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पश्चिम एशिया: ईरान गज़ा-लेबनान को लेकर इज़राइल के ख़िलाफ़ युद्ध में शामिल हो गया है

गज़ा में इज़राइल के हमलों ने सभी नागरिक बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया है, 42,000 से अधिक लोगों को मार डाला है, गज़ा की 80 फीसदी से अधिक इमारतों को नष्ट कर दिया है, और इसके 19 लाख नागरिकों (दस में से नौ) को आंतरिक रूप से विस्थापित कर दिया है।
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फ़ोटो साभार : रॉयटर्स

इज़राइल ने अपनी नीति के तहत क्षेत्रीय टकराव को बढ़ाकर, अब पश्चिम एशिया को एक बहुत ही बड़े युद्ध के कगार पर ला कर खड़ा कर दिया है। इज़राइल के लेबनान में दाखिल होने और ईरान द्वारा इज़राइल पर मिसाइल हमलों के नतीजे के तौर पर अब यह गज़ा और उसके लोगों के भाग्य का मामला नहीं रह गया है, जो लगभग एक साल से इज़राइल के नरसंहार की मुहिम को झेल रहे हैं। युद्ध में ईरान की इज़राइल के खिलाफ़ परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी भरी प्रतिक्रिया के बाद, इज़राइल अमेरिका के पूर्ण समर्थन के साथ एक नए चरण में प्रवेश करने वाला है। यह यमन, सीरिया और इराक को इस क्षेत्र से परे वैश्विक प्रभावों के साथ एक बहुत बड़े युद्ध में खींचने का जोखिम उठाता नज़र आता है। अमेरिका और इज़राइल ने जिस नई युद्ध की भाषा को अपनाया है, वह यह याद रखने में विफल है कि प्रथम विश्व युद्ध तब छिड़ गया था जब कोई भी प्रमुख देश युद्ध नहीं चाहता था, क्योंकि दोनों पक्ष इस उम्मीद में टकराव को बढ़ावा दे रहे थे कि दूसरा पक्ष पीछे हट जाएगा। जैसा कि अमेरिकी दार्शनिक जॉर्ज सांतायाना ने कहा था कि, "जो लोग अतीत को याद नहीं रख सकते, वे इसे दोहराने के लिए अभिशप्त होते हैं।" सिवाय इसके कि इस बार, किसी भी युद्ध का अंत परमाणु हथियारों के इस्तेमाल होने का जोखिम है। यदि अमेरिका, इज़राइल को उसके परमाणु बुनियादी ढांचे को नष्ट करने में मदद करता है, तो हम तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत देख सकते हैं, क्योंकि रूस और चीन नव-औपनिवेशिक पश्चिम एशिया में अमेरिका की वापसी को स्वीकार नहीं कर पाएंगे।

गज़ा में इज़राइल के हमलों ने सभी नागरिक बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया है, 42,000 से अधिक लोगों को मार डाला है, गज़ा की 80 फीसदी से अधिक इमारतों को नष्ट कर दिया है, और इसके 19 लाख नागरिकों (दस में से नौ) को आंतरिक रूप से विस्थापित कर दिया है, जिनमें से अधिकांश बार-बार विस्थापित हुए हैं। गज़ा की आबादी के खिलाफ युद्ध, जिनमें से अधिकांश नकबा के दौरान विस्थापित शरणार्थी हैं, वह भी जारी है। हालांकि, यह लेबनान में इज़राइल के युद्ध के विस्तार और अब इसमें ईरान को शामिल करने से प्रभावित हो गया है। इससे पहले कि हम बड़ी तस्वीर पर नज़र डालें, यह याद रखना महत्वपूर्ण होगा कि इज़राइल ने सीरिया में ईरान के दूतावास पर बमबारी की है, जिसमें प्रमुख राजनयिक और सैन्य अधिकारी मारे गए हैं, सीरिया पर हमला किया है, और अभी भी न केवल फ़िलिस्तीन के पूरे हिस्से पर कब्जा कर रखा है, जिसे ओस्लो समझौते में एक स्वतंत्र राज्य के रूप में वादा किया गया था, जिसे समझौते को इजराइल ने आधिकारिक तौर पर दफना दिया है।

