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ग्राउंड रिपोर्टः फ्रेट विलेज के लिए बौद्ध विहार पर चलेगा बुलडोज़र, लेकिन दुर्गा मंदिर अधिग्रहण से बाहर!

फ्रेट विलेज के लिए ज़मीन अधिग्रहण की राजाज्ञा जारी होने से पूर्वांचल के बौद्ध अनुयाइयों के अलावा मछुआरों और किसानों के रातों की नींद उड़ गई है और वो ज़बर्दस्त गुस्से में हैं।
बौद्ध विहार को बचाने के लिए मार्च निकालते लोग।
बौद्ध विहार को बचाने के लिए मार्च निकालते लोग

यूपी के चंदौली जिले में गंगा के किनारे बसे ताहिरपुर स्थित बुद्ध विहार में इन दिनों सियापा छाया है। यहां बुद्ध का खुला मंदिरबोधिवृक्ष और चुनार के बलुआ पत्थरों से निर्मित 42 फीट ऊंचे अशोक स्तंभ को योगी सरकार ने जमींदोज कराने की कवायद शुरू कर दी है। तथागत विहार चैरिटेबल ट्रस्ट ने सामाजिकशैक्षणिक और सांस्कृतिक उत्थान के लिए कई साल पहले बुद्ध विहार की स्थापना की थी। सरकार ने अब यहां फ्रेड विलेज बनाने की योजना बनाई है। इसके लिए राजाज्ञा जारी कर दी गई है।

यह बौद्ध विहार गंगा के किनारे दो सौ मीटर के दायरे में ग्रीन बेल्ट वाले गांवों में शामिल है। कानूनी तौर पर इसकी स्थिति किसी भी दशा में नहीं बदली जा सकती है। डबल इंजन की सरकार सिर्फ बौद्ध विहार ही नहींताहिरपुर के साथ मिल्कीपुर (चंदौली) और उससे सटे रसूलगंज (मिर्जापुर) के 415 परिवारों की खेती की जमीनें भी छीन रही है। इन तीनों गांवों में करीब तीन हजार लोग रहते हैं। यहां सर्वाधिक आबादी गरीब मछुआरों और मुसलमानों की है।

बौद्ध विहार में मंदिर और अशोक की लाट

बुद्ध विहार पर मंडरा रहे खतरे के संकट के चलते तथागत विहार चैरिटेबल ट्रस्ट से जुड़े विद्याधर के माथे पर चिंता की गहरी लकीरें उभर आई हैं। विद्याधर बनारस के जाने-माने साहित्यकार और लेखक हैं। बौद्ध विहार में स्थित गंगा दर्शिका के चबूतरे पर वह चिंतन और मनन की मुद्रा में बैठे मिले। कड़ाके की ठंड के बावजदू इनके चेहरे पर पसीने की बूंदें चौंधिया रही थीं। इनके हाथ में कागज का एक टुकड़ा थाजिस पर लिखे हुए थे कई स्लोगनजिन्हें वो वौद्ध विहार की दीवारों पर लिखवाने का मसौदा बनाने में जुटे थे। पेशे से शिक्षक रहे विद्याधर शायद इन स्लोगनों को ही बौद्ध विहार को बचाने का आखिरी अस्त्र मान रहे हैं, जिनका मजमून कुछ यूं है-

* हमने दुनिया को युद्धनहीं बुद्ध दिए।

-संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएन) में पीएम नरेंद्र मोदी का संबोधन (27 सितंबर 2019)

* बुद्ध सामूहिक मानवता के अवतरण हैं। उनके विचार भी हैं और संस्कार भी।

-लुंबिनी की सभा में पीएम नरेंद्र मोदी का उद्बोधन (16 मई 2022)

* बुद्ध ने ज्ञान की अनुभूति करवाई। उन्होंने सुख सुविधाओं को त्याग कर तप किया।

-लुंबिनी की सभा में पीएम नरेंद्र मोदी का वक्तव्य (16 मई 2022)

* भगवान बुद्ध के विचार हमारे ग्रह को और अधिक शांतिपूर्ण बना सकते हैं।

-बुद्ध पूर्णिमा पर पीएम मोदी का ट्वीट (16 मई 2022)

