ग्राउंड रिपोर्ट: बनारस में जिन गंगा घाटों पर गिरते हैं शहर भर के नाले, वहीं से होगी मोदी की इंट्री और एक्जिट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 दिसंबर को बनारस के जिन घाटों से गंगा में इंट्री और एक्जिट करेंगे, उनमें एक है खिड़किया घाट और दूसरा रविदास घाट। एक पर शाही नाले का बदबूदार पानी गंगा को गंदा कर रहा है, दूसरी ओर असी नदी पूरे वेग से मल-जल नदी में उड़ेलती नजर आती है। ये ऐसे घाट हैं जहां हर कोई आने-जाने से कतराता है। तमाम कवायद के बावजूद प्रशासन इन नालों को अभी तक नहीं ढक पाया है। नौकरशाही के समझ में नहीं आ रहा है कि इस गंदगी को आखिर कैसे छुपाया जाए और कैसे रोका जाए वो सड़ांध, जो बनारसियों की जिंदगी में सालों से जहर घोलती आ रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के प्रवास पर बनारस आ रहे हैं। पहले दिन सोमवार को वह विश्वनाथ कारिडोर का लोकार्पण करने गंगा के रास्ते जाएंगे। वह खिड़किया घाट से गंगा में प्रवेश करेंगे और रविदास घाट पर उतरेंगे। दोनों ही घाटों के किनारे सालों से शहर भर की गंदगी नदी में गिराई जा रही है। खिड़किया घाट पर शाही नाला है तो रविदास घाट पर पूरी शहर की गंदगी ढो रही असी नदी, जो सरकार की उपेक्षा के चलते नाले में तब्दील हो गई है। हाल यह है कि दोनों घाटों पर पानी काला हो चुका है। बदबू और सड़ांध से आसपास रहने वाले लोगों का बुरा हाल है।
बनारस के खिड़किया घाट पर गंगा में मल-जल उड़ेल रहा शाही नाला
वाराणसी जिला प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि गंगा में गंदगी उड़ेलने वाले नाले-नदी को किस तरह छुपाएं? खासबात यह है कि इसी गंगा का जल लेकर पीएम मोदी पैदल विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह तक जाएंगे। उसी जल से काशी विश्वनाथ मंदिर के सभी शिवालयों का जलाभिषेक भी होगा।
मुझे गंगा मैया ने बुलाया हैः मोदी
साल 2014 में नरेंद्र मोदी पहली मर्तबा बनारस आए थे तब उन्होंने बनारसियों को संबोधित करते हुए कहा था, "पहले मुझे लगा था कि मैं यहां आया, या फिर मुझे पार्टी ने यहां भेजा है, लेकिन अब मुझे लगता है कि मैं गंगा की गोद में लौटा हूं। न तो मैं आया हूं और न ही मुझे भेजा गया है। मुझे तो गंगा में ने यहां बुलाया है। यहां आकर मैं वैसी ही अनुभूति कर रहा हूं, जैसे एक बालक अपनी मां की गेद में करता है। मैं बड़ानगर में जन्मा हूं। वहां भी शिव का बड़ा तीर्थस्थल है। बुद्ध और शिव की धरती की सेवा करने का मुझे सौभाग्य मिला है। यहीं बुद्ध ने संदेश दिया था। गंगा को साबरमती से बेहतर बनाएंगे।"
मोदी के पीएम बनने के बाद देशभर के हिंदुओं में आस जगी थी कि अब गंगा के भी अच्छे दिन आएंगे। लेकिन साढ़े सात साल बाद भी काशी में कुछ जगहों को छोड़ गंगा का जल आचमन तो दूर नहाने लायक भी नहीं है। बढ़ते प्रदूषण के चलते गंगा में डुबकी लगाने वालों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर नमामि गंगे योजना शुरू की गई है। इस मद में बनारस में करोड़ों रुपये खर्च किए गए हैं। लाख कवायद के बावजूद बनारस में गंगा साफ नहीं हो सकीं।
