क्या 80 करोड़ लोगों को दी जाने वाली मुफ़्त अनाज योजना बंद हो जाएगी?
भारत की ग़रीबी इतनी गहरी है कि सरकार 5 किलो मुफ्त अनाज देने की योजना बनाती है तो वह भी बहुत बड़ी राहत लेकर आती है। मगर सरकार इतनी पाखंडी है कि इस हल्की सी मदद का भी चुनाव में ऐसा प्रचार प्रसार करती है जैसे लोगों को सब कुछ दे दिया हो।
याद कीजिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना। इस योजना के तहत मार्च 2020 में गरीबों को हर महीने 5 किलो मुफ्त चावल या गेहूं और 1 किलो पसंदीदा दाल देने की घोषणा की गई थी। सरकार के मुताबिक 80 करोड़ गरीब लोग इस योजना का फायदा उठा रहे थे। कोरोना के दौर में जब सरकार की जनकल्याणकारी नीतियों का पर्दाफाश हो चुका था तब इसी योजना की वजह से गरीबों को कुछ राहत मिल रही थी। इस योजना की अवधि को कई बार बढ़ाया गया। सितंबर 2022 में योजना खत्म होने वाली है। सरकार को फिर से फैसला लेना है कि वह सरकारी खजाने को ज्यादा महत्व देती है या 80 करोड़ लोगों के पेट की भूख को?
जून से जुलाई का महीना भारत में खरीफ़ का महीना कहा जाता है। यह समय धान की बुवाई होता है। इस समय का बोया गया धान नवम्बर- दिसम्बर महीने में काटा जाता है। धान की अच्छी पैदावार के लिए ठीक -ठाक बारिश, आद्रता और तापमान की जरूरत होती है। जहाँ यह मिल जाता है, वहां धान की अच्छी पैदवार हो जाती है। भारत का पूर्वी और दक्षिणी इलाका धान की ठीक - ठाक पैदावार के लिए जाना जाता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ें बताते हैं कि इस बार इन इलाकों में पहले से काम बारिश हुई है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पंजाब और बिहार में औसत वर्षा के मुकाबले 20 से 59 फीसदी तक कम बारिश हुई है। इस वजह से चावल के कम उत्पादन का अनुमान लगाया जा रहा है।
धान का रकबा भी कम हुआ है। साल 2021 में 407 लाख हेक्टयेर जमीन पर धान की खेती हुई थी। यह साल 2022 में घटकर यह 384 लाख हेक्टयेर रह गयी। पिछले साल के मुकाबले इस साल धान के रकबे में तकरीबन 23 लाख हेक्टयेर कम जमीन पर धान की खेती हुई है। इसका मतलब है कि चावल की पैदावार पहले से कम होगी।
इस अनुमान के बाद भी चावल का निर्यात घट नहीं रहा था बल्कि लगातार बढ़ रहा था। रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई की वजह से वैश्विक परिस्थितियां ऐसी बनी थी कि भारत के चावल की मांग पहले के मुकाबले ज्यादा थी। भारत दुनिया भर में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। 150 देशों को चावल निर्यात करता है। पिछले साल भारत से 200 लाख टन चावल का निर्यात हुआ था। इस साल केवल 4 महीने में तकरीबन 73 लाख टन चावल देश से एक्सपोर्ट हो चुका है। जो पिछले साल की इसी अवधि से 6 लाख टन ज्यादा है।
यानी भारत के घरेलू बाजार में चावल की कम सप्लाई होने लगी थी। आने वाले समय में कम सप्लाई की आशंका छाने लगी थी और डिमांड जस का तस था। घरेलू बाजार में चावल की कीमतें बढ़ने लगी थी। चावल का औसत भाव बढ़ने लगा था। यह सब तब हो रहा था जब महंगाई और भारत की अर्थव्यवस्था के बीच याराना बहुत लम्बे समय से बना हुआ है। चावल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए सरकार ने इस महीने के 9 सितंबर को टूटे हुए चावल के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया। गैर बासमती चावल पर 20% का एक्सपोर्ट ड्यूटी लगा दिया गया। एक अनुमान के मुताबिक़ इससे भारत को 56 सौ करोड़ रूपये का नुकसान होने वाल है।
यह सब करने के बावजूद भी जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में चावल के दाम में कमी नहीं आने वाली है। डिमांड -सप्लाई का माहौल जस का तस बना रह सकता है। कीमतें बढ़ती रहेंगी। हो सकता है कि सरकार को चावल के उन किस्मों के निर्यात पर भी प्रतिबन्ध लगाना पड़े, जिस पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया है।
अब आप पूछेंगे कि फ़ूड कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया के गोदामों में चावल का स्टॉक रहता है, उससे बाजार में सप्लाई होगी। इससे कीमतें कम होंगी। तो यहां का समीकरण देखिये। साल 2021 में चावल के सेंट्रल पूल में 268 लाख टन का स्टॉक था। 1 सितम्बर 2022 में यह स्टॉक कम होकर 244 लाख टन हो गया। इसमें 22 लाख टन की कमी आई है। यानी चावल का स्टॉक कम हुआ है।
अब थोड़ा दाल को देखिये। पिछले साल तकरीबन 3.88 लाख टन दाल का निर्यात हुआ था। यह अब तक का रिकॉर्ड स्तर है। इस साल के महज चार महीने में पिछले साल के मुकाबले तकरीबन 85 फीसदी दाल का निर्यात हो चूका है। पिछले साल के मुकाबले इस साल खरीफ दलहन की खेती भी कम हुई है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ें बताते हैं कि इस साल खरीफ दलहन की खेती में 5 लाख हेक्टेयर की कमी है। इन आंकड़ों का मतलब है कि बाजार में दाल की सप्लाई मांग के मुकाबले कमी रहने वाली है। दाल की कीमतें बढ़ती रहेंगी। आम आदमी पर असर पड़ता रहेगा। अंदेशा यह भी जताया जा रहा है कि आने वाली दिनों में गेहूं के निर्यात पर भी प्रतिबन्ध लग जाए। गेहूं के निर्यात पर तो चार महीने पहले से बैन लगा हुआ है। फ़ूड कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया के आंकड़ें बताते हैं कि चावल और गेहूं के टोटल स्टॉक में पिछले पांच साल में सबसे ज्यादा कमी आई है। पिछले साल के मुकाबले इस साल का स्टॉक देखें तो इस साल चावल और गेहूं का कुल स्टॉक में 300 लाख टन की कमी आई है। पिछले साल चावल और गेहूं का कुल स्टॉक 904 लाख टन था। अब यह घटकर 601 लाख टन तक पहुंच गया है।
चावल, दाल और गेहूं के स्टॉक से जुड़े इस विपरीत हालत का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि आने वाले दिनों में महंगाई बढ़ेगी। घटते स्टॉक का प्रभाव उन योजनाओं पर पड़ेगा जो आनाज बंटवारे से जुड़े हैं। यानि यह मुमकिन है कि 80 करोड़ भारतीयों को मुफ्त में चावल या गेहूं मुहैया करवाने से जुडी योजना पर इसका सबसे बड़ा असर पड़े। कुछ टिप्पणीकार तो यहां तक कह रहे हैं कि हो सकता है कि सरकार कोरोना के दौर में शुरू की गयी गरीब कल्याण योजना को बंद कर दे। अब सवाल यही है कि खाद संकट से निपटने के लिए सरकार सरकारी खजाने की तरफ ज्यादा ध्यान देती है या गरीब लोगों की भूख को?
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