* बौद्ध स्थलों को सहेज रही उत्तर प्रदेश सरकार।

-म्यांमार के प्रसिद्ध नगर यंगून में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (07 अगस्त 2017)

* बुद्ध ने दुनिया को करुणा मैत्री एवं शांति का संदेश दिया। मोदी और योगी बुद्ध के संदेशों को आगे बढ़ा रहे हैं

-डॉ. निर्मल (उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष)

बौद्ध विहार परिसर में अशोक की लाट

साहित्यकार विद्याधर ने ‘न्यूज़क्लिक’ से कहा, "जिस तरह ताहिरपुर के दुर्गा मंदिर को अधिग्रहण से मुक्त किया गया हैउसी तरह बुद्ध विहार को भी ‘बुलडोजर’ के दायरे से मुक्त रखा जाए। यह सवाल सिर्फ आस्था का नहींदेशभक्ति का भी है। सम्राट अशोक की लाट के नीचे हर रोज बौद्ध अनुयायी योग साधना करते हैं और सामाजिक सद्भाव कायम करने के लिए राष्ट्रीय एकता जिंदाबाद के नारे भी लगाते हैं। फ्रेट विलेज के नाम पर इस बौद्ध विहार को नेस्तनाबूत किया तो एक महान परंपरा टूटेगी और आस्था भी खंडित होगी। सात बीघे में फैले इस परिसर में एक हजार के अधिक हरे-भरे पेड़ काटे जाएंगे तो फ्रेट विलेज में लोग चिड़ियों की चहचहाट सुनना ही भूल जाएंगे।"

बौद्ध विहार परिसर में रखी बुद्ध की मूर्तियां

"पूर्वांचल के सैकड़ों खेतिहर किसानों और बौद्ध अनुयायियों ने चंदा जुटाकर 05 सितंबर 2004 को इस जमीन का बैनामा लिया था। निर्माण के समय ही सारनाथ के मूलगंध कुटी विहार परिसर से बोधि वृक्ष का क्लोन लाकर यहां लगाया गयाजो अब एक बड़ा पेड़ बन गया है। बलुआ पत्थरों से बने अशोक स्तंभ को लगाने पर 10 लाख रुपये से अधिक खर्च किए गए हैं। इससे पहले भव्य बौद्ध मंदिर और मूर्तियों पर खासा धन खर्च किया गया। बौद्ध विहार का वजूद मिटाया गया तो पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के बार्डर पर बसे इस गांव से एक इतिहास की मौत हो जाएगी। वैसे भी सिंचाई विभाग का लिफ्ट कैनाल इस परिसर को अलग करता हैजिसे अधिग्रहित करने का कोई औचित्य नहीं बनाता है।"

बौद्ध विहार में खेलते बच्चे।

कमज़ोर हो जाएगी बीजेपी!

नौकरशाही ने फ्रेट विलेज के लिए जिन स्थानों की नपाई कराई है उसमें मुसलमानों की आबादी वाले बाहरी हिस्से को अधिग्रहण के दायरे में रखा हैजबकि ताहिरपुर और वाजिदपुर के एक बड़े इलाके को सिर्फ इसलिए छोड़ दिया गया हैक्योंकि दोनों गांवों के बार्डर पर दुर्गा मंदिर है। इस मंदिर से इलाकाई हिन्दुओं की आस्था जुड़ी है।

दुर्गा मंदिर को अधिग्रहण से रखा गया है बाहर

बौद्ध विहार परिसर की दीवारों और अलावा कमरों की सफाई और रंग-रोगन कराने में जुटे थे वीरेंद्र मौर्य कहते हैं, "हमारा सवाल सिर्फ इतना है कि पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ यदि सचमुच गौतम बुद्ध के पंचशील सिद्धांतों पर यकीन रखते हैं तो आस्था के इस केंद्र को तहस-नहस करने से रोकें। कथनी और करनी में फर्क दिखेगा तो डबल इंजन की सरकार पर हजारों सवाल खड़े होंगे। वैसे भी बौद्ध अनुयायी किसी से लड़ना नहीं जानते। गौतम बुद्ध ने साफ-साफ कहा था कि जीवन में हजारों लड़ाइयां जीतने से अच्छा है कि तुम खुद पर विजय हासिल कर लो। इसे तुमसे कोई नहीं छीन सकता। क्रोध में हजारों शब्द बोलने से अच्छामौन वह एक शब्द है जो जीवन में शांति लाता है।"