पीएम नरेंद्र मोदी सोमवार को गंगा नदी में गिरने वाले करीब 32 छोटे-बड़े नालों को पार कर गंतव्य तक पहुंचेंगे। वह संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय पर हवाई रास्ते से पहुंचेंगे। वहां से कालभैरव मंदिर में दर्शन-पूजन करेंगे। फिर वहीं से खिड़किया घाट पहुंचेंगे। इस घाट पर इनके स्वागत के लिए एक शानदार क्रूज खड़ा होगा, जिस पर बैठकर वह काशी विश्वनाथ मंदिर जाएंगे। विश्वनाथ कारिडोर का लोकार्पण करने के बाद रविदास घाट जाएंगे और वहां से सड़क के रास्ते बीएलडब्ल्यू के लिए रवाना होंगे।
खिड़किया घाट से मोदी की गंगा यात्रा शुरू होगी। इसी घाट के पास पूरे बेग के साथ शहर भर की गंदगी गिराता है बनारस का चर्चित शाही नाला। यहां गंगा का पानी बारहो महीने काला रहता है। यही वजह है कि इस घाट पर स्नान करने से लोग बचते हैं। यहां दुर्गंध इतना ज्यादा रहती है कि आसपास से गुजरने वाले लोग अपनी नाक बंद कर लेते हैं। मोदी इसी घाट से गंगा में प्रवेश करेंगे। अफसरों को समझ में नहीं आ रहा है कि शाही नाले से निकलने वाली बदबू, गंदगी और सड़ांध आखिर कैसे रोकी जाए? रविवार को "न्यूजक्लिक" ने शाही नाले की पड़ताल की तो गंदगी पूरे बेग से गंगा में गिर रही थी।
पुराना है काली नदी का किस्सा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गंगा दर्शन रूट का आखिरी पड़ाव होगा रविदास घाट। यहां असी नदी गंगा में मिलती है। इस नदी की मौजूदा स्थिति बेहद भयावह है। यह नदी अब नाले में तब्दील हो चुकी है। असी नदी से सटे सभी मुहल्लों का सीवरेज सालों से इसी में गिरता आ रहा है। हाल यह है कि रविदास घाट पर गंगा नदी में 200 मीटर से अधिक सिल्ट जमा हो चुका है। पानी का रंग देखिए, समझ में आ जाएगा। काली नदी आधे शहर की गंदगी गंगा में हमेशा उड़ेलती रहती है। जो हाल शाही नाले का है, वही असी नदी का है। मोदी के कार्यक्रम के मद्देनजर रविदास घाट के आसपास के इलाकों में साफ-सफाई का काम धड़ल्ले से चल रहा है, लेकिन गंदगी को रोकने का कोई तोड़ अफसरों के पास है ही नहीं।
असी बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक गणेश शंकर चतुर्वेदी कहते हैं, "जब से योगी की सरकार की सरकार आई है तब असी नदी पर अतिक्रमण बढ़ा है और इस मामले में कार्रवाई करने में अफसरों की कोई दिलचस्पी नहीं है। इस मामले में भाजपा सरकार का दोहरा चरित्र दिखता है। अखबारों में खबर आती है कि असी नदी को बचाया जाएगा। फ्रांस की एक नामी कंपनी इस नदी का उद्धार करेगी, लेकिन नंगा सच यह है कि असी के किनारे संकटमोचन के पास घसियारी टोला और रविंद्रपुरी के पास खाली जमीन पर प्रशसन ने शुरू में दो-तीन मर्तबा अतिक्रमण ढहाया था, पिछले लाकडाउन में दीवार खड़ी करके शराब की दुकान खोद दी गई। जमीन पर अवैध रूप से कब्जा करके मिट्टी पाटी जा रही है। नतीजा, असी में गंदगी का साम्राज्य है। जहां आज सुबह-ए-बनारस का कार्यक्रम होता है, वही असी नदी का वास्तविक संगम हुआ करता था। उसके रास्ते में थोड़ा पहले उड्डपी मंदिर नदी मंत्री उमा भारती के संरक्षण में खड़ा करा दिया गया है। पूरे वेग के साथ शहर का मल-जल गंगा में गिर रहा है।"
यह है बनारस की काली नदी असी, जो गंगा में हमेशा उड़ेलती रहती है भीषण गंदगी
