झारखंड विधानसभा चुनाव : ज़ुबानी जंग से तीखी हुई चुनावी सरगर्मी
झारखंड में पहले और दूसरे चरण के लिए चुनाव प्रक्रिया शुरू हो गई है। आपको मालूम ही है कि झारखंड प्रदेश का विधानसभा चुनाव, दो चरणों में 13 एवं 20 नवम्बर को संपन्न होने जा रहा है। पहले चरण के लिए 25 अक्टूबर तक और दूसरे चरण के लिए 29 अक्टूबर तक नामांकन होगा।
सनद रहे कि 81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा चुनाव अपने निर्धारित समय से पूर्व हो रहा है। क्योंकि मौजूदा समय में गैर भाजापा विपक्षी दलों (झामुमो-कांग्रेस-राजद व भाकपा माले) के महागठबंधन की हेमंत सोरेन सरकार सत्तासीन है। जिसका कार्यकाल संवैधानिक रूप से अगले साल यानी 5 जनवरी 2025 तक नियत है। इसके लिए 2019 के दिसंबर माह में विधानसभा चुनाव संपन्न हुआ था।
सियासी चर्चाओं में समय से पूर्व चुनाव कराये जाने के कयास उसी समय से शुरू हो गए थे जब चंद दिनों पहले प्रदेश में देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की ताबड़तोड़ सभाएं होने लगीं थीं। जिनके कार्यक्रमों के तुरत बाद केन्द्रीय चुनाव आयोग के आला अधिकारियों की भी उच्च स्तरीय टीम राज्य का दौरा कर रही थी।
उस समय झामुमो ने समय से पूर्व विधानसभा चुनाव को लेकर तीखा विरोध प्रकट किया था। साथ ही केंद्र सरकार को आगाह किया था कि समय पूर्व चुनाव कराना, देश की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया और संविधान का सरासर उल्लंघन है।
बहरहाल, विधानसभा चुनाव की सभी प्रक्रियाएं शुरू हो चुकीं है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार पिछली बार (2019) की भांति इस बार भी मुख्य मुकाबला ‘INDIA और NDA’ गठबन्धनों के बीच होना तय माना जा रहा है। जिसके लिए दोनों की ओर से उम्मीदवारों की लिस्ट जारी हो गयी है। उम्मीदवारी नहीं मिलने से जहाँ NDA गठबंधन के कई पूर्व नेता भाजपा को छोड़कर INDIA गठबंधन में शामिल हो रहें हैं, वहीं कई अन्य नेतागण भी आजसू व अन्य दलों से निकलकर निर्दलीय अथवा INDIA-गठबंधन के दलों में शामिल होने की आपाधापी में हैं।
सबसे दिलचस्प है कि INDIA गठबंधन के घटक झामुमो समेत अन्य सभी दलों पर हमेशा “परिवारवाद-राजनीति” का आरोप लगानेवाली भाजपा द्वारा घोषित पार्टी प्रत्याशियों में से कई उम्मीदवार ऐसे हैं जो पार्टी नेताओं की पत्नी-बहू और बेटे हैं।
जिस पर कटाक्ष करते हुए झामुमो नेताओं ने व्यंग्य करते हुए भाजपा पर आरोप लगाया है कि विरोधी दलों पर “परिवारवाद” का आरोप लगानेवालों की असलियत सामने आ गयी है। पूर्व केंदीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी, ओडिशा के वर्तमन राज्यपाल व झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहू से लेकर कई आला नेताओं के बेटों को उम्मीदवार बनाया जाना क्या है? भाजपा को पहले अपने गिरेबां में झाँकने की ज़रूरत है।
चंद दिनों पहले झामुमो छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पई सोरेन के साथ साथ उनके बेटे को भी भाजपा द्वारा पार्टी प्रत्याशी बनाया जाना काफी चर्चा में है।
प्रदेश में जारी विधानसभा की चुनावी सरगर्मियों में एक ओर, दोनों गठबन्धनों के नेता-प्रवक्ताओं की ज़ुबानी-जंग इस हद तक पहुँचने लगी है कि बॉलीवुड फिल्मों के नाम से एक-दूसरे को संबोधित किया जाने लगा है। दल बदलने वालों को “दलदल बदलू” कहा जा रहा है तो कोई अपने को “घर वापसी” करना बता रहा है।
