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तिरछी नज़र: ‘हम भ्रष्टन के, भ्रष्ट हमारे’

दशकों पहले सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी जी ने व्यंग्य लिखा था, 'हम भ्रष्टन के, भृष्ट हमारे'। आज लिखते तो भी यही लिखते।
Corruption
प्रतीकात्मक तस्वीर। कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य के x हैंडल से साभार

 

सरकार जी लगे हैं, उस चीज में लगे हैं जो चीज उन्हें सबसे अधिक पसंद है। अपना प्रिय काम करने में लगे हैं। भाषण बाजी में लगे हैं, झूठ बोलने में लगे हैं। जी हाँ, चुनावी सभाएँ करने में लगे हैं। वैसे सरकार जी जब चाहे झूठ बोल सकते हैं, उसके लिए चुनावों की जरूरत नहीं है।

 

चारों ओर सरकार जी की चर्चा है, सरकार जी के चुनावी भाषण की ही चर्चा है। झूठ की ही चर्चा है। सरकार जी बोलें, और चर्चा न हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता है। अब झूठ बोलेंगे तो झूठ की ही तो चर्चा होगी। ऐसा तो हो नहीं सकता कि सरकार जी झूठ बोलें और चर्चा हम सच की करें। क्या करें, बुजुर्गो ने ही समझाया कि सरकार जी हमेशा सच ही बोलते हैं। वे भी क्या करते? बुजुर्गो के ज़माने के सरकार जी जो बोलते थे, सच ही बोलते थे। और जो वे बोलते थे, वह सच होता था इसलिए उसका विश्वास किया जाता था।

 

खैर, इस चुनाव में सरकार जी को म अक्षर बहुत प्यारा है। वे सारे चुनाव में म ही म बोलते रहे हैं। मैं, मैं, और मोदी मोदी तो हमेशा बोलते ही हैं, इस बार बाकी जो भी बोला, म से ही बोला। म से मंदिर बोला, म से मुसलमान बोला, म से मंगलसूत्र बोला। म से मीट और म से मटन बोला। म से मछली भी बोला पर जिन्दा मछली नहीं बोला। हमारे बचपन की मछली नहीं बोला। मछली जल की रानी है, जीवन जिसका पानी है बोलने के लिए बाल मन चाहिए जो सरकार जी के पास है नहीं। सरकार जी ने बोला तो मरी हुई, भुनी हुई, तली हुई, उबली हुई मछली बोला। 

 

सरकार जी म से तो बोलते हैं पर पर म से महंगाई बिलकुल नहीं बोलते, म से मेहनतकश नहीं बोलते, म से मणिपुर नहीं बोलते। सरकार जी को जो पसंद आता है, वही बोलते हैं। सरकार जी का तो बस एक ही फंडा है। सरकार जी को है जो पसंद, वे वही बात कहेंगे; वे दिन को अगर रात चाहेंगे तो रात कहेंगे। तो सरकार जी ने म से वही बोला जो उनको पसंद है।

 

सरकार जी जरा परेशान रहने लगे हैं। उन्हें चैत्र बैसाख में ही सावन के सपने आने लगे हैं। इधर हम भी परेशान रहने लगे। म से मुसलमान के सपने आने लगे। मुसलमानो से जबरदस्ती जय श्री राम बुलवाने के सपने आने लगे। म से मस्जिद के सपने आने लगे। जलूस द्वारा मस्जिद के ऊपर पत्थर फैंकने और जबरदस्ती भगवा लहराने के सपने आने लगे। म से महिला में महिला पहलवानों के सपने आने लगे। उन पर लाठी बरसाती पुलिस के सपने आने लगे। मणिपुर में नग्न कर दौड़ाई जा रही महिलाओं के सपने आने लगे। मंगलसूत्र पहने एक सत्तर साल की उस वृद्धा के सपने आने लगे जिसका पति उसे पचास साल पहले छोड़ कर भाग गया था।

 

सरकार जी म के अलावा भ भी पसंद है। सरकार जी भ से भय समझते हैं और जनता में भय का ही संचार करते हैं। जब वे म से मंदिर, म से मस्जिद, म से मुसलमान, म से मंगलसूत्र, म से मछली, मतलब सरकार जी जब भी, कुछ भी बोल रहे होते हैं तो भ से भय ही दिखा रहे होते हैं। सरकार जी भ से भय ही समझते हैं, समझाते हैं। भ से भक्त भी भय समझते हैं। और सरकार जी भी भय का भयंकर वातावरण बना सरकार बना रहे हैं, सरकार चला रहे हैं और चुनाव लड़ रहे हैं।

