तमिलनाडु: दलदली या रिहायशी ज़मीन? बेथेल नगर के 4,000 परिवार बेदखली के साये में
चेन्नई: दक्षिण चेन्नई के शोलिंगनल्लूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के इंजंबक्कम इलाके के बेथेल नगर में हजारों परिवार अपने घरों के छीने जाने को लेकर आशंकित हैं और वे अनिश्चितता के वातावरण में जी रहे हैं। एक एनजीओ कार्यकर्ता ने पर्यावरणीय कारणों का हवाला देते हुए यह चाहता है कि इन परिवारों को उनके घरों से बेदखल किया जाए।
हालांकि 156 एकड़ में फैला इस क्षेत्र को कई विभिन्न अवसरों पर आवासीय उद्देश्यों के लिए उपयुक्त माना गया है, जबकि एक मामला दायर कर आरोप लगाया गया है कि यह जमीन दलदली भूमि का ही विस्तार है, जिस पर "अतिक्रमण" कर लोगों ने अपने घर बना लिए हैं, लिहाजा अदालत इन्हें यहां से हटा दे। हालांकि, बेथेल नगर के निवासियों का तर्क है कि वे अतिक्रमणकारी नहीं हैं और यह जमीन आज से 20 वर्ष से काफी पहले से पंचायत से खरीदी गई थी।
वास्तव में, यह पुराना महाबलीपुरम रोड आईटी हब से सटे हुए और ईस्ट कोस्ट रोड से लगे कई समृद्ध कई इलाकों का संपन्न परिवेश है, जहां पर रिसॉर्ट्स तथा समुद्र तट पर घर बने हुए हैं। यह स्थल दक्षिण चेन्नई के आसपास के अन्य क्षेत्रों से भी जुड़ा है। बेथेल नगर में रहने वाले निम्न-आय वाले परिवार के लोग हैं, जो बेदखल करने पर आमादा राज्य सरकार, कॉरपोरेट्स और कॉर्पोरेट-वित्त पोषित गैर सरकारी संगठनों से अदालतों में लड़ने के लिए जैसे-तैसे अपने संसाधन को जमा किया है।
‘हम अतिक्रमणकारी नहीं हैं’
बेथेल नगर के 10,000 निवासियों में से एक व्यक्ति का कहना है कि उन्हें यहां से बेदखल करने के उद्देश्य से लंबे समय से कोर्ट में केस चलाया जा रहा है, लेकिन उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी।
बेथेल नगर पाधुगप्पू पेरवई के सचिव नारायणन ने बताया, “2016 में, जब हमारे क्षेत्र में एक जनगणना की गई थी, तो हम इसके बारे में पूछने के लिए कलेक्टर कार्यालय गए थे और तभी हमें इस मुकदमे के बारे में जानकारी मिली।"
बेथेल नगर पाधुगप्पू पेरवई उस इलाके में श्रमिकों, व्यापारियों और निवासियों के संघों का एक महासंघ है, जो बेथेल नगर को बचाने और इससे संबंधित अदालती मामलों को लड़ने के उद्देश्य से एकजुट है।
बेथेल नगर के एक निवासी अरुल ने कहा, "20 वर्ष से भी ज्यादा समय पहले, जब इसके आस-पास के इलाकों में जगहें सिकुड़ने लगी थीं, तब पंचायत ने इस चरागाह की पहचान की थी, इसका सर्वेक्षण किया था और इसे तीन समुदायों-पटियाल, मुधलियार और मछुआरों को आवंटित कर दिया था। तभी यह जमीन हमलोगों ने खरीदी थी। इसलिए हम अतिक्रमणकारी नहीं हैं।”
‘यह दलदली भूमि नहीं है’
फेडरेशन का तर्क है कि इंजंबक्कम में बेथेल नगर की कुल 156 एकड़ भूमि दलदली नहीं है, बल्कि मुख्य रूप से यह आरक्षित चरागाह (मेइकल पोराम्बोके) की जमीन है।
"भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास के विशेषज्ञों की एक टीम 2016 में उच्च न्यायालय में एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें साबित किया गया था कि बेथेल नगर की भूमि पल्लिकरनई दलदली भूमि का विस्तार नहीं है,”बेथेल नगर निवासी राजसिम्हन ने यह बताया।
नारायणन ने कहा, “इसके बाद,एम करुणानिधि सरकार के अंतिम कार्यकाल में, एक नीतिगत निर्णय लिया गया कि चेन्नई की सीमा के भीतर कोई चरागाह भूमि नहीं होगी। इस निर्णय के आधार पर भी बेथेल नगर की जमीन आवासीय उद्देश्यों के लिए उपयुक्त हो जाता है।”