इज़राइल, गज़ा युद्ध को लेबनान की दहलीज़ तक क्यों ले गया? पेजर और वॉकी-टॉकी हमले, हिजबुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह की हत्या और लेबनान पर आक्रमण, सैन्य दृष्टि से उचित नहीं है। लगभग एक साल बाद भी, इज़राइल गज़ा में हमास को नष्ट करने के अपने सैन्य उद्देश्य में नाकाम रहा है, जो कि ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा है। अपने आप में, यह तब तक कोई अर्थ नहीं रखता जब तक कि हम दो अन्य इज़राइली उद्देश्यों को ध्यान में न रखें और उन्हें क्षेत्र में बड़े यूएस-नाटो रणनीतिक उद्देश्यों के साथ जोड़ कर न देखें।

पश्चिम एशिया (जिसे पश्चिम या अटलांटिक शक्तियां मध्य पूर्व कहती हैं) पर अमेरिका के नियंत्रण का कमज़ोर होना और ईरान के उदय को नियंत्रित करने में उनकी असमर्थता, इराकी आबादी से अमेरिकी आक्रमण के बाद उसका अलगाव और सीरिया में शासन परिवर्तन लागू करने में विफलता, कार्टर सिद्धांत के लिए बड़ा ख़तरा बन गया है। उस सिद्धांत में कहा गया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका फ़ारस की खाड़ी में अपने "राष्ट्रीय हितों" की रक्षा के लिए, यदि आवश्यक हो, तो सैन्य बल का इस्तेमाल करेगा। दूसरे शब्दों में, अमेरिका का मानना है कि खाड़ी क्षेत्र में तेल अमेरिका के "रणनीतिक भंडार" का एक हिस्सा है। यह इस बात में भी फिट बैठता है कि क्यों इज़राइल पश्चिम में एक सैन्यीकृत विस्तार है, अमेरिका और नाटो की एक शाखा के रूप में कार्य करता है, और क्यों इसे यूरोप में अमेरिका और उसके नाटो सहयोगियों का पूरा समर्थन हासिल है। यह, यह भी बताता है कि अमेरिका ईरान के साथ दुश्मनी क्यों नहीं करना चाहता है, और क्यों इराक, सीरिया और लेबनान में उसका शासन परिवर्तन अभियान अभी भी जारी है।

गज़ा युद्ध का विस्तार ईरान और लेबनान में हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हनीया की हत्या के साथ शुरू हुआ था, जो मुख्य रूप से कतर में रहते थे। उनकी हत्या तेहरान में तब हुई जब वे ईरान के नए राष्ट्रपति पेशनियन के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने गए थे। इज़राइल के खिलाफ पहले के हवाई हमले में, ईरान ने हमले की प्रकृति और समय दोनों के बारे में अमेरिका और उसके सहयोगियों को सूचित करने के बाद एक सीमित मिसाइल हमले के साथ जवाबी कार्रवाई की थी। इस बार नसरल्लाह की हत्या का जवाब एक बहुत शक्तिशाली मिसाइल हमला था, जिनमें से कई इज़राइल की तीन-स्तरीय एंटी-मिसाइल रक्षा-आयरन डोम, डेविड स्लिंग और एरो बैटरी को भेदते हुए निकल गए। मिलिट्री वॉच मैगज़ीन के अनुसार, इज़राइल को नेवातिम एयर बेस में मुख्यालय वाले एफ-35 के अपने उन्नत स्क्वाड्रन और हेत्ज़ेरिम एयर बेस में पुराने एफ-15 को काफी नुकसान पहुंचा है। वेबसाइट के अनुसार, "इज़राइल से हासिल फुटेज ने दर्जनों बैलिस्टिक मिसाइलों के प्रभाव की पुष्टि की है, जिन्हें इज़राइल का वायु रक्षा नेटवर्क मार गिराने में विफल रहा, जिसमें तेल अवीव में स्थित खुफिया एजेंसी मोसाद का मुख्यालय भी शामिल है, जिसे हमले में ध्वस्त कर दिया गया।" यदि यह विश्लेषण वास्तव में सटीक है, तो यह इज़राइल की बहुप्रशंसित त्रि-स्तरीय मिसाइल-रोधी रक्षा की विफलता को दर्शाता है और यह दर्शाता है कि एक समान प्रतिद्वंद्वी के विरुद्ध, मिसाइल रक्षा में बड़ी कमज़ोरियां हैं।