 

सरकार जी ने भ से भैंस भी बोला। भैंस भी भय का वातावरण बनाने के लिए ही बोला। बोला कि यदि आपके पास दो भैंसें हैं तो एक कांग्रेस ले जाएगी। सरकार जी को उन लोगों की भैंस की चिंता नहीं थी जिनके पास दो या चार भैंसें हैं, सरकार जी को तो उन दो चार की चिंता है जिनके पास हजारों लाखों भैंसें हैं। सरकार जी ने सोचा कि कुछ और नहीं तो भैंस ही नैया पार करा देगी।

 

भ से एक और चीज होती है जिसे सरकार जी सीरियसली ले रहे हैं और सीरियसली कर रहे हैं। वह चीज है भ्रष्टाचार। सच में सरकार जी सीरियसली भ्रष्टाचार कर रहे हैं। सॉरी, सरकार जी सीरियसली भ्रष्टाचारियों का बचाव कर रहे हैं। लो फिर जुबान फिसल गई। कहना तो यह चाहता हूँ कि सरकार जी सीरियसली भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों का सुधार कर रहे हैं। उन्हें अपनी दल-दल में शामिल कर रहे हैं।

 

सरकार जी इस मामले में पूरे गांधीवादी हैं। रहन सहन और सोच के मामले में गांधीवादी हों या न हों, रोज चार जोड़ी कपड़े बदलें, लाखों की कलम हो और लाखों का चश्मा लगाएं, हर भाषण में समाज को बाटें पर भ्रष्टाचार के मामले में पुरे गांधीवादी हैं। बल्कि कहा जाए तो गांधी जी से भी ज्यादा गांधीवादी हैं। गांधी जी कहते थे पाप से घृणा करो पर पापी से नहीं। पर सरकार जी न तो पाप से घृणा करते हैं और न ही पापी से। न भ्रष्टाचार से घृणा करते हैं और न भ्रष्टाचारी से। इतने सदाचारी हैं हमारे सरकार जी। सरकार जी का मानना है, 'हम भ्रष्टन के, भ्रष्ट हमारे'। मतलब, हम भ्रष्टाचारियों के हैं और भ्रष्टाचारी हमारे हैं। 

 

सरकार जी हमेशा भ्रष्टाचार के साथ खड़े हैं, भ्रष्टाचारियों के साथ खड़े हैं। उनकी कार्य पद्यति मतलब मॉडस ऑपरेण्डी स्पष्ट है। पहले भ्रष्टाचार का आरोप लगाओ। फिर उसे ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स का डर दिखाओ। वैसे तो डर दिखाने की जरूरत ही नहीं है। वह तो खुद ही डर जायेगा। और जब डर जाए तो उसे अपने कुनबे में शामिल कर लो। उसे मुख्यमंत्री बना दो, उप मुख्यमंत्री बना दो, कैबिनेट में शामिल कर लो। इसके कई लाभ हैं। एक तो कुनबा बढ़ता जाता है। दूसरे भ्रष्टाचारी को रेड का भय भी समाप्त हो जाता है। जब सैंया भये कोतवाल तो डर कहे का।

 

यह तो हुई पापी को अपनाने की बात। पर सरकार जी ने पाप को भी अपनाया हुआ है। सरकार जी को भ्रष्टाचार से जरा भी घृणा नहीं है। उनका सिद्धांत है, भ्रष्टाचार करो पर ऐसे करो कि दिखे नहीं। कुछ खरीदो पर उसकी कीमत मत बताओ। कोई फंड बनाओ पर उसका हिसाब मत दो। पारदर्शिता के नाम पर इलेक्टोरल बांड जारी करो पर जनता से, कोर्ट से, सबसे छुपाओ। इससे बढ़कर ईमानदारी भला और क्या हो सकती है। और हमारे सरकार जी बस इतने ही ईमानदार हैं।

 

दशकों पहले सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी जी ने व्यंग्य लिखा था, 'हम भ्रष्टन के, भृष्ट हमारे'। आज लिखते तो भी यही लिखते। तब जिस पर मर्जी लिखा हो, आज लिखते तो हमारे सरकार जी पर ही लिखते, 'हम भ्रष्टन के, भृष्ट हमारे'

 

लिखते लिखते: म से मुजरा भी भी होता है और सरकार जी को वह बहुत ही पसंद है।



( तिरछी नज़र व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

 

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