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बिहार: एससी/एसटी के उप-वर्गीकरण पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ प्रदर्शन से सामान्य जनजीवन प्रभावित

यह विरोध प्रदर्शन सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले के ख़िलाफ़ विभिन्न दलितों और आदिवासी संगठनों/समूहों द्वारा आह्वान किए गए देशव्यापी “भारत बंद” का हिस्सा है, जिसे विभिन्न विपक्षी दलों का समर्थन हासिल है।
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फ़ोटो साभार : नईदुनिया

पटना: अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के उप-वर्गीकरण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ बुधवार (21 अगस्त) को बिहार में सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ, जिससे रेल और सड़क यातायात बाधित हुआ और व्यापारिक प्रतिष्ठानों और शैक्षणिक संस्थानों को बंद कराना पड़ा।

यह विरोध प्रदर्शन विभिन्न दलितों और आदिवासी समूहों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ बुलाए गए देशव्यापी “भारत बंद” का हिस्सा है, जिसे विभिन्न विपक्षी दलों का समर्थन हासिल है।

हजारों लोग, जिनमें ज्यादातर दलित सदस्य और विभिन्न दलों और संगठनों के कार्यकर्ता शामिल थे, सुबह से ही सड़कों पर उतर आए और एससी/एसटी आरक्षण में ‘क्रीमी लेयर’ पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन किया।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो सहयोगी दल - लोक जन शक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान, जो केंद्रीय मंत्री भी हैं, ने अदालत के फैसले का विरोध किया है और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के संस्थापक-प्रमुख और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने इसका समर्थन किया है। पासवान और मांझी दोनों ही दलित नेता हैं।

इसी तरह, पासवान ने भारत बंद के आह्वान का समर्थन किया है जबकि मांझी ने इसका विरोध किया है।

विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल, सीपीआई (एमएल), मुकेश साहनी की वीआईपी ने विरोध प्रदर्शन को समर्थन दिया है और रिपोर्टों के अनुसार, सैकड़ों विपक्षी दलों के कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए।

हाथों में पोस्टर, बैनर और नीले झंडे लेकर आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति, भीम आर्मी, दलित सेना और अन्य दलित संगठनों के समर्थकों ने मधुबनी, दरभंगा, बक्सर, आरा सहित विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर कई ट्रेनें रोक दीं।

हाजीपुर स्थित पूर्व मध्य रेलवे के क्षेत्रीय मुख्यालय के एक अधिकारी के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने कुछ रेलवे स्टेशनों पर ट्रेन सेवाएं “बाधित” की हैं।

प्रदर्शनकारियों ने जहानाबाद, बेगूसराय, वैशाली में विभिन्न राष्ट्रीय राजमार्गों और एक दर्जन से अधिक स्थानों पर राज्य राजमार्गों को भी अवरुद्ध कर दिया। इसके अलावा, प्रदर्शनकारियों द्वारा विभिन्न शहरों में व्यस्त सड़कों को अवरुद्ध करने की खबरें भी आईं हैं।

पटना में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने “जय भीम” के नारे लगाते हुए सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया और बंद करवाया। प्रदर्शनकारियों ने गांधी पुल को अवरुद्ध करने की कोशिश की, जो पटना को उत्तर बिहार से जोड़ता है। बाढ़, फतुहा, फुलवारीशरीफ, जानीपुर, परसा बाजार, संपत चक और पुनपुन सहित कई जगहों पर सड़कों पर टायर जलाकर विरोध प्रदर्शन किया गया, जिससे यातायात बाधित हुआ और पीएमसीएच के पास की दुकानें बंद करनी पड़ीं।

जहानाबाद और पटना में प्रदर्शनकारियों की पुलिस से झड़प की खबरें मिली हैं। जहानाबाद में पुलिस ने नियमों का उल्लंघन करने के लिए कुछ प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया और पटना के डाक बंगला चौराहे पर जब बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बैरिकेड तोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश की, तो उन्हें तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया गया और पानी की बौछारों का इस्तेमाल भी किया गया।

गया, भागलपुर, शेखपुर, पश्चिमी चंपारण, कटिहार, मुजफ्फरपुर, सीवान, पूर्णिया, अरवल, कैमूर, रोहतास, जमुई, बांका, सारण, समस्तीपुर, नालंदा और अन्य जिलों में भी विरोध प्रदर्शन की खबरें मिली हैं।

राज्य सरकार ने भारी सुरक्षा बल तैनात किया, लेकिन कथित तौर पर पुलिस अधिकारियों को प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मूकदर्शक बने रहने का निर्देश दिया गया था।

बिहार जाति सर्वेक्षण के अनुसार, अनुसूचित जाति (दलित) की आबादी 19 फीसदी और अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) की आबादी 1.68 फीसदी है। उल्लेखनीय है कि 2011 की जनगणना के बाद से राज्य में अनुसूचित जातियों की आबादी में वृद्धि हुई है।

हालांकि, चिराग पासवान ने बुधवार को एक्स पर पोस्ट किया कि वह और उनकी पार्टी विरोध का समर्थन करते हैं। उन्होंने लिखा, "समाज के उत्पीड़ित और हाशिए पर पड़े वर्गों के साथ खड़ा होना हमारा नैतिक कर्तव्य है।" इससे पहले, पासवान, जो दुसाध या पासवान, एक दलित जाति से ताल्लुक रखते हैं, ने कहा कि दलितों को आरक्षण अस्पृश्यता के आधार पर दिया गया था, न कि शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर। इसके लिए 'क्रीमी लेयर' को लागू करने का कोई आधार नहीं बनता है।

लेकिन सबसे हाशिए पर पड़ी दलित जाति मुसहर से ताल्लुक रखने वाले मांझी ने दोहराया कि वह और उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करते हैं क्योंकि यह जरूरी था। उन्होंने कहा, "कुछ लोग दलित समाज के हित में नहीं बल्कि अपने स्वार्थ के लिए कोर्ट के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं और उसका विरोध कर रहे हैं। पिछले 76 सालों में सिर्फ चार दलित जातियों को आरक्षण का लाभ मिला है।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Bihar: Protest Against SC Verdict on Sub-Categorisation of SC/ST Hits Normal Life

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