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ग्राउंड रिपोर्ट: करोड़ों खर्च के बावजूद भी विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभ्यारण नहीं बन पा रहा पर्यटक स्थल?

वैश्विक स्तर पर देखें तो तकरीबन 4000 डॉल्फिन में से 1800 डॉल्फिन बिहार में हैं। इनमें से अधिकांशत: इसी अभ्यारण में हैं। हालांकि सरकार की तमाम योजनाएं डॉल्फिन के संरक्षण और पर्यटन बढ़ाने की तरफ नाकाम मालूम पड़ती हैं. 
 Vikramshila Ganga Dolphin Sanctuary
विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभ्यारण स्थित अधूरा पड़ा गंगा घाट निर्माण

भागलपुर में सुल्तानगंज से लेकर कहलगांव तक के करीब 60 किलोमीटर क्षेत्र को 'गैंगेटिक रिवर डाल्फिन संरक्षित क्षेत्र' घोषित किया गया है। सात अगस्त 1991 को केंद्र सरकार के द्वारा गांगेय डॉल्फिन, ऊदबिलाब, कछुआ सहित बहुत सी प्रवासी पक्षियों को दिखाने के लिए इसे एशिया का पहला अभ्यारण्य क्षेत्र बनाने की घोषणा किया गया था। 2020 के मई महीने में उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी द्वारा अभ्यारण्य क्षेत्र में काम शुरू किए जाने की घोषणा किए पर स्थिति जस की तस बनी हुई है। 

एशिया के एकमात्र डॉल्फिन अभ्यारण्य में भी नहीं सुरक्षित हैं डॉल्फिन

2022 के मार्च महीने में भी शिकारियों के द्वारा एक डॉल्फिन की मृत्यु हो गई थी। प्रहरी स्पेयरहेड दीपक कुमार के मुताबिक बिहार में साल में आठ से नौ डॉल्फिन की मौत का कारण मछुआरे के द्वारा बिछाया जाल बनता है। इसके बावजूद अभ्यारण्य क्षेत्र में शिकार पर रोक नहीं लग पा रही है।

गंगा संरक्षक योगेंद्र मल्लाह बताते है-"जाल हटाने के लिए कर्मचारियों और गंगा संरक्षक के द्वारा बहुत काम किया जाता है। लेकिन कई ग्रामीण इलाके में चोरी से जाल बिछा दिया जाता है। कई इलाके खासकर महादेवपुर घाट इलाके में जान से मारने की भी धमकी मिलती है। जब तक सरकारी तंत्र खुद से मजबूत नहीं होगा गंगा संरक्षक कुछ नहीं कर सकता है।"

गंगा नदी में उछलती डॉल्फिन,फोटो क्रेडिट - विक्रम निषाद 

डॉल्फिन विशेषज्ञ और पर्यावरणविद अरविन्द मिश्रा बताते हैं कि, "मछली के लिए डालने वाला प्रतिबंधित जालों का उपयोग धड़ल्‍ले से हो रहा है, जिसमें फंसकर डॉल्फिन की मौत हो रही है। मछली जाल के अलावा व्यवसायिक जलमार्ग क्रुज और मालवाहक विमान से भी डॉल्फिन के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न होने लगा है। डॉल्फिन अभ्यारण्य बनने के बाद कई बार संरक्षण को लेकर तत्काल एक्शन प्लान तो बने लेकिन कोई मैनेजमेंट प्लान अभी तक नहीं बन पाया है।" 

मिथ के कारण हो रहा है डॉल्फिन का शिकार 

बिहार सरकार के योजनाओं में कार्यरत पर्यावरणविद अरविंद मिश्रा कहते हैं कि, "मछली के जाल के अलावा अंधविश्वास भी डॉल्फिन के मौत का कारण है। जोड़ों के दर्द को कम करने और काम शक्ति को बढ़ाने के लिए बन रही दवा के लिए चोरी चुपके इसकी हत्या होती है। साथ ही भोजन की तलाश में डॉल्फिन गंगा की सहायक नदियों में चली जाती है। हां, पानी कम होने की स्थिति में वहां से पुनः गंगा की मुख्य धार में लौट आती है। कई बार कम पानी में फंस जाने के कारण नहीं लौट पाती हैं, उससे भी कई बार डॉल्फिन की मृत्यु हो जाती है।"