पश्चिम, स्वघोषित "नियम आधारित विश्व व्यवस्था" के नेता - मुट्ठी भर पूर्व-औपनिवेशिक और उपनिवेशी देश - अनुमानतः इस बात पर शोर मचाया कि ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन कैसे किया और उसे इसके क्या परिणाम भुगतने होंगे। यह उस अनुमोदन की आवाज़ से बिलकुल अलग है जो पश्चिम के शासकों ने इज़राइल द्वारा नसरल्लाह की हत्या के बाद की थी, और उसके बम-जाल वाले पेजर और वॉकी-टॉकी ने कई हिज़्बुल्लाह सदस्यों और अन्य नागरिकों को मार डाला था। अंतर्राष्ट्रीय कानून ऐसे बम-जाल वाले उपकरणों के इस्तेमाल को रोकता है। पूर्व सीआईए निदेशक लियोन पेनेटा ने लेबनान में हुए घातक पेजर विस्फोटों को आतंकवाद करार दिया और कहा कि, "मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई सवाल उठता है कि यह आतंकवाद का ही एक रूप है।" ... "यह सीधे आपूर्ति श्रृंखला में घुस गया है"। "और जब इस किस्म की आतंकी गतिविधि आतंक आपूर्ति श्रृंखला में घुस जाती है, तो लोग यह सवाल पूछते हैं: 'आखिर आगे क्या होगा?'" ह्यूमन राइट्स वॉच में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के निदेशक लामा फकीह ने कहा कि, "प्रथागत अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून बम फंदों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाता है - ऐसी वस्तुओं की आड़ में जिनकी ओर नागरिकों के आकर्षित होने की संभावना होती है या जो चीज़ें सामान्य नागरिक के दैनिक इस्तेमाल से जुड़ी होती हैं - नागरिकों को गंभीर जोखिम में डालने से बचने और उन विनाशकारी दृश्यों को पैदा होने से बचने की जरूरत है जो आज लेबनान में जारी हैं।"

फिर, नसरल्लाह की हत्या पर, जिसमें बेरूत में ऊंची इमारतों के एक पूरे ब्लॉक को अमेरिकी बंकर बस्टर बम और अमेरिकी विमान एफ-15 का इस्तेमाल करके ध्वस्त कर दिया गया था, अमेरिका ने अपने हथियारों के इस्तेमाल के बारे में कुछ नहीं कहा, जिससे नागरिक हताहत हुए और एक राजनीतिक गठजोड़ के नेता की हत्या हुई जो चुनावों में भाग लेता था, अस्पतालों, क्लीनिकों और शैक्षणिक संस्थानों सहित कई सामाजिक और कल्याणकारी गतिविधियों को अंजाम देता था। इस्तेमाल किए गए बम 2,000 पाउंड के बम थे, जिनमें यूएस निर्मित बीएलयू-109 भी शामिल था, कुल 80,000 किलोग्राम विस्फोटक यूएस निर्मित एफ-15 द्वारा भूमिगत बंकर और ऊपर की इमारतों में घुसने के लिए गिराए गए थे।