चुनाव आयोग की निष्पक्ष भूमिका को लेकर भी कई विवाद सामने आ रहें हैं। जिसमें ऐन चुनाव से पहले नाटकीय अंदाज़ में राज्य के प्रभारी पुलिस डीजीपी को तत्काल प्रभाव से हटाये जाने को लेकर काफी प्रतिक्रियाएं आ रहीं हैं। एक प्रतिक्रिया में केन्द्रीय चुनाव आयोग से पूछा गया है कि महाराष्ट्र के मौजूदा डीजीपी की कतिपय विवादास्पद रवैये को लेकर कांग्रेस द्वारा उन्हें हटाये जाने की मांग पर वह क्यों मौन है।
वहीं, दोनों चरणों के मतदान के समय को लेकर झामुमो ने चुनाव आयोग पर भाजपा के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया गया है। जिसमें झामुमो प्रवक्ता ने कहा है कि- यह सच सामने आ गया है कि शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत अधिक रहता है और ग्रामीण मतदाताओं का अधिकांश वोट INDIA गठबंधन के पक्ष में जाता है। हार के डर से घबरायी भाजपा के इशारे पर चुनाव आयोग ने ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान की समय अवधि 5 बजे शाम को घटाकर 4 बजे कर दिया है। ताकि ग्रामीण वोट प्रतिशत में कमी आ जाए। जबकि चुनाव आयोग का टैग नारा है कि- एक भी वोटर छूटे ना।
विधानसभा चुनाव में सबकी चुनावी घोषणाएं और मांगें सामने आ रहीं हैं। सत्ताधारी गठबंधन सरकार की ओर से केंद्र की सरकार पर झारखंड प्रदेश की बकाया राशि, एक लाख छत्तीस हज़ार करोड़ रुपये फ़ौरन लौटाए जाने की मांग प्रमुखता लिये हुए है। साथ ही जातीय जनगणाना कराये जाने सहित सरना धर्म कोड लागू करने इत्यादि की भी मांग उठाई गयी है।
हेमंत सोरेन जेल भेजे जाने का प्रकरण हर सभाओं में उठाते हुए कह रहें हैं कि- जब भी हमने झारखंडियों के हितों की बात उठायी है, हम पर अत्याचार हुए हैं। इन पांच वर्षों में केंद्र की भाजपा सरकार ने सिर्फ और सिर्फ झारखंड और झारखंडियों के हितों का तिरस्कार किया है। उनके लिए हम एक उपनिवेश से ज़्यादा कुछ नहीं हैं।
बेहद कम समय में चर्चित हुई झामुमो नेता कल्पना सोरेन अपने संबोधनों में बार बार ये कह रहीं हैं कि- झांसे में नहीं आना है, अबुवा सरकार बनाना है! यदि भाजपा शासन में आ गयी तो प्रदेश की हजारों महिलाओं को मिलने वाली ‘मंइय्या सामान योजना’ को वह बंद करवा देगी।
वहीं, भाजपा का फोकस- हेमंत सोरेन सरकार को हर मोर्चे पर विफल साबित करने के साथ साथ संताल परगना क्षेत्र में आदिवासियों की घटती “डेमोग्राफी” और वहां एनआरसी लागू करने जैसे मुद्दे है। साथ साथ “गोगो दीदी योजना” को भी जोर-शोर से प्रचारित किया जा रहा है।
वैसे हर दिन ही दोनों गठबन्धनों के नेताओं-प्रवक्ताओं के बीच किसी न किसी मुद्दे को लेकर परस्पर ज़ुबानी-जंग लगातार तीखी होती जा रही है। लेकिन इस बीच ‘एक ही नारा, हेमंत दुबारा’ का प्रचार नारा काफी लोकप्रिय होता दीख रहा है।
बहरहाल, अभी विधानसभा चुनाव के पहले चरण की प्रक्रिया जारी है। दूसरे चरण के मतदान के बाद चुनाव नतीजों से ही साबित होगा कि किसका नारा, राज्य की बहुसंख्य मतदाता जनता ने पसंद किया।
(लेखक एक स्वतंत्र टिप्पणीकार, रंगकर्मी और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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