क्या आपके ‘श्रम सुधारों’ में श्रमिकों की बेहतरी भी शामिल है?
मोदी सरकार 2.O ने गुरुवार को औपचारिक रूप से शपथ ली और उसके बाद शुक्रवार को उनके अधिकतर मंत्रियों ने अपना कार्यभार संभाल लिया। शुक्रवार को ही मोदी सरकार की पहली कैबिनेट बैठक भी हुई, जिसमें कई महत्वपूर्ण निर्णय हुए, कई कल्याणकारी योजनाओं को मीडिया के सामने आकर बताया भी गया। चाहे वो सभी किसानों को छह हज़ार रुपये सालाना देना हो या फिर मज़दूरों को 60 साल की उम्र के बाद तीन हज़ार मासिक पेंशन हो, लेकिन कुछ अन्य नीतिगत बदलाव भी हुए। इनमें मज़दूर वर्ग के अधिकारों को खत्म करने के लिए प्रस्ताव भी पास हुए, जिसकी मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में भी कोशिश की गई थी परन्तु मज़दूर संगठनों के प्रतिरोध के कारण रुकना पड़ा था। ये हैं मज़दूरों के काफी लंबे संघर्ष के बाद बने 44 श्रम कानून, जिन्हें चार श्रम कानूनों में समटने की कोशिश है।
समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने कहा कि मोदी की नई सरकार की प्राथमिकता श्रम कानून बदलने और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूरों के कल्याण की योजनाएं लागू करने की होगी।
गंगवार से रिपोर्टरों ने जब पूछा कि श्रम और रोज़गार से संबंधित उनकी सरकार की क्या प्राथमिकताएं होगी, उन्होंने कहा, “आज की कैबिनेट बैठक में पहला एजेंडा था श्रम क़ानूनों को लेकर। इतना ही मैं आपको बता सकता हूं।”
शनिवार होते होते सरकार ने यह एकबार फिर साफ कर दिया की वो सरकारी क्षेत्र की कम्पनियों को बेचेगी, इसके साथ ही संसाधनों को अपने पूंजीपति मित्रों को देगी इसके साथ ही श्रमिकों के संरक्षण करने वाले कानूनो को भी ख़त्म करेगी।
शनिवार को नीति आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मीडिया से बात करते हुए कहा की सरकार विदेशी निवेशक भारतीय बाजार की तरफ आकर्षित करने के लिए शुरुआती 100 दिनों में बड़े आर्थिक सुधारों की घोषणा कर सकती है। यह भी संभव है कि सरकार एयर इंडिया सहित 42 सरकारी कंपनियों का या तो निजीकरण करेगी या बंद करेगी।
इसके आलावा नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने रॉयटर्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि मोदी सरकार द्वारा किए जाने वाले सुधारों में श्रम कानून में बदलाव, निजीकरण के लिए उठाए जाने वाले कदम और नए औद्योगिक विकास के लिए नए लैंड बैंक का सृजन शामिल होगा। यानी बड़े उद्योगपतियों को ज़मीनें दी जाएंगी वो भी रियायती दाम पर। विदेशी कंपनियों को मालिकाना हक और डेवलपमेंट के मामलों में कानूनी चुनौतियों जैसे जोखिम नहीं रहेंगे। विदेशी कंपनियों ने पिछले सालों में जिन जमीनों का इस्तेमाल किया उनमें से ज्यादातर कृषि भूमि थीं। ऐसे में ज़मीन के अधिकार, पर्यावरण और अन्य मुद्दों पर स्थानीय लोगों का विरोध झेलना पड़ा था।
कुमार ने कहा कि देश के जटिल श्रम कानून पर जुलाई में शुरू होने वाले संसद सत्र के दौरान विचार किया जा सकता है। इसका लक्ष्य 44 केंद्रीय कानूनों को चार संहिता- वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण और चौथा नौकरी के दौरान सुरक्षा, स्वास्थ्य और वर्किंग कंडीशंस में शामिल करना है।
श्रम कानूनों को खत्म कर औद्यागिक विकास या मज़दूरों के विनाश!
मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में भी भरसक प्रयास किया था की वो श्रम कानूनों को खत्म कर दे इसके पीछे उसका हमेशा तर्क होता है इससे औद्यौगिक विकास होगा लेकिन मज़दूर संगठनों का कहना है कि ये मज़दूरों के लिए किसी विनाश से कम नहीं होगा। ये सीधे तौर मज़दूरों के अधिकार को छीनने की कोशिश है। मंत्री जी ने श्रम कानूनों को बदलने के बारे में कहा, “सभी लेबर कोड को लोकसभा में पेश किया जाएगा। हम श्रम सुधारों के एजेंडे को पूरा करने की पूरी कोशिश करेंगे। लेकिन हम इस पूरी प्रक्रिया में ट्रेड यूनियन, मालिक और सामाजिक संगठनों की भी सलाह लेना चाहते हैं।”
श्रम मंत्री संतोष गंगवार बरेली से आठवीं बार जीतकर संसद में आये हैं। उन्हें श्रम और रोज़गार मंत्रालय में राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार का दर्जा दिया गया है। पिछले सरकार में भी वो श्रम मंत्रालय का ही जिम्मा इन्हीं के पास था।
इनके ही नेतृत्व नीम परियोजना, फ़िक्स टर्म एम्प्लायमेंट योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना आदि शुरू की गई थी। जिसमें मज़दूरों के मौलिक अधिकारों को अनदेखा किया गया था। मज़दूर अभी तक नीम और फ़िक्स टर्म एम्प्लायमेंट योजना के खिलाफ संघर्ष कर रहे है। इसके अलावा भी कई ऐसे नियम बने गए थे जिसको लेकर, पिछली मोदी सरकार के कार्यकाल में श्रम कानूनों के बदलाव को लेकर मज़दूरों में काफ़ी गुस्सा है। सरकार के पहले दिने के निर्णय के बाद से एकबार फिर मज़दूर वर्ग में भारी आशंका है, अब तो बस इंतजार है की 'प्रचंड' बहुमत वाली सरकार क्या क्या करती है।
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