बेथेल नगर को नाथम पोरोम्बोक के रूप में वर्गीकृत करने का विरोध। फोटो सौजन्य: अरुल
उस समय लिए गए नीतिगत निर्णय के कारण, सरकार को चरागाह भूमि को नाथम पोरोम्बोक में यानी आवास के लिए बने क्षेत्र में परिवर्तित करने का अधिकार है।
उन्होंने आगे कहा, “जिला कलेक्टर, गजलक्ष्मी ने इस मामले में दो रिपोर्टें दायर की थी- एक अदालत में और दूसरी राजस्व विभाग को। यह दोहराते हुए कि यह भूमि आवासीय उद्देश्यों के लिए उपयुक्त है, उन्होंने प्रस्ताव दिया था कि प्रत्येक परिवार को 2 सेंट पर बासगीत का पट्टा दिया जा सकता है और जो इससे अधिक जमीन रखे हुए हैं, उनसे सरकार जमीन ले सकती है।”
फॉर्म-7 वितरण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन। छवि सौजन्य: राजसिम्हन
हालांकि बार-बार यह साबित किया जा चुका है कि मौजूदा बेथेल नगर विस्तारित दलदली भूमि पर स्थित नहीं है, फिर भी सरकार ने हाल में यहां के बाशिंदों को फॉर्म-7 वितरित किया है। इस फॉर्म के अनुसार, निवासियों को इसका कारण बताना होगा कि उन्हें इस जमीन से क्यों नहीं बेदखल किया जाना चाहिए। लोगों ने इस फार्म को भरने से इनकार कर दिया और इस कदम का विरोध किया।
अगला कदम प्रपत्र 6 है, जो बेदखली नोटिस है।
एनजीओ चाहता है कि लोग यहां से बेदखल हों
अदालत में जारी मामले के जरिए यह साबित करने का प्रयास किया जा रहा है कि बेथेल नगर पल्लिकर्नई दलदली भूमि का विस्तार है। हालांकि यहां के परिवारों को उजाड़ने की दिशा में यह कोई पहला प्रयास नहीं है।
नारायणन ने बताया कि कैसे उसी व्यक्ति आइएच सेकर ने 2008 में "एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें पोरम्बोक भूमि का उपयोग पार्क और स्कूल जैसे अन्य उद्देश्यों के लिए किए जा सकने” के तर्क के आधार पर बेथेल नगर के निवासियों को बेदखल करने की मांग की थी। उन्होंने बताया, “मद्रास उच्च न्यायालय ने 2010 में इस मुकदमे को खारिज कर दिया था।”
इसके कुछ साल बाद 2015 में आइएच सेकर ने एक अन्य मामला दायर किया, जो अभी चल रहा है।
आइएच शेखर इंजंबक्कम में मछुआरा समुदाय से आते हैं और खुद को एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पहचानते हैं। वे एक गैर सरकारी संस्था नेचर ट्रस्ट के संस्थापक हैं, जिसे पर्यावरण और विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के उद्देश्य से बनाया गया था। उन्होंने इंजंबक्कम में "अतिक्रमण" के हल के लिए भी इस तरह के अन्य मामले भी दर्ज करा रखे हैं।
नारायणन आश्चर्य करते हैं कि "अदालतों में मामले केवल उन्हीं जगहों के लिए क्यों दायर किए जाते हैं, जहां हम जैसे साधारण लोग रहते हैं? बकिंघम नहर के किनारे बने बड़े-बड़े कार्यालयों और बंगलों के बारे में क्या विचार है? अमीरों और अमीरों के खिलाफ कभी मामले दर्ज नहीं किए जाते। इसलिए यह विश्वास करना मुश्किल है कि एनजीओ वास्तव में पर्यावरणीय कारणों से ये संघर्ष कर रहा है।”
यह नहीं भूलना चाहिए कि इंजंबक्कम ईस्ट कोस्ट रोड पर स्थित है, जहां अचल संपत्ति का मूल्य बहुत अधिक है।
2021 में यहां से डीएमके विधायक उम्मीदवार ने चुनाव जीता था, जिन्होंने बेथेल नगर के निवासियों को घर-घर पट्टे देने का वादा किया था। लिहाजा, यहां के बाशिंदे अब उनसे आग्रह कर रहे हैं कि उन्हें उखाड़ने के मकसद से किए जा रहे तमाम प्रयासों पर अब पूर्ण विराम लगाया जाए।
अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।