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म्हारो राजस्थान में स्वास्थ्य सेवा निचले पायदान पर

जन स्वास्थ्य अभियान के डॉक्टर नरेंद्र ने कहा कि यह साफ दिखाता है कि राजस्थान सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए गंभीर नहीं है।
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image courtesy: Hindustan times

राजस्थान में दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और यही वजह है कि जनता अब सरकार के विभिन्न कामों का आंकलन कर रही है। इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे राजस्थान में स्वास्थ्य सेवाओं कि स्थिति पर। राजस्थान स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे पिछड़े राज्यों के गिना जाता है। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में 21 बड़े राज्यों में राजस्थान 20वें स्थान पर है। यह तथ्य निसंदेह राज्य की स्वस्थ्य सेवाओं की खस्ता हालत को बताता है।

साल की शुरूआत में आई इस रिपोर्ट में नीति आयोग ने स्वस्थ्य राज्यों की एक सूची बनाई थी। इसके मुताबिक राजस्थान स्वास्थ्य के क्षेत्र में सिर्फ उत्तर प्रदेश से बेहतर है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पाँच साल में राजस्थान का लिंग अनुपात बहुत ही खराब रहा है। राज्य में पाँच साल तक के बच्चों में 1000 लड़कों पर सिर्फ 887 लड़कियाँ हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 1000 लड़कों पर 919 लड़कियों का है। इसी तरह राजस्थान में नवजात मृत्यु दर पैदा हुए 1000 बच्चों पर 28 है, जबकि राष्ट्रीय दर 24 है । 

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए जन स्वास्थ्य अभियान के डॉक्टर नरेंद्र ने कहा कि यह साफ दिखाता है कि राजस्थान सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए गंभीर नहीं है। साथ ही उन्होंने कहा कि राजस्थान सरकार स्वास्थ्य सेवाओं का लगातार निजीकरण कर रही है, जिससे सेवाएँ महंगी होने के कारण आम जनता से दूर होती जा रहीं हैं।

2016 में राजस्थान सरकार ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के अंतर्गत 41 पब्लिक हेल्थ सेंटर निजी हाथों में दे दिये। इस काम के अंतर्गत तय हुआ कि सरकार 5 साल के लिए निजी संस्थाओं को पब्लिक हेल्थ सेंटर चलाने के लिए 22 से 35 लाख रुपये देगी। इस पार्टनरशिप में हुआ यह कि सरकार ने निजी संस्थाओं को इमारत, दवाइयाँ और उपकरण दिये और निजी संगठनों ने स्टाफ प्रदान किया। 2017 में और 57 पब्लिक हेल्थ सेंटर भी पीपीपी के अंतर्गत अंतर्गत लाये गए।

पब्लिक हेल्थ सेंटर का काम टीकाकरण, चेकअप करना, मलेरिया और डेंगू की जाँच करना, सरकारी स्कीमों को लागू करना और बीमारियों से बचाव करने के तरीके बताना है। लेकिन निजी हाथों में दिये जाने के बाद इन सेंटरों में कुछ खास बदलाव देखने को नहीं मिला है। बताया जा रहा है कि यह बचाव के तरीके नहीं बताते हैं, इनके सरकारी संस्थानों से ज़्यादा महंगे होने कि खबर भी है। यही वजह है कि 2016 में जन स्वास्थ्य अभियान  हाईकोर्ट में इसके खिलाफ गया था। उनका कहना था कि यह पैसा कमाने का ज़रिया बन जाएगा और इससे सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की कड़ी भी टूट जाएगी । 

देखा गया कि यह संस्थान बड़ी बीमारियों के लिए मरीज़ो को सरकारी के बजाय निजी अस्पतालों में भेजते हैं। साथ ही इन हेल्थ केयर सेंटरों की स्वास्थ्य अफसरों के प्रति कोई स्पष्ट जवाब देही भी नहीं है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान में 2010 से 2017 के बीच सिर्फ एक सरकारी ज़िला अस्पताल बनाया गया है। जहाँ पहले 70 सरकारी  प्राथमिक स्वस्थ्य केन्द्रों में डॉक्टर नहीं थे वहाँ अब 167 में नहीं हैं। पहले जहाँ 218 सर्जन चाहिए थे वहीं अब 452 सर्जनों की ज़रूरत है।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए डॉक्टर नरेंद्र ने कहा कि बड़े सरकारी अस्पताल नहीं बनाए जा रहे और निजी अस्पतालों को तरजीह दी जा रही है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में लायी गयी भामाशाह योजना में भी घपला चल रहा है। इस स्कीम के अंतर्गत गरीब परिवारों को छोटी बीमारियों के लिए 30,000 का और बड़ी बीमारियों के लिए 3 लाख का बीमा मिलता है। लेकिन डॉ. नरेंद्र के मुताबिक अस्पताल बीमा के अंतर्गत इलाज करने के बजाय मरीज़ों को अंधेरे में रखकर उनसे पैसा वसूल करते हैं।

कांग्रेस सरकार के अंतर्गत निशुल्क दवाओं और जांच करने की स्कीम चालू की गयी थी। लेकिन डॉ. नरेंद्र के अनुसार यह अब ठीक ढंग से लागू नहीं की जा रही है। होता यह है कि निशुल्क दवाओं के बजाय डॉक्टर अब दूसरी दवाएं लिख देते हैं और अब इसकी ठीक ढंग से निगरानी नहीं की जा रही है।

यह सभी राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की बेहद शर्मनाक स्थिति की ओर इशारा कर रहे हैं। विधानसभा चुनावों में स्वास्थ्य सेवाओं की इतनी खराब स्थिति बीजेपी सरकार के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा बन सकती है।

 

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