बात-बेबात: 'घुट रहा है दम मेरा ये नफ़रती माहौल मत क्रिएट करो'
मुंबई: भोजन देने से पहले कहा– जय श्रीराम कहो
छुट्टी का दिन होने के कारण मैं अपने स्टडी रूम में बैठा कुछ लिखने का विचार कर रहा था कि तभी राम गोपाल जी मिठाई का डिब्बा लिए पधारे। बड़ी प्रसन्न मुद्रा में दिख रहे थे। बोले - ''राज भाई, मुंह मीठा कीजिए''
राम गोपाल जी मेरे पड़ोसी हैं पर मेरे घर उनका आना-जाना कम ही होता है। दरअसल हम अलग-अलग विचाराधारा के लोग हैं। वे हिंदुत्व के कट्टर समर्थक हैं।
''आपके यहां से तो दिवाली पर मिठाई का डिब्बा आ गया था। फिर ये दुबारा मिठाई?'' मैंने जिज्ञासा प्रकट की।
वे बोेले–''दिवाली का मिठाई का डिब्बा तो आपके घर से भी मेरे घर आ गया था। पर ये दिवाली की मिठाई नहीं है। ये उस ऐतिहासिक पल के बारे में है जब पांच सौ साल बाद भगवान राम की इतनी दिव्य और भव्य वापसी अयोध्या में हुई है। दूसरी बात, योगी जी ने सरयू तट पर 25 लाख दीए जलाकर गिनीज बुक में नाम दर्ज करा दिया है। और उन्होंने आश्वासन दिया है कि काशी और मथुरा में भी यही होगा। परम आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भी इसे ऐतिहासिक दिवाली बताया है। इस खुशी को पड़ोसियों से बांटने का लोभ संभरण नहीं कर पा रहा हूं। मैं अभिभूत हूं। मुझे गर्व है।'' यह कहते हुए वे हमारे पास रखी कुर्सी पर विराजमान हुए।
''किस बात पर गर्व है?''
''योगी जी जैसे हिंदू राजनेता पर जो....''
उन्हें बीच में ही टोकते हुए मैंने कहा, ''उत्तर प्रदेश में विधानसभा की नौ सीटों पर उपचुनाव हैं। और योगी जी चाहते हैं कि फैजाबाद अयोध्या की मिल्कीपुर सीट पर भी उपचुनाव हो जाएं। इसी के लिए वे लोगों से कह रहे हैं कि 'आपने अयोध्या में भगवान का मंदिर निर्माण करने को कहा था। वह हमने करा दिया। अब आप कब तक सीता जी की (पढ़िए योगी जी की) अग्निपरीक्षा लेते रहेंगे। हमने अपना काम कर दिया। अब आपकी बारी है।' यानी वे कहना चाहते हैं कि अपना कीमती वोट देकर भाजपा को उपचुनाव जितवाइए। यह तो उनका पोलिटिकल एजेंडा है।''
''आप इसे चुनाव से जोड़कर देखते हैं और मैं अपनी भारतीय संस्कृति से। सनातन धर्म से। मोदी जी और योगी जी जैसे भारतीय संस्कृति के रक्षकों पर मुझे गर्व है।''
''राम गोपाल जी, आपको भारतीय संस्कृति के रक्षकों पर गर्व है यानी भारतीय संस्कृति की रक्षा करनी पड़ रही है। इसका मतलब क्या भारतीय संस्कृति खतरे में है? ''
प्रश्न सुनकर वे प्रसन्न हुए, लगा उनकी पसंद का सवाल पूछ लिया गया हो।
पर वे कुछ उवाचते उससे पहले मैंने उठते हुए कहा- पहले कुछ चाय-नाश्ता हो जाए। बस दो मिनट दीजिए…अभी बनाकर लाया गर्मागर्म चाय।
वे बोले- “अरे बैठिए…छोड़िए चाय नाश्ता। इतनी ज़रूरी बात आपने छेड़ दी है…और आप क्यों बनाएंगे चाय? भाभी जी घर में हैं न!”,
मैं मुस्कुराया। शायद यही है उनकी भारतीय संस्कृति! जो आज उन्हें ‘ख़तरे’ में लगती है।
वे बोलना शुरू कर चुके थे– ''भारतीय संस्कृति खतरे में तो है ही। और खतरा एक तरफा नहीं तीन तरफा है। सबसे बड़ा खतरा तो ये मुसलमान हैं। इन्होंने अयोध्या में रामजन्म भूमि पर बाबरी मस्जिद बना दी थी। काशी में ज्ञानवापी मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई थी। मथुरा में भी कृष्ण भूमि पर मस्जिद बनाई गई। उन्होंने हमारे मंदिरों को तोड़ा और मस्जिदों का निर्माण किया। इस तरह हमारी भारतीय संस्कृति को नुकसान पहुंचाया। ईसाईयों ने यहां ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार कर हमारे हिंदू भाईयों को ईसाई बनाया। धर्मांतरण का सिलसिला अभी भी चल रहा है। हमारे भोले-भाले हिंदुओं को कोई मुसलमान बना रहा है तो कोई ईसाई। लव जिहाद चलाकर हमारी भोली-भाली हिंदू युवतियों को मुसलमान बनाया जा रहा है। और ये वामपंथी तो हैं ही धर्म विरोधी। इन्हें हमारे परम पावन धर्म में कमियां नजर आती हैं।''
