सब कुछ हो गए हैं, हमें ही एक नयी और बेहतर दुनिया का निर्माण करना है।’
क्लारा ज़ेटकिन और उनके साथी, कम्युनिस्ट महिलाओं की दूसरी अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस, मॉस्को, 1921
1920 में बोल्शेविक नेता एलेक्जेंड्रा कोल्लोन्ताई ने लिखा था कि सोवियत गणराज्य में महिलाओं के पास अधिकार और वोट है, लेकिन ‘जीवन पूरी तरह से बदला नहीं है। हम अभी भी साम्यवाद के लिए संघर्ष करने की प्रक्रिया में हैं और हम उस दुनिया से घिरे हुए हैं जो हमें अंधेरे और दमनकारी अतीत से विरासत में मिली है।’ आगे का रास्ता संघर्ष ही था। अगले साल कम्युनिस्ट महिलाओं की दूसरी अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाना तय किया गया। अंततः महिलाओं के अंतर्राष्ट्रीय लोकतांत्रिक महासंघ के काम को देखते हुए 1977 में संयुक्तराष्ट्र ने भी 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप स्वीकार लिया।
इस दिन की शुरुआत का श्रेय राबोनित्सा के संपादकीय बोर्ड की बोल्शेविक सदस्य नीना अगाधज़ानोवा जैसे लोगों को जाता है। अगाधज़ानोवा ने एक शानदार फ़िल्म-बैटलशिप पोटेमकिन-लिखी थी। उन्होंने 8 मार्च 1917 को एक चलती हुई ट्राम कार रुकवाई, ड्राइवर से चाबी ली और घोषणा किया कि पेट्रोग्राद शहर हड़ताल पर है।
विमन ऑफ़ स्ट्रगल, विमन इन स्ट्रगल का कवर पेज
समाजवादी नारीवादी विचार की कड़ी में ट्राइकांटलेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की हमारी टीम हमारे संघर्षों में महिलाओं के इतिहास पर विभिन्न अध्ययनों की एक सीरीज़ जारी करेगी। 8 मार्च के मौक़ पर, इस सप्ताह प्रकाशित की जाने वाली पुस्तिका इन अध्ययनों की पृष्ठभूमि तैयार करेगी। यह पुस्तिका हमारे समय में महिलाओं की स्थिति तथा शासन के दमन और युद्ध के ख़िलाफ़ महिलाओं के नेतृत्व में चल रहे संघर्षों का विश्लेषण प्रस्तुत करती है। इसमें लैटिन अमेरिका, भारत और दक्षिण अफ्रीका में समाज की ख़राब स्थिति का ही वर्णन नहीं है, बल्कि उन संगठित संघर्षों के बारे में भी बताया गया है जो इन स्थितियों के ख़िलाफ़ उभरे हैं। ट्राइकांटिनेंटल की टीम मानती है कि ‘हमारी रुचि ख़ास तौर पर दक्षिणी गोलार्ध में प्रगतिशील, नारीवादी और जन प्रतिरोध की प्रक्रियाओं को उजागर करने और 20वीं सदी में हुए उन संघर्षों की मुख्य विशेषताओं को रखांकित करने में है जिनकी प्रेरणास्रोत महिलाएँ रही हैं।’ इस पुस्तिका को ध्यान से पढ़ें और इसे अपने आंदोलनों में और अपने साथियों के साथ साझा करें। इस सीरीज़ के अन्य अध्ययन आने वाले महीनों में प्रकाशित होंगे।
गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार, 2015 लेने के बाद बर्टा कासेरस द्वारा दिया गया भाषण
चार साल पहले, 2 मार्च 2016 को किराए के हत्यारों ने बर्टा कासेरेस की हत्या कर दी। कासेरेस सिविक काउंसिल ऑफ़ पॉपुलर एंड इंडिजिनस ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ होंडुरास (COPINH) की नेत्री थीं। कासेरेस और COPINH पश्चिमी होंडुरास की ग्वालकॉर्क नदी पर बांध-निर्माण के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे थे। बांध बनाने वाली कम्पनी- डेसारोलोस एनर्जेटिकोस सोसीडैड एनोनीमा (DESA)–ने इन का मुक़ाबला करने के लिए होंडुरास की पूरी राज्य-शक्ति इस्तेमाल की। वहाँ की पुलिस और सेना ने उस जगह की रखवाली की और होंडुरास के सशस्त्रबल के पूर्व सदस्यों ने कासेरेस की हत्या की। अदालती कार्रवाई के दौरान उनके हत्यारों के साथ होंडुरास की सरकारों की मिलीभगत खुलकर सामने आई, जिसमें जुआन ओरलैंडो हर्नांडेज़ की वर्तमान सरकार भी शामिल है। 