हाथरस मामले में सीबीआई की चार्जशीट योगी सरकार और प्रशासन पर कई सवाल उठाती है!
उत्तर प्रदेश के हाथरस में 19 वर्षीय दलित लड़की के साथ हुए गैंगरेप और हत्या मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई ने शुक्रवार, 18 दिसंबर को चार्जशीट दायर कर दी है। लड़की के साथ हुए अपराध के लिए सीबीआई के अधिकारियों ने चारों अभियुक्तों पर गैंगरेप और हत्या की धाराएं लगाई हैं। इसके अलावा आरोपियों के खिलाफ एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत भी आरोप लगाए हैं।
हालांकि इससे पहले यूपी पुलिस ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर दावा किया था कि पीड़िता के साथ गैंगरेप नहीं हुआ है। यूपी पुलिस के इस बयान के बाद कोर्ट ने यूपी पुलिस को फटकार भी लगाई थी।
क्या है सीबीआई के आरोप पत्र में?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सीबीआई ने कोर्ट में 22 सितंबर को दिए लड़की के मृत्युपूर्व बयान को चार्जशीट का आधार बनाया है। इस बयान में पीड़िता ने चारों आरोपियों पर रेप और शारीरिक हिंसा करने का आरोप लगाया था। इसके अलावा अलीगढ़ जेल में बंद चारो आरोपियों के कराए गए ब्रेन मैपिंग और पालिग्राफिक टेस्ट ने भी जांच में अहम भूमिका निभाई है।
बता दें कि सीबीआई इलाहाबाद हाईकोर्ट की निगरानी में मामले की जाँच कर रही थी और अधिकारियों ने पूरे मामले में अभियुक्त संदीप, लवकुश, रवि और रामू की भूमिका की जाँच की। सीबीआई की जाँच टीम ने जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों से भी बात की थी। ये वही अस्पताल है जहाँ मृतका का इलाज हुआ था।
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार अभियुक्तों के वकील ने बताया कि हाथरस की स्थानीय अदालत ने मामले का संज्ञान लिया है।
सीबीआई के अधिकारियों ने बताया कि चारों अभियुक्त फ़िलहाल न्यायिक हिरासत में हैं। चारों का गुजरात के गांधीनगर स्थित फ़ॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में अलग-अलग टेस्ट भी कराया गया था।
बता दें कि 19 साल की लड़की, जिसके साथ ये वारदात हुई वो दलित परिवार से थी जबकि चारों अभियुक्त तथाकथित ऊंची जाति से सम्बन्ध रखते हैं।
एक नज़र हाथरस मामले में अभी तक क्या-क्या हुआ?
* 14 सितंबर को 19 साल की एक दलित युवती के साथ सवर्ण जाति के चार युवकों के बर्बरतापूर्वक मारपीट करने और बलात्कार करने की खबर सामने आई। रीढ़ की हड्डी, गर्दन में गंभीर चोटें और जीभ काटने का भी आरोप लगा।
* बाद में पीड़िता के भाई की शिकायत पर पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ गैंगरेप और हत्या के प्रयास के अलावा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारक अधिनियम) के तहत मामला दर्ज किया गया। पुलिस पर देर से मामला दर्ज करने के आरोप लगे।
* 29 सितंबर को पीड़िता ने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। पीड़िता को मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध करवाने में देरी का भी आरोप है।
* 29 सितंबर देर रात (बुधवार) करीब 2.45 पर पीड़िता का शव उसके गांव ले जाकर आनन-फानन में अंतिम संस्कार कर दिया। जिसके बाद मामले ने तूल पकड़ा और विपक्ष ने सरकार पर महिला सुरक्षा और कानून व्यवस्था को लेकर हमला बोला, प्रदर्शन हुए।
* परिजनों ने पुलिस पर बिना सहमति के शव का अंतिम संस्कार करने का आरोप लगाया। प्रशासन पर नज़रबंद करने और डराने-धमकाने के भी आरोप लगाए गए। हालांकि, पुलिस ने इन आरोपों से इनकार किया।
