जुनैद और नासिर की हत्या सवाल खड़े करती है कि देश में क़ानून का राज है?
''मोनू मानेसर की गिरफ़्तारी आख़िर क्यों नहीं हो रही है? जिस तरह से उसे बचाया जा रहा है तो ऐसा लग रहा है कि देश में ऐसे लोगों को बढ़ावा दिया जा रहा है, और इस तरह का बढ़ावा दिया जाना कोई नई चीज़ नहीं है, हम लोगों ने बिलकिस बानो का भी केस देखा है उसमें भी दोषियों को बाहर निकाल कर माला पहनाना, मिठाई खिलाना ये सब बढ़ावा नहीं दे रहे हैं तो क्या कर रहे हैं? जब आप 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' का नारा लेकर चलते हैं और फिर ये सब होता है तो ये नारा एक जुमला लगता है। यहां किसी का विकास नहीं हो रहा है, लोगों का विश्वास टूट रहा है, आज के दौर में मुसलमान, जिसने टोपी लगा रखी है और जिसकी दाढ़ी है वो रास्ते में ख़ुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर रहा है, ऐसा क्यों हो रहा है? आप सेक्युलरिज़्म की बात करते हैं, रूल ऑफ़ लॉ की बात करते हैं, क्यों? या तो आप सीधा बोलिए हमारे देश में कुछ नहीं है रूल ऑफ़ लॉ, सेक्युलरिज़्म नहीं है, ये सब कुछ नहीं है, जो हम चाहेंगे वही होगा, एक तरफ़ देश G-20 करवाने जा रहा है और दूसरी तरफ़ देश में ये सब होता है, आज कॉलेज के इतने स्टूडेंट अपनी पढ़ाई छोड़कर, पैरेंट्स को भी नहीं बताते कि हम प्रोटेस्ट में जा रहे हैं, वो कहते हैं कि ''भाई तू क्यों जा रहा है, इसमें तेरा क्या फ़ायदा'', इसमें हमारा कोई फ़ायदा नहीं है, हमें यहां आने के कोई पैसे-वैसे नहीं मिलते, हम सिर्फ़ इसलिए आते हैं कि ये सब बंद हो जाए, हम बताना चाहते हैं कि देश में ये सब जो चल रहा है ये ग़लत है, बहुत ग़लत है।''
दिल्ली के जंतर-मंतर पर AISA ( All India Students Association ) के सदस्य समर बात करते-करते बेहद गुस्सा जाते हैं, रह-रह कर ख़ुद को शांत कर वो हरियाणा में जुनैद और नासिर की ख़ौफ़नाक मौत पर नाराज़गी ज़ाहिर करते हैं और सवाल पूछते हैं कि देश क़ानून से चलेगा या फिर इस तरह की गुंडागर्दी से?
इस प्रदर्शन की वजह क्या है?
