यथास्थितिवादी व्यवस्था के ख़िलाफ़ नये प्रतिरोध को दर्ज करातीं उषा राय की कविताएं
''किसी भी प्रकार के भेदभाव से ऊपर प्रेम संदेश देती हैं मेरी कविताएं। मणिपुर में स्त्रियों के विरुद्ध जो चल रहा है वही मेरी कविताओं में है। जब मणिपुर के लोग ये पूछते हैं कि क्या हम भारत के नागरिक नहीं हैं तो यह में बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है।'' यह बात उषा राय ने गुलमोहर किताब द्वारा आयोजित उनके एकल कवितापाठ कार्यक्रम में कही। कार्यक्रम का आयोजन 30 जुलाई 2023 को सफाई कर्मचारी आंदोलन के दिल्ली कार्यालय में किया गया।
इस अवसर पर कवि व राजनीतिक विश्लेषक अजय सिंह ने मणिपुर पर प्रस्ताव पढ़ा। जिसमें कहा गया कि हम मणिपुर की औरतों पर हुए बर्बर हमले की सख्त लफ्जों में निंदा करते हैं। इसे मानवता के खिलाफ मानते हैं। पीड़ित महिलाओं के खिलाफ हम अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं।
इस पर सभी ने अपनी सम्मति व्यक्त की।
उषा राय ने इस अवसर पर अपनी 13 कविताओं का पाठ किया जो इस प्रकार हैं : 'मांजुली', 'भीमाकोरेगांव', '....मिर्जा को सुनते हुए', 'नाभि दर्शना', 'मेडल चूमते हुए', 'लव जिहाद', 'सुहैल मेरे दोस्त', 'सप्तपर्णी', 'प्रेम', 'तेंदुआ', 'रो लो जरा', 'यूक्रेनी बच्चा', 'महोक'।
'तेंदुआ' उनकी चर्चित कविता है जो सात खंडों में लिखी गई है। इसमे राजनीति से लेकर सामाजिक पारिवारिक सभी स्थितियों को समाहित किया गया है। इसमें राजनीतिक सत्ता से लेकर पुरुष सत्ता पितृसत्ता तक सभी को शामिल किया गया है।
घुस आया है तेंदुआ
वे मुग्ध हैं उसके हिंसक अंदाज पर
गर्व करते हैं फूल माला से लाद देते हैं
पर लोग हैरान हैं कि यह तो तेंदुआ है!
कुछ ने उसके खून सने
दांत देखें कुछ ने तीखे नाखून भी
आमजन लेखक पत्रकार संस्कृतिकर्मी
और स्त्रियां चीख -चीख कर बताती हैं
कि ....
हिंदुत्व का वरद हस्त और नफरत की आंच पाते ही
इसके हाथ पाँव लेने लगते हैं आकार
चमक उठती हैं आंखें खुलते हैं दांत
कसमसाने लगता है करने को वार,
गलत सही कुछ नहीं मानता
भारत भूमि पर जन्म लेता है बार-बार
यह आदिकाल का महाशिकारी।
'भीमाकोरेगांव' कविता में वे लिखती हैं -
आज उन्होंने बचा लिया किसी तिलकधारी को कुपित होेते हुए
चांदनी के फूल इनकार करते हैं/बिस्तर पर बिछाए जाने से
पैरों से कुचले जाने से/
चांदनी के फूल और महारों को जितना तोड़ा जाता/
वे उतना ही खिल जाते हैं
'मेडल चूमते हुए' कविता में वे महिला पहलवानों का उत्साहवर्धन करते हुए कहती हैं -
अब नींद उड़ेगी तानाशाहों की
पतवार मत छोड़ना
पितृसत्ता को सबक सिखाना
मेरे नाविक पतवार मत छोड़ना
उषा राय अपनी 'लव जिहाद' शीर्षक कविता में लिखती हैं-
'तुम्हारी इज्जत का बोझ मेरे कंधों पर भारी है मां
और अब मैं इसे नहीं उठाउंगी
