एनएपीएम कार्यकारिणी : वक़्त की आवाज़ है, मिलकर चलो...
देश के अलग-अलग हिस्सों में जल, जंगल एवं जमीन के संरक्षण के साथ-साथ लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए स्थानीय एवं व्यापक जन आंदोलन चल रहे हैं। इन जन आंदोलनों के बीच समन्वय एवं साझा संघर्ष के लिए 25 साल पहले एन.ए.पी.एम. यानी जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय का गठन किया गया था, जिसकी कार्यकारिणी में विभिन्न आंदोलनों से जुड़े लोगों को शामिल किया गया। 14 एवं 15 सितंबर को भोपाल में जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें 10 से अधिक राज्यों के वरिष्ठ जन आंदोलनकारी शामिल हुए।
दो दिन की बैठक में देश के कई ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा की गई, जिसमें असम मामले में एनआरसी, जम्मू-कश्मीर मामले में अनुच्छेद 370, मध्यप्रदेश के मामले में नर्मदा घाटी के डूब क्षेत्र, वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन एवं किसानों की स्थिति प्रमुख मुद्दे रहे। दूसरे दिन अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रीय संयोजक वी.एम. सिंह भी शामिल हुए। इस समिति में देश के 200 से ज्यादा किसान एवं मजदूर संगठन शामिल हैं।
नवंबर में ओडिशा में राष्ट्रीय अधिवेशन
एन.ए.पी.एम. की संयोजक मीरा ने बताया कि कार्यकारिणी की बैठक में देश की वर्तमान राजनीतिक हालात पर चिंता ज़ाहिर की गई। एक ओर केन्द्र सरकार लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को सीमित कर रही है, तो दूसरी ओर विभिन्न जन आंदोलनों एवं उनसे जुड़े कार्यकर्ताओं को दबाने का काम कर रही है। यह एक मुश्किल दौर है, जिसमें हमारी एकजुटता महत्वपूर्ण है। इसलिए हमने एन.ए.पी.एम. के द्विवार्षिक राष्ट्रीय अधिवेशन का विषय ‘‘वक़्त की आवाज़ है, मिलकर चलो - लोकतंत्र, संविधान एवं आजादी के लिए’’ रखा है। यह अधिवेशन 23 से 25 नवंबर को ओडिशा के पुरी में आयोजित किया जाएगा। इसी साल एन.ए.पी.एम. के 25 साल पूरे होने हो रहे हैं। 28 नवंबर को दिल्ली में वन अधिकार कानून को लेकर एक बड़ा आंदोलन किया जाएगा, जिसमें देश भर से एक लाख लोगों के शामिल होने की उम्मीद है।
उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार दमनकारी कानून लाकर जन संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं को दबाने का काम कर रही है। देश आर्थिक मंदी से जूझ रहा है, लेकिन सरकार कमजोर एवं अल्पसंख्यकों के अधिकारों और भारत की विविधता को कुचल रही है। लंबे समय से प्रतिबंधों के कारण जम्मू-कश्मीर के लोग अवसाद से घिरने लगे हैं। असम में एन.आर.सी. के कारण 19 लाख लोगों की नागरिकता पर सवाल खड़ा हो गया है। सिटिजनशिप बिल के माध्यम से देश में धार्मिक आधार पर भेदभाव किए जाने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि संविधान में धर्म के आधार पर कोई भेद नहीं करने की गारंटी है।
वन अधिकार कानून की आड़ में लाखों आदिवासियों को जंगल से खदेड़ने की साजिश की जा रही है, जिसमें केन्द्र सरकार मौन है। सरदार सरोवर बांध के कारण विकास के नाम पर विनाश किया जा रहा है और लाखों लोगों की आजीविका पर संकट एवं विस्थापन की मार पड़ी है। इन सारी घटनाओं को मानवाधिकारों का उल्लंघन, संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन, देश की विविधता पर हमला एवं लोकतांत्रिक ढांचे पर हमला के रूप में देखा जा सकता है।
