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अदालतों में दम तोड़ती न्याय की आस, महिलाओं से जुड़े लाखों मामले पेंडिंग!

नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड के मुताबिक 36.57 लाख महिलाओं से जुड़े मामले अदालतों में न्याय का इंतज़ार कर रहे हैं।
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फ़ोटो साभार : Feminism in India

देश में एक ओर महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। तो वहीं दूसरी ओर अदालतों में ऐसे मामलों का निपटान बहुत ही धीमा है। नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड के हालिया जारी आंकड़े इस पूरे मामले की सच्चाई बयां करते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय अदालतों में लगभग 4.44 करोड़ से अधिक केस लंबित हैं। जिसमें से करीब 36.57 लाख केस अकेले महिलाओं के मामले से जुड़े हैं, जिन पर अभी इंसाफ का इंतजार है।

बता दें कि नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड 18,735 ज़िला तथा अधीनस्थ न्यायालयों और उच्च न्यायालयों के आदेशों, निर्णयों एवं मामलों के विवरण का एक डेटाबेस है जिसे ई-न्‍यायालय प्रोजेक्ट के तहत एक ऑनलाइन मंच के रूप में स्थापित किया गया है। इसमें डेटा को कनेक्टेड ज़िला और तालुका न्यायालयों द्वारा लगभग रियल टाइम के आधार पर अपडेट किया जाता है। यह देश के सभी कंप्यूटरीकृत ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों की न्यायिक कार्यवाही/निर्णयों से संबंधित डेटा प्रदान करता है।

लंबित मामलों में उत्तर प्रदेश सबसे आगे

अदालतों में पेंडिंग मामलों की बात करें, तो इन आंकड़ों में देश के टॉप-20 राज्यों को लिया गया है और ये 6 अक्टूबर 2023 तक की जानकारी देते हैं।

राज्यवार तरीके से देखा जाए, तो सबसे अधिक पेंडिंग मामले उत्तर प्रदेश की अदालतों में हैं। जहां, 7,90,938 मामले लंबित हैं। वहीं इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है, जहां 3,96,010 मामले न्याय के इंतजार में हैं। बिहार में ये आंकड़ा करीब 3,81,604 का है, तो वहीं बंगाल में 2,60,214 और

कर्नाटक में 2,22,587 अदालतों में इंसाफ की आस लगाए दम तोड़ रहे हैं।

अब इतने मामले अदालत में क्यों पेंडिंग हैं, इसका जवाब भी कानून मंत्रालय और नेशनल न्यू  ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड द्वारा किए गए अध्ययन में देखने को मिलता है। इन कारणों में पुलिस से लेकर अदालत तक की भूमिका शामिल है। इस अध्ययन के मुताबिक अधिकतर मामलों में पुलिस चार्जशीट में देरी करती है। कोर्ट में बार-बार जांच का समय बढ़ाने की मांग की जाती है। यही नहीं कई बार चार्जशीट दायर होती भी है, तो दस्तावेज कोर्ट में जमा नहीं होते। चार्जशीट दायर कर दी जाती है, लेकिन निचली अदालत बार-बार लंबी डेट देती हैं। जिससे आरोप तय होने में समय लग जाता है। इसके अलावा महत्वपूर्ण गवाहों को पुलिस कोर्ट में पेश ही नहीं कर पाती।

देरी की एक प्रमुख वजह अदालत में वकीलों का पेश नहीं होना है। इन आंकड़ों की मानें तो लगभग 45 फीसदी केसों में वकील ही कोर्ट में पेश नहीं हो रहे। या फिर आरोपी जमानत के बाद कोर्ट नहीं आए, वे फरार हो चुके हैं। 7 फीसदी मामलों में बड़ी कोर्ट का स्टे है। आंकड़ों में क्रिमिनल और सिविल दोनों केस हैं। अदालतों का बार-बार समझना भी बेअसर ही साबित होती है।

पुलिस को महिला अपराधों को लेकर संवेदनशील बनने की सलाह

सुप्रीम कोर्ट से लेकर दिल्ली हाई कोर्ट तक कई अदालतें अपने फैसले में कह चुकी हैं कि पुलिस महिला अपराधों को लेकर संवेदनशील बने। जिला अदालतों में इनका निपटारा जल्दी हो, ताकि न्याय जल्द से जल्द सुनिश्चित हो सके। इतना ही नहीं निर्भया मामले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की अदालतों को महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने को कहा था। इस मामले में सर्वोच्च अदालत ने पुलिस को भी निर्देश दिए गए थे कि छह माह में मामला निपटाकर महिला को इंसाफ मिल जाए। लेकिन इसका कोई खास असर देखने को नहीं मिला और महिलाओं के खिलाफ अपराध का ग्राफ तेज़ी से बढ़ता रहा।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की रिपोर्ट 2021 के मुताबिक देशभर में रोजाना दुष्कर्म के 86 मामले दर्ज हुए। वहीं, महिलाओं के खिलाफ अपराध के हर घंटे 49 मामले दायर हुए। इस साल कुल 31,677 केस बलात्कार से जुड़े रिपोर्ट हुए, जबकि महिला अपराध के कुल 4,28,278 मामले दर्ज किए गए। वहीं अगर साल 2020 की बात करें, तो 2020 में दुष्कर्म के कुल 28,046 केस दर्ज किए गए थे।

गौरतलब है कि साल 2012 के निर्भया मामले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इस दौरान लोग भारी संख्या में सड़कों पर उतरे और कई ज़ोरदार प्रदर्शन भी हुए। ये लोगों के आक्रोश का ही नतीजा था कि तत्कालीन आपराधिक कानून में संशोधन करके कई बदलाव किये गए। इसके लिए सरकार ने भी कई कदम उठाए, लेकिन आज भी हालात जस के तस बने हुए हैं। महिलाओं के प्रति अपराध की घटनाएं कम नहीं हो रहीं, इसके उल्ट साल दर साल आपराधिक मामलों में बढ़ोतरी हो रही है। इसका एक बड़ा कारण अदालतों में सालों-साल लटके मामले हैं, जो न्याय की आस तोड़ देते हैं, जिससे कहीं न कहीं अपराधी बेखौफ हो जाते हैं।

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