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जापान-अमेरिका की 'द्वीप श्रृंखला' से बढ़ेगी चीन और रूस की नाराज़गी

क्योडो न्यूज़ द्वारा हाल ही में नैनसी द्वीप श्रंखला में, अमेरिका-जापान द्वारा एक सैन्य अड्डा बनाए जाने की साझा योजना का खुलासा किया गया था। इस क़दम पर निश्चित तौर पर प्रतिक्रिया होगी।
जापान-अमेरिका की 'द्वीप श्रृंखला' से बढ़ेगी चीन और रूस की नाराज़गी

पिछले शुक्रवार को क्योडो न्यूज़ एजेंसी ने जापान के सरकारी सूत्रों के हवाले से बड़ा खुलासा किया था। एजेंसी ने बताया कि टोक्यो और वाशिंगटन ने एक संयुक्त योजना का मसौदा तैयार किया है। इस मसौदे के तहत जापान के दक्षिण-पश्चिम में नैनसी द्वीप श्रृंखला पर एक सैन्य अड्डे का निर्माण किया जाएगा। इसका इस्तेमाल ताइवान में आपात स्थितियों से निपटने के लिए होगा। 

रिपोर्ट के मुताबिक़, अमेरिका और जापान के बीच वाशिंगटन में 7 जनवरी को विदेश और रक्षा मंत्रियों की बैठक हो रही है। इस बैठक में इस योजना पर औपचारिक सहमति बनाए जाने की संभावना है। 

रिपोर्ट के मुताबिक़, योजना के तहत, "अमेरिकी सैनिक शुरुआत में नैनसी द्वीप पर (जिसे रयुक्यु द्वीप के नाम से भी जाना जाता है) एक अस्थायी अड्डा बनाएंगे। यह दक्षिण-पश्चिम में ताइवान की तरफ जाने वाली द्वीपों की श्रृंखला में पहला अड्डा होगा। इन 200 द्वीपों में करीब़ 40 द्वीपों को संभावित स्थलों की सूची में रखा गया है। 

यह रिपोर्ट हाल में जापान के वाचाल प्रधानमंत्री शिंजो आबे की उस टिप्पणी के बाद आई है, जिसमें आबे ने कहा था कि ताइवान में किसी तरह की आपात स्थितियों का निर्माण, जापान और जापान-अमेरिका सुरक्षा गठबंधन के लिए भी आपात की स्थिति होगी। 

बता दें यह रिपोर्ट जापान संसद द्वारा रक्षा बजट में इज़ाफे के भी एक दिन बाद आई है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान द्वारा पहली बार रक्षा बजट में इतनी बड़ी वृद्धि की अनुमति दी गई है। 

अब यह देखना बाकी है कि जापान की सरकार युद्ध संबंधी संवैधानिक संशोधन के लिए कितना दबाव बनाती है। इस संशोधन के ज़रिए जापान को युद्ध शुरू करने का अधिकार हासिल हो जाएगा। जापान में दूसरे विश्व युद्ध के बाद लागू किया गया मौजूदा शांतिवादी संविधान सशस्त्र सेनाओं को सिवाए आत्मरक्षा को छोड़कर, युद्ध करने की अनुमति नहीं देता।

सात दशक पहले अमेरिका ने जापान पर यह शांतिवादी संविधान थोपा था। यह संविधान अमेरिका के जनरल मैकआर्थर की छोटी सी टीम ने सिर्फ़ एक हफ़्ते में तैयार किया था। जनरल मैकआर्थर, मित्र शक्तियों के सर्वोच्च सेनानायक थे। विडंबना है कि अब अमेरिका टोक्यो को इन प्रतिबंधों को हटाने और एक "सामान्य देश" बनने के लिए प्रेरित कर रहा है। ताकि जापान को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में युद्ध गठबंधन तंत्र में पूरी तरह शामिल किया जा सके।