बता दें कि राजस्थान के भरतपुर जिले के घाटमिका गांव के रहने वाले जुनैद और नासिर के जले हुए शव 16 फरवरी को हरियाणा के भिवानी जिले के लोहारू गांव में मिले थे। इस मामले में हरियाणा पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। जबकि मोनू मानेसर के साथ ही बजरंग दल से जुड़े गौ-रक्षकों पर जुनैद और नासिर पर गाय तस्करी के शक में पूछताछ के दौरान मारपीट और हत्या का आरोप है। इस बर्बर हत्या के विरोध में हरियाणा और दिल्ली में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
आइसा( AISA) का दिल्ली में प्रदर्शन
दिल्ली में आइसा की तरफ़ से एक प्रोटेस्ट का आयोजन किया गया था जिसमें अन्य संगठनों के छात्रों ने भी हिस्सा लिया। इस प्रोटेस्ट के दौरान छात्रों की मुख्य मांगें थीं :
- मोनू मानेसर और उसके बजरंग दल के साथियों की गिरफ़्तारी हो।
- गौ रक्षा के नाम पर मुसलमानों की हत्या बंद की जाए।
इस दौरान बहुत से स्लोगन लिखे हुए पोस्टर के साथ इन छात्रों ने जमकर नारेबाज़ी की और देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ बढ़ रही हिंसा और 'इस्लामोफोबिया' को तुरंत समाप्त करने की मांग की।
इन छात्रों ने सवाल किए कि जुनैद और नासिर की हत्या के असली जिम्मेदार कौन हैं? गौ रक्षा के नाम पर हुई इन हत्याओं के साथ ही इन छात्रों ने सवाल खड़े किए कि क्यों अख़लाक, पहलू और उन तमाम मुसलमानों की हत्या के बाद कठोर क़दम नहीं उठाए गए जिन्हें सरेआम गौ रक्षा के नाम पर मौत के घाट उतार दिया गया।
इन छात्रों ने खट्टर सरकार के ख़िलाफ़ भी नारेबाज़ी की, छात्रों ने आरोप लगाए कि कभी 'लव जिहाद' के नाम पर तो कभी गाय के नाम पर देश में लगातार 'इस्लोफोबिया' बढ़ता जा रहा है (या बढ़ावा दिया जा रहा है) ।
इसे भी पढ़े: जुनैद-नासिर कांड : यूपी के पूर्व डीजीपी ने ‘आत्महत्या की FIR’ पर उठाए सवाल!
किसकी शह पर गुंडागर्दी?
प्रोटेस्ट में आए आंबेडकर यूनिवर्सिटी के एक छात्र कहते हैं कि, ''बात बहुत सरल है लेकिन उसे उलझाया जा रहा है। जैसे कि एक कविता है, प्रश्न का उत्तर कठिन है इसलिए भी, प्रश्न सौ-सौ बार टाला जा रहा है। प्रश्न ये है कि आप कह रहे हैं कि देश में गौ हत्या पर क़ानून है, तो फिर गौ तस्करी के नाम पर लोगों की लिंच क्यों की जा रही है और ये पहली लिंचिंग नहीं है। अख़लाक का मामला हम सबको याद है। देश में गाय के नाम पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। अगर मान भी लिया जाए कि गौ-हत्या हो रही है तो उसे क़ानून से निपटा जाएगा या फिर ये जो खुलेआम गुंडागर्दी हो रही है उसे पुलिस शह देगी? क्या पुलिस ख़ुद ही रूल ऑफ़ लॉ नाम के शब्द को भूल गई है? मोनू मानेसर जैसे लोग गाय के नाम पर हिंसा करके उनके वीडियो पोस्ट करते हैं, मोनू ख़ुद अपने सोशल मीडिया पर पुलिस के साथ तस्वीरें डालता है, तो ये सब कैसे चल रहा है? या तो आप कहें कि ये रूल ऑफ़ लॉ कुछ नहीं है, आप कहिए कि हमारी सरकार गौ-रक्षा के नाम पर हो रही हिंसा पर यकीन करती है? क्या आप ऐसा कह रहे हैं? अगर आप ऐसा नहीं कह रहे हैं तो नासिर और जुनैद को जलाकर मार देने के जो आरोपी हैं उन्हें बचाने की कोशिश क्यों हो रही है? जो आरोपी हैं उनके समर्थन में रैलियां हो रही हैं, ये बड़ी विडंबना है कि इस देश में किसी आरोपी के लिए रैलियां निकल रही हैं, हमारे देश में तमाम राजनीतिक बंदी हैं लेकिन रैलियां ऐसे लोगों के लिए निकल रही हैं, हालांकि ऐसी रैलियों का ट्रेंड रहा है जो हम आसिफा के वक़्त देख चुके हैं। तो इस ट्रेंड को पहचानने की बहुत ज़रूरत है।
ये छात्र कहते हैं कि ''इस वक़्त बहुत सख़्त ज़रूरत हैं कि देश का बहुसंख्यक समाज समझे कि उनका भी नंबर आएगा, ये बातें यहीं नहीं रुकने वाली हैं। आख़िर हमारा संविधान क्या कहता है यही ना कि हम सब एक हैं, देश का हर नागरिक एक दूसरे के भाई-बंधु हैं, तो क्या हम उन्हें भूल चुके हैं, क्या हम उनके लिए खड़े नहीं होंगे?
