पटना : दलितों के अधिकारों को लेकर एकजुट संघर्ष का आह्वान
केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा दलितों को संविधान प्रदत्त अधिकारों से बेदख़ल किये जाने के ख़िलाफ़ “दलित अधिकार सम्मलेन” में बिहार की राजधानी पटना में एकजुट संघर्ष का आह्वान किया गया।
इस सम्मेलन में कहा गया कि इसके मुकाबले के लिए दलित समुदाय के अंदर का विभाजन उसे खड़ा नहीं होने दे रहा है। ऐसे में ज़रूरी है कि जितना ज़ल्द हो सके सभी एक मंच पर साथ आयें। ताकि समय रहते सक्षम, सशक्त, जुझारू एवं सुलझे हुए दलित प्रतिनिधित्व को प्रभावी रूप से सामने लाया जा सके।
सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि “दलितों को संविधान प्रदत्त अधिकारों से बेदख़ल करने में केंद्र के साथ साथ राज्यों की सरकारें भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही हैं। विडंबना है की आज़ादी के 75 वर्षों बाद भी देश का दलित समुदाय घोर सामाजिक, राजनितिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संकटों से जूझ रहा है। उस पर से जब से बीजेपी केंद्र के शासन में आई है, तब से अल्पसंख्यकों की भांति दलितों को भी पहले से और अधिक कठिन हालातों से गुजरना पड़ रहा है। अपनी सत्ता-वर्चस्व बरक़रार रखने के लिए धर्मान्धता, पाखंड, अंधविश्वास और उन्मादी धार्मिक कर्मकांडों इत्यादि के ज़रिये देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब, सामाजिक सौहार्द-एकता व अमन-चैन पर सत्ता-संरक्षित मनुवादी हमलों का सिलसिला जारी है। साथ ही दलित समुदाय व पिछड़े वर्ग को कथित चारे के रूप में इस्तेमाल कर, उनके संविधान प्रदत्त सभी अधिकारों से ही वंचित बनाने की कवायद भी साफ़ दिख रही है। तमाम दलित-वंचितों के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, सम्मानजनक रोज़गार और सामाजिक-आर्थिक विकास के तमाम रास्तों को तेज़ी से बंद किया जा रहा है। अब तो “प्रचंड बहुमत” के बल पर संविधान द्वारा दिए गए आरक्षण तक को समाप्त कर देने की साजिश कोई छुपी हुई बात नहीं रह गयी है।"
बता दें कि गत 9 नवंबर को पटना के आईएमए हॉल में इस सम्मलेन का आयोजन कई दलित-अम्बेडकर संगठनों के साथ साथ खेग्रामस, बीकेएमयू, एआईएडब्ल्यूयू व डीएसएम ने संयुक्त रूप से किया।
इस सम्मलेन की विशेषता इस बात से समझी जा सकती है कि इसमें हुआ विमर्श, फ़क़त बंद कमरे के चिंतन-मनन-विश्लेषणों से परे ज़मीनी सामाजिक धरातल पर ‘चुनौतियों के बरअक्स’ व्यापक सामाजिक-राजनीतिक जनगोलबंदी खड़ा करने पर केंद्रित रहा। इसमें पहली बार दलित अधिकारों के सामाजिक संगठनों के साथ-साथ वामपंथी संगठनों के प्रतिनिधि भी एक मंच पर जुटे।
इसमें “दलित प्रश्न” को किसी संकीर्ण “अस्मितावादी नज़रिये” से देखने-समझने की बजाय, देश के लोकतंत्र व संविधान को आधार बनाते हुए मनुवाद समर्थक मौजूदा कॉर्पोरेटपरस्त शासन के ख़िलाफ़ एक व्यापक राजनीतिक जन एकता विकसित करने पर साझी सहमति बनी।