बौद्ध धर्म में गहरी आस्था रखने वाले वीरेंद्र यह भी कहते हैं, "गंगा प्रदूषण मामले में हाईकोर्ट ने 22 अप्रैल 2011 को इस नदी से 500 मीटर के दायरे में स्थायी निर्माण पर रोक लगा रखी है। पलूशन बनाम स्टेट ऑफ यूपी एवं अदर्स की जनहित याचिका के तहत माननीय उच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि गंगा तट के 200 मीटर दायरे में राजस्व और सिंचाई विभाग के अभिलेखों में दर्ज तट के अनुसार कोई भी निर्माण कार्य प्रतिबंधित होगा। इस मामले में उत्तर प्रदेश के सभी प्राधिकरणों को हाईकोर्ट के आदेशों का पालन कराना बाध्यकारी होगा। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि सरकार किस कानून के तहत गंगा तट पर फ्रेट विलेज के लिए जमीन अधिग्रहीत करने की योजना बना रही हैहमें लगता है कि फ्रेट विलेज का मकसद कारपोरेट घरानों को उपकृत करना है। उन्हें मुनाफा कमवाने के लिए सरकार खुद कायदे-कानून की धज्जियां उड़ा रही है। फ्रेट विलेज की योजना चाहे जिस मकसद से गढ़ी गई हैउसे मानने के लिए न किसान तैयार हैंन मछुआरे और न बुनकर।"

तथागत विहार चौरिटेबल ट्रस्ट से जुड़े विनय मौर्य तल्ख लहजे में कहते हैं, "बौद्ध विहार की स्थापना के लिए जिन लोगों ने आर्थिक मदद दी है उनमें ज्यादातर मौर्यकुशवाहाकोइरीपटेल और दलित समुदाय के लोग शामिल हैं। इस विहार पर बुलडोजर चलाए जाने पर आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के करीब 20 फीसदी वोट खिसक जाएंगे। दुर्गा मंदिर को बचाने के लिए भेदभाव की तोहमत योगी सरकार के माथे पर मढ़ी जाएगी सो अलग। प्रशासन की कोशिश यह होनी चाहिए कि वह दुर्गा मंदिर की तरह बौद्ध विहार को छोड़ देअन्यथा आस्था के इस केंद्र से जुड़े चंदौलीबनारसगाजीपुरजौनपुरमिर्जापुरसोनभद्रभदोही समेत दर्जन भर जिलों के लाखों लोग भाजपा सरकार पर उंगली उठाने लग जाएंगे।"

चंदौली की डीएम को ज्ञापन देते किसान।

मछुआरों की उड़ी नींद

फ्रेट विलेज के लिए जमीन अधिग्रहण की राजाज्ञा जारी होने से पूर्वांचल के बौद्ध अनुयाइयों के अलावा मछुआरों और किसानों के रातों की नींद उड़ गई है और वो जबर्दस्त गुस्से में हैं। यह वो तबका है जो दशकों से मोदी सरकार को वोट देता आ रहा है और अब वो अपनी कीमती जमीनों के छिन जाने की आशंका से परेशान हैं।

सोना देवी का दर्द कोई नहीं सुन रहा।

ताहिरपुर गांव में हमें मिलीं 80 वर्षीया सोना देवी। हाथ में चांदी के मोटे-मोटे कड़े और लाठी लेकर अपने घर के बाहर बैठीं सोना देवी उदास दिखीं। उनके चेहरे पर उगी मोटी-मोटी झुर्रियां इनके दर्द की गवाही दे रही थीं। भूमि अधिग्रहण के सवाल पर वह फफक पड़ी और अपने गुस्से का इजहार करते हुए कहा, "जब हमारी जमीनें छिन जाएंगी तो अपने बाल-बच्चों को लेकर हम कहां जाएंगेभूमि अधिग्रहण से पहले हमारी रजामंदी नहीं ली गई। सिर्फ फरमान सुना दिया गया कि हमें अपनी जमीनें खाली करनी होगी। हम गंगा से दूर हो जाएंगे तो हमारे बला-बच्चे मछली कैसे पकड़ेंगे और कैसे करेंगे परिवार का भरण-पोषण? "