तुम देखती रहना, मैं सड़कों पर लड़ती रहूंगी
मुझे भरोसा है अपने प्रेम पर
अपने संविधान पर।'
इसी प्रकार वह 'सुहैल, मेरे दोस्त' में कहती हैं-
जो समय और प्रेम को नहीं पहचानते
वे इतिहास का कचरा ढोते हैं
'रो लो जरा' में कवयित्री पुरुषों के रो लेने के पक्ष में हैं। वे लिखती हैं-
समस्याएं इतनी आसानी से नहीं सुधरतीं
पर रोने से झूठा अहम ढल जाता है
उषा राय की कविताओं पर टिप्पणी करते हुए कवि और लेखिका शोभा सिंह ने कहा -
आज इतनी खूबसूरत कविताओं की शाम बहुत सुंदर है। उषा राय ने 'तेंदुआ' कविता में पूरा चित्र खींच दिया है - फासिज्म का। उषा जी की कविताएं प्रतिरोध की सुंदर कवतिाएं हैं। वे वामपंथी आंदोलन से जुड़ी रही हैं। कविता में सौंदर्य और संघर्ष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने कहा - 'सुहैल, मेरे दोस्त' कविता मुझे बहुत पसंद है। जीवन को खूबसूरत बनाने के लिए प्रेम का स्वर मजबूत होता है। उषा जी ने लेखन में रिस्क लिया है। उन्होंने कहीं-कहीं बहुत बेखाैफ होकर लिखा है। उनकी कविताएं सामाजिक सरोकारों की कविताएं हैं।
नाटककार राजेश कुमार ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि - ''आजकल लोग अपने लेखन में सत्ता विरोधी प्रतिक्रिया देने से बचते हैं। चुप रहते हैं। पूछो तो कहेंगे मैं तो विरोध में हूं। पर उषा जी ने भीमाकोरेगांव में खुलकर लिखा है। उनकी कवतिाएं सुकून देती हैं। नफरतों के दौर में प्रेम की पैरवी करती हैं।
सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि मुझे कविताएं सुनते हुए अच्छा लगा। उषा जी के कविताएं सुनाने कां अंदाज बहुत अच्छा है। उन्होंने पितृसत्ता पर अच्छा लिखा है। उनकी कविता में प्यार एक नेचुरल लव है।
कवि और राजनीतिक विश्लेषक अजय सिंह ने दिवंगत वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल का उद्धरण देते हुए कहा कि - जैसे उन्होंने शोभा सिंह की कविताओं के बारे में कहा था कि संवेदना के एक नये सफ़र की शिनाख़्त करती हैं शोभा सिंह की कविताएं। उसी तरह की बात उषा राय की कविताओं के लिए भी कहा जा सकती ही। उषा राय की 'नाभि दर्शना' कविता एक अलग ढंग की कविता है। 'महोक' स्त्री की आज़ादी का मनुष्य की आज़ादी का प्रतीक बन जाता है। स्त्री के प्रति लोग इतने बर्बर कैसे हो जाते हैं। उषा की कविताएं प्रेम, मानवता, करुणा को बचाने की कविताएं हैं।
स्वदेश सिन्हा ने कहा कि उषा राय मूलत: प्रेम की कवि हैं। उनकी कविताओं में प्रतीक और बिंबों का सटीक प्रयोग किया गया है।
हिंदी राजभाषा विभाग की निदेशक शोभा रानी ने कहा कि उषा मेरी बहुत पुरानी मित्र हैं। मैं भी उन्हें लेखन के लिए प्रेरित करती रही हूं। उनकी कविताएं व्यवस्था से टकराती हैं। तेंदुआ का प्रतीक बहुत सुंदर है। 'महोक' कविता मुझे बहुत अच्छी लगी।
