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“पर्यावरण को जनमानस का अभियान बनाने की ज़रूरत”

“...अगर आप वृक्ष लगाते हैं तो जल को भी संरक्षित करते हैं, वर्षा को भी संरक्षित करते हैं और एयर पॉल्यूशन के लिए सबसे बड़ी संजीवनी है प्लांटेशन”
Air Pollutionn

दिल्ली में ख़तरनाक श्रेणी तक पहुंचे प्रदूषण की वजह से दिल्ली सरकार 20 और 21 नवंबर को आर्टिफिशियल बारिश और ऑड-ईवन लाने की तैयारी कर रही थी लेकिन 9 नवंबर की रात को हुई बारिश के बाद जैसे ही AQI (Air Quality Index) का लेवल ज़रा कम हुआ, दिल्ली सरकार ने ऑड-ईवन लाने का ख़्याल पोस्टपोन कर दिया। 

दिल्ली की हवा में कुछ सुधार हुआ ही था लेकिन दिवाली के अगले दिन दिल्ली एक बार फिर गैस चैंबर में तब्दील हो गई। कई जगह AQI 900 के पार चला गया। AQI के बढ़ने के साथ ही राजनीति भी शुरू हो गई। पर्यावरण जैसे मुद्दे पर कोई बेहतर रणनीति बनाने की बजाए राजनीति हो रही है जिससे साफ है कि नेताओं के लिए ये मुद्दा कितना अहम है!

कुछ दिन पहले हमने 'सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट' के प्रिंसिपल मैनेजर (क्लीन एयर टीम) विवेक चट्टोपाध्याय से दिल्ली के वायु प्रदूषण पर बातचीत की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि "इस वक़्त बैठक और दूसरी चीज़ें हो रही हैं।  लेकिन जैसे ही विंड स्पीड बढ़ जाएगी या बारिश हो जाएगी तो सब शांत हो जाएंगे।"

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बारिश के बाद दिल्ली सरकार ने जैसे ही ऑड-ईवन का ख़्याल पोस्टपोन किया तो कहीं न कहीं विवेक चट्टोपाध्याय की बात सही लगती नज़र आई। क्या वाकई पर्यावरण और वातावरण की चिंता तभी सताती है जब हालात बेकाबू होने लगते हैं और मेडिकल इमरजेंसी जैसे हालात पैदा हो जाते हैं? 

सरकारें पर्यावरण को लेकर कितनी चिंतित है इसका तो पता नहीं लेकिन कई ऐसे लोग हैं जिन्हें साल के 365 दिन पर्यावरण और वातावरण की चिंता सताती है, वे अपने स्तर पर छोटे-छोटे क़दम उठाते रहते हैं। 

ऐसे ही एक युवा हैं निशांत, 28 साल के निशांत बिहार के नवादा से हैं। ग्रामीण परिवेश से निकले निशांत की 'धरती फाउंडेशन' नाम से एक संस्था है जिसके माध्यम वे पैन इंडिया एन्वायरमेंट कंज़रवेशन और नदी बचाओ अभियान, वृक्षारोपण का काम कर रहे हैं। उनकी टीम का मिशन है कि वे 2050 तक पूरे देश में 500 करोड़ वृक्ष लगाएंगे।

हमें पता चला कि निशांत दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पर्यावरण से जुड़े कई प्रयास कर रहे हैं। हालांकि वे ख़ुद इस यूनिवर्सिटी के छात्र नहीं रहे हैं लेकिन बावजूद वे यहां के कैंपस में पर्यावरण से जुड़े कार्यक्रम का आयोजन करते रहते हैं। उनकी फाउंडेशन एलुमनाई एसोसिएशन जेएनयू के समर्थन से अब तक कैंपस में 500 पेड़ लगा चुकी है। साथ ही उनकी फाउंडेशन यहां छात्रों के बीच साइकिल चलाने को लेकर जागरूकता अभियान चला रही है और इसी कड़ी में उन्होंने एक छोटी-सी पहल भी की है जिसके तहत छात्र उनसे साइकिल ले सकते हैं और बदले में छात्रों को उनकी फाउंडेशन को हर महीने एक पौधा डोनेट करना होगा। 

चूंकि निशांत लंबे समय से पर्यावरण पर काम कर रहे हैं और वे दिल्ली के पर्यावरण पर भी काम कर रहे हैं तो हमने उनसे दिल्ली में बढ़े प्रदूषण और उसे कैसे कम किया जा सकता है इसपर बातचीत की।

सवाल: दिल्ली का वायु प्रदूषण ख़तरनाक लेवल पर पहुंच गया इस पर आपको क्या कहना है?