2009 में अमेरिकी सरकार और होंडुरास के कुलीन वर्ग की अगुवाई में तख़्ता पलट हुआ और मैनुअल ज़ेलया की वामपंथी सरकार हटा दी गई। नयी सरकार में कुलीन वर्ग और संयुक्त राज्य अमेरिका के पसंदीदा प्यादे अति-दक्षिपंथी नेशनल पार्टी के हर्नांडेज़ को सत्ता में बिठा दिया गया। बर्टा कासेरेस की हत्या में केवल ये हत्यारे शामिल नहीं हैं, बल्कि तख़्ता पलट के बाद की वो नयी राज-व्यवस्था भी शामिल है जहाँ सभी बड़े जुर्म माफ़ हैं।
बर्टा कासेरेस
मैंने हाल ही में बर्टा कासेरेस की बेटी बर्टा जोनिगा कासेरेस से बात की। जोनिगा कासेरेस अब COPINH की समन्वयक हैं। उन्होंने बताया कि पिछले चार साल व्यक्तिगत रूप से उनके लिए और COPINH के लिए मुश्किल भरे रहे हैं। हत्यारों को तो जेल की सज़ा सुनाई गई है, लेकिन हत्या की योजना बनाने वाले DESA के मालिकों और राज्य मशीनरी के लोगों की न कोई जाँच हुई है और न ही उनको आरोपी बनाया गया है। इन परिस्थितियों में भी जोनिगा कासेरेस समाजवादी-नारीवादी परंपरा को आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं। होंडुरास की अतिदक्षिणपंथी सरकार के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय निगमों को वहाँ के संसाधनों व लोगों के अधिकारों के खुले हनन का आमंत्रण देने के संदर्भ में वो कहती हैं, ‘होंडुरास की फिर से नींव’ रखने की ज़रूरत है।
बर्टा कासेरेस की हत्या से दो साल पहले दक्षिण अफ्रीका के अबहलालीबसे मजोंडोलो आंदोलन की नेत्री थुली नादलोवु के घर में अचानक बंदूक़धारी घुस आए थे। क्वानदेंगजी का स्थानीय राजनीतिक नेतृत्व हाउज़िंग इस्टेट बनाना चाहता था; लेकिन इस आर्थिक और राजनीतिक शक्ति का सामना करने के लिए नादलोवु और अबहलाली के नेतृत्व में कामकाजी महिलाएँ राजनीतिक रूप से संगठित हुईं। यही कारण है कि नादलोवु की हत्या कर दी गई। अगले ही दिन अबहलाली आंदोलन की ओर से एक ज़ोरदार बयान जारी किया: ‘हमारे आंदोलन को धक्का लगा है, पर हम हैरान नहीं हैं। हम स्वीकार कर चुके हैं कि इस संघर्ष में हम में से कुछ लोग मारे ही जाएँगे।... हम युद्ध का सामना कर रहे हैं। ज़मीन और इज़्ज़त के लिए हमारा संघर्ष जारी रहेगा।'
इस सूची में कासेरेस और नादलोवु के साथ और भी कई नाम शामिल हैं।
मिगुएल अलंडिया पंतोजा, ला एजूकैसियों, 1960, एलमोनुमेंटो ए ला रेवोलुसिओं नासेनल, लापाज़, बोलीविया।
होंडुरास के राष्ट्रपति हर्नांडेज़ ने 2018 में अपने दूसरे कार्यकाल में प्रवेश किया। चुनावी धोखाधड़ी के आरोपों के चलते देश भर में हर्नांडेज़ के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। इनका जवाब आँसू गैस के गोलों और आगज़नी से दिया गया। ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ अमेरिकनस्टेट्स (OAS) के कार्यालय में किसी ने इस पर ऐतराज़ नहीं जताया। नशीले पदार्थों की तस्करी के आरोप हर्नांडेज़ के ख़िलाफ़ चल रही जाँच में संयुक्त राज्य सरकार ने हर तरह से उसकी मदद की है। चुनावी धोखाधड़ी का यह कारोबार अब पूरी तरह से राजनीतिक है।