गंगा नदी में जाल फैलाते शिकारी,फोटो क्रेडिट - गंगा प्रहरी दीपक कुमार

बिहार में नहीं बन सकता हैंगिंग डॉल्फिन ऑब्जर्वेटरी

बिहार टूरिज्म के द्वारा लोगों को जागरूक करने के लिए और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भागलपुर अभयारण्य की एक अनोखी फोटो शेयर की है। विज्ञापन के पोस्टरों में डॉल्फिन को उछलता हुआ दिखाया गया है। गौरतलब है कि बिहार में पर्यटन विकास के लिए सरकार के द्वारा भागलपुर के सुल्तानगंज से अगुवानी घाट महासेतु पर डॉल्फिन ऑबर्वेटरी के निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया है। जिसका मुख्य वजह है कि पर्यटक सीढ़ियों से नीचे उतर कर गंगा नदी के करीब जाकर एक बड़े प्लेटफार्म से डॉल्फिन का खेल देख सकेंगे। 

डॉल्फिन पर रिसर्च कर रहे पीएचडी स्कॉलर राहुल तस्वीर पर टिप्पणी करते हैं कि "असली जिंदगी में गंगेय डॉल्फिन समुद्र के डॉल्फिन की तरह जंप नहीं कर सकती है। पर्यटन विभाग के पोस्टर में जिस डॉल्फिन को दिखाया जा रहा है वो समुद्री डॉल्फिन है। गंगेय डॉल्फिन स्तनधारी है और इसे सांस लेने के लिए पानी के ऊपर आना होता है। जो एक सेकेंड से भी कम समय के लिए पानी के ऊपर आती है और फिर अंदर चली जाती है।"

सरकारी तंत्र बेबस और खामोश 

वैश्विक स्तर पर देखें तो तकरीबन 4000 डॉल्फिन में से 1800 डॉल्फिन बिहार में हैं। इनमें से अधिकांशत: इसी अभ्यारण में। हालांकि सरकार की तमाम योजनाएं डॉल्फिन के संरक्षण की और पर्यटन की बेईमानी लग दिख रही है। 

प्रयावरणविद दीपक बताते हैं- "टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए बिहार सरकार ने काफी तामझाम में योजना बनाई थी। सुशील मोदी के उपमुख्यमंत्री होते हुए इसे सैलानियों के लिए प्रारंभ किया गया था। पर अब ना नियमित विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभ्यारण की गस्ती होती है ना सैलानी डॉल्फिन अभ्यारण का सैर कर सकते हैं। साथ ही प्रत्येक दिन हजारों ट्रैक्टरों से विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य के किनारों पर अवैध रूप से गंगा की मिट्टी को निकाल कर बेचा जा रहा है। सरकारी तंत्र बेबस और खामोश बैठा हुआ है।" 

हजारों ट्रैक्टरों से विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य के किनारों पर अवैध रूप से गंगा की मिट्टी को निकाल कर बेचा जा रहा है। फोटो क्रेडिट - गंगा प्रहरी दीपक कुमार

योजना धरातल पर उतरे तो बन सकता है प्रयटक स्थल

रिवर डॉल्फिन के एक्सपर्ट प्रोफेसर सुनील चौधरी बताते हैं कि, "नेपाल की तरह ही भारत को भी विक्रमशिला अभ्यारण क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर डॉल्फिन को पर्यटन से जोड़ना होगा। इसके अलावा बाढ़ या अन्य कारणों से अभ्यारण्य क्षेत्र को कितना नुकसान हो रहा है इसका सर्वे कर मूल्यांकन करने की जरूरत है। डॉल्फिन के अलावा गंगा सैर को बढ़ावा देने के लिए सरकार को इसे पर्यटक स्थल के रूप में बदलना पड़ेगा। इससे यहां के प्रवासी पक्षियों और डॉल्फिन के शिकार में भी कमी आएगी।"

प्रयावरणविद दीपक के मुताबिक सरकार चाहे तो यह इलाका इको टूरिज्म का केंद्र बन सकता है। डॉल्फिन के अलावा 90 तरह के जलीय जीव और पक्षियों की 265 प्रजातियां यहां आसानी से लोग देख सकेंगे।

सरकारी महकमों का क्या कहना है?

डीएफओ, भागलपुर एस सुधाकर बताते हैं- "अभ्यारण्य क्षेत्र का मैनेजमेंट प्लान बना है। जिसके तहत डॉल्फिन सहित अन्य प्रवासी पक्षियों के संरक्षण और सर्वे की दिशा में काम किया जा रहा है।"  वहीं पर्यावरण प्राणी सर्वेक्षण विभाग के संयुक्त निदेशक गोपाल शर्मा बताते हैं कि, "विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभ्यारण पर्यटकों के लिए सुलभ हो इसके लिए केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे प्रयासरत हैं। जल्द ही लोग डॉल्फिन को करीब से देख सकेंगे।"

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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