डिफेंस इम्प्लॉइज की तीन दिवसीय हड़ताल की वजह से सभी डिफेन्स इकाइयों में काम बंद
बुधवार से शुरू हुई डिफेंस सिविलियन इम्प्लॉइज की हड़ताल को ऑर्डिनेंस कारखानों, नौसेना डॉकयार्ड, स्टेशन कार्यशालाओं, सेना डिपो, आदि में काम को पूरी तरह बंद रहने की वजह से पूरी तरह से सफल घोषित कर दिया गया है। सी श्रीकुमार, अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव ने कहा “दिल्ली, चेन्नई, पुणे, जबलपुर, कानपुर, मुंबई, आगरा, कोलकाता, और अन्य इकाइयों की सभी प्रमुख रक्षा इकाइयों में जो अलग-अलग क्षेत्रों में स्थित हैं, हड़ताल ने बड़ी भारी सफलता हासिल की है। यह हड़ताल 26 जनवरी के सुबह 6 बजे तक जारी रहेगी। सभी सरकार-नियंत्रित रक्षा उद्योग में ऐसा लगा रहा है, जैसे काम एक दम ठहरा गया हैं.''
देहू रोड पुणे के आयुध कारखाने के समाने विरोध प्रदर्शन
यूनियन, इंडियन नेशनल डिफेंस वर्कर्स फ़ेडरेशन (INDNWF) और भारतीय प्रतिरक्षा मज़दूर संघ (BPMS), ए.आई.डी.ईं.एफ. (AIDEF) प्रमुख रक्षा कर्मचारी संघ हैं, जिनकी अगुवाई में तकरीबन 4 लाख डिफेंस सिविलियन इम्प्लॉइज हड़ताल पर हैं। तीन दिन की इस हड़ताल को भारत के प्रतिरक्षा से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में निराशाजनक स्थितियों और भाजपा सरकार द्वारा निजी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इनका अनुबंध सौंपकर देश की स्वदेशी रक्षा उत्पादन क्षमताओं को कमजोर करने के निरंतर प्रयासों के विरोध में आवाहन किया गया है।हड़ताल से पहले एआईडीईएफ द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में यूनियन ने कहा कि मेक इन इंडिया की आड़ में, सरकार निजी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को रक्षा संबंधित विनिर्माण अनुबंध (ठेका) दे रही है। और इस उद्देश्य को पाने के लिए रक्षा क्षेत्र में सौ प्रतिशत एफडीआई को भी पेश किया गया है। जबकि ये उत्पाद पहले से ही सार्वजनिक क्षेत्र के आयुध कारखानों द्वारा निर्मित किए जा रहे थे, जिनकी हालत अब अनिश्चित हो गयी है।
चंडीगढ़ आयुध कारखाने के समाने विरोध प्रदर्शन
41 आयुध कारखानों में निर्मित 275 से अधिक रक्षा उत्पादों को "नॉन-कोर" घोषित कर दिया गया है, और इनका उत्पादन निजी कंपनियों को सौंप दिया गया है। इनमें हथियार, गोला-बारूद, राइफलें, बम, प्रक्षेपास्त्र आदि शामिल हैं। सरकार की इस नीति की वजह से इनमें कार्यरत कर्मचारियों के साथ-साथ 25 आयुध कारखाने भी गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं।
सी श्रीकुमार ने कहा कि “इस सरकार का एकमात्र उद्देश्य कॉर्पोरेट क्षेत्र को लाभ पहुंचाना है। इसका राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं है.''बेंगलूरु में गुणवत्ता नियंत्रण (इलेक्ट्रॉनिक्स) के नियंत्रक महानिदेशक, रवींद्रन त्रिवेदी ने भी उस जोखिम की ओर इशारा किया जिस कि वजह से खरीदे जा रहे उत्पादों की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। इन्होंने न्यूजक्लिक को बताया कि “लोग और मीडिया को इसका सही विश्लेषण करने की आवश्यकता है कि क्या इस तरह के उत्पादों का निर्माण करने वाली एक फर्म सेना की गुणवत्ता की आवश्यकताओं को पूरा कर पाएगी या नहीं। सरकार का कहना है कि हमें निजी क्षेत्र से ही खरीदना चाहिए क्योंकि सरकारी उत्पादों में हमेशा आपूर्ति देरी से होती है। जब सरकार बाजार से एक वस्तु खरीदती है, तो सभी औपचारिकताओं को पूरा करने में न्यूनतम तीन महीने लगते हैं। लेकिन निजी व्यक्ति बाजार जाएगा, वस्तु खरीदेगा और इसका निर्माण कर देगा।