दिल्ली विश्वविद्धयालय के डीन अनिल राय ने कहा कि उषा जी की कविताओं में कई आयाम हैं, शेड्स हैं। उनकी कविता का सुहैल हम सब का दोस्त बन जाता है। कविताएं बहुत मारक हैं। उनकी रेंज बहुत बड़ी है। प्रेम को लेकर भी उनके कई रंग हैं। आशा करता हूं कि उनके और भी संग्रह आएं और उन पर चर्चा हो।
लोकेश जी ने अपनी बात मरहूम मशहूर शायर मीर तकी मीर की शायरी के माध्यम से कही कि -
'सिरहाने मीर के आहिस्ता बोलो
अभी दुख रोते-रोते सो गया है।'
हमें बचपन से ऐसे संस्कार दिए जाते हैं कि मर्द को दर्द नहीं होता। पुरुषों को रोने की तालीम नहीं दी जाती। ऐसे में उषा जी मर्दों के रोने की बात कहती हैं। वह स्त्री-पुरुष की बराबरी में सहायक है।
पत्रकार महेन्द्र सिंह ने कहा कि नई स्त्री की घोषणा कर रही हैं उषा राय की कविताएं। हम पुरुष खुद को स्त्रियों के बराबर लाएं। स्त्री कोे खत्म किया जाएगा तो सब कुछ खत्म हो जाएगा।
पत्रकार श्रीराम शिरोमणि ने कहा कि उषा जी की कविताओं को पढ़ते हुए महसूस किया जा सकता है। उनकी कविताओं के माध्यम से प्रेम को देखना, समझना सुखद है।
पत्रकार-अनुवादक कृष्ण सिंह ने कहा कि उनकी 'मांजुली' कविता बहुत अच्छी है। प्रतीक बिंब का अच्छा इस्तेमाल किया गया है।
फोटोग्राफर और घुमक्कड़ी में रूचि रखने वाले उपेन्द्र स्वामी ने कहा कि 'मुझे 'मांजुली' कविता के बिंब बहुत अच्छे लगे। हिरन-हिरनी का प्रेम अद्भुत है। मैं स्वयं पर्यटक रहा हूं। 'रो लो जरा' बहुत असरदायक कविता है।
कवि और पत्रकार मुकुल सरल ने कहा कि उषा जी बुनियादी तौर पर प्रेम की कवि हैं। बहुत बेबाकी से लिखती हैं प्रेम पर। यह बहुत खूबसूरत है। 'रो लो जरा' अच्छी कविता है। 'यूक्रेनी बच्चा' पूरी तरह से व्याख्यायित नहीं हो पाई है।
वरिष्ठ पत्रकार और कवि भाषा सिंह ने कार्यक्रम का संचालन किया। उन्होंने कहा कि आज की तारीख में लोकतंत्र और मानवता पर हमला तेज़ हुआ है। उसके बरक्स जो स्त्री स्वर है उषा जी उसे शब्द देती हैं। नई महिला तो बन रही है पर नया मर्द बन रहा है या नहीं। यह संघर्ष आज के दौर का है। आज सबसे ज्यादा हमला स्त्रियों पर है। उषा जी की कविताएं आज की यथास्थिति से टकराने की जिद की कविताएं हैं। उषा जी अपनी कविताओं में बिंबों का अलग-अलग प्रयोग करती हैं। उनकी कविताओं में संघर्ष है। उनकी कविताओं में स्त्री, पुरुष, बच्चे, प्रकृति सब है। उनकी कविताओं की खेती की जमीन अलग तरह की है। प्रयोगधर्मी हैं उनकी कविताएं। उनकी कविताओं मे स्त्री यौनिकता स्त्री सेंसुयलिटी सहज ढंग से आई है। इनमें नये बिंब आए हैं। उषा जी ने एक सुलगती जमीन तैयार कर दी है।
कार्यक्रम में श्रोताओं की अच्छी-खासी संख्या रही। कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
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