अतीक़-अशरफ़ और जीवा की हत्या का एक ही पैटर्न
उत्तर प्रदेश इन दिनों चार हाई प्रोफाइल हत्याओं के कारण चर्चा में है। बीते क़रीब चार महीने के भीतर हुई इन हत्याओं में समानताओं का काफी ज़िक्र हो रहा है, जिनमें माफिया अतीक अहमद उसका भाई अशरफ़ अहमद और डॉन मुख़्तार अंसारी का गुर्गा संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा आदि मारा गया।
राजधानी लखनऊ और संगम नगरी प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में हुई इन हत्याओं से न सिर्फ प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं बल्कि पुलिस की साख-इक़बाल भी दांव पर है।
कहा जा रहा है की कानून व्यवस्था को लेकर किये जा रहे है योगी आदित्यनाथ सरकार के सारे दावे इन हत्याओं के बाद धराशाही हो रहे हैं क्योंकि इन चारों हत्याओं में हत्यारों ने पुलिस की मौजूदगी में बेख़ौफ़ होकर गोलियां चलाई हैं।
उमेश-अतीक-अशरफ़ और जीवा हत्याकांड
राजधानी लखनऊ में अदालत परिसर में कोर्ट रूम के ठीक बाहर 7 जून को डॉन मुख़्तार अंसारी के गुर्गे संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा की हत्या कर दी गई। इससे पहले प्रयागराज में 24 फ़रवरी को दिन दहाड़े राजू पल हत्याकांड (2005) के मुख्य गवाह उमेश पल की हत्या कर दी गई। इसके बाद उमेश पाल हत्याकांड के मुख्य आरोपी माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ़ अहमद की हत्या 15 अप्रैल को प्रयागराज में हत्या कर दी गई।
पुलिस की मौजूदगी चार हत्याएं
इन चारों हत्याओं के बाद सबसे ज़्यादा सवाल प्रदेश की पुलिस की साख पर उठ रहे हैं क्योंकि चारों हत्याएं पुलिस की मौजूदगी में हुई हैं। उमेश की हत्या पुलिस सुरक्षा में हुई तो अतीक और अशरफ़ पुलिस हिरासत में मारे गए। वहीं जीवा की हत्या उस समय हुई जब पुलिस उसको लेकर पेशी पर आई थी।
पुलिस की मौजूदगी के अलावा माफिया अतीक उसके भाई अशरफ़ अहमद और डॉन मुख़्तार अंसारी के गुर्गे संजीव महेश्वरी की हत्याओं में कई और समानताओं को लेकर भी काफी चर्चा हो रही है।
भेष बदल कर आये हत्यारे
अतीक-अशरफ़ और जीवा तीनों की हत्याओं के दौरान हत्यारे भेष बदलकर आये। माफिया अतीक-अशरफ़ की हत्या में तीन हत्यारे शामिल थे, जो पत्रकार के भेष में आये थे। जबकि जीवा की हत्या करने के लिए अदालत आया हत्यारा वकील के भेष में था यानी काला कोर्ट पहन कर आया था। दोनों ही बार खुफिया विभाग विफ़ल नज़र आया।
हत्यारे भागे नहीं
इन हत्याकांडों में एक बड़ी ख़ास समानता यह भी है की हत्या करने के बाद हत्यारे भागे नहीं थे और मौके पर ही पकड़े गये। ऐसा कहा जा रहा है कि हत्यारों को जैसे आत्मविश्वास था की पुलिस उनके विरुद्ध कोई करवाई नहीं करेगी।
दोनों ही मामलों में जहां हत्यारे भागे नहीं वहीं मुठभेड़ में सैकड़ों बदमाशों को ढेर करने का दावा करने वाली पुलिस द्वारा पुलिसकर्मियों ने हमलावरों को बेअसर करने के लिए अपने बंदूकों का इस्तेमाल नहीं किया।
जहां अतीक-अशरफ़ के मामले में हत्या के बाद तीनों हत्यारों ने हिंदू धार्मिक नारा “जय श्री राम” लगाते हुए स्वयं आत्मसमर्पण कर दिया था वही जीवा के हत्यारे को वकीलों ने पकड़कर पुलिस के हवाले किया।
अत्याधुनिक हथियारों का प्रयोग
अतीक-अशरफ़ की हत्या में 9 एमएम की ऑटोमेटेड पिस्टल "जिगाना पिस्टल" का इस्तेमाल किया गया था। बताया जा रहा है की जीवा हत्याकांड में हत्यारा "मैग्नम अल्फा" 357 बोर की ऑटोमेटेड पिस्टल का इस्तेमाल किया था।