हैदराबाद व दिल्ली समेत बिहार के कई क्षत्रों से पहुंचे विभिन्न दलित संगठनों के प्रतिनिधियों ने खुलकर इस सम्मलेन में अपने-अपने विचार-सुझाव साझा किये।
इस सम्मलेन में तेलंगाना राज्य गठन आंदोलन के अगुवा बौद्धिक संगठक व आंदोलनकारी हैदराबाद ‘दलित स्टडी सेंटर’ के चेयरपर्सन मल्लेपल्ली लक्ष्मणया के वक्तव्य ने लोगों का ध्यान खींचा। मल्लेपल्ली क्रंतिकारी वामपंथी धारा के एक्टिविस्ट होने के कारण “टाडा” के फर्जी केस में जेल में भी डाले गए थे। तेलंगाना राज्य गठन के बाद राज्य में दलितों-वंचितों के सामग्रिक विकास के सवाल पर आंदोलन के दबाव से राज्य की सरकार को “विशेष कानून और कार्य योजना” के लिए सक्रिय बनाया।
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए उन्होंने कहा कि बिहार में आयोजित हो रहा यह सम्मलेन, इन अर्थों में ऐतिहासिक है कि यहां हुए बड़े-बड़े जन आंदोलनों ने देश को दिशा देने का काम किया है। उन्होंने कहा कि 70 के दशक में यहां हुए आंदोलनों ने पहली बार देश में दलितों की राजनीतिक दावेदारी का एक मजबूत एक्सप्रेशन दिया। उसी समय महाराष्ट्र समेत दक्षिण के अन्य राज्यों में हुए दलित पैंथर आंदोलन जैसे कई जुझारू आंदोलनों ने तत्कालीन सरकारों को दलितों के सवालों को विशेष संज्ञान में लेने को विवश किया। इसका परिणाम हुआ कि देश में पहली बार दलितों के विकास को लेकर व्यापक स्तर पर सरकारी योजनाएं शुरू की गयीं।
केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा चलाये जा रहे “अमृत महोत्सव” पर टिपण्णी करते हुए उन्होंने कहा कि सर्वविदित मिथकीय सत्य है कि जब समुद्र-मंथन हुआ था तो कैसे देवताओं ने छल से सारा अमृत हड़प कर असुरों को धोखा दिया था। आज भी बिल्कुल वैसी ही स्थितियां बनी हुई हैं। आज “अमृत” अडाणी-अंबानी जैसे के क़ब्ज़े में है और देश की 90% संपत्ति के मालिक बनकर राजनीति-शासन का संचालन कर रहे हैं।
मल्लेपल्ली ने दलित समुदाय के मौजूदा संकटों के संदर्भ में कहा कि "आजादी के बाद भी काफी समय तक देश के दलित वंचित-उपेक्षित बनाकर रखे गए। स्वतंत्रता पूर्व गांधी-अंबेडकर वार्ता के फैसलों और पूना पैक्ट की अनुशंसाओं को दरकिनार किया गया। बाद के समय में जब कई बड़े दलित आंदोलनों के उभार के जरिये दलित वर्ग ने सभी सरकारों को राजनीतिक चुनौती दी तब जाकर दलितों के लिए विकास की योजनाएं और विशेष बजटीय प्रावधान किया गया। लेकिन देवताओं की ही तर्ज़ पर सरकारों ने छल करते हुए 'दलित विकास की बजटीय राशि' को दूसरे मदों में धड़ल्ले से खर्च कर रही हैं। मोदी सरकार उससे भी आगे बढ़कर अब तो दलितों के आरक्षण तक को समाप्त करने पर आमादा है। देश के संविधान और लोकतंत्र की जगह मनुवादी दर्शन-सिद्धांत थोपना चाह रही है।"
उन्होंने कहा कि इस मनुवादी दर्शन सिद्धांत के ख़िलाफ़ दलित एवं वामपंथ की व्यापक एकजुटता ही मौजूदा संकटों-चुनौतियों से निज़ात दिला सकती हैं। समय की मांग है कि संविधान के पक्ष में खड़े सभी लोग एक साथ आयें।