ये बात वाक़ई हैरानी वाली बात है कि आरोपियों और ख़ासकर मोनू मानेसर के समर्थन में रैलियां निकाली जा रही हैं और महापंचायत हो रही हैं। ऐसे में देश के मुसलमानों के दिल पर क्या गुज़र रही होगी क्या किसी को इसकी परवाह है?
हिंदू राष्ट्र में अलग राय के लिए जगह नहीं?
इस पर आइसा से ही जुड़ी एक छात्रा कहती हैं कि ''देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ जिस तरह से नफ़रत का माहौल फैलाया जा रहा है और जिसे एक तरह से सामाजिक तौर पर मान्यता मिलती जा रही है हम उसके ख़िलाफ़ यहां जंतर-मंतर पर पहुंचे हैं, हम छात्र होने से साथ ही एक जागरूक नागरिक भी हैं और ऐसे में हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि इस तरह कि अगर कोई भी घटना होती है तो उसके ख़िलाफ़ उठकर हम अपनी आवाज़ उठाएं, हमारे कितने सारे मुस्लिम साथी और पड़ोसी और देश में रहने वाले मुसलमान इस वक़्त डरे हुए हैं, वो ख़ुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर रहे हैं, पहले से ही मुसलमानों के ख़िलाफ़ भेदभाव था लेकिन जबसे (2014 के बाद से) ये सरकार आई है तो मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा बढ़ती जा रही है, हम देख सकते हैं कि अब तो उनके ऊपर खुल्लम-खुल्ला हमले हो रहे हैं, दलितों और ईसाइयों के साथ भी हिंसा बढ़ी है, एक सेंटिमेंट बनाने की कोशिश हो रही है कि ये एक हिंदू राष्ट्र है और अगर आपकी राय उनकी राय से अलग है तो आपको देश में रहने की जगह नहीं मिलेगी। तो ऐसे में एक नागरिक के तौर पर हमारी जिम्मेदारी बनती है कि खड़े होकर सरकार को जवाब दें और उसे बता दें कि इस तरह का माहौल देश में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
क्यों किया जा रहा है मोनू मानेसर का बचाव?
एक अन्य छात्र कहते हैं कि, ''हम ऐसे वक़्त में खड़े हैं और लड़ रहे हैं जहां पर मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की कोशिश हो रही है, लगातार मुसलमानों की मॉब लिंचिंग हो रही है, और जो लोग ये सब कर रहे हैं उनको शह दी जा रही है, उनको नौकरियां दी जा रही है, उनको माला पहनाई जा रही है, उनके समर्थन में रैलियां निकाली जा रही हैं। ये जो घटना हुई है हरियाणा में उसके बाद जो रैली निकाली गई है उसका नारा था, ''मोनू भाई आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं।'' आप किस बात के लिए उनको आगे बढ़ाना चाहते हैं? कि मुसलमान अगर सड़क से गुज़र रहा हो तो उसकी मॉब लिंचिंग कर दो, हम चाहते हैं कि ऐसे लोगों को सज़ा हो, हमारा देश ऐसा है कि जहां तमाम धर्मों के लोग साथ मिलकर रहते हैं, लेकिन देश में कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें शह दी जा रही है। कुछ संगठन जो लगातार मुसलमानों पर हमले कर रहे हैं, देश के संविधान को तार-तार करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन आज बहुत लोग हैं जो इसके खिलाफ़ खड़े हैं, लगातार बोल रहे हैं, हर कैम्पस के ऐसे भी छात्र हैं जो सोचते हैं कि देश में हर धर्म के लोग एक साथ रहें और मोहब्बत के साथ रहें।
