ड्रोन युद्ध : हर बार युद्ध अपराधों से बचकर निकल जाता है अमेरिका, दुनिया को तय करनी होगी जवाबदेही
इस महीने की शुरुआत में न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट से पता चला है कि 2014 के बाद से अफगानिस्तान और पूर्वी एशिया के कुछ दूसरे देशों में अमेरिका द्वारा किए गए हवाई हमलों में कम से कम 1400 बेगुनाह नागरिकों की जान गई है। इन हवाई हमलों में मुख्यत ड्रोन हमले शामिल थे। अमेरिका के इन ड्रोन हमलों में नागरिकों की जिंदगियां खत्म होने पर कई रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, जिनमें कुछ दूसरे स्रोतों में, जैसे एयरवार्स, मारे गए बेकसूरों की संख्या और भी ज्यादा बताई गई है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा पीड़ितों को न्याय दिलाने और इन युद्ध अपराधों के लिए जवाबदेही तय करने की नाकामी का भी जिक्र है।
इस तरह के हमले अब तक इसलिए भी जारी है, क्योंकि अमेरिका को अब तक इनमें दोषी नहीं ठहराया गया है। यह अमेरिकी नागरिक और दूसरे देशों के नागरिकों में अंतर स्थापित कर एक कुलीनता का निर्माण करते हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय कानूनों को भी नीचा दिखाया जाता है।
कोई जवाबदेही नहीं
जैसा न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया कि ज़्यादातर मामलों में पेंटागन ने जिम्मेदार व्यक्ति को ना तो सजा दिलवाई, ना ही उसके खिलाफ सुधारात्मक कार्रवाई की। ज्यादातर मामलों में तो अमेरिका ने माफ़ी मांगने या पीड़ितों को मुआवजा देने जैसी छोटी सी चीज तक नहीं की।
इन हत्याओं के लिए यह तर्क दिया जाता रहा है कि यह मुख्य कार्रवाई के साथ हुआ "अनुषांगिक नुकसान (कॉलेटरोल डैमेज)" है। अब यह नियम ही बन गया है। अमेरिका द्वारा नागरिकों की मौत के साथ जो बर्ताव किया जाता रहा है, उससे भी यह साफ़ हो जाता है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक़, उन्होंने जिन मामलों को रिकॉर्ड किया, उनमें से 90 फ़ीसदी में से ज्यादा को तो अमेरिका ने खोजबीन करने लायक तक नहीं समझा। आखिर जांच से ही तो संबंधित स्थितियों और जिम्मेदार व्यक्ति का पता लग सकता था। फिर जिन केसों में अमेरिका ने जांच की, उनमें से कई में तो जांच का प्रभार उन्हीं लोगों को दिया, जो इसके जिम्मेदार थे।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट का दावा है कि 1311 जांच में से सिर्फ़ एक में पेंटागन के अधिकारियों ने हमले की जगह की यात्रा की और सिर्फ दो लोगों का ही इंटरव्यू किया गया। बाकी मामलों में "ख़तरनाक जगह" का हवाला देते हुए जमीन पर जांच नहीं की गई। यह तब है जब आईएसआईएस को आधिकारिक तौर पर 2017 में हराया जा चुका है और अमेरिकी फ़ौजें अब भी मैदान पर मौजूद हैं।
बराक ओबामा के कार्यकाल में ड्रोन हमलों का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया गया। अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, इराक़ और दूसरे हिस्सों में ऐसे हमले जमकर किए गए। बराक ओबामा ने इन्हें "इतिहास में सबसे सटीक हवाई अभियान" बताया था। लेकिन इतनी हत्याओं के बाद यह सटीक कैसे हो सकता है? आंकड़े कहते हैं कि अगर अमेरिकियों की मौतों को तस्वीर में लें, तब जरूर बराक ओबामा का दावा सही होता है।
एयरवार्स के मुताबिक अमेरिकी हवाई हमलों में सिर्फ दो देशों में ही (इराक और सीरिया) 2014 के बाद से 19000 से 30000 लोगों की मौत हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान के बरांग में हर परिवार में "पांच सदस्यों की औसतन जान गई है", इनमें ज्यादातर जानें अमेरिकी गठबंधन के हवाई हमलों में गई है।
अगर कोई पेंटागन द्वारा घोषित किए गए 1400 मौतों के आंकड़े को ही माने, तो साफ़ हो जाता है कि "बेहद सटीक हमलों" का नागरिकों की मौत या नागरिक संपत्ति के नुकसान से कोई लेना देना नहीं है। दरअसल यह तर्क इस पूर्वाग्रह पर आधारित है कि कुछ जिंदगियां (अमेरिकी सैनिकों की), बाकी से ज्यादा कीमती होती हैं।
वैधानिक आत्मरक्षा?