* पीड़िता को न्याय दिलवाने के लिए नागरिक समाज और विपक्षी दलों ने 30 सितंबर को राष्ट्रीय प्रतिवाद दिवस (नेशनल प्रोटेस्ट डे) सितंबर मनाया। देश के कई इलाकों में जोरदार प्रदर्शन हुए।
* भारी विरोध के बीच 30 सितंबर को ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना की जांच के लिए 3 सदस्यीय एसआईटी टीम गठित की, मुकदमे को फास्ट ट्रैक में चलाने के निर्देश दिए।
* इसी दिन राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग ने योगी सरकार को नोटिस जारी करते हुए प्रदेश के डीजीपी से परिवार को सुरक्षा देने के लिए कहा। महिला आयोग ने भी उत्तर प्रदेश पुलिस से जल्दबाजी में अंतिम संस्कार किए जाने पर जवाब मांगा।
*1 अक्टूबर को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पीड़िता के परिजनों से मिलने हाथरस के लिए निकले। लेकिन यमुना एक्सप्रेस वे पर पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया था। इस दौरान पुलिस पर धक्का-मुक्की के भी आरोप लगे। जिसके बाद हाथरस प्रशासन ने गांव में धारा 144 लागू कर दी। मीडिया और नेताओं के गांव में जाने पर पाबंदी लगा दी गई।
* इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और अपर पुलिस महानिदेशक को समन जारी कर सभी से 12 अक्टूबर को अदालत में पेश होने और मामले में स्पष्टीकरण देने को कहा।
* 2 अक्टूबर गांधी जयंती के दिन दिल्ली के जंतर-मंतर से लेकर बीएचयू के लंका गेट तक जोरदार प्रदर्शन हुआ। तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन और उनके सहयोगियों को यूपी पुलिस ने पीड़िता के गाँव नहीं जाने दिया। इस दौरान हाथरस की सीमा पर भी प्रदर्शन देखने को मिला। जिसके बाद देर शाम को प्रशासनिक कार्रवाई की खबर सामने आई।
* 3 अक्टूबर को प्रशासन ने मीडिया की एंट्री पर लगी पाबंदी हटा दी। इससे पहले खुद बीजेपी नेता उमा भारती ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मीडिया को गांव में जाने देने की अपील की थी।
* इस मामले पर नेशनल अलायंस ऑफ़ पीपल्स मूवमेंट यानी एनएपीएम 20 अक्टूबर को एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में फैक्ट फाइंडिंग टीम ने कहा था कि इस मामले में राज्य सरकार के उत्पीड़न, पुलिस और अस्पताल अधिकारियों की लापरवाही देखी है। यह मामला क्रूर तरीके से पितृसत्तात्मक व्यवस्था का उदाहरण है जिसमें जाति व्यवस्था कैसे महिलाओं को दबाती है ये दिखाई पड़ता है।
* इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। दो महीने से सीबीआई इस मामले की जांच में जुटी थी।
हाथरस मामले में दिखा प्रशासन का दोहरा रवैया!
अपराधियों की बर्बरता के अलावा उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन का दोहरा रवैया भी हाथरस गैंगरेप मामले में देखने को मिला। एक ओर पुलिस के द्वारा पीड़ित-प्रताड़ित के पक्ष में न्याय की गुहार लगाते तमाम नागरिक समाज, छात्र-महिलावादी संगठन, राजनेताओं पर पुलिस के लाठी भांजने के वीडियो वायरल हुए, तो वहीं दूसरी ओर आरोपियों के बचाव में स्वर्ण परिषद जैसे संगठन जो लगातार सक्रिय थे, उन पर किसी कार्रवाई की कोई खबर सामने नहीं आई। इतना ही नहीं कुछ गाँवों में अभियुक्तों के पक्ष में महापंचायत बुलाई गई, लड़की के गैंगरेप होने को लेकर भी सवाल उठाए गए।
हाथरस मामले में मृतक लड़की की मेडिकल रिपोर्ट पर भी बवाल मचा। सत्तापक्ष के कुछ नेता और पुलिस के बड़े अधिकारी बिना जांच पूरी हुए ही दुष्कर्म की बात को खारिज़ करते नज़र आए। बीजेपी आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने तो पीड़िता की पहचान तक उज़ागर कर दी।।
जिलाधिकारी की भूमिका पर सवाल!