ताहिरपुर निवासी सोना देवी के परिवार के 48 वर्षीय शीतल प्रसाद साहनी सिर्फ 15 बिस्वा जमीन और गंगा की मछलियों के भरोसे 12 लोगों के परिवार को पाल रहे हैं। इनके भाई बृजेश साहनी कहते हैं, "हमारे खेतों में धानगेहूं उगता हैतभी दो वक्त का चूल्हा जल पाता है। हमारी जमीनें फ्रेट विलेज की भेंट चढ़ गईं तो पेट पालना मुहाल हो जाएगा। ताहिरपुर की समूची मल्लाह बस्ती उजड़ जाएगी। इस बस्ती के लोगों के पास करीब 70 नौकाएं हैंजिनके जरिये मछुआरा समाज के लोग किसी तरह से जिंदा हैं। इस गांव में हमारी कई पीढ़ियां खप गईं। समझ में नहीं आ रहा है कि सरकार हमें उजाड़ने पर क्यों उतारू है?  फ्रेट विलेज का दायरा अभी तीन गावों तक सीमित हैलेकिन सुना जा रहा है कि सरकार इसे छोटा मिर्जापुरनरायनपुर से लगायत चुनार तक ले जाना चाहती है। ऐसे में तो खेतीमत्स्य पालनपशुपालन ही नहींबुनकरी का धंधा भी चौपट हो जाएगा।
 

पूर्व प्रधान भाईराम

मिल्कीपुर के पूर्व प्रधान भाईराम साहनी से मुलाकात हुई तो वो भी सरकार के प्रति काफी गुस्से में दिखे। उन्होंने ‘न्यूज़क्लिक’ से कहा, "अपनी जमीनों के बचाने के लिए तीनों गांवों के मल्लाह और बुनकर कई बार धरनाप्रदर्शन व आंदोलन कर चुके हैं। बंदरगाह का दंश हमने झेला है और अब प्रेट विलेज के नाम पर हमें उजाड़ने की तैयारी चल रही है। आप खबरें लिखकर चले जाएंगेलेकिन उससे कुछ भी नहीं होगा। होगा वही, जो नौकरशाही चाहेगी। अफसरों और नेताओं के पास दिल नहीं है। उन्हें किसानोंबुनकरों और मल्लाहों के पेट की नहींअपनी नौकरी की चिंता है। वो हमें बरबाद करके चले जाएंगे। अच्छा यह होगा कि वो हमें यहीं जमीन में गाड़ दें और हमारी जमीनें ले जाएं।"

मतलबी नहीं होते गंगा पुत्र

भाईराम यहीं नहीं रुकते। वह कहते हैं, "हम मां गंगा के गोद में पले बढ़े हैं। साल 2014 में नरेंद्र मोदी बनारस से चुनाव लड़ने आए तो उन्होंने अपने पहले भाषण में कहा कि मैं गंगा पुत्र हूं। आया नहीं हूंबुलाया गया हूं। उस समय लगा कि मछुआरों और नाविकों का कोई हमदर्द आया है। हमने उन्हें बंपर वोटों से विजय दिलाई और अब वही हमारी जमीनें छीनने मे जुट गए हैं। हम तो गंगा की गोद में पले-बढ़े हैं। मोदी की तरह गंगा के पुत्र स्वार्थी और मतलबी नहीं होते। गंगा हमारी मां है और मां का व्यापार नहीं किया जा सकता। हमें कोई यह तो बताए कि जब हमारी जमीनें फ्रेट विलेज में चली जाएंगी तब हमें क्या मिलेगा?  बनारस जिला प्रशासन ने राल्हूपुर बंदरगाह की जमीन के एवज में जो मुआवजा दिया हैचंदौली प्रशासन उसका एक चौथाई भी नहीं दे रहा है। दोनों जमीनें अगल-बगल हैं और दोनों का परगना राल्हूपुर ही है। बस जिले का नाम भर बदला है। बंदरगाह की जमीन बंजर थी और वह अनुपयोगी पड़ी थी। सरकार हमारी खेती की जमीनें कौड़ियों के भाव क्यों छीन रही है? "

