तिरछी नज़र: सरकार जी का एक देश, एक चुनाव
प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। कार्टून सतीश आचार्य के X हैंडल से साभार
भारत एक देश है। हम सब यह जानते हैं। सरकार जी के आने से पहले से यह जानते हैं। सरकार जी के आने के बाद तो यह जाने हैं कि एक देश में सबकुछ एक होना चहिये। एक खाना, एक पहनावा। एक धर्म और एक ही अशिक्षा।
एक खाना, एक पीना से मुझे समझ आया कि सब लोग एक ही चीज खाएं और एक ही चीज पीयें। मतलब न मोमोज खाएं, न ही चाउमीन खाएं। मतलब डोसा सांभर और बड़ा, वह भी बंद। पिज़्ज़ा भी बंद। और समोसा तो हरगिज ना खाएं (जिन्हें शक है, गूगल कर के देख लें, यह कहाँ से आया है)। ये जो विदेशी लोग हैं ना, चाइना वाले, इटली वाले, और ये साउथ वाले भी भोजन जिहाद करना चाहते हैं। अब सरकार जी सरकार हैं, यह नहीं चलेगा। देश में सब लोग बस गाय का गोबर खाएं और गौ मूत्र पीयें। इनसे बनी हुई डिशेज खाएं। और ये जो देश में मास्टर शेफ हैं ना, गोबर और गौ मूत्र से नई नई डिशेज बनायें। हाँ, गाय का दूध, और उससे बने दही, पनीर और घी का इस्तेमाल जरूर कर सकते हैं। और हाँ, मसाले भी सिर्फ वही डालें जिनका मूल भारतीय हो।
और जब एक खान पान हो जाए तो साबुन, तेल और इत्र की भी कोई जरूरत नहीं है। साबुन और उबटन की जगह गोबर तो है ही और तेल की जगह गौ मूत्र। वैसे भी यह सब खाने पीने और लगाने के बाद शरीर इतना महकेगा कि इत्र बनाने वाली कम्पनियां बर्बाद हो जाएंगी। साबुन तेल और सौन्दर्य प्रसाधन बनाने वाली विदेशी मूल की सारी कंपनियों का जनाजा निकल जायेगा।
आप मुझे मूढ़ कहेंगे। कहेंगे कि मैं कहाँ की हाँक रहा हूँ। एक देश और बाकी सबकुछ एक देख कर ऐसा ही लग रहा है कि मैं दूर की नहीं हाँक रहा हूँ, दूर की नहीं देख रहा हूँ। जब एक देश, एक धर्म, एक पार्टी, एक नेता, एक भाषा, एक झंडा और एक डंडा, एक चुनाव होगा तो एक खाना, एक पीना और एक लगाना नहीं होगा क्या? होगा, जरूर होगा, आज नहीं तो कल होगा। पर होगा जरूर।
अब सरकार जी ने एक चुनाव का नारा दिया है। कितना प्यारा नारा है। एक देश, एक चुनाव। जो लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं, देख नहीं पा रहे हैं कि सरकार जी का इसमें कितना भला है। जब सरकार जी ही देश हैं और देश ही सरकार जी हैं तो जहाँ सरकार जी का भला, देश का भला। तो एक देश, एक चुनाव में सरकार जी का, ओह! सॉरी, देश का बहुत ही भला है।
सबसे पहला भला तो यह है कि सरकार जी साढ़े चार साल निर्बाध रूप से विदेशी दौरे पर रह सकेंगे। यह जो बार बार देश लौटना पड़ता है ना, और ठहरना पड़ता है, चुनाव की वजह से, जी का जंजाल है। एक चुनाव से लाभ यह होगा कि देश बार बार नहीं लौटना पड़ेगा। साढ़े चार साल बाद एक बार आए, चुनाव लड़वायें और विश्व भ्रमण पर निकल पड़ें। जगह जगह ढोल बजाए, स्वादिष्ट खाना खाया, पर्यटन किया, गले पड़े, मस्जिद गए, अच्छी अच्छी बातें कीं और सत्तर साल की बुराई की। साढ़े चार साल देश की कोई चिंता नहीं। जो कुछ किया, विदेश में किया। लौटे तो बस नई पैकिंग करने के लिए लौटे। है ना कितने फायदे की बात।
दूसरा लाभ यह कि कीमतें साढ़े चार साल निर्बाध रूप से बढ़ाते रहो। कोई पूछने वाला नहीं। वैसे पूछने वाला अब भी कोई नहीं है और जो पूछता है, आज कीमत बढ़ने की बात पूछता है, तो नेहरू से पूछता है। आज की कीमत बढ़ने की बात आज के सरकार जी से पूछने की हिम्मत तो किसी में बची ही नहीं है। एक चुनाव होंगे तो साढ़े चार साल कोई चूँ भी नहीं कर पायेगा। हाँ, साढ़े चार साल बाद जनता दुगनी हुई कीमतों में पांच दस पर्सेंट की कमी की खुशखबरी जरूर सुन सकती है। ख़ुश हो सकती है और सरकार जी की जय जयकार कर सकती है।
एक लाभ और। एक चुनाव के लिए कितनी ईवीएम और कितनी वीवीपैट मशीन की जरूरत पड़ेगी। लगभग तीन गुनी। उनको कौन बनाएगा? कौन उनकी आपूर्ति करेगा? कौन उसमें कमीशन देगा और कौन खायेगा? मैं ही सबकुछ क्यों बताऊँ। आप खुद समझदार हो, समझ लो।
लाभ तो और भी बहुत से होंगे पर उन्हें समझने लिखने में समय लगेगा। लेकिन एक देश, एक चुनाव में एक हानि भी है। सरकार जी को एक हानि है। सरकार जी जो हर चार छः महीने बाद मंदिर-मस्जिद, हिन्दू-मुस्लमान, मुल्ला-मौलवी, मांस-मछली, महिलाओं का मंगलसूत्र, आदि करते हैं, नहीं कर पाएंगे। न ही कांग्रेस की विधवा और पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड जैसे महिलाओं का सम्मान करने वाले वाक्य बोल पाएंगे। लेकिन कोई बात नहीं, सरकार जी देश के लिए यह भी सह लेंगे। विदेश में ही हिन्दू समाज के सामने यह सब बोल लेंगे। और जब कभी देश लौटेंगे, संसद में आएंगे, तो संसद में बोल लिया करेंगे।
सरकार जी यह हानि सह लेंगे पर अपने लिए, देश के लिए एक देश, एक चुनाव जरूर लाएंगे। पर कब लाएंगे? जब महिला विधेयक लागू हो जाएगा, उसके बाद लाएंगे।
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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