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भारत में सबसे अधिक म्युकरमाइकोसिस के मामले गुजरात में, मधुमेह हो सकता है कारण

कोरोनावायरस से होने वाली मौतों और मामलों को कम दर्ज करने के बाद राज्य सरकार अब राज्य में म्युकरमाइकोसिस मामलों की संख्या पर कोई सार्वजनिक आंकड़े जारी नहीं कर रही है। 
अहमदाबाद में एक अस्पताल के बाहर लगाये गए नोटिस में सूचित किया गया है कि उनके पास ऐम्फोटेरिसिन बी दवा, जिसे म्युकरमाइकोसिस के उपचार में इस्तेमाल में लाया जाता है, खत्म हो गई है। 
अहमदाबाद में एक अस्पताल के बाहर लगाये गए नोटिस में सूचित किया गया है कि उनके पास ऐम्फोटेरिसिन बी दवा, जिसे म्युकरमाइकोसिस के उपचार में इस्तेमाल में लाया जाता है, खत्म हो गई है। 

गुजरात ने म्युकरमाइकोसिस को एक महामारी घोषित कर दिया और केंद्र की इस विषय पर राज्यों को जारी अधिसूचना के एक दिन बाद 20 मई को इसे सूचनीय रोगों की श्रेणी में डाल दिया था। ध्यान देने योग्य बात यह है कि आईसीएमआर की 18 सदस्यीय टीम जिसने इस विषय पर 9 मई को दिशानिर्देश जारी किये थे, उसमें से दस विशेषज्ञ गुजरात से थे। हालाँकि 12 मई तक राज्य ने भारत में सबसे अधिक संख्या के मामलों में चोटी पर मुकाम हासिल कर लिया था, जब राज्यों में इस मुद्दे पर चर्चा के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की वीडियो बैठक आयोजित की गई थी।

गौरतलब है कि गुजरात की तुलना में कम मामलों वाले राजस्थान, तेलंगाना, हरियाणा समेत कई राज्यों ने केंद्र सरकार के दिशानिर्देश से पहले ही अपने राज्यों में म्युकरमाइकोसिस को महामारी मान लिया था।

25 मई तक, विभिन्न जिलों के मात्र छह प्रमुख सरकारी अस्पतालों में म्युकरमाइकोसिस के 2425 सक्रिय मामले बने हुए हैं। राजकोट सिविल अस्पताल में 600 सक्रिय मामले, अहमदाबाद सिविल अस्तपाल में 470, सूरत में न्यू सिविल हॉस्पिटल में 120, वड़ोदरा के एसएसजी अस्पताल में 154, भावनगर के श्री तक्षतसिंहजी जनरल हॉस्पिटल में 116 और गुरु गोविन्दसिंह सरकारी अस्पताल में कोविड-19 के बाद की जटिलता के चलते म्युकरमाइकोसिस या ब्लैक फंगस के 114 सक्रिय मामले मौजूद हैं।

गुजरात सरकार द्वारा जारी म्युकरमाइकोसिस के मामलों की संख्या पर अभी तक कोई सार्वजनिक तौर पर आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। इस रोग को महामारी के तौर पर मान लिए जाने के बाद, गुजरात के मुख्यमंत्री के कार्यालय से जारी एक बयान में कहा गया था कि “सीएम विजय रूपाणी के तहत बनी एक कोर कमेटी ने महामारी रोग अधिनियम, 1857 के तहत म्युकरमाइकोसिस को एक महामारी मानने का फैसला लिया है। सभी निदान और उपचार आईसीएमआर दिशानिर्देशों के अनुसार किये जायेंगे। सभी संदिग्ध एवं पुष्ट मामलों की अब नियमित रूप से भारत सरकार को रिपोर्टिंग करनी होगी।”

राजकोट सिविल अस्पताल के चिकत्सा अधीक्षक डॉक्टर आर.एस त्रिवेदी ने न्यूज़क्लिक को बताया “म्युकरमाइकोसिस एक फंगल संक्रमण है जो किसी भी प्रतिरक्षण-समझौता रोगी को हो सकता है। कोविड-19 एक ऐसी बीमारी है जो मरीज की प्रतिरोधक क्षमता को काफी कम कर देती है। स्थिति तब और बदतर हो जाती है, अगर रोगी मधुमेह जैसी सह-रोगी स्थितियों से घिरा हो। वास्तव में देखें तो, हमारे यहाँ राजकोट सिविल अस्पताल में म्युकरमाइकोसिस के कुल 600 रोगियों में से 80 से 85 प्रतिशत को मधुमेह है और स्टेरॉयड की उच्च खुराक के साथ उनका उपचार किया गया था। हालाँकि इस फंगल संक्रमण के लिए कोई विशेष आयु वर्ग नहीं देखा गया है। आमतौर पर, कोरोना वायरस की दूसरी लहर में हमारे पास 40 से 60 वर्ष के आयु वर्ग के मरीज हैं, जिनको म्युकरमाइकोसिस ने भी जकड़ रखा है, लेकिन 20 साल से कम उम्र के युवा रोगी और बालरोग के मामले भी हैं।” 