OAS जैसे संगठन वामपंथी झुकाव वाली सरकारों को कमज़ोर करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (MIT) के दो विद्वानों द्वारा किए गए एक नये अध्ययन से पता चला है कि 2019 के बोलीविया चुनावों में कोई धोखाधड़ी नहीं हुई थी। उस चुनाव पर OAS की ‘प्रारंभिक’ रिपोर्ट के आधार पर कथित धोखाधड़ी के आरोपों का इस्तेमाल अमेरिकी सरकार और बोलिवियाई कुलीन वर्गों ने एवो मोरालेस आयमा की सरकार को हटाने के लिए किया था। मोरालेस देश से निर्वासित हैं और आर्जेंटीना में रह रहे हैं। बोलीविया में अति-दक्षिणपंथ सत्तासीन हैं और वाशिंगटन ने वहाँ अपनी USAID टीमों को चुनावों की तथाकथित निगरानी करने के लिए भेजा है (बोलीविया में चुनावों की जानकारी के लिए हमारी रेडअलर्ट नं. 6 पढ़ें)। 3 मई को होने वाले चुनावों की स्थिति बहुत ही भयावह है। मोरालेस की पार्टी मूवमेंट फ़ॉर सोशलिज़्म (MAS) के ख़िलाफ़ हिंसा राज्यतंत्र के व्यवहार का ज़रूरी हिस्सा है। अमेरिकी सरकार का नुमाइंदा-सल्वाडोर रोमेरो-जिनकी देखरेख में होंडुरास की चुनावी प्रक्रिया पूरी हुई,अब बोलीविया में चुनावों के प्रभारी हैं।
दिल्ली में दक्षिणपंथी भीड़ की हिंसा कैसे भड़की? पीपुल्स डिस्पैच, 28 फ़रवरी 2020
23 फ़रवरी, 2020 को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के निर्वाचित पदाधिकारियों द्वारा उकसाई गई हिंसक भीड़ ने उत्तरी-पूर्वी दिल्ली के मुस्लिम आबादी वाले इलाक़ों में उपद्रव मचाया। अब तक लगभग पचास लोग मारे जा चुके हैं और हज़ारों घायल और विस्थापित हुए हैं। आदमियों की भीड़ हिंसक नारे लगाते हुए सड़कों से निकल रही थी। उनका उद्देश्य लोगों को मारकर और उनके घरों को जलाकर मुसलमानों को भयभीत करना था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा नियंत्रित दिल्ली पुलिस, भाजपा के भेदभावपूर्ण नागरिकता अधिनियम क़ानून से उपजे हिंसा के इस कार्यक्रम को चुपचाप देखती रही।
इस बीच केरल में लेफ्ट-डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार ने अपने लाइफ़ मिशन के माध्यम से बेघरों के लिए 200,000 घरों का उद्घाटन किया है। केरल के मुख्यमंत्री और कम्युनिस्ट नेता पिनारयी विजयन ने कहा कि उनकी सरकार ने लोगों से उनकी जाति, धर्म या नागरिकता के बारे में पूछे बिना घर उनके नाम किए हैं। घर देने से पहले केवल एक सवाल पूछा गया था,‘क्या आपके पास कोई घर है जिसे आप अपना घर कह सकें।'
इतिहास का एक पक्ष घरों को जला देता है; दूसरा पक्ष उनका निर्माण करता है।
प्रतिरोध के बीज बो रहीं संघर्षरत महिलाएँ
पाँच से नौ मार्च तक ब्रासीलिया में भूमिहीन श्रमिकों के आंदोलन (MST) द्वारा आयोजित भूमिहीन महिलाओं की पहली राष्ट्रीय बैठक में तीन हज़ार योद्धा भाग लेंगी। इस राष्ट्रीय बैठक के माध्यम से वे बताना चाहती हैं कि वे संघर्षरत महिलाएँ हैं और ‘वे प्रतिरोध के बीज बो रही हैं।’ इस बैठक के अंतिम दिन, मेक्सिको की महिलाएँ हड़ताल पर जाएँगी। उनका हैश टैग है #UnDíaSinNosotras – एक दिन हमारे बिना।
बोल्शेविक नीना अगाधज़ानोवा मैक्सिकन महिलाओं की प्रेरणास्त्रोत हैं। ये महिलाएँ अपनी ट्राम-कारें रोकेंगी और अपनी सड़कों पर मार्च निकालेंगी।
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