Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

...फ़िलिस्तीनी से मैं कैसे कहूं अपनी दिवाली है

आज देश और दुनिया का जो माहौल है उसमें यही कहा जा सकता है कि “हमारे दिन में भी करके अंधेरा रात का देखो/ ये किसने रात फिर अपनी सितारों से सजा ली है”। पढ़िए दिवाली के मौके पर कवि-पत्रकार मुकुल सरल की नई ग़ज़ल
Palestine israel
फ़ाइल फ़ोटो। प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। इज़राइल की एयर स्ट्राइक के बाद ग़ज़ा का दृश्य। साभार: गूगल   

 

ग़ज़ल: मुबारक हो दिवाली है!

 

कहीं पर भूख का मंज़र, किसी की जेब खाली है

मगर कुछ दोस्त कहते हैं कि फिर आई दिवाली है

 

ये कैसी एक दुनिया है, कई दुनिया यहां बसतीं

किसी की रात रौशन है, किसी की रात काली है

 

लहू से लाल है धरती, सरों पे बम बरसते हैं

फ़िलिस्तीनी से मैं कैसे कहूं अपनी दिवाली है

 

हमारे दिन में भी करके अंधेरा रात का देखो

ये किसने रात फिर अपनी सितारों से सजा ली है

 

कहीं मातम ही मातम है, मोहर्रम ही मोहर्रम है

किसी ने ईद और होली—दिवाली संग मना ली है

 

कहां पर है ख़ुदा, ईश्वर, वो रब, जाकर कहो उससे

बड़ी मुश्किल से हमने यार ये दुनिया संभाली है

 

हमें मालूम है मुश्किल से मिलती हैं यहां ख़ुशियां

चलो हो जाएं हम भी ख़ुश, बहाना है दिवाली है

 

न ग़म की बात करता हूं, सितम का है ये एहतिजाज*

तुम्हे लगता है फिर भी कि ‘सरल’ शायर बवाली है

 

*एहतिजाज- विरोध, प्रतिवाद, इंकार

 

- मुकुल सरल

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest