बिहार के 34 प्रतिशत परिवार प्रतिदिन 200 रुपये या उससे कम पर गुजारा करते हैं: जाति सर्वेक्षण
बिहार विधानसभा में मंगलवार को पेश की गई जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में एक तिहाई से अधिक परिवार प्रतिदिन 200 रुपये या उससे कम की आय पर गुजारा कर रहे हैं, जबकि समान कमाई पर जीवन यापन करने वाले अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) परिवारों की संख्या लगभग 43 प्रतिशत है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सर्वेक्षण के निष्कर्षों के आधार पर राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण बढ़ाने का इरादा व्यक्त किया और कहा कि इस आशय का एक कानून विधानमंडल के चालू सत्र में लाए जाने की संभावना है।
जाति-आधारित सर्वेक्षण पर बिहार के मंत्री विजय कुमार चौधरी ने विधानसभा में कहा, "बिहार में 34.1% परिवार गरीब हैं। 6,000 रुपये प्रति माह तक कमाने वाले परिवारों को गरीब श्रेणी में रखा गया है।" pic.twitter.com/s6w49gBMAn
— ANI_HindiNews (@AHindinews) November 7, 2023
नीतीश ने अपनी सरकार द्वारा कराए गए जाति सर्वेक्षण पर एक विस्तृत रिपोर्ट दोनों सदनों में पेश किए जाने के बाद हुई चर्चा में भाग लेते हुए यह बयान दिया।
रिपोर्ट और नीतीश की घोषणा 2024 के लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले आई है।
सर्वेक्षण रिपोर्ट से पता चला कि राज्य की कुल आबादी 13.07 करोड़ में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) (27.13 प्रतिशत) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग उपसमूह (36 प्रतिशत) की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है जबकि एससी और एसटी कुल मिलाकर 21 प्रतिशत से थोड़ा अधिक हैं।
संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी द्वारा विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार राज्य में लगभग 2.97 करोड़ परिवार हैं जिनमें से 94 लाख से अधिक (34.13 प्रतिशत) 6000 रुपये या उससे कम मासिक आय पर जीवन यापन कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार इन 94 लाख परिवारों में से प्रत्येक को निर्माण कार्य करने के लिए दो-दो लाख रुपये की सहायता प्रदान करने की योजना बना रही है।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा उनकी सरकार ने आवास निर्माण के लिए ऐसे प्रत्येक परिवार जिनके पास रहने के लिए कोई घर नहीं है, को एक लाख रुपये देने की योजना बनाई है ।
नीतीश ने कहा, ‘‘अगर हमें (बिहार को) विशेष श्रेणी का दर्जा मिलता है तो हम दो से तीन वर्षों में अपने लक्ष्य हासिल करने में सक्षम होंगे। अन्यथा इसमें अधिक समय लग सकता है।’’
मुख्यमंत्री ने यह भी उम्मीद जताई कि सर्वेक्षण केंद्र को राष्ट्रव्यापी जनगणना के अनुरोध पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करेगा, जो उन्होंने दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से की थी।
रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित जनजाति परिवारों (42.91 प्रतिशत) में समान आय वाले परिवारों का प्रतिशत अनुसूचित जाति परिवारों (42.78 प्रतिशत) के समान ही था।
चौधरी ने इस कवायद को ‘‘ऐतिहासिक’’ करार दिया और आंकड़ों के ‘‘प्रामाणिक’’ होने का दावा करते हुए विपक्षी पार्टी भाजपा द्वारा लगाए गए आरोपों से इनकार किया कि सत्तारूढ़ महागठबंधन के राजनीतिक फायदे के लिए संख्याओं में ‘‘हेरफेर’’ किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘एससी और एसटी के लिए कोटा कुल मिलाकर 17 प्रतिशत है। इसे बढ़ाकर 22 फीसदी किया जाना चाहिए। इसी तरह ओबीसी के लिए आरक्षण भी मौजूदा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत किया जाना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने पहले नौकरियों आदि में आरक्षण 50 प्रतिशत तय किया है।
नीतीश ने पांच दिवसीय शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन कहा, ‘‘हम उचित परामर्श के बाद आवश्यक कदम उठाएंगे। हम चालू सत्र में आवश्यक कानून लाने का इरादा रखते हैं।’’
रिपोर्ट से पता चला कि 25 प्रतिशत से अधिक उच्च जातियां प्रति माह 6000 रुपये या उससे कम कमाती हैं।
उन्होंने कहा कि राज्य ने अपने लिंगानुपात में भी सुधार किया है क्योंकि प्रति एक हजार पुरुषों पर 918 से बढ़कर अब 953 महिलाएं हैं।
रिपोर्ट में कई अन्य महत्वपूर्ण निष्कर्ष भी सामने आए हैं जैसे बिहार के 50 लाख से अधिक लोग आजीविका या बेहतर शिक्षा के अवसरों की तलाश में राज्य से बाहर रह रहे हैं।
सबसे संपन्न हिंदू उच्च जाति में संख्या की दृष्टि से बहुत कम कायस्थ थे, क्योंकि बड़े पैमाने पर शहरीकृत समुदाय के केवल 13.83 प्रतिशत परिवार ही ऐसी आय पर जीवन यापन करते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक भूमिहार समुदाय में आश्चर्यजनक रूप से गरीबी दर 27.58 प्रतिशत दर्ज की गई जबकि माना जाता है कि बिहार में सबसे अधिक भूमि इसी समुदाय के पास है।
यादव जो सबसे प्रमुख ओबीसी समूह है और जिसकी कुल आबादी में 14 प्रतिशत हिस्सेदारी है, रिपोर्ट में प्रस्तुत विवरण में कहा गया है कि राजनीतिक रूप से आगे बढ़ने के बावजूद यादव काफी हद तक गरीबी से उबर नहीं पाए हैं और समुदाय के 35 प्रतिशत से अधिक लोग गरीब हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय से आते हैं और सर्वेक्षण के मुताबिक उनकी आबादी में करीब 30 प्रतिशत लोग गरीब हैं।
सर्वेक्षण में मुसलमानों के बीच जाति विभाजन को भी ध्यान में रखा गया जो कुल मिलाकर राज्य की आबादी का 17 प्रतिशत से अधिक है। सैय्यद में गरीबी की दर सबसे कम 17.61 प्रतिशत है।
न्यूज़ एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ
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