उन्होंने बताया “महामारी से पहले भी हमारे पास म्युकरमाइकोसिस के मामले होते थे, और इसे प्राथमिक तौर पर अक्वायर्ड इम्यून डेफिशियेंसी सिंड्रोम(एड्स) से पीड़ित लोगों के बीच में देखा गया था। यहाँ तक कि अभी भी, एक तपेदिक रोगी हैं जिनका म्युकरमाइकोसिस का भी निदान किया गया है। इसलिए यह कहना सुरक्षित होगा कि जिन लोगों में प्रतिरक्षात्मकता कम है, वे फंगल संक्रमण के प्रति अति-संवेदनशील हो सकते हैं। इसके अलावा आर्द्र वातावरण में फंगल इन्फेक्शन की संभावना हमेशा बनी रहती है। यह उस मरीज को भी हो सकता है जिसे लंबे समय से ऑक्सीजन के सहारे रखा गया हो और उपकरण को साफ़ न रखा गया हो या साफ़-सफाई तो रखी गई हो लेकिन जीवाणु हीन (स्वच्छ) पानी का इस्तेमाल न किया गया हो। हालाँकि ये सिर्फ कयास हैं और अभी तक निर्णयात्मक तौर पर साबित नहीं हुए हैं।”  

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ पब्लिक हेल्थ के निदेशक, डॉक्टर दिलीप मावलंकर ने न्यूज़क्लिक को बताया “ऐसी कई थ्योरी हैं, लेकिन इनमें से कोई भी निर्णायक रूप से प्रमाणित नहीं है जो कह सके कि गुजरात में म्युकरमाइकोसिस के इतने अधिक मामले देखने में क्यों आ रहे हैं। एक थ्योरी अस्पतालों में साफ़-सफाई की कमी को लेकर है। यदि उसे मानकर चलें तो, किसी को भी इस विश्लेषण में जाना होगा कि क्या सरकारी अस्पतालों में मामले ज्यादा दर्ज किये जा रहे हैं या निजी अस्पतालों में दर्ज हो रहे हैं। साथ में इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि निजी अस्पतालों में मधुमेह के मामले कहीं ज्यादा होने चाहिए, क्योंकि इसका प्रचलन शहरी एवं धनाड्य लोगों के बीच में कहीं ज्यादा है। एक दूसरी थ्योरी यह है कि फंगस सड़ी-गली सब्जी से उत्पन्न होता है, लेकिन अभी तक कचरा बीनने वालों में ऐसा एक भी मामला सुनने को नहीं मिला है।”

उन्होंने आगे बताया “यद्यपि यह संक्रमण कोई अनसुना नहीं है और कैंसर के मरीजों और महामारी-पूर्व मधुमेह से पीड़ित बच्चों में इसे देखा गया है, किंतु हाल के दिनों में मामलों की संख्या काफी अधिक हो गई है, जबकि राज्य की ओर से डेटा के नमूने या विश्लेषण नहीं किये गए हैं।”

गौरतलब है कि इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा 2017 में प्रकाशित  एक व्यापक-प्रतिनिधित्व वाले घर-घर जाकर किये गए अध्ययन से पता चलता है कि गुजरात में मधुमेह पूर्व की व्यापकता (सीमा-स्तर या सामान्य से कुछ अधिक का ग्लूकोज लेवल है और मधुमेह होने का खतरा बना हुआ है) 10.7 प्रतिशत है। 

इसमें आगे पाया गया था कि मधुमेह-पूर्व के सबसे ज्यादा मामले यहाँ पर शहरी और ग्रामीण दोनों में ही पुरुषों में 25 से 34 आयु वर्ग के बीच में थे, जबकि 20 से 24 आयु वर्ग में ये मामले शहरी पुरुषों की तुलना में ग्रामीण पुरुषों में कहीं अधिक थे।

महिलाओं में 20 से 24 आयु वर्ग की ग्रामीण महिलाओं में मधुमेह पूर्व की घटनाएं कहीं अधिक थीं, जबकि बाकी सभी आयु वर्गों में यह ग्रामीण और शहरी महिलाओं दोनों में ही कमोबेश समान थी। अध्ययन में पाया गया कि कुल मिलाकर शहरी क्षेत्रों में मधुमेह का प्रसार 10.3%, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में 5.1% और राज्य भर में 7.1% था।

म्युकरमाइकोसिस के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा ऐम्फोटेरिसिन बी की कमी 