इस पर सवाल किया जा रहा है कि अर्थिक रूप से कमज़ोर और कम उम्र के हत्यारों के पास इतने अत्याधुनिक हथियार कहां से आये? दोनों ही मामलों में हत्यारों का कोई पुराना आपराधिक इतिहास भी अभी तक नहीं मिला है।
अतीक और जीवा दोनों की पत्नियों ने अपने-अपने पति की हत्या की आशंका जताई थी। बताया जाता है कि अपराध की दुनिया से राजनीति में आये अतीक की पत्नी शाइस्ता ने अपने पति और देवर अशरफ़ की हत्या की आशंका मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को और जीवा की पत्नी पायल ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर अपने-अपने पति की जान को खतरा बताया था।
पुलिसकर्मियों का निलंबन
दोनों हत्याकांडों में किसी बड़े अधिकारी के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई लेकिन कई छोटे पुलिसकर्मी सस्पेंड ज़रूर कर दिये गए। अतीक-अशरफ़ हत्याकांड में लापरवाही बरतने के आरोप में पांच पुलिसवालों को सस्पेंड कर दिया गया है जिसमें एक थाना प्रभारी, दो सब इंस्पेक्टर और दो कॉन्स्टेबल शामिल हैं। जीवा मामले में 6 पुलिस कर्मियों पर गाज गिरी जिनको लापरवाही बरतने के लिए निलंबित कर दिया गया है।
एसआईटी गठित
प्रयागराज में 15 अप्रैल, 2023 को हुए अतीक-अशरफ़ हत्याकांड और 7 जून को राजधानी लखनऊ कोर्ट में पुलिस जीवा की गोली मारकर हत्या, यानी 53 दिन के अंदर हुई इन तीनों हत्याओं की जांच के लिए प्रदेश सरकार द्वारा दो एसआईटी बनाई गई है। अतीक-अशरफ़ की हत्या होने के बाद एसआईटी गठित की गई जिसका नेतृत्व प्रयागराज के अपर पुलिस महानिदेशक कर रहे हैं। टीम के अन्य दो सदस्य प्रयागराज के पुलिस आयुक्त और “फोरेंसिक” विज्ञान प्रयोगशाला, लखनऊ के निदेशक हैं।
ठीक ऐसे ही जीवा की हत्या होने के बाद भी एसआईटी बना दी गई है। इस एसआईटी में अपर पुलिस महानिदेशक (टेक्निकल) मोहित अग्रवाल, नीलब्जा चौधरी और अयोध्या के आई जी प्रवीण कुमार को शामिल किया गया है।
जैसा कि पुलिस सूत्रों द्वारा बताया गया कि अतीक गुजरात के साबरमती जेल से अपना नेटवर्क चला रहा था और उसका भाई अशरफ़ उत्तर प्रदेश की बरेली की सेंट्रल जेल से वसूली का कारोबार करता था। इसी तरह बताया जाता है जीवा भी लखनऊ जेल से अपने गुर्गों के जरिए नेटवर्क चला रहा था।
पुलिस के सामने इक़बाल बचने का सवाल
पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी मानते हैं कि इन हत्याकांडों से पुलिस के इक़बाल पर सवाल खड़े हो रहे हैं। पूर्व आईपीएस विजय शंकर सिंह कहते हैं कि यह हत्याकांड विफलता को साबित करते हैं और यही कारण है की पुलिस को अपने लोगों को निलंबित करना पड़ा है।
वह आगे कहते हैं कि अब प्रदेश पुलिस के सामने अपने इक़बाल-साख बनाये रखने का संकट है। उन्होंने कहा, “यह सत्य है कि यह तीनों अपराधी थे, लेकिन अपराध के ज़रिये अपराधी को ख़त्म करने से अपराध पर काबू नहीं पाया जा सकता है। बल्कि इससे अपराध की एक नई प्रवृत्ति का जन्म होगा। सिंह कहते हैं कि अपराधियों को सज़ा देना अदालत का काम है।
हत्याओं का कारण नहीं मालूम
दो दशकों से प्रदेश की राजनीति पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार आसिफ़ जाफ़री मानते हैं कि अतीक-अशरफ़ और जीवा हत्याकांड की जांच एक ही टीम से करवाना चाहिए है। इसका कारण जाफ़री यह मानते हैं कि तीनों हत्याओं का कारण अभी तक नहीं मालूम है। उन्होंने कहा कि अभी तक पुलिस इन हत्याओं का कारण नहीं बता सकी है।
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