असी नदी के आसपास गंगा में गिरने वाले सीवेज के शोधन के लिए रमना और बीएचयू में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं। क्षमता से अधिक सीवरेज आने की वजह गंदगी ओवरफ्लो होकर गंगा हमेशा गिरती रहती है। जल निगम के प्रोजेक्ट आफिसर एस वर्मन कहते हैं, "असी नदी का मल-जल रोकने के लिए भगवानपुर में एक नई एसटीपी का निर्माण किया जा रहा है। तब शायद स्थित पूरी तरह सुधर जाएगी।"
सिर्फ दिखाने के लिए लगती हैं मशीनें
सरकारी आकड़ों के मुताबिक, नगवा नाले से प्रतिदिन 40 से 42 एमएलडी सीवेज सीधे गंगा में प्रवाहित हो रही है। इसके अलावा छोटे-छोटे नालों से लगभग 150 एमएलडी सीवेज रोजाना गंगा में गिरती है। जिन जगहों पर गंगा में गंदा पानी गिरने से रोकने के लिए टेपिंग की गई है वहां भी सीवेज का पानी नदी में जा रहा है। जिन नालों को बंद करने का दावा सरकार कर रही है, असल में उनका हाल बहुत ज्यादा नहीं बदला है। सरकारी दावे कागजी ज्यादा हैं। शायद यही वजह है कि कई घाटों पर श्रद्धालु अब गंगा स्नान से परहेज करने लगे हैं।
राजघाट पर गोताखोरी करने वाले दुर्गा माझी कहते हैं, "बनारस में जब पीएम और सीएम जैसे नेता आते हैं तभी गंगा में सफाई के लिए मशीनें लगाई जाती हैं। उनके जाते ही ये मशीनें लापता हो जाती हैं और हालात जस का तस हो जाता है। गंगा में बढ़ते प्रदूषण के कारण श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए नदी पार जाते हैं। गंगा में सीधे सीवेज का जल गिरता रहता है और नदी प्रदूषित होती रहती है।"
नदी विशेषज्ञों के मुताबिक, "सीवर का पानी गिरने से गंगा में फास्फोरस और नाइट्रेट की मात्रा बढ़ गई है जो जल जीवों के लिए बेहद खतरनाक है। बनारस में हरे शैवाल की समस्या भी इसी वजह से पैदा हुई थी । बनारस में रोजाना सात करोड़ लीटर मल-जल गंगा में गिर रहा है। असी और सामनेघाट जैसे 21 नालों का पानी सीधे गंगा को प्रदूषित कर रहा है। कई अन्य छोटे-छोटे नाले हैं जो गंगा में जहर घोल रह हैं।"
गंगा प्रदूषण रोकने के लिए सात किमी लंबे शाही नाले की सफाई का काम भी दिसंबर तक पूरा किया जाना, लेकिन स्थिति संतोषजनक नहीं है। संकट मोचन फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रोफेसर विशम्भरनाथ कहते हैं, " सीवर के पानी को ट्रीट करने के लिए जो एसटीपी लगे है वह पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहे हैं। गंगा की स्थिति संतोषजनकर नहीं कही जा सकती है।"
गंगा की सेहत की मॉनिटरिंग करने वाली संस्था केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी कालिका सिंह हमेशा यही दावा कहते हैं, "गंगा का जल पहले से साफ हुआ है। पानी में ऑक्सीजन की मात्रा उतनी है जितना नहाने लायक जल में होना चाहिए। रमना और रामनगर के एसटीपी प्लांट शुरू हो जाने के बाद गंगा का जल और साफ हो जाएगा। नगवा के साथ ही सामनेघाट और रामनगर में गंगा में गिरने वाले नाले हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे।"
हाईकोर्ट सख्त, अफ़सर बेख़ौफ़