17 को बड़वानी में जनाक्रोश रैली, 23 को प्रदेशव्यापी आंदोलन
राहुल राज ने बताया कि एन.ए.पी.एम. के तहत मध्यप्रदेश में होने वाले आगामी कार्यक्रमों के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पूर्व राज्य सचिव बादल सरोज को संयोजक बनाया गया है। आगामी 23 सितंबर को प्रदेश में अति वर्षा से खराब फसलों के सर्वे एवं मुआवजा को लेकर प्रदेश स्तर पर एक बड़ा आंदोलन किया जाएगा। एन.ए.पी.एम. के राजकुमार सिन्हा ने बताया कि दिसंबर में राजधानी भोपाल में प्रदेश की विभिन्न समस्याओं को लेकर एक बड़ा आंदोलन किया जाएगा। 17 सितंबर को बड़वानी में नर्मदा घाटी के विस्थापितों की स्थिति पर एक जनाक्रोश रैली का आयोजन किया जाएगा। इस दिन देश के अन्य हिस्सों में भी जन संगठन नर्मदा घाटी के लोगों के समर्थन में रैली एवं प्रदर्शन करेंगे।
नर्मदा घाटी की स्थिति को लेकर चिंता जाहिर करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राकेश दीवान ने बताया कि पिछले 9 सितंबर को प्रदेश सरकार एवं नर्मदा बचाओ आंदोलन के बीच लंबी वार्ता हुई थी, लेकिन उस वार्ता का कोई सकारात्मक परिणाम अभी तक दिखाई नहीं दे रहा है। प्रदेश की पिछली सरकार ने शून्य विस्थापन का जो दावा किया था, उसकी पोल खुल गई है। वर्तमान सरकार को उन लोगों पर एफ.आई.आर. करना चाहिए, जिन्होंने गलत दावे किए थे। आज घाटी में असंख्य लोग हैं, जो विस्थापितों की सूची के किसी रिकॉर्ड में नहीं हैं। जहां लोगों को पुनर्वास किया गया, वे पुनर्वास स्थल भी डूब में आ गए हैं। लाखों लोग जीवन-मरण से जूझ रहे हैं और केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार उनके हित में कोई निर्णय नहीं ले पा रही हैं।
पूर्व विधायक एवं किसान नेता डॉ. सुनीलम् ने कहा कि सरकार का कहना है कि आंदोलन के लोग कोर्ट जाएं, तो सरकार सहयोग करेगी। यह कहना दिखाता है कि राज्य सरकार खुलकर इस मामले में केन्द्र का विरोध नहीं करना चाहती। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में राज्य सरकार महज खानापूर्ति करना चाहती है। प्रदेश के इतने बड़े इलाके के लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं और मुख्यमंत्री ने उस क्षेत्र का आज तक दौरा नहीं किए हैं।
02आंदोलन से जुड़े साथियों ने कहा कि नर्मदा के मुद्दे पर दिल्ली में सभी विपक्षी दलों से तत्काल बातचीत की जाए। यद्यपि कुछ ने कहा कि विपक्षी दलों में इतनी हिम्मत नहीं बची कि वे केन्द्र के खिलाफ खुल कर बोल पाए, इसलिए जन संगठनों को ही एकजुटता से इस मुद्दे को उठाने की जरूरत है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रीय संयोजक वी.एम. सिंह ने कहा कि वे आगामी दिनों में देश में जहां-जहां किसानों के आंदोलन करेंगे, वहां-वहां नर्मदा घाटी के मुद्दे पर भी बात रखेंगे। कार्यकारिणी की बैठक में मदुरेश, अरुंधती धूरू, प्रफुल्ल सामंत्रा, नसीरुद्दीन हैदर खान, आशीष रंजन सहित कई वरिष्ठ कार्यकर्ता शामिल हुए।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।