यदि शीर्ष अदालत में भी न्याय नहीं मिलेगा, तो लोग कहां जाएंगे : स्वाति मालीवाल
दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) की प्रमुख स्वाति मालीवाल ने बिल्क़ीस बानो की पुनरीक्षण याचिका उच्चतम न्यायालय द्वारा ख़ारिज कर दिए जाने के बाद शनिवार को सवाल किया कि यदि लोगों को शीर्ष अदालत से भी न्याय नहीं मिलेगा, तो वे कहां जाएंगे।
बानो 2002 में गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई थीं और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी।
न्यायालय ने बानो की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया है, जिसमें सामूहिक बलात्कार मामले के 11 दोषियों की सज़ा माफ़ करने की अर्ज़ी पर गुजरात सरकार से विचार करने के लिए कहने संबंधी शीर्ष अदालत के आदेश की समीक्षा का अनुरोध किया गया था।
मालीवाल ने ट्वीट किया, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने बिल्क़ीस बानो की याचिका ख़ारिज कर दी। बिल्क़ीस बानो के साथ 21 साल की उम्र में सामूहिक बलात्कार किया गया था, उनके तीन साल के बेटे और परिवार के छह अन्य लोगों का क़त्ल कर दिया गया था, पर गुजरात सरकार ने सभी बलात्कारियों को आज़ाद कर दिया। अगर उच्चतम न्यायालय से भी न्याय नहीं मिलेगा, तो लोग कहां जाएंगे?’’
प्रक्रिया के अनुसार, शीर्ष अदालत के फैसले के ख़िलाफ़ पुनरीक्षण याचिका पर फ़ैसला संबंधित निर्णय सुनाने वाले न्यायाधीश अपने कक्ष में करते हैं।
कक्ष में विचार करने के लिए यह याचिका 13 दिसंबर को न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ के समक्ष आई थी।
शीर्ष अदालत के सहायक पंजीयक द्वारा बानो की वकील शोभा गुप्ता को भेजे गए संदेश में कहा गया है, ‘‘मुझे आपको यह सूचित करने का निर्देश दिया गया है कि उच्चतम न्यायालय में दायर उक्त पुनरीक्षण याचिका 13 दिसंबर 2022 को ख़ारिज कर दी गई है।’’
बानो ने एक दोषी की याचिका पर शीर्ष अदालत द्वारा 13 मई को सुनाए गए आदेश की समीक्षा किए जाने का अनुरोध किया था।
शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से नौ जुलाई 1992 की नीति के तहत दोषियों की समय से पूर्व रिहाई की मांग वाली याचिका पर दो महीने के भीतर विचार करने को कहा था। गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों की सज़ा माफ़ करते हुए उन्हें 15 अगस्त को रिहा कर दिया था।
ज्ञात हो कि पुनरीक्षण याचिका में कहा गया है कि बानो को दोषी द्वारा दायर याचिका में पक्षकार नहीं बनाया गया था। याचिका में कहा गया था कि राज्य की सजा माफ़ी नीति के तहत दोषियों को रिहा किया गया था, जो लागू नहीं थी।
याचिका में कहा गया है, ‘‘नौ जुलाई 1992 की नीति गुजरात के आठ मई 2003 के परिपत्र द्वारा रद्द कर दी गई थी। ऐसे में यह जांचना आवश्यक है कि क्या सज़ा माफ़ किए जाने की दोषियों की याचिकाओं पर विचार करने के लिए नौ जुलाई 1992 की नीति तब प्रासंगिक होगी, जब गुजरात राज्य दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-432 के तहत उपयुक्त सरकार है।’’
बानो ने इस पुनरीक्षण याचिका के अलावा दोषियों की सज़ा माफ़ किए जाने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए एक अलग याचिका दायर की है। यह याचिका न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ के समक्ष 13 दिसंबर को सुनवाई के लिए आई थी। न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने इस याचिका की सुनवाई से ख़ुद को अलग कर लिया था।
न्यूज़ एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ
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