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बायोरेमिडियन ट्रीटमेंट के बाद गंगा में गिरते नालों के पानी का सैंपल लेकर आईआईटी बीएचयू (वाराणसी) और आईआईटी कानपुर में जांच कराकर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। जाने-माने अधिवक्ता वीसी श्रीवास्तव ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करते हुए कहा है कि रात में एसटीपी बंद कर दी जाती है और गंदे नाले को गंगा खुलेआम डाला जाता है। अधिवक्ता की शिकायत पर हाईकोर्ट ने गंगा नदी के पानी का सैंपल लेने के लिए न्यायमित्र सीनियर एडवोकेट अरुण कुमार गुप्ता के नेतृत्व में टीम गठित की है। मुख्य स्थायी एडवोकेट जेएन मौर्य, भारत सरकार के एडवोकेट राजेश त्रिपाठी, राज्य विधि अधिकारी मनु घिल्डियाल और एडवोकेट चंदन शर्मा टीम के सदस्य बनाए गए हैं। एडीएम सिटी के कोआर्डिनेशन में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम सैंपल लेगी। बोर्ड की जांच रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में एडवोकेट एचएन त्रिपाठी के मार्फत कोर्ट में पेश होगी। साथ ही आईआईटी की जांच रिपोर्ट महानिबंधक के मार्फत पेश की जाएगी, ताकि प्रदूषण पर रिपोर्टों की तुलना की जा सके।
हाईकोर्ट ने सरकार से कहा है कि 20 फरवरी 2021 को पत्र लिखे महीनों बीत गया। इसकी अपडेट जानकारी यथाशीघ्र दी जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता, न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पूर्णपीठ ने गंगा प्रदूषण मामले की सुनवाई करते हुए दिया है।
न्यायमित्र सीनियर एडवोकेट अरुण कुमार गुप्ता ने वाराणसी में गंगा पार नहर बनाने में बाढ़ के कारण जन-धन की बर्बादी का मुद्दा भी उठाया है। कहा है "इससे गंगा नदी का ईको सिस्टम गड़बड़ा सकता है। ललिता घाट पर गंगा में दीवार बनाने और विश्वनाथ कॉरिडोर का मलवा उसमें डंप किए जाने से नदी का वेग कम हुआ है। करोडों खर्च कर गंगा पार पांच किमी लंबी नहर बनाने और बाढ़ में ध्वस्त होने से जनता के धन की बर्बादी हुई है।"
हाईकोर्ट ने गंगा घाट की स्थिति और गंगा के ईको सिस्टम के प्रभावित होने के मुद्दे पर राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी से ब्योरा तलब किया है। नहर के मुद्दे पर सिंचाई विभाग के प्रबंध निदेशक से निजी तौर पर हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए गए हैं। गंगा किनारे पक्के निर्माण पर वाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष और जिलाधिकारी से भी व्यक्तिगत हलफनामा मांगा गया है।
जुमलों से साफ नहीं होती गंगा
काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं,"पीएम मोदी भले ही गंगा को साफ नहीं कर पाए, लेकिन उन्होंने काशी के इतिहास को साफ कर दिया। तमाम पुरातन मंदिरों और इमारतों को धराशायी कर दिया। जनता के लिए हजारों साल से जो मंदिर आस्था के केंद्र थे वो एक हुक्मरा की सनक की भेंट चढ़ गए। साथ ही गंगा के नैसर्गिक स्वरूप को नष्ट कर दिया गया। गंगा में कहीं बांध बनाया जा रहा है तो कहीं नहर। गंगा घाटों पर मलबे का ढोर लगा है। गंगा भले ही साफ नहीं हुई, लेकिन नदी के प्रवाह के साथ होने वाले छेड़छाड़ के चलते वह अपनी वास्तविक धारा को बैठी। मोदी-योगी आते हैं तो अफसर जादुई करतब दिखाते हुए नालों के आगे तंबू-कनात लगा देते हैं। यह कहना कि गंगा साफ हो गई है, इसके बड़ा कोई दूसरा मजाक नहीं हो सकता। यह तो जीते-जी मक्खी निगलने वाली बात है। देश में किसी एक नदी विशेषज्ञ को बुला लीजिए और वह दावे के साथ कह सके कि मोदी के सात साल के कार्यकाल में गंगा साफ हुई है। बनारस में जब भी गंगा जल की गुणवत्ता की जांच हुई, प्रदूषण की रिपोर्ट बेहोश करने वाली ही निकली।"