उन्होंने कहा कि इसके लिए पिछले दिनों हैदराबाद में देश के प्रमुख दलित संगठनों एवं वाम पार्टियों के प्रतिनिधियों का ऐतिहासिक “समिट” आयोजित किया गया। बिहार का यह सम्मलेन उसी प्रक्रिया का ही एक धारावाहिकता है।
दिल्ली से पहुंचे अखिल भारतीय खेतिहर मजदूर यूनियन के डॉ. विक्रम ने बताया कि दलित अधिकारों के लिए आगामी 4 दिसंबर को दिल्ली के जंतर मंतर पर महाजुटान किया जाएगा जिसमें एक करोड़ हस्ताक्षर के साथ देश भर के प्रतिनिधि पहुंचेंगे।
इस सम्मलेन का विषय प्रवेश करते हुए वरिष्ठ दलित सामाजिक कार्यकर्त्ता हरिकेश्वर राम ने वर्तमान समय में दलितों की सामाजिक दुर्दशापूर्ण स्थितियों और सरकारों की घोर उपेक्षा की चर्चा करते हुए कहा कि आजादी के 75 वर्षों बाद भी हर क्षेत्र में दलितों को हिस्सेदारी नहीं मिल सकी है।
खेग्रामस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार विधान सभा में भाकपा माले के उपनेता सत्यदेव राम ने कहा दलित समुदाय के लोगों से व्यापक एकजुटता का आह्वान करते हुए आगाह किया कि अब समय नहीं रह गया है कि हम वैचारिक भ्रमों का शिकार होकर “इधर-उधर” भटकते रहें।
भाकपा माले के युवा विधायक मनोज मंजिल ने कहा कि भाजपा सरकार देश की जनता और दलितों के अधिकारों पर “आपदा” बनकर पूरे देश का निजीकरण करने पर तुली हुई है। ऐसे में “निजी क्षेत्रों में आरक्षण” की मांगों के बजाय देश और सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण किये जाने के ख़िलाफ़ संघर्ष को केंद्रित करना होगा। मोदी सरकार में दलित अधिकार तो क्या देश का संविधान और आरक्षण भी नहीं बचने वाला है।
दलित एक्टिविस्ट श्याम भारती ने गत दिनों हैदराबाद में हुए “राष्ट्रीय दलित शिखर सम्मलेन” से पारित प्रस्ताव पढ़कर सुनाया।
पटना में आयोजित इस सम्मलेन को खेग्रामस के राष्ट्रीय महासचिव धीरेन्द्र झा, सीपीआई के विधायक अजय कुमार, देवेन्द्र रजक, दलित छात्र नेता मंटू कुमार व चंदन पासवान व दलित मुक्ति मंच के शंकर साह समेत कई प्रतिनिधि वक्ताओं ने संबोधित किया। जिसमें एक बात पर सब ने ही जोर दिया कि आने वाले चुनाव में यदि एकजुट होकर मोदी सरकार को देश की सत्ता से बाहर नहीं किया गया तो अधिकार और आरक्षण मिलना तो दूर, सबों को मनुवादी-शासन तंत्र का गुलाम बनकर रहना पड़ेगा।
जाने माने शिक्षाविद पूर्व उपकुलपति और दलित अधिकारों के लिए सतत सक्रिय रहने वाले प्रो. रमाशंकर आर्य ने सम्मलेन के अध्यक्ष मंडल संयोजक के रूप में संबोधित करते हुए सम्मलेन के संदेशों को व्यापक प्रसारित करने पर जोर दिया।
सम्मलेन का संचालन दलित एक्टिविस्ट ओम प्रकाश मांझी व भोला प्रसाद दिवाकर तथा धन्यवाद ज्ञापन भूतपूर्व अभियन्ता विश्वनाथ चौधरी ने किया।
जन संस्कृति मंच पटना के कलाकारों द्वारा जाने माने गीतकार शंकर शैलेन्द्र लिखित चर्चित जनगीत-“झूठे सपनों के छल से निकल चलती सड़कों पर आ, अपनों से न रह यूं दूर दूर आ क़दम से क़दम मिला”, की प्रस्तुति की गई।
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