आधिकारिक जांच आंकड़ों में "वैधानिक आत्मरक्षा" शब्दावली का बखूबी प्रयोग होता है। लेकिन यह समझ से परे है कि बहुत दूर के लोग, हजारों मील दूर के लोगों से अमेरिका कैसे डर महसूस करता है? इस शब्दावली का प्रयोग 29 अगस्त को किए गए हवाई हमले में किया गया था, जहां एक ही परिवार के 10 लोग मारे गए थे, जिनमें 7 बच्चे थे।
जब अमेरिका नागरिकों के मारे जाने की बात भी मानता है और कहता है कि वह ऐसा नहीं होने देना चाहता, तो इसके पीछे ज्यादातर रणनीतिक वजह होती है, ना कि मानवीय। अमेरिका की सेंट्रल कमांड के प्रवक्ता कैप्टन बिल अर्बन ने इस चीज को माना भी है। उन्होंने कहा कि अमेरिका, रणनीतिक तौर पर आम नागरिकों को कम से कम खतरे में डालना चाहता है। क्योंकि नागरिकों के साथ हुई ज्यादती को आतंकी संगठन भावनाएं भड़काने में इस्तेमाल करते हैं।
सह नुकसान का सिद्धांत न्याय की अवधारणा के बिल्कुल विपरीत है, क्योंकि यहां ड्रोन चलाने वाला ही न्यायाधीश और सजा देने वाले की भूमिका में आ जाता है। जबकि उसकी न्यूनतम जवाबदेही होती है। पूर्वी सीरिया के बघुज़ में कम से कम 80 लोग मारे गए थे, दरअसल दुनिया अमेरिकी हवाई हमलों से हुई मौतों के सटीक प्रभाव के बारे में जानती ही नहीं है।
काबुल की तरह, जब भी कभी हवाई हमले की बात सामने आती है, तो अमेरिकी सेना कहती है कि उसने आतंकियों को मारा। बहुत कम ही वे मारे गए लोगों की पहचान जाहिर करते हैं।
मिली हुई मीडिया अमेरिकी कार्रवाई को नैतिक पैमाने पर ऊंचा बताती है और अमेरिका को आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई में खुद को नेता बताकर बचने का रास्ता दे देती है। वर्ल्ड सोशलिस्ट वेबसाइट पर थॉमस स्क्रिपस ने बताया है कैसे मीडिया ने अमेरिकी युद्ध अपराधों की पाठकों के दिमाग में अच्छी तस्वीर बनाई है। थॉमस लिखते हैं कि " ऐसी मीडिया जो सच्चाई की रक्षक होने का दावा करती है, दरअसल वो सत्ताधारी वर्ग की प्रचार सेवा होती है।" थॉमस का कहना है कि इस तरीके की रिपोर्टिंग से अमेरिकी सेना को युद्ध अपराधों के लिए बहानों को दोहराने और उन्हें लोकप्रिय बनाने का जरिया मिलता है।
कभी जब कोई रिपोर्ट अमेरिका के खिलाफ चली जाती है, तो अमेरिका सिर्फ घटना पर पछतावा कर आगे बढ़ जाता है। या घटना को "अच्छी मंशा के बीच हुई गलती" या फिर "वैधानिक आत्मरक्षा" बता देता है। अमेरिका को इन घटनाओं में सजा ना मिलना ना केवल उसकी सैन्य और आर्थिक ताकत का नतीजा है, बल्कि इसकी बड़ी वजह इन घटनाओं के खिलाफ प्रगतिशील और कामगार वर्ग द्वारा लगातार सामाजिक और राजनीतिक खेमेबंदी ना कर पाना है। जबकि इस तरह की कवायद से अंतरराषट्रीय समुदाय पर अच्छी मंशा वाले, जवाबदेही तय करने वाले संस्थाओं के निर्माण का दबाव बनता।
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