"गंगा में माल की ढुलाई करने की भारत सरकार की वाटरवेज योजना फ्लाप हो चुकी है। ऐसे में फ्रेट विलेज का औचित्य समझ में नहीं आ रहा है। कारपोरेट घरानों के लिए गरीबों को उजाड़ा जाना ठीक नहीं है। हमें जो मुआवजा दिया जा रहा है उस कीमत से हम 20 से 25 किमी दूर मुश्किल से जमीन खरीद पाएंगे। 415 परिवारों की जमीन का अधिग्रहण करने और सैकड़ों परिवारों को उजाड़ने की योजना बनाई गई है। कुछ भूमाफिया ने सरकार को 10 हजार वर्ग मीटर वह जमीन बेच दी हैजिस पर नाला है। सिर्फ हवा में रजिस्ट्री कर दी गई और मुआवजा हड़प लिया गया। ग्रामीणों के बीच झूठ परोसा जा रहा है और भ्रम पैदा किया जा रहा है। फ्रेट विलेज की चौहद्दी स्पष्ट रूप से तय नहीं की जा रही है। अचरज की बात यह है कि एक तरफ भूमि अधिहग्रहण अभियान चलाया जा रहा हैदूसरी ओर चंदौली प्रशासन के नियामताबाद प्रखंड के जरिये मिल्कीपुर और ताहिरपुर के नाम पर धड़ल्ले से सरकारी धन भी खर्च कर रहा है। जब विकास का पैसा आना बंद ही नहीं हुआ तो भूमि अधिग्रहण की राजाज्ञा का मतलब क्या है? "

बंदरगाह तक जाने के लिए सड़क।

पूर्वांचल के आजमगढ़ में मंदुरी एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के लिए बड़े पैमाने पर किसानों की जमीनों के अधिग्रहण के सदमे से अब तक दस किसानों की मौतें हो चुकी हैं। सरकार की निगाहें अब ताहिरपुरमिल्कीपुर और रसूलगंज के सीमांत किसानों की जमीनों पर टिकी है। किसानोंमछुआरों और बुनकरों का आरोप है अधिकारी आए दिन तीनों गावों में पुलिस के साथ धमकते हैं और उन्हें जमीनें खाली करने के लिए धमकाते हैं। ताहिरपुर के किसान जितेंद्र कुमार गौतम कहते हैं, "कुछ महीने पहले भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) के अफसर पुलिस फोर्स के साथ पत्थर का पिलर लेकर हमारे गांव में आए और मल्लाहों की जमीन जबरिया कब्जाने लगे। किसानों को न कोई मुआवजा दिया गया और न ही पुनर्वास की व्यवस्था की गई। अफसरों की दबंगई का किसानों ने कड़ा विरोध किया तो वो लौट गए। लेकिन जाते-जाते यह धमकी जरूर दे गए कि अगली दफा बुलडोजर लेकर आएंगे। तब जमीन भी लेंगे और घर भी ढहा देंगे। सर्दी के सीजन में हमें खदेड़ा गया तो हम कहां ठांव खोजेंगेहमें आशंका है कि हमारी जमीनें पहले बंदरगाह के विस्तारीकरण के नाम ली जाएंगी और बाद में उसे उद्योगपतियों के हवाले कर दिया जाएगा?"

मिल्कीपुर व ताहिरपुर के ग्राम प्रधान कन्हैया लाल राव किसानों के साथ खड़े हैं। वह कहते हैं, "बंदरगाह के नाम पर दलित किसानों पर जमीन छोड़ने के लिए लगातार दबाव बनाया जा रहा है। हमारे पूर्वजों ने घर और जमीन का जो अभिलेख हमें दिया थाउसे उन्हें दिखाया जा रहा है और अनुरोध भी किया जा रहा है कि अगर खेती छोड़ दी तो कंगाल हो जाएंगे। हमारी सुनवाई किए बैगर हमारी जमीनों पर बार-बार खंभे गाड़कर कब्जा करने की कोशिशें की जा रही हैं। विरोध करने पर बुलडोजर से घर ढहाने की धमकी दी जा रही है। कुछ किसानों के पास हुकुमनामा हैजिसे प्रशासन मानने के लिए तैयार नहीं है। उस जमीन को अब बंजर बताया जा रहा है। मिल्कीपुर और ताहिरपुर में इस समस्या का सामना करने वाले अधिकतर परिवार दलित और मुसलमान हैंजो खेतीमत्स्यपालनपशुपालन के अलावा दिहाड़ी मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालते हैं।"

