झारखंड : आदिवासियों ने भाजपा को फिर नकारा, सभी एसटी सीटों पर करारी शिकस्त
बीते दिनों एक आदिवासी महिला व झारखंड प्रदेश की पूर्व राज्यपाल को देश का राष्ट्रपति बनाकर स्वयं नरेंद्र मोदी समेत उनकी पूरी पार्टी ने बड़े ही ज़ोर-शोर से “आदिवासी सम्मान” का ढोल बजाकर देश-प्रदेश के आदिवासी समुदायों को अपने पाले में लाने की ज़ोरदार कवायद की थी।
मगर पूर्व के अनुमानों के अनुरूप राज्य के सभी आदिवासी सुरक्षित संसदीय सीटों पर भाजपा को मिली करारी हार ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि आज भी प्रदेश के व्यापक आदिवासी समुदाय भाजपा पर भरोसा नहीं करते।
राज्य की सभी पांच एसटी सुरक्षित सीटों पर INDIA गठबंधन ने वोटों के भारी अंतर से भाजपा को पराजित किया। जिसमें खूंटी व लोहरदगा सीट पर कांग्रेस और चाईबासा, दुमका व राजमहल सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशियों ने भाजपा प्रत्याशियों को हराया।
मीडिया के ही शब्दों में राज्य की सबसे हाई प्रोफाइल सीट खूंटी पर प्रदेश भाजपा के कद्दावर नेता व मोदी सरकार के केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। 2019 के चुनाव में 1445 वोटों से जीत हासिल करने वाले झारखंड प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा को कांग्रेस प्रत्याशी के हाथों 2,20, 959 वोटों के विशाल अंतर से पराजय मिली। इतनी बड़ी हार का एक बड़ा कारण यह भी रहा कि आदिवासी समुदायों के साथ साथ मूलवासियों की भी बड़ी आबादी ने भी उनके ख़िलाफ़ वोट दिया।
वहीँ, जिस चाईबासा सीट से कांग्रेस की सांसद रहीं गीता कोड़ा को एन चुनाव से पहले भाजपा द्वारा उन्हें अपनी पार्टी में शामिल कर इसी सीट से पार्टी प्रत्याशी बनाने का फंडा , बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुआ। इस क्षेत्र के बहुसंख्यक मतदाताओं ने गीता कोड़ा को नकारकर झामुमो प्रत्याशी जोबा मांझी को बढ़ चढ़कर जीता दिया।
सनद रहे कि 'हो' आदिवासी बाहुल्य इस सुरक्षित सीट पर विगत 2019 संसदीय चुनाव के “मोदी लहर” में भी इस क्षेत्र के आदिवासी-मूलवासी मतदाताओं ने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में गीता कोड़ा को भारी वोटों से जिताया था। लेकिन जब वही गीता कोड़ा दल-बदल कर भाजपा की प्रत्याशी बनीं, तो पूरे क्षेत्र के आदिवासी समुदायों ने इसे विश्वासघात करार देकर ज़ोरदार विरोध किया। जो चुनाव प्रचार अभियान के दौरान खुलकर दिखा भी कि कई जगहों पर आदिवासी महिलाओं ने “वोट मांगने” पहुंची गीता कोड़ा को घेर लिया और काफी तीखे सवालों की बौछार कर खूब खरी-खोटी सुनाई और फटकारा। जिसे “गोदी” मीडिया ने यह कहकर दुष्प्रचारित किया कि- गीता कोड़ा पर हमले हो रहे हैं।
लगभग ऐसी ही कहानी रही प्रदेश की उपराजधानी कही जाने वाली दुमका की एसटी सुरक्षित सीट पर। यहां से भाजपा ने हेमंत सोरेन परिवार की “आंतरिक कलह” का फायदा उठाते हुए परिवार और सरकार से नाराज़ चल रहीं हेमंत सोरेन की बड़ी भाभी सीता सोरेन को अपनी पार्टी का उम्मीदवार बनाकर खड़ा कर दिया। जिसे राज्य का हॉट-सीट घोषित कर “गोदी” मीडिया ने हेमंत सोरेन के साथ साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा के संथाल परगना से पूरी तरह से सफाया होने तक की भविष्यवाणी सुना दी। लेकिन यहां का परिणाम भी भाजपा के ख़िलाफ़ रहा और भाजपा प्रत्याशी के रूप में सीता सोरेन को हार का सामना करना पड़ा।
हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन की जीत भी काफी चर्चाओं में है। जिन्होंने गिरिडीह जिला स्थित गांडेय विधान सभा सीट के उपचुनाव में भारी जीत दर्ज़ करते हुए सबका ध्यान खींचा है। एक घरेलू महिला और घर की सामान्य गृहणी कही जानेवाली कल्पना सोरेन को अपने पति की राजनीति-प्रेरित गिरफ़्तारी ने उन्हें सत्ता-राजनीति के मैदान में उतार दिया। बहुत ही कम समय में राज्य की जनता ने भी उन्हें हाथों-हाथ लेकर झारखंड राजनीति का एक प्रमुख चेहरा बना दिया है।
मौजूदा राजनीति के लटके-झटकों से परे कल्पना सोरेन ने भी राज्य कि जनता को अपनी बोली-व्यवहारों से निराश नहीं किया है और धुर विरोधियों तक को अपनी व्यवहार कुशलता का कायल बना दिया है।
गांडेय विधान सभा सीट के उपचुनाव के साथ साथ झारखंड में होने वाले लोकसभा चुनाव के अभियानों में INDIA गठबंधन के लिए पूरे राज्य में घूम घूमकर एक तेज़-तर्रार राजनेता के बतौर अपनी भूमिका निभाकर बहुत ही कम समय में व्यापक प्रशंसा की पात्र बनीं।
कुल मिलाकर इस पहलू से अब कतई इनकार नहीं किया जा सकता है कि आदिवासी समुदायों को आज भी भाजपा पसंद नहीं है। हालांकि इसके कई गंभीर और ऐतिहासिक कारण भी हैं लेकिन मौजूदा राजनीतिक परिदृश्यों में राज्य में अब तक बनीं भाजपा सरकारों का रवैया कितना आदिवासी-विरोधी रहा है उसके अनेकों उदहारण हैं। जिसकी एक बानगी तो यही है कि झारखंड राज्य के गठन उपरांत यहां बनने वाली पहली गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के पहले ही शासन काल में खूंटी के तपकरा में आदिवासियों पर पुलिस गोली-कांड कराकर 8 अदिवासियों की जान ले ली गयी। वे ‘कोयलकारो नदी बांध परियोजना’ से होनेवाले विस्थापन के विरोध में शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे।
इसके अलावा भी कई ऐसे गंभीर मुद्दे हैं जिन पर गहन चर्चा देश में स्थापित संविधान और लोकतंत्र, दोनों के लिहाज से एक गंभीर विषय है।
झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा के गिरते ग्राफ को देखकर राज्य की मीडिया तक को कहना पड़ रहा है कि झारखंड राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा की कितनी ज़मीन खिसक गयी है, लोकसभा के चुनाव नतीजों ने साफ़ तौर से दिखला दिया है कि विगत राज्य विधान सभा चुनाव में 28 एसटी सीटों में से 26 सीटों पर भाजपा की हार हुई थी।
इस बार तो हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी ने राज्य के आदिवासी मतदाताओं की नाराज़गी को और भी बढ़ाने का ही काम किया है।
भाजपा द्वारा आदिवासी मतदाताओं को जोड़ने के लिए बाबूलाल मरांडी कि पार्टी झाविमो का भाजपा में विलय कराने और उन्हें भाजपा विधायक दल नेता के साथ साथ प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाने के फार्मूला भी बेअसर ही साबित हुआ।
इसी तरह से द्रौपदी मुर्मू जी को देश का राष्ट्रपति बनाकर एक आदिवासी बेटी को सम्मान देने का संदेश पूरे झारखंड में ज़ोर-शोर से प्रसारित करवाया गया। देश के राष्ट्रपति के रूप में उनका खूंटी दौरा भी कराया गया। जिसके लिए वे बिरसा मुंडा के जन्मस्थान उलीहातू भी गयीं।
उसी क्रम में पिछले साल प्रधानमंत्री ने बिरसा मुंडा कि जयंती को “राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस” घोषित कर इस दिन से आदिवासी समुदायों के लिए “प्रधानमंत्री जन मन योजना” की भी शुरुआत की थी।
इस बार के लोकसभा चुनाव अभियान में संथाल परगना के इलाकों में नरेंद्र मोदी-अमित शाह समेत सभी भाजपा नेताओं ने “बंगलादेशी घुसपैठी और आदिवासी समाज की डेमोग्राफी बदलने” जैसे मुद्दों को उछालकर संथाल आदिवासियों की ज़मीन हड़पने का सवाल उठाते हुए “लैंड जिहाद” नाम देकर मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रती ध्रुवीकरण की हर संभव कोशिश की। लेकिन इसका भी कोई चुनावी फायदा नहीं मिल सका।
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