घटते आपसी विश्वास के चलते प्रभावित होता चीन-अमेरिकी व्यापार समझौता
अगर कोई ऐसी मानक स्थिति की कल्पना की जाय,जिसे लेकर सूचना युद्ध की मौजूदा दुनिया में चीन के शिन्हुआ समाचार एजेंसी और सीजीटीएन के साथ कार्नेगी एंडाउमेंट फ़ॉर इंटरनेशनल पीस, सीएनएन, न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट की सहमति हो सकती है, तो उनकी साझी राय की सहमति इसी बात पर होनी चाहिए कि माइक पोम्पेओ अमेरिका के राजनयिक इतिहास में अबतक के सबसे ख़राब विदेशमंत्री हैं।
पोम्पेओ को लेकर शनिवार को चीन के दो सबसे बड़े अख़बार-सरकारी अख़बार चाइना डेली और पार्टी के मुखपत्र पीपुल्स डेली ने समान राय ज़ाहिर की। इन अख़बारों में एक राजनेता और इंसान के तौर पर पोम्पेओ की ईमानदारी की कमी, अनैतिकता और अविश्वास को लेकर दुख जताया गया है।
चाइना डेली / पीपुल्स डेली के ये लेख पोलित ब्यूरो के सदस्य और चीन के शीर्ष राजनयिक यांग जिएची को पोम्पेओ की तरफ़ से गंभीर सीमा निर्धारण वाले ‘किसिंजर’ मिशन जैसे नाज़ुक मिशन पर आमंत्रित करने की पहल के महज़ दस दिनों बाद सामने आये हैं।
पोम्पेओ ने दबाव बनाते हुए चीन की तरफ़ से पिछले जनवरी के उस व्यापार सौदे के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की उम्मीद जतायी, जिसमें चीन द्वारा अमेरिका से कृषि उत्पादों की बड़े पैमाने पर ख़रीद शामिल है। यह नवंबर में होने वाले चुनाव में व्यक्तिगत रूप से ट्रम्प के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है। कृषि लॉबी उनका 'मुख्य मतदाता वर्ग' है
पोम्पेओ अपने इस मिशन में कहां ग़लती कर गये, यह तो बता पाना मुश्किल है, लेकिन अमेरिकी राजनयिकों ने साफ़ तौर पर यांग के साथ इस धारणा के तहत बातचीत की कि वे हांगकांग, ताइवान और शिनजियांग के मुद्दे पर बीजिंग पर निशाना साधते हुए / धमकाते हुए चीन से रियायतें ले सकते हैं।
असल में पोम्पेओ ने जिस समय यांग की आगवानी की थी,ठीक उसी समय ट्रम्प ने चीन के उइगरों के दमन पर प्रतिबंध लगाने वाले नये क़ानून पर हस्ताक्षर कर दिये थे। (25 जून को अमेरिकी सीनेट ने हांगकांग के सुरक्षा क़ानून पर उस बिल को मंज़ूरी दे दी, जो अमेरिका को हांगकांग पुलिस, चीनी अधिकारियों और बैंकों के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाने की अनुमति देगा।)
पोम्पेओ साफ़ तौर पर इस बात को लेकर जोश में दिखायी दे रहे थे कि कोविड-19 महामारी के असर के चलते चीन अपनी अर्थव्यवस्था, राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय स्थायित्व को लेकर आज बहुत कमज़ोर और ह्रासोन्मुख शक्ति है बन गया है और इन नकारात्मक नतीजों ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और उसके नेतृत्व की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है।
लेकिन, इसके उलट, हवाई में हुई उस वार्ता को लेकर बीजिंग की प्रतिक्रिया बहुत तीखी रही है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के बयान के मुताबिक़, यांग ने हांगकांग, ताइवान और शिनजियांग पर पोम्पेओ की उस कार्यवाही को मज़बूती के साथ खारिज कर दिया है।
इस पर विदेश विभाग का बयान अप्रत्याशित रूप से चुप्पी साधने और टालने वाला था। हालांकि बाद की मीडिया ब्रीफिंग में अमेरिकी सरकार के विदेश विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने साफ़ तौर पर स्वीकार किया कि पोम्पेओ का मिशन नाकाम रहा है।
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असल में पोम्पेओ ने हवाई से जाने के लगभग तुरंत बाद 19 जून को कोपेनहेगन में एक भाषण में चीन पर एक तीखा हमला शुरू करते हुए अपनी वुल्फ़ वॉरियर डिप्लोमेसी (दिखावटी उदारता के पीछे की हमलावर कूटनीति) की रपटीली राह पर चल दिया और ख़ासकर चीन को लेकर एक के बाद एक अपने चार बयान दिये और फिर 25 जून को उन्होंने ब्रसेल्स में इस पर एक पूरा भाषण ही दे दिया।
पोम्पेओ लगातार संतुलन खो चुके किसी आदमी की तरह का व्यवहार कर रहे हैं। मुमकिन है कि इस तरह का उनका व्यवहार उनके हवाई मिशन की नाकामी से ध्यान हटाने का एक गेम प्लान भी हो, लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्री द्वारा इस तरह के अस्थिर, हद से ज़्यादा असंतुलित व्यवहार इस मायने में ग़ैर-मामूली है कि शीत-युद्ध के दौर में भी इस तरह का व्यवहार नहीं देखा गया था