योजना से प्रभावित किसान महेंद्र कुमारइकबाल अहमदअशोक कुमारआनंद कुमार कहते हैं, "हम लोग अपने पूर्वजों के समय से इसी जमीन पर खेती-बाड़ी करते आ रहे हैं। बहुत से जवान, अब बूढ़े हो गए हैं। दशकों बाद अब बताया जा रहा है कि उनकी जमीन बंजर हैजिस पर हम लोगों ने अतिक्रमण कर रखा है। जमीन ही हमारी आजीविका का मुख्य साधन है और सबका परिवार इस पर निर्भर है। हमें अगर बेदखल कर दिया जाएगातो हम कहां जाएंगे और क्या करेंगे? "

उदास बैठे मो.इसराइल

मिल्कीपुरताहिरपुर और रसूलगंज गांव एक-दूसरे से जुड़े हैं। इन गांवों के तिराहे पर मीट की दुकान खोलकर उदास बैठे मोहम्मद इसराइल ने हमें तस्वीरों उतारते देखा तो उनकी आंखों में चमक उभर आई। बोले, "हुजूरजब से हमें उजाड़ने का फरमान जारी हुआ है तब से हमारी नींद उड़ गई है। बंदरगाह का हश्र देख लीजिए। वहां कोई काम नहीं होता। सिर्फ गाय-भैसें और गधे जुगाली करते हैं। पिछले चार-पांच सालों में न कोई जलपोत चला और न ही माल की ढुलाई हो सकी। ऐसे में फ्रेट विलेज के बहाने हमें क्यों उजड़ा जा रहा है? "

क्या है फ्रेट विलेज योजना?

भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) हल्दिया-वाराणसी के बीच गंगा में जलयान से माल की ढुलाई के लिए दशकों से कोशिश कर रही है। यहां से माल की ढुलाई भले ही नहीं हो पा रही हैलेकिन इसे आधुनिक सुविधाओं से लैस करने के लिए पानी की तरह पैसे जरूर बहाए जा रहे हैं। शुरुआत में इस परियोजना के लिए 70 एकड़ जमीन की जरूरत बताई गई थीलेकिन अब इसका दायरा बढ़ता जा रहा है। दूसरे चरण में ताहिरपुर व मिल्कीपुर की करीब 121 बीघा (पक्का) जमीन का अधिग्रहण किया जाना है। आईडब्ल्यूएआई मिल्कीपुर में करीब पौने तीन हेक्टेयर यानी 6.79 एकड़ जमीन ले चुका है और बाकी भूमि उसे खरीदनी है। सिंचाई विभाग की डेढ़ एकड़ जमीन भी इस महकमे के नाम दर्ज हो चुकी है। इसी तरह ताहिरपुर में 40.77 एकड़ के मुकाबले 2.47 एकड़ खरीदी जा चुकी है। इतनी जमीन सरकारी है जो बंजर के रूप में दर्ज है।

बंदरगाह वाले इलाके का हाल।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिकरामनगर के राल्हूपुर में बंदरगाह के विस्तारीकरण योजना के तहत सौ एकड़ में एशिया का पहला फ्रेट विलेज स्थापित किया जाएगा। इस योजना पर करीब 3055 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण से जुड़े प्रवीण कुमार पांडेय दावा करते हैं कि यूरोपीय देशों में नदियों के किनारे फ्रेट विलेज बनाए गए हैं। उसी तरह यहां भी लाजिस्टिक पार्क और बड़े-बड़े वेयर हाउस होंगे। कार्गो, पार्किंगइलेक्ट्रिक सिटी स्टेशनपावर हाउसरेलवे ट्रैकटीनशेडटर्मिनल आदि का निर्माण कराया जाएगा। बंदरगाह के विस्तारीकरण योजना की यह अगली कड़ी है। यह वही बंदरगाह है जिसे पीएम नरेंद्र मोदी ने 12 नवंबर 2018 को रामनगर के समीपवर्ती गांव राल्हूपुर में उद्घाटन किया था।