इसमें कोई शक नहीं कि देश में मोहब्बत से रहने के लिए सामाजिक ताना-बाना सालों की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था लेकिन चंद सालों में ही उसमें सुराख होते दिख रहे हैं, लेकिन छात्रों का इस तरह से आगे आना एक उम्मीद लगती है। इस मामले पर छात्र मानिक कहते हैं, ''हम देख रहे हैं कि गौ-रक्षा के नाम पर ख़ासकर हरियाणा और राजस्थान में हिंसा फैलाई जा रही है, हरियाणा में जुनैद और नासिर की हत्या हो जाती है, आरोपियों से जुड़े तमाम वीडियो सोशल मीडिया पर हैं पर फिर भी पुलिस उन्हें गिरफ़्तार नहीं कर पा रही है।''
वो आगे कहते हैं, ''ऐसे मौक़ों पर छात्रों का आगे आना बहुत ज़रूरी है, हम देख रहे हैं देश भर में कभी गौ-रक्षा के नाम पर तो कभी लव जिहाद के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ़ हिंसा फैलाई जा रही है। मैं लॉ का छात्र हूं, लॉ में हम Constitutional Morality, रूल ऑफ लॉ पढ़ते हैं, सेक्युलरिज़्म की बात करते हैं। तो जो हम पढ़ते हैं ऐसे में बहुत ज़रूरी है कि हम उनकी रक्षा के लिए सड़कों पर भी उतरें और अगर हम इनके लिए सड़कों पर नहीं उतरते हैं तो ये बातें सिर्फ़ किताबी रह जाएंगी। जिस तरह से गौ-रक्षा के नाम पर लिंचिंग हो रही है ये क़ानून का उल्लंघन है।''
बात लिंचिंग की करें तो देश में लगातार लिंचिंग के मामले बढ़ते जा रहे हैं, जिसमें मुसलमान और दलितों की संख्या ज़्यादा दिखाई देती है। जब हम आंकड़ों पर नज़र डालते हैं तो वहां भी मायूसी हाथ लगती है क्योंकि हमारे देश में 2021-22 में मॉब लिंचिंग के कितने मामले सामने आए हैं तो उसे तलाशने निकलिए तो नहीं मिलेंगे। National Crime Records Bureau ( NCRB ) के आंकड़ों में माथापच्ची कर लीजिए तो भी तस्वीर साफ़ नहीं होने वाली।
''इससे पहले की बहुत देर हो जाए इसे रोक लेना चाहिए''
जिस बर्बर तरीक़े से जुनैद और नासिर की हत्या की गई है उसे लेकर जहां एक तरफ़ आरोपियों के लिए महापंचायत हो रही है तो दूसरी तरफ़ न्याय की मांग के लिए हरियाणा से लेकर दिल्ली तक प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन इन प्रदर्शनों के साथ ही सरकार और प्रशासन की मंशा भी बहुत अहम है। जिस पर Revolutionary Youth Association से जुड़े एक छात्र का कहना है कि ''हरियाणा में जिस तरह की घटना हुई है ऐसे में राज्य और केंद्र की सरकार को बिना किसी तरह के दबाव में सख़्त क़दम उठाने चाहिए। अगर किसी को गौ-हत्या के नाम पर मौत के घाट पर उतारा जा रहा है तो ये आगे बढ़ते-बढ़ते बहुत ख़तरनाक हो जाएगा। इससे पहले की बहुत देर हो जाए इसे रोक लेना चाहिए।
ये बात बिल्कुल वाजिब लगती है कि खुलेआम भीड़ ने जब पहलू और अख़लाक को अपना शिकार बनाया था काश उसी वक़्त सख़्त क़दम उठा लिए गए होते। एक के बाद एक घटनाएं होती चली गई। लेकिन घटनाओं के बंद या कम होने की बजाए जिस तरह देश में खुलेआम मुसलमानों के खिलाफ़ हिंसा के लिए उकसाया जा रहा है वो बेशक चिंता का सबब है।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।