''आपको नहीं लगता कि इन खतरों के लिए आपका धर्म जिम्मेदार है। आपके धर्म में ऊंच-नीच है। जाति व्यवस्था है। आपने अपने ही लोगों को जातियों के उच्च-निम्न क्रम में बांट रखा है। यहां ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया और शूद्रों में विभाजन हैं। अतिशूद्रों यानी दलितों पर तो आपने अमानवीय अत्याचार किए हैं। उनसे अपना मल साफ करवाया है। आपका पानी का मटका भर छू देने पर या आपके कुएं या लोटे से पानी लेने या पी लेने पर आपने उन्हें बुरी तरह प्रताड़ित किया है। अपने समान बराबरी का दर्जा, उनके साथ रोटी-बेटी का रिश्ता रखना तो दूर आप उसे अपने साथ अपनी चारपाई पर भी बैठने नहीं देते। कोई दलित आपकी ब्राह्मण-ठाकुर-बनिया कन्या से प्रेम कर बैठे तो आप उसकी बेरहमी से हत्या कर पेड़ पर उसका शव लटका देते हैं। जब आप उनसे इतनी छुआछूत, भेदभाव और नफरत करते हैं तो फिर वे भला किसी और धर्म को क्यों नहीं अपनाएंगे? ''
वे थोड़ा असहज हुए। फिर बोले -''आपके कथन में आंशिक सच्चाई है। इस कमी को दूर करने के लिए हम अपने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के माध्यम से सामाजिक समरसता पर काम कर रहे हैं। अभी हाल ही में सरसंघचालक परम आदरणीय मोहन भागवत जी के नेतृत्व में मथुरा में हमारी बैठकें हुईं। उनमें विचार मंथन हुआ। और कई अति उत्तम निष्कर्ष निकल कर सामने आए। उनका हम आरएसएस कार्यकर्ता देशभर की बस्तियों में जा-जा कर प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। हिंदू राष्ट्र के लिए हिंदुओं की एकता परमावश्यक है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बाबा योगी आदित्यनाथ तो आजकल हमारे स्टार प्रचारक बने हुए हैं। उनके विचार तो आप पढ़ते-सुनते ही होंगे।''
इस दौरान पत्नी बिना कहे चाय-नाश्ता रख गईं थीं। चाय की चुस्कियों के साथ हमारी वार्ता जारी थी।
मैंने कहा, ''हां, आजकल उनका 'बंटेंगे तो कटेंगे' नारा बहुत पॉपुलर हो रहा है। वे लोगों से बजरंगवली या रामभक्त होने की अपील कर रहे हैं। उनका कहना है कि जो राम भक्त होगा वही राष्ट्र भक्त होगा। आज के रावण, खर-दूषण, चंड-मुंड हिंदुओं को बांट रहे हैं। उनका अंत निश्चित है।'’
राम गोपाल जी, आपको नहीं लगता कि यह अपने प्रतिद्विदियों के प्रति नफरत फैलाना और उनके खिलाफ हिंदुत्ववादी हिंदुओं को भड़काना है। आपके मंत्री और सांंसद गिरिराज तो और भड़काऊ बयान दे रहे हैं। वह एक मुसलमान द्वारा एक थप्पड़ मारने पर सौ हिंदुओं द्वारा उन को सौ थप्पड़ मारने की बात कह रहे हैं। एक लोकतांत्रिक पद पर बैठा व्यक्ति हर-हर महादेव के नारे लगवा रहा है। और इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। हरियाणा में साबिर मलिक नाम के युवक को भीड़ द्वारा इस शक में मार दिया जाता है कि वह गोमांस खा रहा था। जबकि जांच में पता चलता है कि वह गोमांस नही था। आप ही सोचिए कि इतनी नफरत भड़काना, बेगुनाहों की जान लेना, यह गर्व की बात है या शर्म की बात।''
मैंने आगे कहा, ''अब तो आप मानवता के नाते होने वाले भंडारे में भी धर्म का बंटवारा करने लगे हो। मुंबई के टाटा अस्पताल के सामने ऐसा नजारा भी देखने को मिला कि भोजन वितरित करने वाला आपका हिंदू भाई 'जयश्री राम'’ का नारा लगाने वाले को ही भोजन दे रहा था। एक महिला ने यह नारा नहीं लगाया तो उसे भोजन नहीं दिया गया। यह न मानवता की दृष्टि से उचित या न धर्म की दृष्टि से।''
वे बोले- ''भाई, यह उचित और अनुचित का प्रश्न नहीं है। अपना-अपना नजरिया है। आपकी नजर में यह अनुचित है और मेरी नजर में उचित। खैर, मुझे और लोगों का भी मुंह मीठा कराना है।'' और वे चले गए।
मैं उनके जैसे लाखों लोगों के बारे में सोचने लगा जो हमारे देश में नफरत फैलाने, दंगा भड़काने और निर्दोषों की जान लेने में लगे हैं। मुझे लगा आज हमारा लोकतंत्र अगर बोल सकता तो यही कहता - ' घुट रहा है दम मेरा, ये नफरती माहौल मत क्रिएट करो।'
(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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