नई शिक्षक नियमावली को लेकर वाम दलों ने महागठबंधन के नेताओं से की मुलाक़ात
नई शिक्षक नियमावली- 23 को लेकर नियोजित शिक्षकों और शिक्षक अभ्यर्थियों के जारी विरोध के मद्देनज़र 8 मई सोमवार को भाकपा-माले, सीपीआई और सीपीएम नेताओं ने हम (से.) के राष्ट्रीय नेता व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से मुलाकात की। इसके पहले वाम दलों के नेता राजद, कांग्रेस और जदयू के प्रदेश अध्यक्षों क्रमशः जगदानंद सिंह, अखिलेश कुमार सिंह और उमेश कुशवाहा से मुलाकात की और शिक्षक संगठनों व अभ्यर्थियों की मांगों से संबंधित एक ज्ञापन भी सौंपा।
वाम नेताओं ने महागठबंधन के दूसरे दलों से अपील की है कि शिक्षक संगठनों व अभ्यर्थियों की चिंता व आशंकाओं से सामूहिक रूप से अवगत कराने के लिए एक उच्चस्तरीय शिष्टमंडल बिहार के मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री से मिले।
वाम नेताओं की टीम में भाकपा- माले के राज्य सचिव कुणाल, वरिष्ठ नेता केडी यादव, सीपीआई के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय व जानकी पासवान तथा सीपीएम के राज्य सचिव मंडल के सदस्य अरुण मिश्रा शामिल थे।
वाम नेताओं ने कहा कि ऐसे दौर में जब भाजपा की केंद्र सरकार ठेका पर बहाली की नीति को बढावा दे रही है और रोज़गार के अवसरों को लगातार सीमित कर रही है, वैसी स्थिति में बिहार सरकार द्वारा शिक्षकों को सरकारी कर्मी का दर्जा देने की घोषणा स्वागतयोग्य है लेकिन परीक्षा की कोई शर्त नहीं थोपी जानी चाहिए। महागठबंधन 2020 के घोषणा पत्र के अनुसार सबको सरकारी कर्मी का दर्जा दिया जाना चाहिए। साथ ही, सातवें चरण के शिक्षक अभ्यर्थियों को भी इस परीक्षा से मुक्त रखा जाना चाहिए।
बिहार में शिक्षा की स्थिति बेहतर हो, यह प्रयास हम सबके मिलकर करने से ही होगा, लेकिन परीक्षा की शर्त के कारण शिक्षक समुदाय अपने को अपमानित महसूस कर रहा है। अतः सरकार को शिक्षक नेताओं से वार्ता करके इस मसले का हल निकालना चाहिए और तमाम चीजों को पटरी पर लाना चाहिए। उन्होंने बिहार में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए भी अपने ज्ञापन में कई सुझावों की चर्चा की है।
राजद कार्यालय में वाम दलों के नेताओं ने राजद के प्रदेश अध्यक्ष के अलावा बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, श्याम रजक और रणविजय साहू तथा जदयू कार्यालय में विधान पार्षद और जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार से भी मुलाकात की।
वाम नेताओं ने कहा कि महागठबंधन के विभिन्न दलों से मुलाकात का कार्य पूरा हो चुका है। आगे बिहार के मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री से मुलाकात की जाएगी।
वाम नेताओं ने कहा कि बिहार सरकार द्वारा लाई गई नई शिक्षक नियमावली-23 पर शिक्षक संगठनों का विरोध है। वाम दलों का भी मानना है कि यह महागठबंधन के 2020 के घोषणा के अनुरूप नहीं है।
विरोध कर रहे लोगों का कहना है 'बिहार राज्य विद्यालय अध्यापक नियमावली-2023’ द्वारा वर्षों से कार्यरत नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने का फैसला तो स्वागतयोग्य है, परंतु इस नियमावली में राज्यकर्मी का दर्जा देने की शर्त के रूप में परीक्षा आयोजित करने की बात से बिहार के लाखों नियोजित शिक्षक आशंकित हैं। इससे यह संदेश जा रहा है कि ये शिक्षक ‘गुणवत्तापूर्ण शिक्षा’ देने के योग्य नहीं थे।
उनका कहना है नियोजित शिक्षकों ने सरकार के सभी प्रकार के कार्यों का लगातार संपादन करते हुए बिहार के शैक्षणिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ये शिक्षक बिहार सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित मानकों के अनुरूप बहाल हुए हैं। निरंतर सेवा देने के उपरांत राज्य कर्मी बनने के लिए उनके उपर परीक्षा की शर्त रख देना उनके श्रम के साथ भी न्याय नहीं है। विभिन्न शिक्षक संगठनों द्वारा इसके खिलाफ आंदोलन भी चलाया जा रहा है, जिससे विद्यालय में पठन-पाठन बाधित हो रहे हैं।
इसलिए वाम दलों की मांग है कि सभी नियोजित शिक्षकों को महागठबंधन के 2020 के घोषणापत्र के मुताबिक बिना किसी परीक्षा के सीधे राज्यकर्मी का दर्ज़ा दिया जाए और जारी गतिरोध को ख़त्म किया जाए। साथ ही, सातवें चरण के शिक्षक अभ्यर्थी जो लंबे समय से अपनी बहाली का इंतजार कर रहे हैं, उनके ऊपर भी एक और परीक्षा लाद देना उचित नहीं लगता। सरकार को इस पर भी विचार करना चाहिए और सातवें चरण को इस प्रक्रिया से मुक्त रखा जाना चाहिए।
महागठबंधन के सहयोगी वाम दलों ने नई शिक्षक नियमावली पर शिक्षक संगठनों और अभ्यर्थियों की आपत्तियों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव जी को गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए उसका निराकरण करना चाहिए।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।