उत्तराखंड: उफनती नदियों, लैंडस्लाइड और नई दरारों के बीच जोशीमठ में क्या हालात हैं?
देखते ही देखते तीन से चार मंजिला इमारत ज़मीदोज़ हो गई, घर के खिड़की दरवाजों से तेज़ रफ़्तार में पानी यूं बहने लगा जैसे कोई झरना फूट पड़ा हो। हाईवे पर डरा देने वाली चौड़ी दरारें। दो-चार सेकेंड में ही इमारत ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर गिरती नज़र आईं। ये तस्वीरें हिमाचल में आई आफत के हालात बयां कर रही थीं। कुल्लू, शिमला, मंडी, सोलन से ऐसी तस्वीरें सामने आ रही थीं।
लेकिन ये हाल सिर्फ़ हिमाचल का ही नहीं है बल्कि उत्तराखंड में भी गंगा का रौद्र रूप दिखाई दिया। देहरादून में दून डिफेंस कॉलेज की इमारत आंखों के सामने भरभरा के गिर गई। हल्द्वानी, कोटद्वार, रुद्रप्रयाग, चमोली, पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, केदारनाथ नेशनल हाईवे समेत कई जगहों से अगस्त के महीने में परेशान करने वाली तस्वीरें आईं। कहीं बादल फटा तो कहीं लैंडस्लाइड हुआ तो कहीं सड़क ही गायब हो गई, नदियां ख़तरे के निशान से ऊपर बहती दिखीं।
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के हिमालयन रीज़न में अगस्त महीने में हुई बारिश, लैंडस्लाइड और नदियों के बढ़ते जलस्तर के आगे प्रशासन बेबस नज़र आया।
ऐसे में जोशीमठ में क्या हालात हैं ये पता करना बहुत अहम हो जाता है, क्योंकि इस साल जनवरी में जिस तरह से वहां के घरों और सड़कों पर चौड़ी दरार दिखाई दी थी उसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा था ऐसे में वहां अगस्त में हुई भारी बारिश के बाद क्या हालात हैं, ये जानने के लिए हमने 'जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति' के संयोजक अतुल सती से बात की।
अतुल सती जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव को लेकर लंबे समय से प्रभावित लोगों के साथ आंदोलन कर रहे हैं। प्रशासन और सरकार तक बात पहुंचाने के लिए वे लगातार धरना दे रहे हैं, ज्ञापन सौंप रहे हैं और जुलूस भी निकाल रहे हैं।
लेकिन बारिश के मौसम में जोशीमठ में क्या हालात हैं ये हमने अतुल जी से पूछा जिसके जवाब में उन्होंने कहा, "हालात तो थोड़े ख़राब हो ही रहे हैं क्योंकि बारिश से जो पुरानी दरारें हैं वो ज़्यादा गहरी और गंभीर हो गई हैं, नई जगहों पर भी चूंकि भूस्खलन हुआ है तो उससे भी परेशानी बढ़ी है।"
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जोशीमठ के भू-धंसाव वाले इलाकों में घरों के नीचे पानी बहने की आवाज़ सुनाई दे रही। बताया जा रहा है कि सुनील वार्ड के लोग फर्श में कान लगाकर पानी के बहने की आवाज़ सुन रहे हैं, ये आवाज़ नीचे किसी पानी के तेज़ बहाव की लग रही है।
वहीं दैनिक जागरण में छपी ख़बर के मुताबिक़ जोशीमठ के पगनों गांव के नीचे गुलाबकोटी के क़रीब बद्रीनाथ हाईवे को भी ख़तरा हो गया है। भूस्खलन की वजह से हाईवे पर बार-बार मलबा आ रहा है।
सड़क पर आई दरारें, साभार: अतुल सती