इस पूरे मामले में जिलाधिकारी की भूमिका पर भी कई सवाल खड़े हुए। कई मीडिया रिपोर्ट्स और वीडियो में डीएम को पीड़ित परिवार को धमकाते हुए भी सुना गया। पीड़ित पक्ष ने डीएम पर कई आरोप लगाए लेकिन बावजूद इसके डीएम पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
युवती के परिवार ने आरोप लगाया था कि स्थानीय पुलिस ने आनन-फानन में अंतिम संस्कार करने के लिए उन पर दबाव डाला था। हालांकि, स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने कहा था कि अंत्येष्टि परिवार की इच्छा के अनुसार की गई थी।
इस बीच यूपी सरकार ने यह भी दावा किया था कि राज्य सरकार को बदनाम करने के लिए मामले का इस्तेमाल किया जा रहा था और यह एक ‘अंतरराष्ट्रीय साजिश’ थी। यूपी पुलिस ने रिपोर्ट करने के लिए हाथरस जा रहे केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को इस मामले के तहत आरोपी बनाया है।
इस मामले में यूपी सरकार ने पीड़िता के परिजनों का नार्को टेस्ट कराने की बात कही थी जिसे लेकर भी काफ़ी विवाद हुआ था क्योंकि आम तौर पर नार्को टेस्ट अभियुक्त पक्ष का होता है।
विपक्ष ने कहा, बिना मांगे बीजेपी से कुछ नहीं मिलता, सत्यमेव जयते!
सीबीआई की चार्जशीट के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने यूपी की योगी सरकार पर निशाना साधा है। सीबीआई द्वारा एससी-एसटी कोर्ट में चार्जशीट दाखिल किए जाने को कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने सत्य की जीत बताया है।
एक तरफ सरकार सरंक्षित अन्याय था।
दूसरी तरफ परिवार की न्याय की आस थी।पीड़िता का शव जबरदस्ती जला दिया गया। पीड़िता को बदनाम करने की कोशिशें हुईं। परिवार को धमकाया गया।
लेकिन अंततः सत्य की जीत हुई।
सत्यमेव जयते#HathrasCase pic.twitter.com/X4qD0BVjjs
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) December 18, 2020
प्रियंका गांधी ने ट्वीट किया “एक तरफ सरकार सरंक्षित अन्याय था। दूसरी तरफ परिवार की न्याय की आस थी। पीड़िता का शव जबरदस्ती जला दिया गया। पीड़िता को बदनाम करने की कोशिशें हुईं। परिवार को धमकाया गया। लेकिन अंततः सत्य की जीत हुई। सत्यमेव जयते।”
प्रियंका गांधी के अलावा समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी राज्य की योगी सरकार को हाथरस मामले में घेरा और कहा कि बीजेपी सरकार से बिना लड़े कुछ भी नहीं मिलता न इंसाफ, न हक।
‘हाथरस कांड’ में उप्र की भाजपा सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी जनता, विपक्ष व सच्चे मीडिया के दबाव से सीबीआई जांच बैठानी ही पड़ी. अब पीड़िता के अंतिम बयान के आधार पर चारों अभियुक्तों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल हुई है.
भाजपा सरकार से बिना लड़े कुछ भी नहीं मिलता न इंसाफ़, न हक़.
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) December 18, 2020
अखिलेश यादव ने ट्वीट में कहा, “हाथरस कांड’ में उप्र की भाजपा सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी जनता, विपक्ष व सच्चे मीडिया के दबाव से सीबीआई जांच बैठानी ही पड़ी। अब पीड़िता के अंतिम बयान के आधार पर चारों अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई है। भाजपा सरकार से बिना लड़े कुछ भी नहीं मिलता न इंसाफ, न हक।”
पीड़ित को प्रताड़ित करने की कोशिश
गौरतलब है कि हाथरस मामले को लेकर सड़क से सोशल मीडिया तक भारी जन आक्रोश देखने को मिला था। इसे 2012 दिल्ली निर्भया कांड से जोड़ कर देखा जाने लगा था। हालांकि यूपी सरकार और प्रशासन मामले को दूसरा रंग देने की कोशिश करती नज़र आ रही थी। पीड़िता के लिए इंसाफ मांगने वालों को डर था कि कहीं पूरा मामला ही न पलट दिया जाए, पीड़ित को ही दोषी और प्रताड़ित करने वाला न घोषित कर दिया जाए। ऐसे में अब जब सीबीआई चार्जशीट में गैंगरेप और हत्या की बात सामने आ रही है तो प्रशासन और सरकार के रवैए पर सवाल उठना लाज़मी है।
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