कोलकत्ता
तृतीय पक्ष इंस्पेक्शन के नाम पर गुणवत्ता मूल्यांकन यानि माल को जांचने की विधि को ही आउटसोर्स किया जा रहा है।भाजपा सरकार ने न केवल आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) और अन्य रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (डीपीएसयू) में न केवल निवेश को रोकने का फैसला किया है बल्कि दो प्रमुख डीपीएसयू - हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) के भी शेयर बेचने का फैसला लिया है। इसके अलावा, श्रमिकों को अनुबंध में बांधने में तेजी से वृद्धि हुई है, इसमें मुख्य रुप से सैन्य फार्म को बंद करना जो सैनिकों को दूध की आपूर्ति करते हैं, स्टेशन कार्यशालाओं और सेना के डिपो को बंद करना शामिल हैं। आठ सेना की मुख्य कार्यशालाओं को निजी क्षेत्र में भारत सरकार के स्वामित्व वाले कॉरपोरेट ऑपरेटेड गोको मॉडल के तहत सौंपा जा रहा है।
यहां तक कि रक्षा अनुसंधान डीआरडीओ भी (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन) के संचालन और नव विकसित प्रौद्योगिकी को भी निजी क्षेत्र को सौंपा जा रहा है, जो इसी तरह का संकट झेल रहा है।डीआरडीओ की श्रमशक्ति कम होने के कारण, वैज्ञानिकों को भी अनुबंध के आधार पर इन नौकरियों पर रखा जा रहा है।
देहरादून
रवींद्रन ने कहा “सरकार एक साल, या दो साल के लिए एक परियोजना के लिए वैज्ञानिकों की नियुक्ति कर रही है और उसके बाद, उनके लिए कोई नौकरी नहीं होगी। ऐसा हो सकता है कि एक वर्ष की नौकरी के लिए आने वाला व्यक्ति उसके द्वारा प्राप्त दस्तावेजों को लीक कर सकता है, जिससे हमारी सुरक्षा को खतरा है।लेकिन कोई भी इस बारे में नहीं सोच रहा है।
हड़ताली कर्मचारी भी पेंशन के अधिकार की मांग कर रहे हैं, जिसे राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के तहत पुरानी व्यवस्था को हटा दिया गया है। एनपीएस के तहत, कर्मचारी केवल 1,000 रुपये से 2,000 रुपये की अल्प पेंशन राशि प्राप्त कर रहे हैं, जबकि पुरानी पेंशन योजना के तहत 9,000 रुपये की न्यूनतम राशि के साथ-साथ दैनिक भत्ता भी दिया जाता है।
श्रीकुमार ने कहा कि सरकार की तरफ से अब तक हड़ताल के संबन्ध में कोई जवाब नहीं आया है। तीनों महासंघों ने इन मुद्दों पर पिछले साल 15 फरवरी और 15 मार्च को दिल्ली के संसद मार्ग पर विरोध प्रदर्शन भी किया था, लेकिन उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया। इस हड़ताल के समाप्त होने के बाद, एआईडीईएफ ने अपनी संघर्षपूर्ण कार्रवाई को जारी रखने की योजना बनाई है।भविष्य के फैसले भी आने वाले आम चुनावों पर निर्भर हैं।श्रीकुमार ने कहा “जो भी सरकार आती है, उसके आधार पर, हम सरकार के पास जाएंगे, और अपनी समस्याओं को बताएंगे। अगर वे सुनते हैं, तो ठीक है। अन्यथा हमारे राष्ट्रीय अधिकारी मिलेंगे और निर्णय लेंगे कि आगे क्या करना है।''
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