जापान का सैन्यकरण आधुनिक इतिहास का तथ्य है। महामंदी ने जापान को बहुत बुरे तरीके से प्रभावित किया था और वहां सैन्यवाद के उभार को बढ़ावा दिया था। सीधे शब्दों में कहें तो ज़्यादा प्राकृतिक संसाधनों पर कब्ज़ा करने के लिए जापान अपना विस्तार करना चाहता था और प्रशांत में अपना साम्राज्य खड़ा करने का इच्छुक था। इसकी जड़ें पश्चिमी दुनिया के साथ कदमताल करने और जल्दी आधुनिक बनने के लिए किए गए सतत सैन्यकरण में खोजी जा सकती हैं।

तब और अब की स्थितियों में बहुत सारी समानताएं और असमानताएं हैं। मुख्य अंतर यह है कि 20वीं सदी की शुरुआत में पश्चिमी ताकतों द्वारा वैश्विक आधुनिकीकरण की लहर से जापान नाखुश था, जिसके चलते कई देशों को गुलाम बना लिया गया था और जिसके प्रभाव एशिया में महसूस किए गए थे। कुलमिलाकर जापान ने खुद को पश्चिमी शक्तियों के साम्राज्यवाद से बचाया था। 

खुद को पश्चिमी देशों के साथ युद्ध से बचान के लिए जापान ने एक रक्षात्मक राष्ट्रीय राज्य का निर्माण किया, जो बेहद प्रभावी सैन्य सरकार से सज्जित था। वहां राजनीतिक प्रतिष्ठान अपने देश की अर्थव्यवस्था और सेना के आपसी संबंध की मजबूती के आधार पर फ़ैसले लेते थे। 

निश्चित तौर पर यहां विचारधारा के स्तर पर भी समानांतर बदलाव हुए और जापान राष्ट्र एक उग्र, अति-राष्ट्रवादी राज्य को अपना पवित्र कर्तव्य मानने लगा। इस तरह जापान एक साम्राज्यवादी राज्य में बदल गया, जिसका लगातार औद्योगीकरण हो रहा था और जिसने चीन, कोरिया और मंचूरिया में हमले किए। 

बीजिंग और मॉस्को, जापान के कदमों से बहुत ज़्यादा चिंतित नज़र नहीं आते हैं। लेकिन वे इसके ऊपर नज़र बनाए हुए हैं, क्योंकि भूराजनीतिक वास्तविकता यह है कि अगर जापान का सैन्यकरण होता है, तो उसका जुड़ाव अमेरिका की चीन और रूस विरोधी "हिंद-प्रशांत" रणनीति से भी होगा। शायद चीन और रूस, जापान द्वारा अब तक के सबसे बड़े कदम (अपने युद्ध विरोधी संविधान को बदलने) को उठाए जाने के इंतज़ार में हैं।

रूस के अमेरिका के साथ यूक्रेन के मुद्दे पर चल रहे तनाव में सुदूर पूर्व का आयाम है। दूसरी बात, रूस और जापान ने अब तक अपने औपचारिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जो दूसरे विश्व युद्ध में दोनों देशों के बीच हुए टकरावों का खात्मा करती हो। रूस को अपने हित लगातार चीन के साथ मिलते नज़र आ रहे हैं।

23 नवंबर को रूस के रक्षामंत्री सर्जी शोइगु ने चीन के रक्षामंत्री वेई फेंघे से कहा कि रूस की पूर्वी सीमा पर अमेरिकी की हवाई गश्ती बढ़ गई है। 2020 में ओखोत्सक सागर के ऊपर 22 रणनीतिक उड़ानें भरी गईं, जबकि इससे पिछले साल में ऐसी सिर्फ़ 3 उड़ाने ही अमेरिकी विमानों द्वारा भरी गई थीं। रूस के रक्षामंत्री के मुताबिक़, इससे रूस और चीन दोनों को ख़तरा है। उन्होंने कहा, "इस पृष्ठभूमि में रूस और चीन का समन्वय, अंतरराष्ट्रीय मामलों में स्थिरता लाने का आधार बन रहा है। 