मोदी सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करते हुए प्रदीप कुमार साफ-साफ कहते हैं, " राजनीतिक भाषणों और जुमलों से गंगा साफ नहीं होती। मोदी का नमामि गंगे प्रोजेक्ट भी जुमला ही साबित हुआ है। इवेंट और लच्छेदार भाषणों से नहीं, वैज्ञानिक तौर-तरीकों से गंगा साफ हो सकती हैं। गंगा के तीरे सितारा संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है उससे बनारस की गंगा पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। पहले गंगा का बहुत बड़ा पाट हुआ करता था, वो अब टापू नजर आता है। यह भी संभव है कि देर-सबेर गंगा काशी से कहीं रूठ न जाएं। भाजपा सरकार जब भी सत्ता में आती है, गंगा में अजीबो-गरीब सनक भरी योजनाएं लाती है। मणिकर्णिका घाट के करीब गंगा की मझधार में जो स्ट्रैक्टर खड़ा किया गया है क्या उससे नदी का वेग प्रभावित नहीं होगा? गंगा को लेकर भावनात्मक नारे देने की जरूरत नहीं है। गंगा के प्रति आस्था किसी दल की मोहताज नहीं है। यह जीवनदायिनी नदी चाहे जितनी भी गंदी हो जाए, उसके जल को लोग माथे पर लगाते ही रहेंगे।"
पीएम नरेंद्र मोदी गंगा निर्मलीकरण को लेकर चाहे जितने भी दावे करें, लेकिन हकीकत यही है कि काशी में गंगा का आंचल पहले से ज्यादा मैला हो रहा है। गंगा में रोजाना 120 एमएलडी मल-जल गिर रहा है। इसमें 80 एमएलडी मलजल शाही नाले का है तो 40 एमएलडी सीवेज वरुणा नदी से होकर गंगा में जा रहा है। एनजीटी ने एसटीपी संचालन करने वाली संस्था जल निगम की गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई को एक करोड़ से अधिक का जुर्माना लगाया है, लेकिन हालात जस का तस है।
बनारस में गंगा के साथ हो रहे खिलवाड़ से शहर के तमाम प्रबुद्ध नागरिक और लेखक-पत्रकार काफी नाराज हैं। साहित्यकार रामजी यादव कहते हैं, "भारत के इतिहास को पढ़ेंगे तो पाएंगे कि गंगा के जितने भी नकली पुत्र हुए उन्होंने इस पवित्र नदी का अनादर किया। सनातक काल में गंगा पुत्र थे भीष्म। वो बेटे तो सांतनु के थे, लेकिन खुद को गंगा पुत्र घोषित कर रखा था। भीष्म ने अपना पूरा जीवन अन्यायियों के साथ बिताया। उनके पोते की पत्नी भरी सभा में नंगा की गई, पर तब भी उनकी जुबां नहीं खुली। इक्कीसवीं सदी में खुद को गंगा का बेटा घोषित करने वाले मोदी की नीति-रीति देखिए। जिस गंगा के साथ बनारस की जनता का इमोशन जुड़ा है, उसके साथ कैसा खिलवाड़ हो रहा है। मोदी का चरित्र भी भीष्म जैसा ही नजर आता है। जो व्यक्ति साढ़े सात सालों में इस नदी को साफ नहीं कर सका, वो भला गंगा पुत्र कैसे हो सकता है? असली गंगा पुत्र तो बनारस का मझी समुदाय है, जो लोगों को नदी में डूबने से बचाते हैं और गंगा पार भी कराते हैं।"
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