अतुल सती बताते हैं कि नए घरों और नई जगहों पर नई दरारों की पहचान हुई है। हमने उनसे जानना चाहा कि एक तरफ चौड़ी होती दरारें और ऊपर से बारिश का मौसम ऐसे में लोग कैसे रह रहे हैं? उन्होंने जवाब दिया कि "अब चूंकि उनके घर के हालात तो ख़राब हैं ही तो डर में रहते हैं, बारिश होती है तो लोग बाहर आ जाते हैं। कल रात ही बारिश हुई, मेरे घर में तो दरार इतनी गंभीर नहीं है लेकिन मैं रात में सोया नहीं, रात 12 बजे उठा, फिर 1 बजे उठा देखा कैसी बारिश है, इससे ख़तरा तो नहीं है, तो जब हम परेशान हैं तो बाकी जिनके घरों में गंभीर दरारें हैं तो उनके लिए तो डर है ही। कभी भी कुछ भी हो सकता है, लगातार हो भी रहा है, नई जगहों पर जिन जगहों पर भूस्खलन हुए हैं। ज़मीन में नमी है, गीली है ऐसे में और बारिश हो जाए तो सब नीचे जा रहा है। वे लोग चिंतित हैं जो उन (दरारों वाले) घरों में रहते हैं। अभी उनके पास कोई स्थाई समाधान नहीं आया है, सरकार ने अभी तक नहीं बताया कि कहां जाएंगे क्या करेंगे? भले ही वे बयान कुछ भी देते रहें।"
जनवरी में भू-धंसाव और दरारों की ख़बरों के बीच क़रीब 300 परिवारों को अस्थाई तौर पर विस्थापित किया गया था। हालांकि इनमें से कई परिवार अस्थाई इंतज़ाम से परेशान होकर वापस अपने घर लौट आए थे लेकिन बारिश के मौसम में इनकी चिंता बढ़ा दी है ऐसे में क्या ये फिर से कहीं जाने के बारे में सोच रहे हैं, इस बारे में हमने अतुल सती से जानना चाहा जिसपर उन्होंने जवाब दिया कि "कहां जाएंगे? कोई ऑप्शन तो होना चाहिए, सरकार कह रही है कि आप जोशीमठ में घर नहीं बना सकते, बात भी सही है जब तक रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं होती जिससे पता चले कि जोशीमठ में कहां घर बनाना सुरक्षित है कहां नहीं, तो अब क्या करेगी सरकार, कैसे विस्थापन, पुनर्वास करेगी, इन लोगों को कहां ले जाएगी? जब तक सरकार लोगों को कोई विकल्प नहीं देती तब तक लोग भी क्या करेंगे?”
वे बताते हैं कि "जो लोग कुछ संपन्न है वो कहीं-न-कहीं चले जाएंगे, बल्कि कुछ लोग जा भी चुके हैं, लेकिन जो बिल्कुल बुरी स्थिति में हैं उनका क्या, बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो दलित हैं। 122 से 124 परिवार ऐसे हैं जिनका घर राजीव गांधी आवास योजना के तहत या प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बना था उसमें दरारें आ गई, अब सरकार ये तय नहीं कर पा रही कि उन्हें मुआवजा दें कि क्या करें? अभी तक उसपर कोई गाइडलाइन नहीं आई तो उनके लिए तो समस्या है।"
जनवरी में जोशीमठ में जिस तरह से हालात थे और अगस्त के महीने में पिछले कुछ दिनों से बारिश हो रही है क्या ये जोशीमठ के लिए डरने की बात है? इस सवाल के जवाब में अतुल सती कहते हैं कि "जोशीमठ के आस-पास जैसी बारिश हुई है, क्लाउड बर्स्ट हुआ है वैसी बारिश अभी जोशीमठ में नहीं हुई है लेकिन जोशीमठ के पास जिन गांवों में हुई है वहां बहुत नुकसान हुआ है। जोशीमठ से 30 किलोमीटर दूर पीपलकोटी में 13 तारीख़ की रात में 20 से 25 मिनट तक भारी बारिश हुई और उसमें भारी तबाही हो गई।"