जवाब: हम लोग जब प्रदूषण की बात करते हैं तो एयर पॉल्यूशन क्वालिटी की बात करते हैं। अगर हम दिल्ली के एयर क्वालिटी इंडेक्स की बात करें तो वे इस तरह से क्यों बढ़ रहा है? तो सबसे पहली चीज़ जो ख़ासकर एयर पॉल्यूशन से जुड़ी है वो है ट्रांसपोर्टेशन, जो बड़ी भूमिका निभाती है। लगभग 20 से 30 फीसदी एयर पॉल्यूशन ट्रांसपोर्टेशन के कारण है, जिस तरह से हम इंडिविजुअल बेसेस पर व्हीकल्स को इस्तेमाल करते हैं तो सबसे महत्वपूर्ण है हम पब्लिक ट्रांसपोर्ट को जितना ज़्यादा हो सके इस्तेमाल करें। और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को हम बेनेफिशियल बनाएं। 

जहां तक बात है कि हर दिन प्रदूषण बढ़ रहा है तो तीन साल पहले कम था उससे तीन साल पहले जाएंगे तो कुछ और कम मिलेगा, बीच के दौर में बहुत ज़्यादा था। जब मेट्रो जैसी इनोवेशन आती हैं तो हम एक अच्छी दिशा में जाते हैं मगर जिस तरह से आगे आने वाली जो पीढ़ी है वो Sustainable (टिकाऊ) तरीके के बारे में कम सोचती है, बहुत कम लोग हैं जो ऑर्गेनिक तरीके से सोचते हैं, निजी वाहनों का इस्तेमाल बड़ी परेशानी है। 

दूसरी परेशानी है कंस्ट्रक्शन की, जिस तरह से दिल्ली में कंस्ट्रक्शन हो रहा है और कंस्ट्रक्शन में आपको पता है हर तरह का रिसोर्स है जिस तरह से हम डीजल का इस्तेमाल करते हैं, टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं, उसका असर पड़ता है। 

तीसरी और सबसे बड़ी जो प्रॉब्लम और सवाल है कि हम इसके लिए कदम क्या उठाते हैं! बात दिल्ली की हो या देश के किसी हिस्से की, जब पॉल्यूशन आता है तो सॉल्यूशन की बात करते हैं, तो पॉल्यूशन के सॉल्यूशन की बात सिर्फ तब नहीं करनी है जब सिचुएशन खड़ी होती है क्योंकि इसके लिए हमें ऑर्गेनिक और कंस्ट्रक्टिव एप्रोच के साथ सोचना होगा। 

एयर पॉल्यूशन को कम करने के लिए दिल्ली में हमें यमुना नदी को लेकर काम करना चाहिए और प्लांटेशन ड्राइव चलानी चाहिए, साथ ही हमारी जो बायोडायवर्सिटी है उसको कैसे बेहतरीन बनाएं इसपर काम करना होगा।

सवाल: प्रॉब्लम हुई तो उसपर बात कर रहे हैं लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता, लेकिन आप नेचर को लेकर हमेशा सोचते हैं उसको लेकर आपने और आपकी फाउंडेशन ने कुछ कदम भी उठाए हैं, उसके बारे में बताइए।

जवाब: हम 500 करोड़ प्लांटेशन को लेकर काम कर रहे हैं। वृक्ष लगाने का मेरा उद्देश्य ये है कि वृक्ष अपने आप में पॉल्यूशन का Filtration करता है। अगर आप वृक्ष लगाते हैं तो जल को भी संरक्षित करते हैं, वर्षा को भी संरक्षित करते हैं और एयर पॉल्यूशन के लिए सबसे बड़ी संजीवनी है प्लांटेशन। तो इसके कारण हम प्लांटेशन को लेकर ज़्यादा फोकस कर रहे हैं क्योंकि इस नेचर में जो बायोडायवर्सिटी की अपनी क्लाइमेट है उस इकोसिस्टम को बनाए रखने के लिए प्लांटेशन, फोरेस्टेशन और रिवर कंजर्वेशन ये चीज़ें सबसे ज़्यादा अहम है। हमारा 'भारत नदी अभियान' भी है और भारत की नदियों को संरक्षित करना हमारा सबसे मुख्य उद्देश्य है और इसको लेकर हमने दो साल पहले यमुना पर भी काम शुरू किया है। मैं बहुत बड़े लेवल पर नहीं हूं लेकिन हम अपना काम कर रहे हैं, दिल्ली यमुना के लिए हमारी पूरी गाइडलाइन तैयार हो रही है। हम सरकार की जो व्यवस्था है उसके साथ हैं लेकिन हमारा मानना है कि ये जनमानस का अभियान होना चाहिए। हर एक आम आदमी की ये सोच होनी चाहिए कि कैसे हम नदियों को बचाएं, कैसे हम जीवन को बचाएं और कैसे हम अपने आधार को बचाएं। 

सवाल: आप जेएनयू में पर्यावरण को लेकर काम कर रहे हैं उसके बारे में कुछ बताएं, साथ ही आपने जेएनयू को ही क्यों चुना?