बौद्ध विहार को अधिग्रहण से बाहर रखने के लिए प्रदर्शन करते लोग।

योजना का कड़ा विरोध

आईडब्ल्यूएआई की जल परिवहन योजना के साथ ही फ्रेट विलेज को हर कोई फर्जी करार दे रहा है। तथागत विहार चैरिटेबुल ट्रस्ट (पंजीकरण संख्या-997528) के बैनरतले बौद्ध अनुयाइयों और सैकड़ों किसानों ने 13 दिसंबर 2022 को मार्च निकाला और चंदौली की कलेक्टर ईशा दुहन को मांग-पत्र सौंपा। पत्र में इस बात का जिक्र किया गया है गंगा के पावन तट पर करीब पांच एकड़ में बुद्ध विहार स्थापित है। मौके पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा, 42 फीट ऊंचा अशोक स्तंभबोधिवृक्ष के अलावा ध्यान केंद्र व दफ्तर मौजूद है। हरे-भरे परिसर में करीब एक हजार से अधिक शीशमसागौनकदमबरगदपीपल और ताड़ के पेड़ हैं। पूर्वांचल भर के बौद्ध अनुयायी यहां रोजाना दर्शन-पूजन और धम्म विपत्सना करते हैं। जाति-पांतवर्ग विहीन समाज की संरचना के लिए पंचशील और आष्टांगिक मार्ग संपूर्ण विश्व में माना जाता है।

बौद्ध विहार के मामले में गलत ढंग से जारी की गई राजाज्ञा के चलते धारा-चार का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। धारा-11 (1) के प्रकाशन दिनांक 29 अक्टूबर 2022 से प्रभावित परिवारों की संख्या सिर्फ 17 दर्शाई गई हैजबकि चंदौली जिला प्रशासन की सरकारी वेबसाइट पर 415 परिवारों की जमीनें अधिग्रहीत की जानी है। सामाजिक समाघात प्रभाव कानून की धारा-2 की उप धारा-2 के मुताबिक भूमि अधिग्रहण के लिए 70 से 80 फीसदी किसानों की सहमति जरूरी है। तीनों गांवों के किसानों ने जब अपनी जमीन देने से साफ इनकार कर दिया है तो उनकी जमीनें छीनने का सरकार को क्या हक है?

तथागत चैरिटेबल ट्रस्ट ने मांग की है कि शासन की अधिसूचना निरस्त करने के लिए तत्काल शासन को भेजा जाए। उचित प्रतिकार एवं पारदर्शिता अधिकार अधिनियम 2013 की धारा-4 और धारा-2 की उपधारा (2) में व्यवस्था दी गई है कि 70 से 80 फीसदी लोगों की असहमति धारा-8 (3) के धारा-2-2 का उल्लंघन है। जनहित में यह योजना तत्काल निरस्त की जाए। ट्रस्ट की संपत्ति और किसानों की जमीन बचाने के लिए पैदल मार्च में समानता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोतीलाल शास्त्रीपूर्व ब्लाक प्रमुख सुधाकर कुशवाहा किसान नेता महेंद्र यादवबजरंगी लालदेवी चरण कुशवाहाइदरीश भाई समेत बड़ी संख्या में बौद्ध अनुयायी और किसान मौजूद थे।

बंदरगाह पर जंग खा रही कीमती क्रेनें।

 

कबाड़ में बेचनी पड़ेंगी मशीनें

वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, "भूमि अधिग्रहण से पहले बंदरगाह की उपयोगिता की न तो समीक्षा की गई और न ही इलाकाई किसानों की भौगोलिकसामाजिकआर्थिक पहलुओं की पड़ताल कराई गई है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि दलित और अल्पसंख्यक किसानों की जमीन ऐसी योजना के लिए ली जा रही है जिसका कोई भविष्य ही नहीं है। महकमें के अफसर यह तह बता पाने की स्थिति में नहीं हैं कि रामनगर के बंदरगाह पर माल लेकर जलपोत कब उतरेंगेवैसे भी भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय हाल ही में यह स्पष्ट कर चुका है कि राज्य द्वारा उचित न्यायिक प्रक्रिया का पालन किए बिना नागरिकों को उनकी निजी संपत्ति से ज़बरन वंचित करना मानवाधिकार और संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत प्राप्त संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है।"

"सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिककानून से शासित किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य कानून की अनुमति के बिना नागरिकों से उनकी संपत्ति नहीं छीनी जा सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि कानून से संचालित कल्याणकारी सरकार होने के नाते सरकार संवैधानिक सीमा से परे नहीं जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला हिमाचल प्रदेश की विद्या देवी नामक एक निरक्षर महिला के मामले में दिया था जिसकी जमीन राज्य सरकार ने साल 1967-68 में सड़क निर्माण के लिए उसकी अनुमति के बगैर अधिगृहीत कर ली थी। सुप्रीम कोर्ट ने विद्या देवी बनाम हिमाचल प्रदेश सरकार व अन्य’ मामले में सुनवाई के दौरान सरकार के ‘एडवर्स पजेशन’ के तर्क को नकार दिया था।"

मौर्य कहते हैं, "बौद्ध विहार को अधिग्रहण के दायरे में रखने और दुर्गा मंदिर को छोड़े जाने के पीछे हमें गहरी साजिश नजर आती है। कुछ महीने पहले बीजेपी के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ से जुड़े पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा ने सम्राट अशोक के खिलाफ भद्दी टिप्पणियां की थी। आरएसएस कई मर्तबा बौद्ध धर्म का माखौल उड़ा चुका है। बौद्ध विहार पर बुल्डोजलर चलाने के पीछे भी आरएसएस की महीन चाल हो सकती है।"

मकबूल आलम रोड पर स्थित आईडब्ल्यूएआई के चमचमाते दफ्तर में मौजूद सहायक जलीय सर्वेक्षक संजय कुमार शुक्ला से बातचीत की कोशिश की गई तो उन्होंने सिरे से पल्ला झाड़ लिया। बोले, "हम कुछ नहीं बता पाएंगे। सरकार से पूछ लीजिए कि वह फ्रेट विलेज क्यों बनवा रही है।" अनौपचारिक बातचीत में सिर्फ इतना ही कहा, "हमने जलमार्ग तैयार कर दिया है। जब तक कारोबारियों और व्यापारियों की सोच नहीं बदलेगीतब तक न गंगा नदी में जलपोत चल सकेंगे और न माल की ढुलाई संभव हो पाएगी। फ्रेट विलेज का हाल क्या होगायह तो भविष्य की गर्त में छिपा है।"

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री अजय राय आईडब्ल्यूएआई की फ्रेट योजना को मूर्खतापूर्ण कदम करार देते हैं। वह कहते हैं, " चार बरस पहले बंदरगाह बनाने पर 206 करोड़ खर्च हो चुके हैं और सुविधाओं का कहीं अता-पता नहीं है। सिर्फ बड़ा ख्वाब देख लेने भर से कुछ नहीं होता। जब गंगा में पानी ही नहीं और उसमें जलपोत चल नहीं सकते तो टैक्सपेयर का पैसा बेवजह क्यों उड़ाया जा रहा है। एक योजना फ्लाप हो गई तो दूसरी फ्रेट विलेज की योजना क्यों और किसके लिए लाई जा रही हैकिसानों की जमीनें छीनने से पहले सरकार इस आशय का श्वेतपत्र जारी करे कि रामनगर में बंदरगाह के लोकार्पण के बाद गंगा में कितने जलपोत चलेकितना माल ढोया गया और सरकार को कितना मुनाफा हुआहमें लगता है कि सिर्फ सरकारी धन के बंदरबांट के लिए फ्रेट विलेज योजना की बनाई गई है। हालात ऐसे ही रहे तो एक वो भी दौर आएगा जब वाटर-वे परियोजना की मशीनें कबाड़ में बेचनी पड़ेंगी। तब शायद इन मशीनों को खरीदने वाले कबाड़ी भी नहीं मिल पाएंगे...!"

सभी फोटोग्राफः विजय विनीत

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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