इस वर्ष 8 मई को मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने घोषणा की थी कि राज्य ने “राज्य में 100 से अधिक रोगियों के लिए” म्युकरमाइकोसिस के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा एम्फोटेरिसिन बी की 5000 शीशियों का आर्डर दे रखा है। 

हालाँकि उसी दिन राजकोट सिविल अस्पताल, जो सौराष्ट्र क्षेत्र में सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल होने के कारण जिसके पास राज्य में सबसे अधिक संख्या में मामले दर्ज हैं, ने म्युकरमाइकोसिस के इलाज में उपयोग में आने वाली दवा एम्फोटेरिसिन बी की 12000 शीशियों का मांगपत्र जारी किया था। अस्पताल की ओर से गुजरात मेडिकल सर्विसेज कारपोरेशन लिमिटेड (जीएमएससीएल) के माध्यम से पहले से ही 1.5 करोड़ रूपये खर्च करने के बाद से दवा की खरीद का यह दूसरा बैच होगा।

अहमदाबाद के एक अस्पताल के बाहर लगे नोटिस में स्पष्ट किया गया है कि उनके पास म्युकरमाइकोसिस के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा एम्फोटेरिसिन बी समाप्त हो चुकी है।

अहमदाबाद में एक अस्पताल के बाहर लगाये गए नोटिस में सूचित किया गया है कि उनके पास ऐम्फोटेरिसिन बी दवा, जिसे म्युकरमाइकोसिस के उपचार में इस्तेमाल में लाया जाता है, खत्म हो गई है।

उल्लेखनीय रूप से 19 मई को, केंद्र सरकार ने लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी इंजेक्शन के “समान वितरण” के लिए एक नीति तैयार की थी और एक “वितरण प्रणाली” को स्थापित किया गया था। निजी अस्पताल इन दवाओं को सात सरकारी अस्पतालों – अहमदाबाद, गांधीनगर, भावनगर, सूरत, राजकोट, जामनगर और बड़ौदा से खरीद सकते हैं, और सरकारी अस्पतालों को सिर्फ जीएमईएससीएल के जरिये ही अपने मांगपत्र देने होंगे।

केंद्र सरकार ने कोटे को सिर्फ 150 मरीजों तक ही सीमित कर दिया है 

यह कोटा राज्य की कुल जरूरत का बमुश्किल से 10 प्रतिशत है जहाँ प्रत्येक रोगी को कम से कम 100 इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है और गुजरात के अब तक सिर्फ छह बड़े अस्पतालों में ही 2425 सक्रिय मामले दर्ज किये गए हैं। 22 मई को अहमदाबाद के तीन प्रमुख अस्पतालों- सिविल हॉस्पिटल, एलजी अस्पताल और एसवीपी अस्पताल में दवा खत्म हो गई थी और मरीजों के परिवारों के सूचनार्थ उनके गेट पर बोर्ड टांग दिए गए थे। जिसके बाद कई निजी अस्पतालों को मरीजों को छुट्टी देनी पड़ी क्योंकि उनके पास दवा खत्म हो गई थी और उनके पास इसकी खरीद का कोई साधन नहीं बचा था।

डॉक्टर आरएस त्रिवेदी के अनुसार “हम म्यूकर का उपचार एंटी-फंगल दवा से करते हैं और इसके लिए एम्फोटेरिसिन बी दवा सबसे उपयुक्त है। हम परंपरागत या प्रणालीगत के लिए तब जा सकते हैं, जब रोगी की हालत स्थिर हो या लिपोसोमल हो जब मरीज की प्रतिरक्षा से समझौता होता है क्योंकि हम गुर्दे फेल होने की हालत में नहीं ला सकते। इसलिए हम लिपोसोमल बी के साथ इलाज को प्राथमिकता देना चाहेंगे, लेकिन मामलों की संख्या काफी ज्यादा है और पर्याप्त मात्रा में दवा उपलब्ध नहीं है।”

उन्होंने आगे बताया कि “सबसे बुरी स्थिति तब होती है जब मरीज के अंदरूनी अंग प्रभावित होने लगते हैं, ऐसी स्थिति में हमें सर्जरी के लिए जाना पड़ता है। कान, नाक और गले वे सबसे पहले और प्रमुख स्थान हैं जहाँ म्युकरमाइकोसिस हमला करता है और शिरानालशोध संबंधी रोगों वाले मरीज इसके आसान लक्ष्य हैं। यदि यह आक्रामक हुआ तो यह चेहरे वाले क्षेत्रों में फ़ैल सकता है, और उस स्थिति में हमें दन्त चिकित्सक या प्लास्टिक सर्जन तक को बुलाना पड़ता है, और रोगियों को लंबे समय तक उपचार और अस्पताल में भर्ती रखने की आवश्यकता होती है।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

Gujarat Records Highest Number of Mucormycosis Cases in India, Data Indicates Diabetes May be a Factor

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