जवाब: जेएनयू में आने का मकसद ये है कि हम यहां लगातार प्रोफेसर और विभिन्न विभाग के छात्रों के साथ जुड़े थे, एलुमनाई एसोसिएशन जेएनयू ने हमें सपोर्ट किया। हम यहां कोविड के पहले से साल 2016-17 से प्लांटेशन का काम कर रहे हैं। जेएनयू देश की बेहतरीन यूनिवर्सिटी में से एक है। यहां के छात्र रहे लोग देश की तरक्की में योगदान दे रहे हैं। यहां के छात्रों का हमेशा से माइंडसेट है कि यहां कॉमन पीपल की बातें होती है, यहां के शिक्षित युवाओं के साथ मिलकर काम करना आसान होता है।

वे आगे कहते हैं कि "हमने जेएनयू में 500 पेड़ लगा दिए हैं 2018 से लेकर अब तक, लेकिन हमारी कोशिश है कि 2025 तक जेएनयू में 11 हज़ार पेड़ लगांएगे जिसमें से 5 हज़ार पेड़ आम और फलों के होंगे ताकी छात्र जो कैंपस के अंदर रहते हैं उन्हें फल मिल सकें। यहां स्पेस की कोई कमी नहीं है।"

"हमारी संस्था (धरती फाउंडेशन) किसी भी कैंपस में ये सोचकर आती है कि जितने भी विद्यार्थी हैं वो अपने एकेडमिक ईयर में एक प्लांट ज़रूर लगाए और उसकी ज़िम्मेदारी लें, उसकी देख-रेख, उसका संरक्षण हमारी फाउंडेशन करेगी और जेएनयू में हम इस कार्य को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।"

"इसके साथ ही हमारी फाउंडेशन ने एक बाइक डेवलप की है जो कि पैडल साइकिल है जो हम छात्रों को उपलब्ध करवा रहे हैं, जो छात्र साइकिल ले रहे हैं उनको हर महीने एक प्लांट डोनेट करना है। एक सैंपलिंग का डोनेशन 99 रुपये का है और वे साइकिल अडॉप्ट करते हैं और उन्हें हर महीने एक प्लांट डोनेट करना होता है। इस तरह से जेएनयू के छात्र हमारी साइकिल ले रहे हैं और पर्यावरण की गतिविधि को आगे बढ़ा रहे हैं। जिसका रिस्पांस बहुत अच्छा मिल रहा है, अलग-अलग विभाग के छात्र साइकिल ले रहे हैं, गर्ल्स भी हिस्सा ले रही हैं।"

निशांत उदाहरण देते हैं कि "एक लड़की ने एक दिन में करीब 71 किलोमीटर साइकिल चलाई तो एक साइकिल इस्तेमाल करने पर एक दिन में अगर एक लीटर पेट्रोल बच जाता है तो ये बड़ा योगदान है वायु प्रदूषण को कंट्रोल करने में, और हमें लगता है कि कैंपस में साइकिल सबसे बड़ा माध्यम होना चाहिए।"

सवाल: ये बात अच्छी है कि हम या तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल करें या फिर साइकिल चलाएं, लेकिन जब हम इसे ग्राउंड पर देखते हैं तो साइकिल के लिए फुटपाथ नहीं है, तो उस बेसिक चीज़ को डेवलप करने के लिए क्या करना होगा? अभी पॉल्यूशन हो रहा है तो हम बात कर रहे हैं लेकिन जब ऐसे हालात नहीं होते तो पूरे साल क्या करते रहना चाहिए?