मुमकिन है कि 26 जून को वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इन सभी उत्तेजना को लेकर एक सही ख़ुलासे को सामने रखा हो। इस दैनिक ने एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि बीजिंग ने वाशिंगटन को इस बात के लिए "चुपचाप" चेतावनी देना शुरू कर दिया है कि जनवरी के "पहले चरण" के व्यापार सौदे के तहत चीन की ख़रीद, जिसमें अमेरिकी कृषि उत्पाद शामिल हैं, अगर अमेरिका अपनी "हदों" को पार करता है, यानी कि अगर ट्रम्प प्रशासन उन मुद्दों पर किसी तरह की दखलंदाज़ी करता है,जिन्हें चीनी सरकार "निषिद्ध" मानती है, तो ख़रीद पूरी तरह से बंद हो सकती है।
इस दैनिक अख़बार ने गुमनाम अधिकारियों के हवाला से कहा कि यांग ने हवाई बैठक में पोम्पेओ को यह चेतावनी दी। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक चीनी अधिकारी ने वॉलस्ट्रीट जर्नल से कहा, 'अमेरिकी पक्ष को बहुत ज़्यादा दखलंदाज़ी से बचना चाहिए। निषिद्ध रेखा पार नहीं की जानी चाहिए। ”
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के टैब्लॉयड,ग्लोबल टाइम्स ने 26 जून को इस आशय की एक टिप्पणी भी छापी कि ट्रम्प की टीम को चीन के सम्बन्ध में अपने ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बयानों के असर को दूर करने के लिए "अधिक सद्भाव या सकारात्मक संकेत दिखाने चाहिए" ताकि “बाज़ार में इस तरह की अनिश्चितता से पैदा होने वाले नुकसान को रोका जा सके।”
ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि द्विपक्षीय सम्बन्धों में व्यापार सौदा एकमात्र मुद्दा नहीं होता है, “इसमें संदेह और चिंताओं को ख़त्म करने के प्रयासों की भी ज़रूरत होती है। अमेरिकी सरकार को हाल के महीनों में हुआवेई जैसी चीनी हाई-टेक कंपनियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई, अमेरिका द्वारा हांगकांग के विशेष व्यापार दर्जे को फिर से वापस ले लिये जाने की धमकी, और फिर से उड़ान शुरू होने पर तक़रार जैसे चीन के ख़िलाफ़ खोले गये सभी मोर्चे पर विचार करने की ज़रूरत है।
वॉल स्ट्रीट की टिप्पणी इस बात पर जाकर ख़त्म होती है कि "अमेरिका-चीन सम्बन्ध पर असर डालने वाले इस नुकसान को दुरुस्त करने पर विचार और प्रयास से द्विपक्षीय आर्थिक और व्यापारिक सम्बन्ध को एक सामान्य पटरी पर फिर से लाया जा सकता है।"।
वैसे ही ताइवान में हाल ही में अमेरिकी ओवरफ्लाइट, वॉशिंगटन की तरफ़ से ताइपे को हथियारों की बिक्री पर बढ़ते कथित क़दम, ताइवान को एक अलग राज्य के रूप में डब्ल्यूएचओ में प्रतिनिधित्व देने की अनुमति से सम्बन्धित पोम्पेओ के अभियान पर चीन ने अपने रवैये को तीख़ा कर दिया है।
ग्लोबल टाइम्स ने इस बात का ख़ुलासा किया है कि चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने सिर्फ़ जून में आठ बार ताइवान के दक्षिण-पश्चिम हवाई क्षेत्र में अपने सैन्य विमान भेजे हैं। ग्लोबल टाइम्स ने बताया कि टोही मिशनों और इस क्षेत्र से उड़ान भरने वाले अमेरिकी सैन्य विमानों पर नज़र रखने के अलावे पीएलए "ताईवान के मियाको जलडमरूमध्य से होकर गुआम और रयुकू द्वीप और ताइवान के दक्षिण-पश्चिम में बाशी, बालिनतांग और बाबूयान चैनलों से होकर आने वाले संभावित अमेरिकी और जापानी सैन्यबल को रोकने के लिए प्रशिक्षण दे रही है।
रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि "ताइवान की सेना नहीं बच निकले, इसे लेकर पीएलए इन अभियानों का इस्तेमाल विदेशी ताक़तों के इस क्षेत्र में प्रवेश को रोकने की ख़ातिर प्रभावी ढंग से घेराबंदी के लिए कर सकती है।"
साफ़ है कि चीन अपने आज़माये हुए नुस्ख़े के साथ एक बार फिर पहले के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा "मुखर" हो रहा है। इससे क्या पता चलता है ? क्या यह बिना मक़सद वाला सख़्त रवैया है, या जैसा कि कई भारतीय और अमेरिकी विश्लेषकों का मानना है कि यह कहीं चीन का अपनी कमज़ोरी को ढकने की कोशिश तो नहीं है ?
मगर, सच्चाई तो यही है कि चीन पिछले कई महीनों के दौरान अपना महीनों से मज़ाक बनाये जाने, अपमानित किये जाने और धमकी दिये जाने की अमेरिकी आशंकित कार्रवाई की एक श्रृंखला पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहा है। तीन वर्षों में पहली बार प्रशांत महासागर में अमेरिकी नौसेना के तीन लाख टन के विमान वाहक की तैनाती इस तरह का उठाया गया हालिया क़दम है। चीन इस पर लागातर नज़र बनाये हुए है, लेकिन नुकसान तो फिर भी हो रहा है।
अमेरिका के उकसाने वाले क़दमों ने अमेरिका-चीन के बीच के रिश्ते में तनाव पैदा कर दिया है। इस तरह के परिदृश्य से चीन की "मुखरता" एक सुरक्षा माहौल में इरादतन आक्रामकता के बजाय अवरोध के तौर पर सामने आती है, जहां किन्हीं कारणों से आपसी विश्वास टूट गया है।
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