यह बातचीत दोनों रक्षामंत्रियों द्वारा सैन्य सहयोग पर 'रोडमैप' के ऊपर हस्ताक्षर करने के दौरान हुई। तीन दिन पहले ही चीन और रूस की हवाई सेना ने जापान सागर और पूर्वी चीन सागर के ऊपर संयुक्त रणनीतिक हवाई गश्ती की थी। चीन ने अपने दो H-6k विमानों को रूस के दो Tu-95MC विमानों के साथ गश्त पर भेजा था। 

चीन और रूस की सेनाओं द्वारा यह तीसरी संयुक्त रणनीतिक हवाई गश्त थी, जिसके ज़रिए "रणनीतिक सहयोग और संयुक्त क्षमताओं के स्तर को बढ़ाने और संयुक्त ढंग से वैश्विक स्थिरता" को बनाए रखने का लक्ष्य है।

इसके एक महीने पहले, 17 अक्टूबर को जापान सागर में संयुक्त नौसैनिक अभ्यास के बाद, चीन और रूस के दस ताकतवर जंगी जहाज़ों ने प्रशांत महासागर में त्सुगारू जलडमरूमध्य (स्ट्रेट) में जाने का अभूतपूर्व कदम उठाया था। यह दोनों की जापान को घेरने वाली पहली समुद्री गश्त थी।  

रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा, "गश्तों का उद्देश्य रूस और चीन के झंडों का प्रदर्शन, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखना और दोनों देशों की समुद्री आर्थिक गतिविधियों के विषयों की रक्षा करना था।"

स्वाभाविक तौर पर हाल के महीनों में जापान के साथ कुरिल द्वीप समूह की समस्या पर रूस ने कड़ा रुख अख़्तियार कर लिया है। राष्ट्रपति पुतिन ने सितंबर में एक नया प्रस्ताव पेश किया था, जिसमें रूस के नियमों के तहत इलाके में एक विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने की पेशकश की गई थी। साफ़ है कि रूस की योजना कुरिल द्वीप के लगातार विकास और इसके विलय को मजबूत करने की है। जापान ने इसका विरोध किया था। 

मॉस्को को डर है कि अगर इन द्वीपों को जापान को लौटा दिया गया, तो वहां अमेरिकी मिसाइलों की तैनाती हो सकती है, जो रूस की सुरक्षा को सीधा ख़तरा होगा। 2 दिसंबर को रूस के रक्षामंत्री ने अपनी घोषणा में कुरील द्वीपों पर उन्नत तटीय रक्षक मिसाइल तंत्र, बास्ताइल की तैनाती की जानकारी दी थी। 

रूस के रक्षामंत्री ने 21 दिसंबर को कहा कि अगले साल दो रणनीतिक अभ्यास, वोस्तोक और ग्रोम को अंजाम देने की भी योजना है। सुदूर पूर्व में वोस्तोक (पूर्व) अभ्यास, सभी रूसी सैनिकों के युद्धाभ्यास का एक अहम प्रशिक्षण है।   

क्योडो द्वारा अमेरिका-जापान की संयुक्त योजना के खुलासे के बाद, निश्चित तौर पर मॉस्को की तरफ से प्रतिक्रिया आएगी। क्योडो का कहना है कि अमेरिकी तैनाती में उच्च परिवहन क्षमता वाले आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम को भी लगाया जाएगा। बता दें रूस लगातार अमेरिका को जापान में मध्यम दूरी की मिसाइलों की तैनाती के खिलाफ़ चेतावनी देता रहा है। चीन भी लगभग यही कहता रहा है। चीन ने कहा भी है कि अगर अमेरिका ज़मीन आधारित मिसाइलों की तैनाती करता है, तो वो चुपचाप नहीं बैठेगा।  

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Japan-US ‘Island Chain’ Will Roil China, Russia

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