और “स्वतंत्र दुनिया” के नेता ने अंतर्राष्ट्रीय कानून के इस खुलेआम उल्लंघन का क्या जवाब दिया? इज़राइल को बधाई देकर किया! अमेरिकी मीडिया ने अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ से समर्थन को प्रसारित किया, और कई चापलूस एंकर, अमेरिकी प्रवक्ता और कई अन्य “विशेषज्ञ” पश्चिम एशिया में युद्ध को बढ़ाने पर आमादा दिखाई दिए।

जो लोग इतिहास को याद करते हैं,वे जानते होंगे कि 1982 में दक्षिणी लेबनान पर इज़राइल के कब्जे के परिणामस्वरूप नसरल्लाह नेता बन गए थे। इज़राइल ने लेबनान में दक्षिणपंथी मिलिशिया के साथ गठबंधन करके सबरा और शतिला शरणार्थी शिविरों पर हमला किया, जिसमें 2,000-3,000 महिलाओं और बच्चों की मौत हो गई थी, तब पीएलओ के लड़ाके इज़राइल के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर कर लेबनान छोड़ चुके थे। इन नरसंहारों और दक्षिणी लेबनान पर कब्जे के जवाब में अमल और लेबनान की कम्युनिस्ट पार्टी ने संयुक्त रूप से युद्ध लड़ा और 2000 में इजराइल को आखिरकार वापस जाने पर मजबूर कर दिया। हिजबुल्लाह और नसरल्लाह इसी सशस्त्र संघर्ष से पैदा हुए थे। 2006 में दक्षिणी लेबनान पर अपने हमले के दौरान हिजबुल्लाह ने फिर से इजराइल से लड़ाई की ताकि हिजबुल्लाह को लिटानी नदी के पूर्व में वापस धकेला जा सके, लेकिन इज़राइल और पश्चिमी मीडिया इस बात का ज़िक्र नहीं करते कि हिजबुल्लाह ने ऐसा करने पर सहमति जताई थी, बशर्ते इज़राइल गज़ा में युद्ध विराम स्वीकार करे। जैसा कि ट्रिटा पारसी लिखते हैं, "यह इज़राइल के लिए बहुत ज़्यादा था, और उसने युद्ध का विकल्प चुना क्योंकि उसे पता था कि बाइडेन एक बार फिर नेतन्याहू के पीछे खड़े हो जाएंगे।" और उनके विश्वास के अनुसार, राष्ट्रपति बाइडेन और विदेश सचिव ब्लिंकन ऐसे काम करते हैं जैसे वे  इज़राइल के वकील हों।

ईरान के परमाणु ढांचे पर अमेरिका और इज़राइल द्वारा हमला किए जाने की संभावना है, जिसमें तेल अवीव के पास अमोनिया संयंत्र और डिमोना परमाणु संयंत्र पर ईरान की जवाबी कार्रवाई शामिल है, जिससे इजराइल और उसके नागरिक आबादी को भारी नुकसान हो सकता है। सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं से पूरी तरह से मुंह मोड़ लिया है और संयुक्त राष्ट्र में भाग नहीं लिया है, जबकि अधिकांश देशों ने गज़ा में चल रहे नरसंहार के लिए इजराइल की निंदा की है। विदेश मंत्री ने गुटनिरपेक्षता के बजाय बहुसंरेखण के सिद्धांत पर विश्वास करते हुए कहा कि भारत के गुटनिरपेक्षता का मूल अफ्रीकी-एशियाई लोगों का गैर-उपनिवेशीकरण और एकजुटता था। इस मूल के बिना, भारत के बहुसंरेखण का मतलब है दुनिया को आगे बढ़ाने वाली चीजों से अलग-थलग पड़ जाना: जो अफ्रीका और पश्चिम एशिया के उपनिवेशीकरण का अंतिम अध्याय हो सकता है। विश्व मंच पर यही हो रहा है, और यही वह मान्यता है जिसके कारण कुछ नाटो सदस्य भी फ़िलिस्तीनी लोगों के खिलाफ इज़राइल के नरसंहार के खिलाफ सामने आ रहे हैं।

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