वे आगे कहते हैं कि "इतनी दरारें, इतना धंसाव 10-10 फीट नीचे ज़मीन खिसक गई है तो तबाही होगी, लेकिन अभी वैसी बारिश यहां नहीं हुई है, लेकिन जैसी भी बारिश हुई है नुकसान तो हुआ है। नई जगहों पर धंसाव हुआ है, जहां पहले से धंसाव था वहां बहुत ज़्यादा ज़मीन नीचे खिसक गई। नए घरों में दरारें आईं और वो भी तब हुआ जब अभी वैसी बारिश यहां नहीं हुई, लेकिन कभी भी हो सकती है।"
अतुल बताते हैं कि जोशीमठ से दूर ऑल वेदर रोड नीचे धंस गई, क़रीब 10 फीट से ज़्यादा, जबकि जोशीमठ में बद्रीनाथ जाने वाले रास्ते में दो जगहों पर धंसाव हुआ है।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पूरे हिमालयन रीज़न में जिस तरह का निर्माण कार्य चल रहा है उसने पहाड़ों की हालत को बिगाड़ दिया और पहाड़ों में आई इस आफत के तमाम कारणों में एक विकास के नाम पर चल रहा निमार्ण है। चूंकि कुछ जगहों पर ऑल वेदर रोड को भी नुकसान पहुंचने की ख़बरें मिल रही थीं तो हमने उनसे पूछा कि उत्तराखंड में ऑल वेदर रोड का क्या हाल है? जिसके जवाब में उन्होंने कहा, "उसका बहुत बुरा हाल है, गडकरी जी का सपना चकनाचूर हुआ है, गडकरी जी सपना देखते थे 10 मीटर चौड़ी सड़क बनाएंगे और फिर जनता से टोल टैक्स वसूल करेंगे लेकिन वो 10 मीटर तो कहीं भी नहीं रह गई है 6 से 7 मीटर ही रह गई है ज़्यादातर जगहों पर, करीब 50 फीसदी से ज़्यादा जगहों पर कह सकते हैं। लोग कह रहे हैं कि 12,000 करोड़ रुपया पानी में बह गया, सड़क जितनी चौड़ी की उसकी आधी भी नहीं रह गई।"
जिस वक़्त लोग डर में रह रहे हैं, ऐसे में प्रशासन क्या कर रहा है ये एक अहम सवाल है। हमने ये सवाल अतुल सती से भी पूछा जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि "लोग लगातार बोल रहे हैं, अभी चार दिन पहले भी हमने धरना दिया था। हमने फिर से सारी बातें कही और लगातार बोल रहे हैं। परसो जिलाधिकारी की मीटिंग हुई है, इस बारे में जिसमें कहा गया है कि हम दोबारा से सीबीआरआई (केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान) की टीम को बुलाएंगे और दोबारा सर्वे होगा कि जोशीमठ में कितना नुकसान हुआ है।"
प्रशासन जिस रफ़्तार से चल रहा है ऐसे में अगर जोशीमठ में कोई बड़ी आपदा आती है तो इसका ज़िम्मेदार कौन होगा, क्या सरकार? हमने ये सवाल अतुल सती से भी पूछा तो उनका जवाब था "निसंदेह, क्योंकि यहां हमने पहले से ही आवाज़ उठाई, पहले से ही चेतावनी दी है और पिछले 20 साल से इस बात को कहा जा रहा है, और अब तो इतना लंबा आंदोलन हो गया जिस पर पूरी दुनिया में बात हो रही है। हिमालयन रीज़न में जिस तरह से विकास हो रहा है उसपर सवाल उठ रहे हैं।"
बेशक विकास के कार्यों से किसी को ऐतराज़ नहीं हो सकता लेकिन ये भी मानना पड़ेगा कि हिमालयन रीज़न में विकास और निर्माण कार्य के तरीके बहुत ही सधे और सावधानीपूर्वक होने चाहिए।
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