जवाब: ये बात सच है कि साइकिल के Pathway को डेवलप करने की ज़रूरत है। इसीलिए अभी हम कैंपस बेस्ड काम कर रहे हैं, यूनिवर्सिटी बेस्ड काम कर रहे हैं, लेकिन ये बात सच है कि साइकिल के लिए अलग से Pathway होना चाहिए, और एक बात और है कि दिल्ली में जिन जगहों पर साइकिल के Pathway हैं उन जगहों पर लोग बाइक चढ़ा देते हैं तो ये आम आदमी को भी सोचना होगा कि हमें किस जगह पर कौन सी गाड़ी चलानी है और सरकार को इसके लिए एक बड़े स्तर पर मुहिम की तरह काम करना होगा कि साइकिल Pathway बहुत महत्वपूर्ण है और इस पर काम करना चाहिए।

सवाल: अगर प्रदूषण को लेकर स्कूल-कॉलेज बंद हो रहे हैं तो ये मुद्दा कितना गंभीर है? पर्यावरण को लेकर जैसी आवाज़ बुलंद होनी चाहिए, नहीं दिख रही, क्यों? 

जवाब: आज आप जितने भी आंदोलन देख रहे हैं वो पॉलिटिकल माइंड सेट के साथ होते हैं और कॉलेज के छात्र भी इस चपेट में आ गए हैं आज छात्र भी किसी न किसी पार्टी से जुड़े दिखते हैं तो इसलिए वो इस पर खड़े होते नहीं दिख पाते, दिल्ली गैस चैंबर बनी हुई है जिसके लिए जन आंदोलन होने चाहिए थे पर ये चीज़ हमें देखने को नहीं मिली। अगर क्लाइमेट की बात होती है तो सबको साथ आने की ज़रूरत है। 

सवाल: प्रदूषण पर कोर्ट को बोलना पड़ रहा है, पराली को प्रदूषण का अहम कारण बताया जा रहा है इसे आप कैसे देखते हैं? 

जवाब: बायोडायवर्सिटी में लोगों को बसा दिया जा रहा है, हम उसे बचा नहीं पा रहे हैं जिसकी वजह से आज ऐसी खतरनाक स्थिति पैदा हो गई है। दूसरी चीज़ पराली - दिल्ली की सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि स्टेट पॉलिसी और सेंटर पॉलिसी दोनों के बीच तालमेल न होने की वजह से बहुत दिक्कत आती है, और लोग एक दूसरे को पॉलिटिकल अटैक करते हैं जबकि आम लोग भुगतते हैं क्योंकि जब आम आदमी की बात होती है तो सेंटर और स्टेट को साथ मिलकर किसी तरह का हल निकालने की बात करनी चाहिए, क्योंकि राजनीतिक मतभेद की वजह से भी बहुत सी समस्याएं आ रही हैं। इसके लिए सरकार को अलग तरह से हल निकालना चाहिए इसके लिए अलग मैकेनिज़म डेवलप करके पराली जलाने पर रोक लगानी चाहिए क्योंकि ये बहुत बड़ा फैक्टर है ख़ासकर दिल्ली के प्रदूषण के लिए।

सवाल:आप आने वाली पीढ़ी के लिए कैसा पर्यावरण देखते हैं? 

जवाब: मेरा मानना है कि अगर कोई समस्या है तो उसको हल करना चाहिए, अगर किसी चीज़ में दिक्कत है तो उस पर काम करने की ज़रूरत है, उसमें बदलाव लाने की ज़रूरत है। 

वे आगे कहते हैं कि "आज प्रदूषण एक ऐसा मुद्दा है बच्चों का स्कूल बंद कर दिया जा रहा है अब सोचिए अगर 5-10 दिन स्कूल नहीं जाएंगे तो वो पूरा एक महीना बर्बाद कर देता है। दिल्ली में ये स्थिति है कि जो बच्चे दिल्ली में पैदा हुए हैं उनके बड़े होने तक कई के लंग्स की हालत ख़राब हो जाती है, तो सिंपल लॉजिक है डॉक्टर, हॉस्पिटल, इलाज बाद की चीज़ें हैं जो जीवन की चीजें हैं उस पर सरकार को बात करनी चाहिए और उसमें बड़ा बदलाव होना चाहिए।

निशांत अपने जीवन में पर्यावरण के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं। उन्होंने अपनी बॉडी पर पर्यावरण से जुड़े कई टैटू भी बनवाए हुए हैं। वे सोचते हैं जब तक आम इंसान पर्यावरण से नहीं जुड़ेगा, उसकी चिंता नहीं करेगा तब तक पर्यावरण सही मायनों में नहीं सुधर सकता। 

हम सब जानते हैं जिस वक़्त पूरे देश में लॉकडाउन लगा था, हमारा आसमान कुछ ज़्यादा नीला हो गया था, नदियां बेहद साफ हो गई थीं। तो क्या पर्यावरण को बचाने का क्या यही एकमात्र उपाय रह गया है? सरकार को इस पर गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है।

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